कृषि सुधार पर निबंध | Essay On Agricultural Reforms In India In Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं आज हम भारतीय कृषि सुधार पर छोटा बड़ा निबंध, अनुच्छेद, लेख भाषण स्पीच पैराग्राफ यहाँ बता रहे हैं. स्वतंत्रता पश्चात कृषि सुधार कार्य योजनाओं तथा कृषि क्रांति के बारें में यहाँ पढेगे.
भारत में स्वतंत्रता से पूर्व कृषि उत्पादन में गतिहीनता की स्थिति विद्यमान थी. तब भारतीय कृषि एक जीवि-कापार्जन अर्थव्यवस्था जैसी थी. देश के विभाजन के दौरान लगभग एक तिहाई सींचित भूमि पाकिस्तान में चली गई, परिणामस्वरूप स्वतंत्र भारत में सिंचित क्षेत्र का अनुपात कम रह गया. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का तत्कालिक उद्देश्य खाद्यान का उत्पादन बढ़ाना था, जिस हेतु निम्न उपाय किये गये.
व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यानों को उगाया जाना, कृषि गहनता को बढ़ाना, कृषि योग्य बंजर भूमि तथा परती भूमि का कृषि जोत में परिवर्तन करना. इसके परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता के बाद कृषि में महत्वपूर्ण परि वर्तन हुए हैं. कृषि क्षेत्रफल, उत्पादकता एवं उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं.
रासायनिक खादों व उन्नत बीजों का प्रयोग बढ़ा हैं. सिंचित क्षेत्रफल में भी वृद्धि हुई हैं. भूमि सुधारों के माध्यम से मध्यस्थ वर्ग की समाप्ति होकर किसानों को भूमि पर स्वामित्व के अधिकार प्राप्त हुए हैं. सरकार भी कृषि एवं ग्रामीण विकास को उच्च प्राथमिकता देकर कृषि विकास के लिए प्रयत्नशील हैं. कृषि क्षेत्र में नवीन प्रवृति का अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकता हैं.
Essay On Agricultural Reforms In India In Hindi
भारत एक कृषि प्रधान देश हैं. देश की लगभग 72 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि हैं. प्रधान व्यवसाय होने के कारण कृषि भारत जैसे विकासशील देश में रोजगार एवं जीवनयापन का प्रमुख साधन, औद्योगिक विकास, वाणिज्य एवं विदेशी व्यापार का आधार हैं. यह भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ तथा विकास की कुंजी हैं.भारत में स्वतंत्रता से पूर्व कृषि उत्पादन में गतिहीनता की स्थिति विद्यमान थी. तब भारतीय कृषि एक जीवि-कापार्जन अर्थव्यवस्था जैसी थी. देश के विभाजन के दौरान लगभग एक तिहाई सींचित भूमि पाकिस्तान में चली गई, परिणामस्वरूप स्वतंत्र भारत में सिंचित क्षेत्र का अनुपात कम रह गया. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का तत्कालिक उद्देश्य खाद्यान का उत्पादन बढ़ाना था, जिस हेतु निम्न उपाय किये गये.
व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यानों को उगाया जाना, कृषि गहनता को बढ़ाना, कृषि योग्य बंजर भूमि तथा परती भूमि का कृषि जोत में परिवर्तन करना. इसके परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता के बाद कृषि में महत्वपूर्ण परि वर्तन हुए हैं. कृषि क्षेत्रफल, उत्पादकता एवं उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं.
रासायनिक खादों व उन्नत बीजों का प्रयोग बढ़ा हैं. सिंचित क्षेत्रफल में भी वृद्धि हुई हैं. भूमि सुधारों के माध्यम से मध्यस्थ वर्ग की समाप्ति होकर किसानों को भूमि पर स्वामित्व के अधिकार प्राप्त हुए हैं. सरकार भी कृषि एवं ग्रामीण विकास को उच्च प्राथमिकता देकर कृषि विकास के लिए प्रयत्नशील हैं. कृषि क्षेत्र में नवीन प्रवृति का अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकता हैं.
भारतीयों के लिए कृषि जीविका का साधन रहा है कृषि सुधार के लिए समय-समय पर कई प्रकार के प्रयास किए गए कृषि सुधार का मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र में गुणवत्ता उत्पादकता उर्वरक क्षमता और किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिलना कृषि सुधार का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
कृषि सुधार अनेक तकनीकों द्वारा प्रयोग में लाई गई जिसमें कृषि की नई तकनीकों जलवायु में सुधार के उपाय उपज करने की विधियां वित्तीय प्रबंधन खेत की सुरक्षा तथा किसानों को खेती के प्रति जानकारी देकर प्रशिक्षण द्वारा उन्हें उचित खेती करने की सलाह देना कृषि सुधार के विषय हैं।
भारतीयों के लिए कृषि एक व्यवसाय है और एक व्यवसाय में हमेशा व्यवसाय सुधार के लिए जाता है वह उसी प्रकार किसान भी अपने खेत में उपज को गुणवत्तापूर्ण उच्च तकनीकी द्वारा मशीनरी जल संरक्षण और अनेक उपाय करते हैं जिसमें जैविक खेती भी इसमें शामिल है।
कृषि सुधार में सबसे महत्वपूर्ण उत्पादकता में वृद्धि होना है किसान की उपज की बढ़ोतरी से उसकी आए और धान की उपज में गुणवत्ता से उसकी जीवनशैली में सुधार देखने को मिलता है।
भारत में कृषि सुधार इन हिंदी
भारतीय ग्रामीण समाज में कृषि योग्य भूमि ही जीविका का एकमात्र महत्वपूर्ण साधन एवं सम्पति का एक प्रकार हैं. परन्तु स्वतंत्रता के समय तक विभिन्न लोगों के बीच इसका उचित विभाजन नहीं था. कुछ परिवारों के पास अत्यधिक कृषि भूमि थी जो अधिकांश के पास नगण्य थी या बिलकुल नहीं थी.
स्वतंत्रता के समय तक अधिकांश ग्रामीण लोग कृषि मजदूरी करके अन्य प्रकार के कार्यों से अपनी आजीविका चलाते थे. अधिकांश कृषि मजदूर रोजाना काम करने वाले होते थे. जिन्हें वर्ष के बहुत कम दिनों में ही काम मिल पाता था. इसी प्रकार पट्टेदारी काश्तकार को भी उपज का अधिकांश हिस्सा भूस्वामी कृषक को देना पड़ता था.
अतः उसकी आर्थिक स्थिति भी बदतर ही रहती थी. जमीदारी व्यवस्था ने अधिकांश कृषकों की माली हालत खस्ता कर दी थी. कृषक भूमि का मालिक नहीं था. साथ ही कृषि उपज का अधिकांश भाग जमीदारों द्वारा ले लिए जाने के कारण वह उसमें अधिक निवेश भी नहीं कर पाता था. स्वतंत्रता के पश्चात सरकार का ध्यान कृषि की इस व्यवस्था के सुधार की ओर गया. कृषि की उन्नति के लिए कृषक सरंचना में महत्वपूर्ण सुधार किये गये, विशेष रूप से भूस्वामित्व एवं भूमि के बंटवारे की व्यवस्था में.
स्वतंत्रता के बाद सरकार ने काश्तकारों, उपकाश्तकारों, बंटाईदारों एवं भूमिहीन मजदूरों की दशा सुधारने हेतु नई भूमि नीति लागू की. प्रथम पंचवर्षीय योजना में भूमि का मालिक स्वयं किसान को बनाने के उद्देश्य से निम्न कार्यक्रमों को अपनाने हेतु अपेक्षित कानून लागू किये गये.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में काश्तकारों के भू धारण अधिकारों की रक्षा हेतु उपाय किये गये ताकि उनकी भूमि से कानून बनाये गये और लगभग 1.13 करोड़ काश्तकारों को लगभग 1.50 करोड़ एकड़ भूमि के स्वामित्व के अधिकार प्राप्त हुए. केरल देश का एकमात्र राज्य है जहाँ भू स्वामित्व प्रणाली एवं काश्तकारी व्यवस्था एक ही झटके में समाप्त कर काश्तकारों को कृषि भूमि के स्वामित्व के अधिकार प्रदान किये गये. इस हेतु 1969 में कानून बनाकर उसे 1980 तक पूर्णरूपेण लागू किया गया. पश्चिम बंगाल में ओपरेशन बरगा के तहत यह कार्य किया गया.
भू सीलिंग निर्धारण: प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि भूमि के स्वामित्व सीमा निर्धारित की गई जिसके अनुसार एक व्यक्ति के स्वामित्व में कितनी अधिकतम कृषि भूमि हो, इसका निर्धारण किया गया. इस हेतु लैण्ड सीलिंग कानून बनाएं गये. सीमा निर्धारण के कारण प्राप्त अतिरिक्त भूमि को सरकार द्वारा भूमि हीन कृषकों एवं कृषि मजदूरों में वितरित किया गया.
चकबंदी: कृषि को अधिक फायदेमंद बनाने तथा उसकी उत्पादकता को बढ़ाने हेतु कृषि जोत का आकार अधिक होना चाहिए. इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सरकार ने एक ही मालिक को अलग अलग स्थान पर स्थित छोटे आकार की कृषि जोतों को एकत्रित कर एक अपेक्षाकृत बड़े आकार की जोत में परिवर्तित करने का कार्य प्रारंभ किया जिसे चकबंदी कहते हैं. इससे कृषि की उत्पादन लागत कम हो पाती है एवं आधुनिक कृषि प्रणाली को प्रोत्साहन मिलता हैं. फलस्वरूप अधिक कृषि पैदावार सम्भव हो पाती हैं.
भूदान आंदोलन: वर्ष 1951 ई में भूमिहीन मजदूरों को कृषि भूमि पर बसाने हेतु भूदान आंदोलन प्रारम्भ किया गया. प्रसिद्ध समाजसेवी एवं सर्वोदयी नेता विनोबा भावे इसके प्रवर्तक थे. इसमें बड़े बड़े कृषि भू मालिकों को अपनी अतिरिक्त भूमि स्वेच्छा से दान करने हेतु प्रोत्साहित किया गया, ताकि प्राप्त अतिरिक्त भूमि को भूमि हीन कृषकों एवं मजदूरों में वितरित किया जा सके. इसमें स्वेच्छा से प्रत्येक भूमालिक से अपनी 1/6 कृषि भूमि दान में मांगी गई थी.
बाद में यह आंदोलन ग्रामदान में परिवर्तित हो गया. 1952 में विनोबा भावे ने बिहार में पदयात्रा कर 8.4 लाख हैक्टेयर भूमि भूदान में प्राप्त की थी. कुल 42 लाख एकत्र भूमि भूदान में प्राप्त हुई थी. संविधान के अनुच्छेद 46 में यह निर्देश दिया गया कि राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के काश्तकारों की भूमि को अन्य जातियों को हस्तांतरण पर रोक लगाएं. इसी के अनुरूप कानूनन ऐसा प्रावधान कर दिया गया हैं.
इस प्रकार उपयुक्त प्रयासों द्वारा सरकार ने देश में काश्तकारों एवं कृषि की स्थिति में सुधार का प्रयास किया हैं और इसमें कुछ सीमा तक सफलता भी मिली हैं. कृषकों की माली हालत में कुछ सुधार हुआ हैं एवं कृषि की उत्पादकता बढ़ी हैं. इसी के साथ भू सम्पति में महिलाओं को अधिकार प्रदान करने के उद्देश्य से कई राज्यों में हिन्दू उत्तराधिकार के प्रावधानों में संशोधन के कानून बनाए है ताकि भू सम्पतियों में स्त्रियों को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो सके.
स्वतंत्रता के समय तक अधिकांश ग्रामीण लोग कृषि मजदूरी करके अन्य प्रकार के कार्यों से अपनी आजीविका चलाते थे. अधिकांश कृषि मजदूर रोजाना काम करने वाले होते थे. जिन्हें वर्ष के बहुत कम दिनों में ही काम मिल पाता था. इसी प्रकार पट्टेदारी काश्तकार को भी उपज का अधिकांश हिस्सा भूस्वामी कृषक को देना पड़ता था.
अतः उसकी आर्थिक स्थिति भी बदतर ही रहती थी. जमीदारी व्यवस्था ने अधिकांश कृषकों की माली हालत खस्ता कर दी थी. कृषक भूमि का मालिक नहीं था. साथ ही कृषि उपज का अधिकांश भाग जमीदारों द्वारा ले लिए जाने के कारण वह उसमें अधिक निवेश भी नहीं कर पाता था. स्वतंत्रता के पश्चात सरकार का ध्यान कृषि की इस व्यवस्था के सुधार की ओर गया. कृषि की उन्नति के लिए कृषक सरंचना में महत्वपूर्ण सुधार किये गये, विशेष रूप से भूस्वामित्व एवं भूमि के बंटवारे की व्यवस्था में.
स्वतंत्रता के बाद सरकार ने काश्तकारों, उपकाश्तकारों, बंटाईदारों एवं भूमिहीन मजदूरों की दशा सुधारने हेतु नई भूमि नीति लागू की. प्रथम पंचवर्षीय योजना में भूमि का मालिक स्वयं किसान को बनाने के उद्देश्य से निम्न कार्यक्रमों को अपनाने हेतु अपेक्षित कानून लागू किये गये.
- कृषि में मध्यस्थों की समाप्ति
- लगान की दर में कमी एवं काश्तकारों को भू स्वामी के अधिकार देना
- कृषि जोतों की अधिकतम सीमा निर्धारित करना एवं अतिरिक्त कृषि भूमि को भूमिहीन कृषकों एवं कृषि मजदूरों में वितरण करना.
- जोतो की चकबंदी एवं भूमि का अपखंडन रोकना
- सहकारी कृषि का विकास करना
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में काश्तकारों के भू धारण अधिकारों की रक्षा हेतु उपाय किये गये ताकि उनकी भूमि से कानून बनाये गये और लगभग 1.13 करोड़ काश्तकारों को लगभग 1.50 करोड़ एकड़ भूमि के स्वामित्व के अधिकार प्राप्त हुए. केरल देश का एकमात्र राज्य है जहाँ भू स्वामित्व प्रणाली एवं काश्तकारी व्यवस्था एक ही झटके में समाप्त कर काश्तकारों को कृषि भूमि के स्वामित्व के अधिकार प्रदान किये गये. इस हेतु 1969 में कानून बनाकर उसे 1980 तक पूर्णरूपेण लागू किया गया. पश्चिम बंगाल में ओपरेशन बरगा के तहत यह कार्य किया गया.
भू सीलिंग निर्धारण: प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि भूमि के स्वामित्व सीमा निर्धारित की गई जिसके अनुसार एक व्यक्ति के स्वामित्व में कितनी अधिकतम कृषि भूमि हो, इसका निर्धारण किया गया. इस हेतु लैण्ड सीलिंग कानून बनाएं गये. सीमा निर्धारण के कारण प्राप्त अतिरिक्त भूमि को सरकार द्वारा भूमि हीन कृषकों एवं कृषि मजदूरों में वितरित किया गया.
चकबंदी: कृषि को अधिक फायदेमंद बनाने तथा उसकी उत्पादकता को बढ़ाने हेतु कृषि जोत का आकार अधिक होना चाहिए. इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सरकार ने एक ही मालिक को अलग अलग स्थान पर स्थित छोटे आकार की कृषि जोतों को एकत्रित कर एक अपेक्षाकृत बड़े आकार की जोत में परिवर्तित करने का कार्य प्रारंभ किया जिसे चकबंदी कहते हैं. इससे कृषि की उत्पादन लागत कम हो पाती है एवं आधुनिक कृषि प्रणाली को प्रोत्साहन मिलता हैं. फलस्वरूप अधिक कृषि पैदावार सम्भव हो पाती हैं.
भूदान आंदोलन: वर्ष 1951 ई में भूमिहीन मजदूरों को कृषि भूमि पर बसाने हेतु भूदान आंदोलन प्रारम्भ किया गया. प्रसिद्ध समाजसेवी एवं सर्वोदयी नेता विनोबा भावे इसके प्रवर्तक थे. इसमें बड़े बड़े कृषि भू मालिकों को अपनी अतिरिक्त भूमि स्वेच्छा से दान करने हेतु प्रोत्साहित किया गया, ताकि प्राप्त अतिरिक्त भूमि को भूमि हीन कृषकों एवं मजदूरों में वितरित किया जा सके. इसमें स्वेच्छा से प्रत्येक भूमालिक से अपनी 1/6 कृषि भूमि दान में मांगी गई थी.
बाद में यह आंदोलन ग्रामदान में परिवर्तित हो गया. 1952 में विनोबा भावे ने बिहार में पदयात्रा कर 8.4 लाख हैक्टेयर भूमि भूदान में प्राप्त की थी. कुल 42 लाख एकत्र भूमि भूदान में प्राप्त हुई थी. संविधान के अनुच्छेद 46 में यह निर्देश दिया गया कि राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के काश्तकारों की भूमि को अन्य जातियों को हस्तांतरण पर रोक लगाएं. इसी के अनुरूप कानूनन ऐसा प्रावधान कर दिया गया हैं.
इस प्रकार उपयुक्त प्रयासों द्वारा सरकार ने देश में काश्तकारों एवं कृषि की स्थिति में सुधार का प्रयास किया हैं और इसमें कुछ सीमा तक सफलता भी मिली हैं. कृषकों की माली हालत में कुछ सुधार हुआ हैं एवं कृषि की उत्पादकता बढ़ी हैं. इसी के साथ भू सम्पति में महिलाओं को अधिकार प्रदान करने के उद्देश्य से कई राज्यों में हिन्दू उत्तराधिकार के प्रावधानों में संशोधन के कानून बनाए है ताकि भू सम्पतियों में स्त्रियों को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो सके.
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