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ऊँट पर निबंध | Essay on Camel in Hindi

ऊँट पर निबंध | Essay on Camel in Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका हम स्वागत करते है आज का निबंध, भाषण, अनुच्छेद मरुस्थल के जहाज यानी ऊंट पर दिया गया हैं. राजस्थान जैसे रेतीले प्रदेशों में पाया जाने वाला ऊंट राजस्थान का राज्य पशु भी इसके बारे में अधिक जानकारी इस शोर्ट एस्से में जानेगे.

ऊँट पर निबंध | Essay on Camel in Hindi

ऊँट पर निबंध | Essay on Camel in Hindi

ऊंट एक चौपाया जानवर है जो पालतू पशुओं में गिना जाता है यह सवारी, भार ढोने तथा कृषि कर्म में सहायक होता हैं. वर्तमान में ऊँटों की संख्या में निरंतर कमी आ रही है. अब तो मात्र पर्यटकों के लिए ही ऊँट विशेष आकर्षण का केंद्र बन गया हैं, जबकि इसके अन्य उपयोग सिमित हो गये हैं.

बताते है कि ऊंट एक विदेशी प्रजाति का जानवर है जो विदेशी आक्रान्ताओं के साथ भारत में आया था तब से यही हैं. चौथी शताब्दी ईसा पूर्व ग्रीक आक्रमण के समय खैबर दर्रे से होकर इसने भारत में प्रवेश लिया. भारत के पश्चिम प्रान्त खासकर राजस्थान में यह बहुतायत पाया जाता हैं, धोरों में तेज गति से चलने में समर्थ होने के कारण इसे रेगिस्तान का जहाज उपनाम से भी जाना जाता हैं.

ऊँट की शारीरिक बनावट अन्य पालतू पशुओं से भिन्न तरह की होती है इसके चार लम्बी टाँगे, दो आँख, दो लम्बे होठ व जबड़े, पूंछ और पीठ पर बड़ी कूबड़ होती हैं. रेतीले प्रदेशों के अनुकूल इसकी शारीरिक बनावट मददगार साबित होती हैं. धूलभरी आँधियों से बचाव के लिए इसके नथूने बंद हो जाते है इससे नाक में रेत नहीं जा पाती हैं.

इसकी गर्दन एवं घुटने की चर्बी बेहद कठोर होती है जिसके कारण वह उठते बैठते समय रगड़ने से दर्द का एहसास नहीं करता हैं. एक स्वस्थ ऊंट एक दिन में 40 लीटर तक पानी पी लेता है और लगभग तीन सप्ताह तक बिना पानी पीए भी जीवित रह सकता हैं. 

ऊँट हरा या सूखा चारा कंटीली झाड़ियों को खाकर अपना पेट भरता है, हरा चारा खाने पर उसे दस प्रतिशत कम पानी की जरूरत पड़ती हैं. कई दिनों तक ऊंट बिना खाए पीए जीवन निर्वहन कर सकता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इसके पेट में एक बड़ी थैली होती है जिसमें कई दिनों का जल व भोजन संचित रहता है.

रेगिस्तान के सूखे प्रदेश में जहाँ जल व चारे की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होती है उन स्थानों के लिए ऊँट एक अच्छा माध्यम हैं. ऊँट के 34 बड़े दांत होते है जिससे वह भोजन को टुकड़े टुकड़े में कुतर कर खाता हैं. कई देशों में आज भी ऊंटों की लड़ाई होती है जिसे लोग बहुत पसंद करते हैं.

ऊंटों की घटती संख्या को रोकने के लिए ऊंटों की लड़ाई व उसकी बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया गया हैं. बाड़मेर जैसलमेर में ऊंट महोत्सव भी मनाया जाता हैं. मादा ऊँट जिसे ऊँटनी कहा जाता है उसका दूध बेहद पौष्टिक एवं अनेक बीमारियों के ईलाज में मददगार होता हैं. अनेक पशुपालक जातियां ऊंटनी के दूध का उपयोग करती है जो सफेद रंग का क्रीम के तरह मीठा एवं स्वादिष्ट होता है मगर इसके दूध का दही नहीं बनता हैं.

ऊँट के शरीर पर घने बाल बाल होते है जिनकी वर्ष में एक बार के लिए कटाई की जाती हैं. इन बालों को वस्त्र उद्योग में काम में लिया जाता हैं. ओवर कोट, रस्सी, ऊन, थैली व भाकल आदि बनाए जाते हैं. बरसात के समय ऊँट के बालों की कटाई की जाती है कटाई के बाद इसके शरीर पर सरसों के तेल की मालिश कर नहलाया जाता है इससे ऊंट की खाल नर्म हो जाती हैं.

प्राचीन समय में ऊँट का प्रयोग युद्धों में भी किया जाता था. इसका अन्य उपयोग सवारी, माल ढ़ोने तथा कृषि में होता हैं. ट्रैक्टर के पहले ऊँट व बैलों से ही खेतों की जुताई की जाती थी. बड़े शहरों में आज भी ऊँट लारियों के साथ माल ढोते नजर आएगे.

सीमा सुरक्षा बल अर्थात BSF के जवान ऊँट पर बैठकर ही सीमा की निगरानी करते हैं. गनतन्त्र दिवस के अवसर पर सेना के जवान सवारी करते हैं. इस नजारे को देश दुनिया में प्रसारित किया जाता हैं. राजस्थान खासकर जैसलमेर के भ्रमण ऊंट की सवारी सभी के मन को भाती हैं.

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