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सत्यवादी पर निबंध | Essay on satyawadi In Hindi

सत्यवादी पर निबंध Essay on satyawadi In Hindi: हेलो दोस्तों आपका स्वागत है आज का निबंध सत्य एवं उसका अनुसरण करने वाले सत्यवादी पर दिया गया है. स्कूल के स्टूडेंट्स सच्चाई ईमानदारी पर स्पीच भाषण के रूप में इसका उपयोग कर सकते हैं.

Essay on satyawadi In Hindi सच्चाई या सत्य पर निबंध Essay on Truth in Hindi

सत्यवादी हमेशा से मारा गया, ये परम्परा आज की नहीं हजारों सालों से चली आ रही हैं. ग्रीस के महान दार्शनिक को इसलिए जहर का कटोरा पिलाया गया, क्योंकि वह सदा सत्य बोलता था. 

सत्य की प्रकृति अमूमन कड़वी ही होती हैं. मजबूरी की बजाय कोई भी इंसान उस कड़वे घूंट को नहीं पीना चाहता हैं. ईसा को भी समाज ने इसी बीमारी के चलते चूली पर चढ़ा दिया था.

आज के इस समय में झूठ की दुनिया या दिखावे की दुनिया सबको पसंद आती है, यहीं यदि कोई सत्य वचन बोलता है, तो वो किसी के भी नही पच पाते है, क्योकि मानवीय प्रवृति से सत्यता घायब होती जा रही है.

सत्य बोलने वाले तथा उसको सहन करने वाले नमात्र ही है. जो इस संसार में सत्य के पथ पर चलता है, वो सत्यवादी हो जाता है, पर उसको जीने के लिए इस संसार के साथ संघर्ष करना पड़ता है.

सबसे सभ्य माने जाने वाले अमेरिकी समाज में आज भी श्वेत अश्वेत का भेद तथा जातीय दुर्व्यवहार चरम पर हैं, डॉ किंग अपने अहिंसक आंदोलन के जरिये गोरे अमेरिकन का ह्रदय परिवर्तन होने की आस में थे. 

उनका आंदोलन अश्वेतों को बराबर सामाजिक प्रतिष्ठा देने को लेकर चलना मगर उनकी निर्भीक सत्यता  उनकी मौत का कारण बनी. सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश देने वाले गांधी स्वयं गोली का शिकार हुए थे.

आज भी सदियों पुराना सवाल हमारे सामने फिर से हाजिर हैं क्या सत्यवादी लोग इसी तरह मारे जाएगे. क्यों नहीं दुनियां सभी को बराबर हक देने की बात स्वीकार कर लेती. 

यदि यह ही माजरा रहा तो लोग सच बोलने से दूरी बना लेगे. अपने हित के मुताबिक़ झूठ बोलकर काम बनने लगे तो ये सुंदर संसार झूठे, मक्कारों और लालची लोगों का अड्डा बनकर रह जाएगा.

जीवन को संस्कृति के अनुसार ढालने के लिए मानव समुदाय को कुछ मूल्यों को अपनाना होता हैं. जिनमें सत्य, ईमानदारी जैसे गुण मूल में होते हैं. हमेशा सत्य वचन कहने वाले को सत्यवादी कहा जाता हैं. भारत में राजा हरिश्चन्द्र को हर कोई जानता हैं जो अपनी सत्यवादिता के कारण अमर हो गया.

जीवन की प्रत्येक परस्थिति चाहे वह हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल उसमें सत्य का साथ न छोड़ना ही सत्यता या सत्यवादिता कहलाता हैं. कबीरदास ने सत्य के महत्व को स्वीकार करते हुए एक उक्ति कही थी सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप.

हमें सत्यवादी को समझने से पूर्व सत्यता के अर्थ स्वरूप और प्रभाव को जानना होगा. सत्यता का अर्थ होता है सत्य का स्वरूप. उसे धारण करने वाली सत्यवादी कहलाता हैं. सत्य शब्द का निर्माण संस्कृत की सत् धातु एवं ल्यप प्रत्यय लगने से बनता हैं. जिसका संस्कृत में आशय अस्ति से होता हैं.

अस्ति एक क्रिया है जिसका आशय है होता हैं. जिसे सरल शब्दों में वर्तमान, अतीत और भविष्य काल में एक रूप बने रहने वाले गुण, वस्तु या भाव को सत्य कहा जाता हैं. 

जो कल सत्य था वह आज भी हैं और कल भी रहेगा. सत्य का बोध एवं इसकी राह पर चलना उतना आसान नहीं हैं. सत्य के स्वरूप को पहचाने के लिए मानव को असत्य को जानना होगा जिसके बाद वह मूल सत्य की पहचान कर सकता हैं.

भारत की संस्कृति में सत्यवादिता को महान गुण माना हैं. दशरथ अपने सत्य वादन एवं वचनों के पक्के हुआ करते थे. कैकेयी को दिए वचन के अनुसार अपने प्रिय पुत्र को भी सत्य की खातिर वनवास भेजा. इनसे पूर्व राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य की राह को अपने जीवन को खफा दिया था.

इन्होने सत्य का पालन करते हुए डोम के हाथों अपनी पत्नी और बेटे को भी ब्राह्मण के हाथों बेच दिया. जीवन में घोर यातनाएँ सहने के बाद भी उन्होंने सत्य के मार्ग से स्वयं को जरा भी विचलित नहीं किया.

महाभारत में भी सत्यवादी भीष्म पितामह का प्रसंग मिलता हैं. जिन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के पालन के लिए साहस नहीं छोड़ा. आधुनिक युग में गांधी को सत्यवादी कहा गया. इस तरह हम समझ सकते हैं प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक सत्यवादी लोग अमर हुए.