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बचपन पर निबंध Essay on Childhood in Hindi

बचपन पर निबंध Essay on Childhood in Hindi:- बचपन वो लम्हे है, जिन्हें कभी भुला नहीं सकते बचपन की कहानिया आज भी मन मोहित कर देती है. आज हम बचपन पर निबंध के माध्यम से बचपन के बारे में पढेंगे.

बचपन पर निबंध Essay on Childhood in Hindi

बचपन पर निबंध Essay on Childhood in Hindi

मेरा बचपन पर निबंध Mera Bachpan Essay in Hindi

हमारे बचपन की अवस्था हमारे पैदा होने से लेकर के तकरीबन 13 से 14 साल तक रहती है, क्योंकि इतनी उम्र तक बच्चों को इतनी ज्यादा समझ नहीं होती जितना कि उन्हें होनी चाहिए। इसलिए कहा जाता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं।

मेरे बचपन की बात करूं तो मेरा जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो मध्यम वर्गीय परिवार कहलाता है। इसीलिए मुझे अपने बचपने में काफी ज्यादा प्यार दुलार मिला था, जिसका एक कारण यह भी है कि मैं अपने परिवार में तीन भाई बहनों में से सबसे छोटा था।

वो दिन थे बेहद खास,
जब मम्मी पापा होते थे पास,
अब तो जिंदगी से है बस यही आस,
दोबारा बचपन लौट आए मेरे पास।

बचपन में हम सभी गिरते, उठते हैं और बड़े होने पर यह घटनाएं हमें हमारे माता-पिता के द्वारा बताई जाती हैं परंतु हमें बचपन की अधिकतर घटनाएं याद ही नहीं होती हैं ऐसे में हम उन्हें यह कहकर चुप करा देते हैं कि ऐसा हुआ ही नहीं है।

हर आदमी के बचपन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी होती हैं जो बड़े होने पर जब उसे लोगों के द्वारा बताई जाती है तब उसे खुद ही यह आश्चर्य होता है कि ऐसा भी हो सकता है क्या।

बचपन में मुझे मेरे दादाजी और घर के अन्य सदस्यों के द्वारा खूब चॉकलेट और मिठाई दी जाती थी और कोई भी त्यौहार आता था तो हमें किसी ना किसी व्यक्ति के जरिए नए कपड़े भी त्योहारों पर पहनने के लिए प्राप्त होते थे।

इसके अलावा हमें अक्सर रविवार के दिन घूमने के लिए भी लेकर जा जाता था क्योंकि रविवार के दिन छुट्टी होती थी। मैं आज भी अपने बचपन को बहुत ही ज्यादा याद करता हूं और कभी-कभी यह सोचता हूं कि काश में फिर से छोटा हो जाऊं।

बीता बचपन कितना प्यारा था,
मां-पापा का मैं दुलारा था,
सबकी आंखों का तारा था,
बीता बचपन कितना प्यारा था।

Essay on Childhood in Hindi

प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक बचपन होता है। इसी प्रकार मेरा भी बचपन हुआ करता था। जब मे एक छोटा बालक था। तब मे चाहता था। कि मै जल्द ही बड़ा हो जाऊ और और युवा बन जाऊ।

बड़े होने के बाद मेरे यही सपने मुझे बचपन की और मुझे आकर्षित करते है। मुझे बार-बार बचपन की बाते याद आती है। सचमुच मे बचपन के दिन बड़े प्यारे और मनोरंजक होते हैं।

बात है उन दिनों की जब हम बच्चे थे,
बोलते थे झूठ लेकिन लगते सच्चे थे,
सब कहते थे हम बहुत अच्छे थे,
असल में तो हम अकल के कच्चे थे।

जीवन मे यही समय शांतिपूर्ण होता है। मेरा तन-मन सभी की ये एक ही आशा है। कि वे बचपन के दिन वापस लौटे बचपन के समय कि मज़ाक, बचपन के दोस्त, बचपन मे की जाने वाली शरर्थियों मेरे मन को आज भी मनमोहित कर देती है।

बचपन मे हम हर समय खैलते, लड़ाई-झगड़ा करने, रेत के घर बनाते तथा रेत के लड्डू बनाते थे। सुबह से लेकर शाम तक कोई कार्य नहीं करना पड़ता था। इसलिए ज्यादा समय खैलने-कूदने मे बिताते थे।

रात के समय तक तो चेहरा ही बदल जाता था। बचपन मे हम अपना गृह कार्य पूर्ण नहीं होने के कारण हम कोई बहाना बनाकर विद्यालय नहीं जाते थे।

जिस दिन विद्यालय जाते मेरे दोस्तो के साथ मिलकर हम बच्चो से लड़ाई-झगड़ा करते थे। जीवन का सबसे आंददायक समय बचपन को माना जाता है।

बचपन के समय मे हर तरह खुशिया ही खुशिया नजर आती है। परस्थिति चाहे कैसी भी क्यो न हो। बचपन मे हम अपने भविष्य अपने भले-बुरे अपने भविष्य की कोई चिंता (चिंतामुक्त जीवन) नहीं होती है।

बचपन के समय तो घूमना-फिरना ही प्रमुख कार्य था। अपने दोस्तो के साथ मिलकर नीडर होकर लड़ाई करते थे। क्योकि मेरे साथ मेरा दोस्त होता था। जो कि हर समय मेरे साथ रहता था। बचपन के समय घूमना-फिरना उछलना-कूदना, खाना-पीना ही सबसे अच्छा लगता था।

खुशियों से अपनी दुनिया सजाएं,
जहां बिना टेंशन खूब नाचे गाएं,
अपने मन के गीत गुनगुनाएं,
क्यों न एक बार फिर बचपन में खो जाएं।

मेरा स्वभाव बहुत ही दयनीय था। मै मेरे दोस्तो भाइयो-बहनो से हर समय लड़ाई-झगड़ा करता रहता था। परंतु लड़ने के बाद मुझे बहुत बुरा महसूस होता था। तथा मेरी इस हरकत के कारण मेरे परिवार के लोग भी मुझे डांटते थे।

बाद मै मुझे भी मेरी गलती महसूस होने पर मुझे बहुत दुख होता था। इसलिए मैंने जल्द ही लड़ाई-झगड़ा करना छोड़ दिया तथा सभी के साथ प्रेमभाव से रहना ही मेरे लिए उचित समझा जो कि मेरे लिए कारगर साबित हुआ।

मेरे स्वभाव मे एकदम बदलाव देख सभी आश्रयचकित हो गए। और सभी मेरे साथ प्रेमपूर्वक रहने लगे।हम हमारे दादाजी द्वारा बनाए गए एक विशाल तथा माटी से निर्मित घर मे रहते थे। हमारा परिवार एक कृषि परिवार था। 

हमारे परिवार का प्रमुख व्यवसाय कृषि ही था। मेरे दादाजी कहते थे। कि हमारा देश किसानो को निर्भर है। जिस प्रकार किसान मानसून पर होते है। उसी प्रकार हमारा ये देश भी किसानो पर निर्भर रहता है।

मेरे दादाजी भी कृषक थे। मेरे पिताजी भी कृषि का ही कार्य करते थे। कृषि ही हमारे परिवार की प्रमुख आमदनी थी। इसके बल पर हम अपना पेट भरते थे।

मेरा जन्म एक मध्यम वर्ग के परिवार मे हुआ था। मेरे पिताजी अनपढ़ (शिक्षा से रहित) थे। वे ज्यादा धनवान भी नहीं थे। मेरा परिवार एक सयुंक्त तथा उच्च संस्कारी परिवार होने के कारण मैंने भी मेरे परिवार से अच्छे संस्कार प्राप्त किये।

मेरा परिवार बहुत ही अच्छे स्वभाव तथा अच्छे आचरण वाला परिवार था। इसलिए मेरे परिवार की पहचान बहुत लंबी थी। पहचान ज्यादा होने के कारण मेरे घर पर हर रोज अतिथि (मेहमान) आते रहते थे। मेरी माँ सारे घर का काम करती थी। जो कि उनके लिए बहुत ज्यादा था। उनके कार्यो मे मै भी उनकी सहायता करता था।

मेरे पिताजी का स्वभाव बहुत अच्छा था। वे विवेकशील थे। इसलिए वे अनावश्यक वस्तुओ को नहीं खरीदते थे। वे जरूरतमन्द वस्तुओ को खरीदने तो कोई कंजूसी नहीं करते थे। उनका मानना था। कि हमे किसी कि देखा-देखी नहीं करनी चाहिए।

हमे हमेशा अपनी स्थिति के मुताबिक ही चलना चाहिए। न कि किसी ने कर खरीदी तो हमे भी कर खरीदनी है। हमे अपनी हैसियत के आधार पर ही कार्य के बारे मे सोचना चाहिए। या करना चाहिए।

प्रत्येक बालक के लिए अच्छे संस्कार का वातावरण होना जरूरी है। जो कि मेरे परिवार से मुझे उच्च संस्कार तथा ज्ञान मिला जिसके कारण मुझसे सभी लोग प्यार करते थे। चाहे मेरे परिवार जन हो या मेरे शिक्षक गण हो।

मै घर के साथ-साथ विद्यालय मे भी सबसे अच्छा संस्कारी तथा ज्ञानी बालक था। मै हर बार मेरे विद्यालय मे श्रेष्ठ रहता था। जिसका प्रमुख कारण मेरा पढ़ाई के प्रति लगाव तथा शिक्षको द्वारा अच्छा ज्ञान तथा परिवार का अच्छा सहयोग था। मेरे दादाजी पढे-लिखे थे। उनके किताबों को पढ़ने का बहुत शौक था।

वे बाजार मे आने वाली नई-नई किताबों को खरीदकर पढ़ते थे। दादाजी मुझसे बहुत प्यार करते थे। तथा मुझे किताब पढ़ाते थे। और फिर दादीजी मुझे श्रेष्ठ व्यक्तियों तथा राजा-महाराजाओ के समय की बाते सुनाती थी। 

इस प्रकार के मौहोल होने के कारण मै बचपन से ही किताबों को ज्यादा पढ़ा करता था। जिसके कारण मुझे किताब पढ़ना अच्छा लगता था। और आज भी मुझे किताब पढ़ना सबसे अच्छा लगता है।

मेरे दादा-दादी मुझे कहानियो के माध्यम से मुझे अच्छे आचरण सभी के साथ अच्छे व्यवहार, बड़ो का आदर करने की शिक्षा देते थे। मै बचपन से ही बहुत होशियार तथा प्रतिभाशाली विद्यार्थी रहा हूँ।

मै समय पर विद्यालय जाकर खूब मेहनत करता था। जिससे मे मेरी कक्षा का श्रेष्ठ विद्यार्थी था। मै मेरा गृह कार्य समय पर कर लेता था। तथा समय मिलने पर मे निबंध लेखन का कार्य करता था।

मेरे बचपन की कही यादे है। जिसमे कई प्रिय लगती है। कई अप्रिय भी थी। मेरा बचपन घरेलू इलाको मे बीता इसलिए मुझामे घरेल संस्कार प्राप्त हुए थे। एक बार मेरे विद्यालय मे एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। जिसमे सभी विद्यार्थियो को निबंध लेखन करवाया गया।

मै लेखन बहुत अच्छे ढंग से करता था। इसलिए मै उस प्रतियोगिता मे सबसे अव्वल रहा तथा इससे मेरी चर्चाए पूरे विद्यालय मे होने लगी। इसके बाद मुझे शिक्षको ने लेखन के कार्य को करने की सलाह दी थी।

बचपन की स्मृतियों एक विचित्र-सा आकर्षण होता था. कभी-कभी लगता था. जैसे- बचपन की सभी घटनाओ को सपने में देखा हो. मेरे बचपन की स्थिति तथा आज के बच्चो के बचपन की अथिति में काफी बदलाव देखने को मिलते है.

मेरे परिवार का सबसे छोटी उम्र का में ही था. इसलिए सभी मुझसे ज्यादा प्यार करते थे. तथा इससे मुझे बहुत सम्मान भी मिलता था.

मेरा बचपन बहुत अच्छा बिता मुझे वह सब सहन नहीं करना पड़ा जो मेरे बाकि दोस्तों को सहन करना पड़ा होगा. जो अन्य बच्चो के साथ होता है. जैसे- आर्थिक स्थिति के कारण विद्यालय नहीं जा पाना इस प्रकार की कोई बाधा मेरे सामने नहीं आयी जिससे मुझे समस्या का सामना करना पड़े.

मेरे दादा-दादी मुझसे बहुत प्यार करते थे. वे मुझे बचपन से ही ''पंचतंत्र'' की कहानिया सुनाते थे. तथा मुझे अपने जीवन में किस प्रकार का आचरण करना, व्यवहार, सांगत, आत्मविश्वास का प्रयोग किस प्रकार करना,अनुशासन.तथा प्रकृति से जुडी कहानिया सुनाते थे.

वे हर समय कहानिया सुनाकर मेरा मनोरंजन करते तथा इससे मेरा मनोरंजन भी हो जाता तथा ज्ञान भी मिल जाता था. बचपन से ही हमारे परिवार का वातावरण पढाई के लिए अनुकूल था.

प्रत्येक व्यक्ति को यदि बचपन से ही नैतिक शिक्षा ग्रहण कराई जाए तो वह नैतिक शिक्षा के अनुसार चलकर अपने सम्पूर्ण जीवन को सफल तथा समृध्द बना सकता है. यहाँ पर एक शब्द आया है.

नैतिक शिक्षा. नैतिक शिक्षा क्या होती है? नैतिक शिक्षा के अंतर्गत हमें सदाचार की महता, प्रिय वाणी की आवश्यकता फायदे, परोपकारी पुरुष के स्वभाव, गुणार्जन की प्रेरणा, सच्ची मित्रता का स्वरूप, संगती का असर, शोभा की प्रशंसा, भक्ति कैसे करनी, दुष्ट दोस्ती के परिणाम आदि की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करना ही नैतिक शिक्षा होता है.

पेड़ बचाओ पेड़ लगाओ नारा पढ़ा जिसे पढ़ने के बाद मुझे जानकारी मिली की ये हमारे लिए कितने उपयोगी है। जिसके बाद मैंने हमारे वातावरण के अनुसार 10 से 15 नीम के वृक्ष लगाए।

और उनकी भरपूर सेवा की जिसके बाद वे बड़े होकर हमे शुद्ध ऑक्सीज़न (श्वास लेने के लिए उपयोगी वायु) देती है। और कार्बन जैसे हानिकारक वायु को अपने मे समाहित कर लेती है।

तथा हमे गहरी और ठंडी छाया भी प्रदान करती है। इसलिए पेड़-पौधो हमारे बहुत ही लाभदायी होते है। इसलिए हमे ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए। और सभी को इसके लिए प्रेरित करके पेड़-पौधो के बारे मे जानकारी प्राप्त करना चाहिए।

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