राजस्थान में किसान आंदोलन | rajasthan kisan andolan GK question answer: राजस्थान की राजनीतिक आर्थिक सामाजिक संरचनाए सामंती रही है अंग्रेजों के प्रभाव में आकर शासकों जागीरदारों तथा सामंतों नहीं किसानों का ध्यान किसानों की ओर आकर्षित नहीं हो पाया उन पर लाग बाग बढ़ा दिए उनसे बेकार लेना आरंभ कर दिया अधिक फसल होने पर भी किसान को जागीरदार द्वारा लाभ न देने आदि कारणों ने राजस्थान में किसान आंदोलनों का आगाज होने की पृष्ठभूमि तैयार कर दी
1903 ईस्वी में राव कृष्ण सिंह ने किसानों par Sawari namak कर एक नया और कर लगा दिया जबकि अकाल के कारण किसानों की स्थिति पहले से खराब थी.
राजस्थान में किसान आंदोलन पर निबंध | Rajasthan Kisan Andolan Essay In Hindi
बिजोलिया किसान आंदोलन- बिजोलिया वर्तमान भीलवाड़ा जिले में स्थित है यहां किसान आंदोलन 1897 ईसवी से प्रारंभ होकर 1941 ईस्वी तक चला ग्य भारत का प्रथम किसान आंदोलन का इस आंदोलन का प्रारंभ में नेतृत्व साधु सीतारामदास ने तथा 1916 ईस्वी से विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया.यहां पर जागीरदार राव कृष्ण सिंह ने जनता पर 84 प्रकार के कार्य लगा रखे थे जिसकी विरोध में किसानों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया 18 संतानों इसी में बिजोलिया की किसानों ने इसकी शिकायत मेवाड़ के महाराणा से की लेकिन उनकी शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की गई फल स्वरुप जनाक्रोश में वृद्धि हुई.
1906 में बिजोलिया के जागीरदार Prithvi Singh बने पृथ्वी सिंह ने प्रजा पर तलवार बंधाई नामक एक और नया कर थोप दिया राव पृथ्वी सिंह की जब लूट और शोषण चरम सीमा को पार कर गया तो 1913 ईस्वी में किसानों ने साधु सीतारामदास फतेह करण चारण व ब्रह्मदेव के नेतृत्व में क्षेत्र में हल चलाने से मना कर दिया.
इससे बिजोलिया ठिकाने को बहुत अधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ी इसके बाद जनता पर अत्याचार और बढ़ गए
मेवाड़ सरकार ने अप्रैल 1919 में बिजोलिया की किसानों की शिकायत की सुनवाई हेतु मांडलगढ़ के हाकिम बिंदु लाल भट्टाचार्य की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया.
मेवाड़ सरकार ने अप्रैल 1919 में बिजोलिया की किसानों की शिकायत की सुनवाई हेतु मांडलगढ़ के हाकिम बिंदु लाल भट्टाचार्य की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया.
आयोग ने किसानों के पक्ष में अनेक सिफारिशें की किंतु मेवाड़ सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया परिणाम स्वरुप आंदोलन फिर से शुरू हो गया फरवरी 1922 ईस्वी में राजस्थान के एजी जी रॉबर्ट हॉलैंड ने किसानों से बातचीत कर 35 प्रकार के लगानों को माफ करने की घोषणा की परंतु दुर्भाग्य से ठिकानों की कुटिलता के कारण यह समझौता स्थाई रूप नहीं ले सका
माणिक्य लाल वर्मा भी इस आंदोलन में जुड़ गए सन 1927 में नए बंदोबस्त के विरोध में किसानों ने अपनी भूमि को छोड़ दिया व ठिकानों पर दवाब बनाना चाहते थे.
ऊंची लगाने का विरोध कर रहे थे और इसमें इन्होंने विजय सिंह पथिक से विचार-विमर्श करने के बाद भूमि छोड़ने का फैसला लिया परंतु किसानों की धारणा के विपरीत ठिकानों द्वारा भूमि की नीलामी कर दी गई.
भूमि को नए किसान मिल गए इसके बाद किसानों ने अपनी भूमि वापस लेने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया माणिक्य लाल वर्मा ने किसानों को संगठित किया और एक नई जान फूंक दी.
यह आंदोलन नहीं ऊंचाइयों को छूने लगा फलस्वरुप मेवाड रियासत के प्रधानमंत्री सर विजय राघवाचार्य व किसानों के मध्य 1941 में एक समझौता हुआ और इस समझौते की बदोलत यह आंदोलन समाप्त हो जाता है तथा यह भारत का एकमात्र सबसे लंबा चलने वाला पहला किसान आंदोलन होता है
सीकर किसान आंदोलन
इस किसान आंदोलन का प्रारंभ सी के ठिकाने की नई राव राजा कल्याण सिंह द्वारा 25 से 50% तक भू राजस्व बढ़ोतरी करने से हो गया.1923 ईस्वी में राव राजा कल्याण सिंह करो में कमी करने के अपने वायदे से अलग हो गए इस कारण राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में किसानों ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई 1931 ईस्वी में राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा की स्थापना से इस आंदोलन को एक और नई ऊर्जा प्राप्त हुई.
इस आंदोलन में महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही 25 अप्रैल 1934 ईस्वी में कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी के अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया.
25 अप्रैल 1935 ईस्वी को जब किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया तो पुलिस ने कूदन गांव में किसानों पर गोलियां चला दी जिसमें 4 किसान वीरगति को प्राप्त हो गई इस हत्याकांड की गूंज ब्रिटिश संसद तक सुनाई दी.
1935 ईस्वी के अंत तक किसानों की अधिकांशत मांगे मान ली गई इस आंदोलन के प्रमुख नेतृत्व करता सरदार हरलाल सिंह नेतराम सिंह पन्ने सिंह हरूसिंह गौरव सिंह लेखराज और ईश्वर सिंह आदि थे इस प्रकार राजस्थान के इस सीकर किसान आंदोलन काफी हद तक अपनी सफलता में कामयाब रहा.
बेंगू किसान आंदोलन
डेंगू मेवाड़ का एक ठिकाना था यहां की किसानों ने बिजोलिया किसान आंदोलन से प्रेरित होकर 1921 ईस्वी में आंदोलन आरंभ कर दिया यहां के किसान भी लगान बुलावा के अत्याचारों से पीड़ित थी.राजस्थान मेवाड़ संघ के सदस्यों यथा विजय सिंह पथिक रामनारायण चौधरी एवं माणिक्य लाल वर्मा ने बैंकों की किसानों में जागृति लाने का काम किया.
बेंगू ठिकाने की शिकायतों के समाधान के लिए मेवाड़ के बंदोबस्त आयुक्त ट्रेस के नेतृत्व में एक आयोग बनाया गया बेंगू किसान ट्रेस के निर्णय पर विचार-विमर्श करने के लिए गोविंदपुरा में एकत्रित हुए.
जहां 13 जुलाई 1923 ईस्वी को किसानों पर गोलियां चलाई गई जिसमें रूपाजी कृपा जी नामक दो किसान शहीद हो गए तथा 500 से अधिक किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया.
राजे की अत्याचारों से किसानों की मनोबल को गिरने से रोकने के लिए विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन का नेतृत्व थाम लिया मेवाड़ सरकार द्वारा उन्हें 10 दिसंबर 1923 ईस्वी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया इसके बाद आंदोलन धीरे-धीरे बिना नेतृत्व के कारण समाप्त हो गया
बरड़ किसान आंदोलन
बूंदी राज्य के ब्रेड क्षेत्र के किसानों ने अनेक प्रकार की लगाने बेगार उसी लगान की दरों के विरोध में अप्रैल 1922 ईस्वी को आंदोलन का आरंभ कर दिया इस आंदोलन का नेतृत्व नयनूराम शर्मा ने किया.2 अप्रैल 1923 ईस्वी को डाबी गांव में नयनू राम शर्मा की अध्यक्षता में चल रही सभा पर गोलियां चलाई गई जिसमें नानक भील व देवलाल गुर्जर शहीद हुए.
इस आंदोलन में राजस्थान सेवा संघ ने भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया 1927 ईस्वी के पश्चात राजस्थान सेवा संघ अंतर्विरोध के कारण बंद हो गया तत्पश्चात बूंदी का आंदोलन भी समाप्त हो गया
नीमूचणा किसान आंदोलन
यह आंदोलन लगान लागबाग व बेगार के विरुद्ध 14 मई 1925 ईस्वी को अलवर राज्य के किसानों के लगान वर्द्धि के विरुद्ध बानगोर तहसील के निमूचणा गांव मैं एक किसानों के द्वारा सभा का आयोजन किया गया.जिस पर ब्रिटिश सरकार ने बिना पूर्व सूचना के गोलियां चलवा दी जिसमें 156 व्यक्ति मारे गए तथा सरस्वती घायलों के महात्मा गांधी ने इस काम को जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी अधिक भयानक बताया तथा इसे दोहरी डायर शाही की संज्ञा दी.
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