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मेरा विद्यालय पर निबंध Essay on My School In Hindi

मेरा विद्यालय पर निबंध:- शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले वाले विद्यालय ही राष्ट्र के भविष्य के निर्माण की नींव को खड़ा करते हैं. विद्यालय सरकारी या निजी हो सकते हैं मगर सभी का ध्येय केवल बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करना होता हैं.इस लेख में हम विद्यालय पर निबंध विद्यार्थियों के लेकर आए है.

मेरा विद्यालय पर निबंध Essay on My School In Hindi

मेरा विद्यालय पर निबंध Essay on My School In Hindi
विद्यालय का धर्म होता हैं कि वह समाज की जरूरत के हिसाब से भावी नागरिकों को प्रशिक्षित करे. मैं ऐसे ही एक आदर्श सरकारी विद्यालय में पढ़ता हूँ. गाँव के बीचों बीच स्थित मेरा विद्यालय घर से 3 किमी की दूरी पर हैं. मैं सवेरे उठने के बाद एक घंटे पूर्व स्कूल के लिए घर से निकल जाता हूँ.

मै विद्यालय में जाने से पूर्व मेरे माता-पिता के चरण स्पर्श करता हूँ,तथा विद्यालय जाकर गुरुजन को नमस्कार करता हूँ.तथा मेरे दोस्तों को सुप्रभात बोलता हूँ.इस प्रकार में दिन की शुरुआत करता हूँ.विद्यालय में सुबह साफ-सफाई का कार्य हम सब मित्र मिलकर करते है.

मेरा विद्यालय मुझे बहुत प्रिय हैं. इसके कई कारण हैं हमारे स्कूल ने कई बार जिले में शिक्षा, अनुशासन व खेलों में अपनी सर्वोच्चता को साबित भी किया हैं. स्कूल में शिक्षण व्यवस्था बड़ी रोचक तरीके से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं.

मेरे स्कूल का भवन एक मंजिला ही हैं जिसमें २० बड़े कमरे हैं. कक्षा 1 से 12 तक के ८०० बच्चें नित्य अध्ययन के लिए आते हैं. २० अध्यापक पूर्ण कर्तव्य निष्ठां के साथ अध्यापन का कार्य करवाते हैं.

स्कूल में सफाई की व्यवस्था चपरासी देखते हैं. मगर कई बार प्रार्थना प्रांगण की सफाई स्टूडेंट्स ही करते हैं. मेरे विद्यालय के दिन की शुरुआत प्रार्थना सभा से होती हैं जिसमें विद्या की देवी माँ सरस्वती की आराधना की जाती हैं.

प्रार्थना के कार्यक्रम में अखबार के मुख्य समाचारों के वाचन के साथ ही नियमित रूप से सुविचार तथा सामान्य ज्ञान के प्रश्न भी पूछे जाते हैं. 

प्रधानाचार्य जी हमें नित्य अच्छी अच्छी बाते बताते हैं. इसके बाद सभी कक्षाओ के बच्चें कक्षाओं के लिए प्रस्थान करते हैं.

प्रत्येक कक्षा में सर्वप्रथम दैनिक उपस्थिति दर्ज कराई जाती हैं यह कार्य कक्षाध्यापक द्वारा सम्पन्न करवाया जाता हैं. इसके बाद चार कालांश में विविध विषयों के शिक्षक हमें पढाते हैं तथा मध्यांतर के 30 मिनट के बाद फिर से चार कालांश की पढ़ाई होती हैं.

सरकारी नियमो के अनुसार सर्दियों के मौसम में हमारी स्कूल के प्रारम्भ होने का समय दस बजे प्रातः तथा छुट्टी का समय चार बजे का रहता हैं जबकि गर्मी तथा बरसात के मौसम में विद्यालय का समय 7 बजे से 12 बजे तक का निर्धारित होता हैं.

मेरे विद्यालय के प्रांगण के मध्य में एक बड़ा खेल का मैदान हैं जहाँ सभी बच्चे खाली समय में अपनी पसंद की क्रीड़ा करते हैं. जो बच्चें खेल में रूचि नहीं रखते है वे पास ही बने बगीचे में बाते करते हैं एक दुसरे के साथ मस्ती करते नजर आते हैं.

नित्य सभी स्टूडेंट्स विद्यालय की गणवेश में सज धज कर आते हैं. हमारे विद्यालय में अनुशासन तथा शिष्टाचार का पालन सभी बच्चें व गुरुजन करते हैं. समय पर समस्त क्रियाकलाप तथा गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं.

अन्य विद्यालयों की तरह ही हमारे विद्यालय में गणतन्त्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती तथा वार्षिकोत्सव के कार्यक्रमों का आयोजन हर साल बड़ी धूमधाम के साथ किया जाता हैं जिसमें स्टूडेंट्स बढ़ चढकर हिस्सा लेते हैं.
विद्यालय पर निबंध 

मेरे विद्यालय का नाम सरस्वती विद्या मंदिर है, जो गुजरात राज्य के वडोदरा शहर के आजावा रोड के पास स्थित है। मैंने सरस्वती विद्या मंदिर विद्यालय से कक्षा 3 से लेकर के कक्षा दसवीं तक की पढ़ाई की है और इस दरमियान मैंने अपने कई दोस्त भी बनाए हैं जो आज भी मेरे दोस्त हैं।

मेरे विद्यालय में जितने भी टीचर है, सभी विद्यार्थियों के साथ काफी अच्छा बर्ताव करते है और जब वह हमें क्लास में पढ़ाने के लिए आते थे.

तब हम उनकी बातों को ध्यान से सुनते थे। मेरा विद्यालय काफी बड़ा है जिसमें तकरीबन 15 से 18 कमरे हैं और इन सभी कमरों में अलग-अलग एक क्लास चलती है।

हमारा विद्यालय टोटल 2 पाली में चलता है जिसमें सुबह की पाली की टाइमिंग 7 से लेकर 12 तक की होती है और दोपहर के पाली की टाइमिंग 1:00 बजे से लेकर के 5:00 बजे तक की होती है। 

विद्यालय में हमें रोजाना 5 घंटे पढ़ाई करनी होती थी। इन 5 घंटों में हमें अलग-अलग विषयों की पढ़ाई कराई जाती थी। हमें साल में एक बार विद्यालय के द्वारा पिकनिक भी लेकर जाया जाता था जहां पर हम सभी अपने दोस्तों के साथ काफी इंजॉय करते थे।

हमारे विद्यालय में हर साल सभी प्रकार के त्यौहार और 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को भी बड़े ही धूमधाम के साथ सेलिब्रेट किया जाता था।

मैंने भी कई बार 26 जनवरी के दिन आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया है। हमारे विद्यालय का नाम सबसे बढ़िया विद्यालय में भी आता है, इसलिए अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को यहां पर पढ़ने के लिए भेजते हैं।

मेरा विद्यालय

विद्यालय वह स्थान होता है। जिससे हम विद्या ग्रहण करते है। विद्यालय का शाब्दिक अर्थ है। विद्या का आलय मतलब विद्या का घर ही विद्यालय है।

विद्यालय मे समय पर आकर नियमित पढ़ाई करना हमारा धर्म है। विद्यालय शिक्षा ग्रहण कराने के लिए बनाए जाते है। विद्यालय मे अनुशासन रखना सबसे जरूरी माना जाता है। विद्यालय जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है।

विद्यालय वह स्थान होता है जहां विद्यार्थी नियमित रूप से जाकर विद्या प्राप्त करता है विद्यालय दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें एक विद्या तथा दूसरा आलय है है जिसमें विद्या का अर्थ ज्ञान और आलय का अर्थ घर है अर्थात विद्या का घर ही विद्यालय है

विद्यार्थी जीवन जीवन मे बचपन सबसे महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। बचपन मे जिम्मेदारियो का बोझ भी नहीं होता है। बचपन को खुल कर बिताना चाहिए।

यही जीवन का सबसे शांत भाग माना जाता है। इस बचपन मे अपने भविष्य की कोई फिकर नहीं होती है।ऐसे मस्त जीवन के पीछे कारण होता है। हमारा विद्यालय।

मेरा विद्यालय मुझे बहुत अच्छा लगता है। विद्यालय हमारे भविष्य को बेहतर बनाते है। हमारे अंदर की प्रतिमा को खोज देता है। स्वय को उसके लायक बना देता है।

मेरे विद्यालय का स्थान

मै राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय होडु मे पढ़ता हूँ। ये विद्यालय गाँव के बीच मे स्थित है। यहा पर शांति का माहौल बना रहता है। हमारे विद्यालय के आगे तथा पीछे दो बगीचे है। जिससे हरियाली बनी रहती है।

हरियाली होने के कारण चारो तरफ का वातावरण शुद्ध होता है। हम बगीचे मे बैठकर शांति का माहौल बनाते है। बगीचे से हमे शुद्ध वायु भी मिलती है। मेरा विद्यालय मेरे घर से 2 किमी दूरी पर स्थित है। मै विद्यालय पैदल जाता हूँ।

मेरे विद्यालय को मै मेरा घर समझता हूँ। मेरा विद्यालय बाकी विद्यालयो से काफी आगे है हमारे विद्यालय मे हर वर्ष बहुत अच्छा बोर्ड का रिज़ल्ट आता है। इससे हमारा और हमारे गाँव का नाम रोशन होता है। हमे हमारे विद्यालय पर गर्व है।

विद्यालय की विशेषताएं

मेरे विद्यालय की कई विशेषताए है। मेरे विद्यालय का भवन बहुत सुंदर तथा बड़ा है। मेरे विद्यालय मे पढ़ाई बहुत अच्छी चलती है। मेरे विद्यालय मे सभी बच्चे अनुसाशन के साथ पढ़ते है।

हमारे शिक्षक भी हमसे बहुत प्यार कराते है। हमारे विद्यालय मे लगभग 500 पेड़-पौधे है। हम हर वार्षिक उत्सव को विद्यालय मे पौधे लगते है।

तथा उनकी सेवा करते है। हमारे विद्यालय स्वच्छता के बारे मे जिले मे सबसे आगे है। हमारे विद्यालय मे प्रधानाचार्य से लेकर छात्र-छात्राओ तक सभी अपनी श्रद्धा तथा पूर्ण मन से विद्यालय की सफाई कराते है।

विद्यालय को स्वच्छ रखने के लिए सभी को जागरूक होना जरूरी होता है। जैसा कि हमारे विद्यालय मे विधित है। हमारे विद्यालय मे दो पानी के प्याऊ है। जिससे हम सभी पानी पीते है।

बालक तथा बालिकाओ योग करते है। हमारे विद्यालय मे आठ मीठे पानी के टांके भी है । हम उसकी सफाई एक साल मे एक बार करते है। हमारे विद्यालय मे एक विद्या कि देवी माता सरस्वती का एक बहुत सुंदर तथा बड़ा मंदिर है।

जिसमे हम हर गुरुवार को माँ सरस्वती को प्रसाद चढ़ाते है। माँ सरस्वती को प्रसाद चढ़ाकर आशीर्वाद प्राप्त करते है। हमारे विद्यालय मे लगभग 35 कमरे है जिसमे हम सब बैठकर पढ़ाई करते है।

हर कमरे मे पंखो की व्यवस्था की गई है। अपने-अपने कमरो की सफाई अपने आप कर लेते है। जिससे सभी कमरो मे सफाई बनी रहती है।

हमारे विद्यालय के पीछे दो बड़े मैदान भी है। जिसमे हम ब्रेक के समय खेलते है। तथा शाम को भी खेलते है। हमारे विद्यालय की चारदीवारी बहुत विशाल तथा सुंदर बनी हुई है। जिससे हमारे विद्यालय की शोभा बढ़ती है।

हमारे विद्यालय के पीछे हॉस्टल की सुविधा भी है। जिसमे बच्चे रहते है। हमारे विद्यालय मे एक ''लाइब्रेरी रूम''भी है। जिसमे किताबे रखते है। हमारे विद्यालय मे ''स्टाप रूम''भी है जिसमे शिक्षक आराम करते है।

एक ''कंप्यूटर रूम''जिसमे कंप्यूटर का कार्य किया जाता है। हमारे विद्यालय मे एक ''प्रधानाचार्य रूम'' है जिसमे हमारे प्रधानाचार्य बैठते है।

विद्यालय की परिकल्पना

विद्यालय आज के जमाने से शुरू नहीं हुए। विद्यालय बहुत पूर्व काल मे भी हुआ करते थे। हमारा भारत सदियो से ज्ञान का स्रोत बना हुआ था। पूर्व कालो मे विद्यालय की जगह गुरुकुल हुआ करते थे।

आदिकाल से ही राजा महाराजा सभी गुरुकुल मे ही पढ़ा करते थे। बड़े-बड़े राजा अपना रजवाड़ा छोड़कर ज्ञान-प्राप्ति के लिए गुरुकुल मे जाया करते थे।भगवान और क्रष्ण भी गुरुकुल मे जाते थे। इस संसार मे गुरु का पद भगवान से भी बढ़कर है। क्योकि जो भगवान नहीं सिखाते वह गुरु सिखाते है।

विद्यालय की भूमिका

हमारा सबसे महत्वपूर्ण समय बाल्यकाल मे गुजरता है। ये समय ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है। इस समय मे हम अपने मित्र बनाते है। तथा मित्रो के साथ खेलते है हंसी-मज़ाक करते है।

हम दोस्तो के साथ रहकर आनंद अनुभव करते है। बालक अपनी परेशानी शिक्षक को बताता है। विध्यार्थी के लिए सही रास्ता उनके शिक्षक बताते है।

मेरे विद्यालय मे स्वछ्ता

मेरा विद्यालय बहुत ही स्वच्छ है मेरे विद्यालय मे कभी गंदगी हम नहीं रहने देते है।विद्यालय कि सफाई के लिए सभी को जागरूक होना जरूरी है। हमारे विद्यालय मे समय-समय पर साफ-सफाई के कार्यक्रम किए जाते है। हम हर बार इसमे भाग लेते है। तथा मन लगाकर अपने विद्यालय की सफाई करते है।

स्वच्छता के नियम

हमारे विद्यालय के नियमो का सभी पालन करते है। हमारे शिक्षक और हम विद्यालय की स्वच्छता का ध्यान रखते है। हमारे विद्यालय मे स्वच्छता के नियम बनाए गए है। जो कि निम्न है-
  1. प्रत्येक कक्षा के बाहर छोटे-छोटे कूड़ेदान रखे होने चाहिए। विद्यार्थी को कूड़ा खुले में नहीं डालना चाहिए। बल्कि उन्हें कूड़ेदान में ही डालना चाहिए।
  2. विद्यार्थी को कूड़ा खुले में नहीं डालना चाहिए। बल्कि उन्हें कूड़ेदान में ही डालना चाहिए।
  3. स्कूल के मैदान की सफाई प्रतिदिन करनी चाहिए। क्योंकि बच्चे के खेलने का मैदान वही है।
  4. पानी की टंकी की प्रतिमाह सफाई होनी चाहिए और स्कूल में आने वाले पानी की समय-समय पर जाँच करनी चाहिए।
  5. विद्यार्थियों को अपनी और अपने कपड़ो को स्वच्छ रखना चाहिए।
  6. बच्चों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
  7. समय-समय पर स्कूल में साफ सफाई संबंधी प्रतियोगिताएँ करवाई जानी चाहिए।
  8. शौचालयों की नियमित रूप से सफाई की जाती है ।
हम जब विद्यालय मे प्रवेश करते है तो हम छोटे पौधे की तरह होते है। हमारे शिक्षक हमे ज्ञान देकर बड़ा बनाते है। हमे इस संसार का ज्ञान कराते है। हमारा विद्यालय का परिणाम हमेशा सभी विद्यालयो से टॉप पर रहता है।

हमारे विद्यालय का परिणाम शत परिणाम ही रहता है। मै हर वर्ष मेरी क्लास मे प्रथम स्थान लाता हूँ। और मुझे हर वर्ष इनाम मिलता था। मुझे खुद पर ग्रव होता है की मेरा नाम हजारो बच्चो के बीच बोला जाता है। और बड़े नेता मुझे ईनाम भेंट करते है।

इससे हमे यह शिक्षा मिलती है कि हर बच्चा मेहनत करके बड़ा बन सकता है।विद्यालय मे सभी गरीब,अमीर,अनाथ के प्रति समान रूप से व्यवहार किया जाता है।

बच्चे के मन मे पढ़ने की जिज्ञासा होनी चाहिए। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद विद्यालय के यादगार पलो को बाद मे याद करते है। मे मेरे विद्यालय से बहुत प्यार करता हूँ।