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आरक्षण पर निबंध | Essay on Reservation In Hindi

आरक्षण पर निबंध | Essay on Reservation In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज के निबन्ध में आपका स्वागत हैं यहाँ हम आरक्षण की समस्या पर अनुच्छेद, भाषण, निबंध सरल भाषा में बता रहे हैं. इस लेख को पढने के बाद हम जान पाएगे कि आरक्षण क्या है तथा वर्तमान स्थिति, लाभ हानि आदि पर चर्चा करेंगे.

आरक्षण पर निबंध | Essay on Reservation In Hindiआरक्षण पर निबंध | Essay on Reservation In Hindi

आरक्षण एक ऐसा कानून है, जो पिछड़े लोगो को सुरक्षित बनाता है. तथा उन्हें हर क्षेत्र से सहायता प्रदान करता है. वैसे तो भारतीय सविंधान में समानता का अधिकार हम सभी को है.

पर आरक्षण एक कानून है, जो पिछड़ी जातीय लोगो को विशेष रूप से सहायता प्रदान करते है. आरक्षण आज से ही नहीं बल्कि लम्बे समय से चला आ रहा है.

औपनिवेशिक काल में जिस प्रकार दलित वर्ग और धनवान लोग कर नहीं देते थे. तथा छोटे वर्ग के लोग कर वसूली करते थे. इसी कारण कुछ वर्ग पिछड़ गए. जिनकी स्थिति में सुधार के लिए आरक्षण नीति को लागू किया गया.

आधुनिक समय में भारत के समक्ष कई विकराल समस्याएं एवं चुनौतियां विद्यमान हैं. इनमें से आतंकवाद, अलगाववाद, सांप्रदायिकता के साथ ही देश भर में आरक्षण को लेकर समय समय पर उठती मांगे तथा विरोध की समस्या भी बढ़ती ही जा रही हैं.

समाज के कई लोग वर्तमान आरक्षण व्यवस्था के पक्ष में तर्क देते है तो वही इसका विरोध करने अथवा आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने के पैरोकार भी हैं.

इस संघर्ष की वजह से हमारे देश में अशांति एवं एकता को तोड़ने वाली शक्तियाँ बार बार हावी होने लगी हैं. भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद संविधान का जो प्रारूप तैयार किया गया.

उसमें अनुसूचित जाति एवं जन जाति के लोगों आरक्षण देने की विशेष व्यवस्था की गई थी. संविधान निर्माता जानते थे कि इस तरह की व्यवस्था देश के दीर्घकालीन हित में नहीं हैं,

अतः उन्होंने आगामी दस वर्ष के लिए ही आरक्षण की व्यवस्था रखने की बात कही थी. संविधान निर्माताओं का मानना था कि दबी हुई एवं पीड़ित जातियों को एक बार व्यवस्था में लाने के बाद वे स्वयं अपने पैरों पर खड़े होने के योग्य बन सकेगे.

सहारे के रूप में शुरू हुई आरक्षण व्यवस्था को दस वर्ष पूर्ण होने के बाद हटाने की बात आई तो देश में कई दलों ने अपने राजनितिक स्वार्थ के लिए चुनावी मुद्दा बना लिया.

वाकई में आरक्षण की व्यवस्था को बनाने का उद्देश्य समाज के पिछड़े वर्ग को ऊपर उठाना था उनके जीवन स्तर में मूलभूत सुधार लाने थे, इसके लिए रोजगार एवं नौकरियों में आरक्षण के प्रावधानों को लागू किया जाना था.

मगर राजनीतिक चालबाजी के चलते यह अपने उद्देश्यों को पूर्ण नहीं कर पाया. इसका परिणाम यह हुआ कि एक अनिश्चितकालीन सांविधानिक व्यवस्था को निरंतर बढ़ाया जाता रहा. 

नतीजा हम सभी के समक्ष है आज भी आरक्षित समुदाय के गरीब लोग इसके लाभ को नहीं ले पाए रहे हैं, जबकि सम्पन्न लोग इसे एक हथियार के रूप में उपयोग कर रहे हैं.

भारत सरकार ने हाल ही में स्वर्ण जातियों के गरीबों के लिए भी दस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की हैं. इन सबके बावजूद आरक्षण की व्यवस्था संतोष जनक नहीं है तथा इसे आर्थिक आधार पर लागू किये जाने की महत्ती आवश्यकता हैं.

हमारे देश में केन्द्रीय सेवाओं तथा राज्य स्तरीय नौकरियों में निरंतर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा हैं, इसके कारण युवा वर्ग में आक्रोश का होना भी वाजिब हैं.

इस व्यवस्था के चलते इच्छुक एवं योग्य व्यक्ति आज नौकरी पाने में विफल रहता है इससे बेरोजगारी की दर भी तेजी से बढ़ी हैं. देश के कई राज्यों ने आरक्षण की अधिकतम सीमा को ७५ प्रतिशत तक कर दिया हैं.

केंद्र सरकार ने भी मंडल कमिशन की सिफारिशों को मानकर देश के युवकों के साथ छल किया हैं. समय समय पर देश में आरक्षण विरोधी आन्दोलन खड़े हुए हैं.

यह युवाओं के आक्रोश के प्रस्फुटन के रूप में आता हैं. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आरक्षण के विषय को लेकर सख्त निर्देश दिए है जिसके चलते आरक्षण का राजनीतिकरण कम होगा तथा यह युवाओं के आक्रोश को भी कम करने में मददगार साबित होगा.

आरक्षण की समस्या के समाधान खोजने की आवश्यकता महसूस की जा रही हैं. अब इस व्यवस्था में मौलिक बदलाव लाकर इसके योग्य एवं गरीब तथा पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ दिया जाए.

अब समय आ गया है जब आरक्षण को जातियों के आधार से अलग कर इसे आर्थिक आधार पर लागू करना होगा. जिससे गरीब एवं उच्च जातियों के गरीब लोग भी इसका फायदा उठा सके, असल में यह तबका ही आरक्षण का असली हकदार ही हैं.

हमारी न्यायिक व्यवस्था को भी चाहिए कि वह आरक्षण के विषय में समय समय पर होने वाले आंदोलनों को रोकने तथा राज्यों द्वारा मनमानी ढंग से आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के सम्बन्ध में सख्त आदेश जारी करे तथा इसके राजनीतिक दुरूपयोग को कम करने के लिए भी कुछ कदम उठाए जाए. 

राजनीतिक दलों के नेताओं को भी समझना चाहिए कि वे किसी जाति विशेष के लगाव या दुराग्रह के चलते उनके लिए आरक्षण की न तो पैरवी करे न ही उसका विरोध करे.

अयोग्य व्यक्ति यदि आरक्षण की बैशाखी के सहारे किसी पद तक पहुचता है तो वह अनुचित हैं. इस तरह सही कदम उठाने से युवा वर्ग के आक्रोश को भी कम किया जा सकेगा तथा समाज में भी अच्छे संदेश जाएगे.

अंत में यही कहा जा सकता है गरीब तथा पिछड़े लोग चाहे वह किसी भी समाज, जाति से सम्बद्ध रखते हो उनके मुख्यधारा में लाने तथा रोजगार के अवसरों में बराबर की भागीदारी के लिए आरक्षण उपलब्ध करवाना चाहिए.

इस व्यवस्था का मूल लक्ष्य भी हैं. तभी योग्य लोग सेवाओं में पहुच सकेगे तथा राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होगी.

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