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बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध | Essay on Bal Vivah Ek Abhishap in Hindi

बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध | Essay on Bal Vivah Ek Abhishap in Hindi: नमस्कार फ्रेड्स आज हम बाल विवाह (Child Marriage) एक सामाजिक अभिशाप समाज पर कंलक एक बुराई पर संक्षिप्त निबंध स्पीच सरल शब्दों में यहाँ बता रहे हैं.

Essay on Bal Vivah Ek Abhishap in Hindi

बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध | Essay on Bal Vivah Ek Abhishap in Hindi

लड़के तथा लड़की की परिपक्वता की आयु के हुए बिना विवाह करना अर्थात बालपन में विवाह करना ही बाल विवाह कहलाता है. जो एक कुरीति है, जो समाज को प्रभावित कर रही है.

समाज में प्राचीन समय से प्रचलित यह कुरीतिया समाज के वास्तविक ताने-बाने को प्रभावित कर रही है. समाज का बाल्यवर्ग जो हमारा भावी भविष्य है, उसकी परिपक्व आयु से पूर्व ही शादी कर उसे वैवाहिक बंधन की जिम्मेदारी देकर उसे मानसिक तथा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है.

अपरिपक्वता की इस आयु में विवाह से कई प्रकार की शारीरिक तथा मानसिक विकृतिया देखने को मिल सकती है. इसलिए एक उचित समय होने पर ही विवाह किया जाए जिससे व्यक्ति अपना सर्वगीण विकास कर सकें.

शिक्षा प्राप्त कर जीवन को ऊंचाईयों की बुलन्दियो तक पहुँचने अपनी प्रतिभा को पंख देने की उम्र में विवाह कर देना एक बालक के कौशल के साथ खिलवाड़ ही सिद्ध होगा. इस अवस्था को अपने करियर बनाने में दिया जाए तो निश्चित ही सुखद जीवन की प्राप्ति होगी.

सामान्यता लड़का जब 21 वर्ष की आयु का और लड़की 18 आयु की हो जाने पर परिपक्व माने जाते है. तथा इसी समय उनकी शादी करनी चाहिए. ताकि वे अपने जीवन को सही ढंग से चला सकें.

हमारे समाज में बाल विवाह एक अभिशाप की तरह बढ़ता जा रहा है. कई कानूनों में भी इसे अपराध बताया गया है. पर लोगो की जागरूकता के अभाव में यह बढ़ता जा रहा है.

बाल विवाह या चाइल्ड मैरिज अर्ली मेरिज का अर्थ यह है कि छोटी उम्रः में ही लड़के लड़की का विवाह कर देना, भारत समेत संसार के कई देशों के आधुनिक समाज में यह मध्यकालीन रुढ़िवादी परम्परा विद्यमान हैं.

भारत में इस तरह के विवाह बड़े स्तर पर देखे जाते हैं जब नासमझ बच्चों को विवाह के बंधन में बाँध दिया जाता हैं जब वे शादी जैसे पवित्र रिश्ते का क ख ग भी नहीं जानते हैं. 

भारत में मध्यकाल में इस कुरीति का प्रचलन हुआ और तब से यह निरंतर चली आ रही हैं. आक्रान्ताओं द्वारा हिन्दू बहन बेटियों के जबरन अपहरण की घटनाओं को रोकने के लिए एक हथियार के रूप में शुरू हुई प्रथा आज के समय के लिए अप्रासंगिक हो चुकी हैं. बाल विवाह के चलन के पीछे कई कारण थे जिससे इसकों सामाजिक स्वीकृति मिली थी.

भारत में बाल विवाह की स्थिति को दर्शाने वाले आंकड़े बेहद भयावह हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ 35 प्रतिशत बेटियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही कर दिया जाता हैं. 

नगरों की बजाय गाँवों में यह कुप्रथा अधिक चलन में हैं. कम उम्रः में विवाह करने से शादी का खर्च कम होता है तथा दहेज भी नहीं देना पड़ता हैं बुजुर्ग अपने जीवित रहते पौत्री का विवाह देखने से स्वर्ग पाने का विश्वास भी इस प्रथा को रोकने में बड़ी बाधाएं हैं. 

आज के समय में जब प्रेम विवाह अधिक लोकप्रिय है ऐसे में कम उम्रः में होने वाले बाल विवाह आगे चलकर वैवाहिक जीवन में कलह तथा आपसी झगड़ों का कारण बनता हैं. 

कई बार तलाक की समस्या की उत्पन्न हो जाती हैं बाल विवाह के कारण स्त्रियों के स्वास्थ्य में गिरावट, संतुलित विकास में बाधक तथा प्रसूता व शिशु की मृत्यु दर में वृद्धि के रूप में इसके दुष्परिणाम आज हम भुगत रहे हैं.

मूल रूप से समाज में अशिक्षा तथा जागरूकता की कमी के कारण बाल विवाह में समाज में अपनी गहरी पैठ बना रखी हैं. आज भी मध्यकालीन सोच रखने वाले लोग बेटी को पराया धन अथवा बोझ समझते है. 

भारत में राजाराममोहन राय ने बाल विवाह को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा कानून पारित करवाया था उस समय लड़के के विवाह की आयु 18 वर्ष तथा लड़की की आयु 14 वर्ष की थी, स्वतंत्र भारत में विवाह कानून में बदलाव करते हुए अब विवाह की न्यूनतम आयु लड़के के लिए 21 वर्ष तथा लड़की के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई हैं.

सरकारी स्तर पर बाल विवाह रोकने के लिए कई कानून बनाकर इसे गैर कानूनी बनाया हैं जिसके तहत इस तरह के विवाह करने वाले वर वधू तथा उनके माता पिता को कठोर सजा देने के प्रावधान हैं. हमारे समाज से इस अभिशाप को मिटाने के लिए सभी को जागरूक होकर इस कुरीति को खत्म करना होगा.

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