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मच्छर की आत्मकथा Autobiography Of A Mosquito In Hindi

नमस्कार दोस्तों मच्छर की आत्मकथा Autobiography Of A Mosquito In Hindi का एक रचनात्मक निबंध आपके लिए लेकर आए हैं. छोटी कक्षाओं के बच्चे इस निबंध के जरिये मनुष्य के दुश्मन मच्छर के बारे में रोचक कहानी के रूप में जानकारी प्राप्त कर सकेगे. चलिए एक मच्छर की आत्मकथा को उसकी जुबानी जानते हैं. 

मच्छर की आत्मकथा Autobiography Of A Mosquito In Hindi

मच्छर की आत्मकथा Autobiography Of A Mosquito In Hindi

मैं मच्छर हूँ. इंसान के खून का प्यासा मच्छर. छोटा सा जरुर हूँ, लेकिन इंसान का बहुत बड़ा और खतरनाक दुश्मन हूँ. मैं इंसान पर घर में, स्कूल कॉलेज में, दूकान दफ्तर में, रेल में, बस में, चलते फिरते, लेटते बैठते कही भी, किसी भी हाल में हमला कर सकता हूँ.

मैं डरपोक भी नहीं हूँ. कई बार तो मैं आदमी के बिलकुल कान के पास पहुचकर अपने हमले का बिगुल बजाता हूँ और आदमी सिर या हाथ हिलाने से अतिरिक्त कुछ नहीं कर पाता.

मेरा जन्म स्थल? कहीं भी, जहाँ तीन चार दिन से पानी रुका हो मेरा जन्म स्थल हो सकता हैं. वे गमले हो सकते हैं, कूलर हो सकते है, आपकी छत पर पड़ी डिब्बियां, शीशियाँ या फिर टूटी फूटी ऐसी वस्तुएं हो सकती हैं, जिसमें पानी रुकता हो.

यदि घर या उसके बाहर खुली नालियाँ हैं, कूड़ा करकट, गोबर, कीचड़, गारा हैं तो वह मेरी वंश वृद्धि के लिए वरदान हैं. लाखों के रूप में हजारों की संख्या में मेरी वंश वृद्धि होती हैं. और हफ्ते में पूर्ण रूप ले लेता हूँ. गाँव में पोखर, कुँए, खेत के आसपास जहाँ भी पानी भरा रहता हो मेरे सुरक्षित और विशाल आरामगाह होते हैं.

मैं आपके घरों के उन सीलन भरे कोनों में भी जन्म ले सकता हूँ, जहाँ धुप और रौशनी नहीं पहुचती है जिन स्थानों की प्रतिदिन ठीक से सफाई नहीं होती. वैसे तेज धूप, ताप और अधिक सर्दी मुझे रास नहिउन आती. सीलन भरा नम मौसम ही मेरे अधिक अनुकूल हैं.

मैं यह भी बता दूँ कि मेरी अनेक प्रजातियाँ हैं, मेरी एक प्रजाति ऐसी भी है जो ताजे पानी में ही पैदा होती और पनपती हैं. आपने बर्तन साफ़ कर दिए और उन्हें बिना सुखाएं गीले ही रख दिए तो मैं वही पैदा हो सकता हूँ.

नल हर समय टपकता रहता है, कही पानी बिना ढके रखा रहता हैं या फिर किसी एक ही स्थान पर थोड़ी थोड़ी देर बाद गिरता रहता है तो हम वहां जन्म ले सकते हैं. और हमारी सबसे खतरनाक नस्ल होती हैं डेंगू फैलाने वाली नस्ल.

आदमी का शरीर, उसके शरीर का प्रत्येक अंग मुझे रसीले लाल फूल सा नजर आता हैं. और मैं फूलों का रस पीने वाले भंवरों की तरह उसके अंगों पर मंडराने लगता हूँ. खून पीता हूँ, मेरे डंक से आदमी को असह्य पीड़ा तो नहीं होती, थोड़ी सी खुजली अवश्य होती हैं, डंक अपना निशान अवश्य छोड़ता हैं. अधिक खुजली होने पर उस स्थान से खून भी निकल सकता हैं.

असली कहर ढाती है मेरी मादा. यह खून पीने के साथ ही मलेरिया फैलाती हैं, जो महामारी का रूप ले लेता हैं और पूरी की पूरी बस्तियां मौत के मुहं में पहुच जाती हैं. पिछले कुछ दशकों से अनेक तरह के उपाय करके आदमी ने मलेरिया पर काबू पाया है, लेकिन उसे पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाया हैं और मलेरिया से भी ज्यादा खतरनाक तथा जानलेवा हैं डेंगू बुखार.

आदमी मेरा पीछा करता है तरह तरह के जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव करके. ये रसायन उसके अपने लिए मेरे से अधिक खतरनाक सिद्ध होते हैं और कुछ समय बाद तो मुझे भी इसकी आदत सी पड़ जाती हैं. इनका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं होता है. क्योंकि मैं हूँ मच्छर. बचना चाहते हो तो बचिए, मेरा वंश मत बढ़ने दीजिए.

उम्मीद करता हूँ दोस्तों मच्छर की आत्मकथा Autobiography Of A Mosquito In Hindi का यह लेख आपकों अच्छा लगा होगा. यहाँ दी गई मच्छर की आत्मकथा आपकों पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें.