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पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध | Essay on Autobiography of a Book in Hindi

पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध Essay on Autobiography of a Book in Hindi : नमस्कार प्यारे मित्रों
आपका हार्दिक स्वागत है आज के निबंध में हम किताब की आत्मकथा जीवनी आपके समक्ष सरल शब्दों में बता रहे हैं. पुस्तक की कहानी अपनी जुबानी ऑटोबायोग्राफी को स्टूडेंट्स के लिए सरल शब्दों में यहाँ स्पीच और एस्से के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया हैं.

Essay on Autobiography of a Book in Hindi

मै वो साक्ष्य हूँ, जो महाभारत गीता, रामायण तथा वेदों के ज्ञान का अपने में समेटे रखती हूँ. मै वो किताब हूँ, जो अपने देश के गौरवशाली परम्परा तथा यहाँ की शौर्यगाथा की तथा बलिदानों और गौरवान्वित करने वाले अतीत को समेट कर रखती हूँ.

मै गीता, वेद पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथो के ज्ञान के को आपसे मिलवाती हूँ, मै जीवन जीने के ढंग को श्री कृष्ण की भाषा में आपको आज भी बतलाती हूँ. मै संजीव नही पर अजर अमर किताब हूँ.

मैं पुस्तक हूँ आज मैं आपकों मेरी कहानी मेरी जुबानी से बताने जा रही हैं. आज आप मुझे जिन चटकीले और आकर्षक जिल्द और पेपर में देखते हैं. सदा से यह मेरा स्वरूप नहीं था. पुराने जमाने में हमारे देश में मौखिक शिक्षा की व्यवस्था हुआ करती थी जिसमें बिना पुस्तक के ही गुरु अपनी स्मरण शक्ति से अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे.

हालांकि यह सब उतना सरल नहीं था मगर इसका विकल्प दूसरा नहीं था. उस दौर में कागज का आविष्कार नहीं हुआ था. इसी कारण मौखिक ज्ञान ही अधिक प्रचलित था जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक इसी माध्यम से आने लगा.

कालान्तर में लेखन की अधिक आवश्यकता महसूस की जाने लगी और हमारे ऋषि मुनियों ने भोज पत्र ताड़ के पत्तों पर हस्तलिखित पांडुलिपियाँ तैयार की. ये मेरा अर्थात कागज या पुस्तक का प्रथम स्वरूप था जिसमें उतरोत्तर विकास होता गया.

इस समय तक मेरा अस्तित्व काफी मजबूत हो चूका था, हालाँकि शिक्षा को लेकर इत्सुकता काफी थी, पर माध्यमो की कमी खल रही थी, पर धीरे धीरे यह समस्या भी कम हुई तथा लिखित शिक्षा का प्रचलन होने लगा.

आज भी हमारे संग्रहालयों में इस तरह की प्राचीन भोज पत्र वन ताड़ के पत्तों पर लिखित पांडुलिपियाँ उपलब्ध हैं. पहली बार चीन देश ने घास, फूस पुराने कपड़ों आदि की मदद से कागज की लुगदी तैयार की और संसार के सामने कागज लाए. धीरे धीरे इसका निर्माण बड़े पैमाने पर मशीनों की मदद से किया जाने लगा.

मैं आज जिस रूप में पुस्तक कहलाने योग्य बनी हुई इसकी जीवन यात्रा बेहद लम्बी रही हैं. मानव के ज्ञान की अमूल्य स्रोत बनने में मानव की ही कड़ी तपस्या और लग्न का फल हैं. पूर्व जमाने में शिलाओं पर लेख लिखे जाते थे. जिन्हें आज भी कई प्राचीन स्थलों के अभिलेखों और गुफाओं में देखा जा सकता हैं. 

मैं एक पुस्तक के रूप में आज जैसे प्रिय पाठकों के समक्ष प्रस्तुत होने से पूर्व कई चरणों से होकर गुजरती हूँ जब आज अपनी आत्मकथा आपकों बता रही हूँ तो यह भी जान लीजिए आपके हाथ में जो पुस्तक हैं वह किन प्रक्रमों से निर्मित हुई हैं. अब तक आप किताब के एक पन्ने के निर्माण और उसके इतिहास के बारे में जान चुके हैं.

मुझे इन्ही कागजों के रूप में लेखक, कहानीकार, नाटककार या उपन्यासकार के पास भेजा जाता हैं. जिस पर लेखक अपने लेखन के बाद प्रकाशक को देता हैं. मेरा यह स्वरूप पांडुलिपि या हस्तलिपि कहलाता हैं. जिसके बाद यह टाइपराइटर द्वारा इसे मुद्रित किया जाता हैं और फिर प्रेस में छपने के लिए भेज दी जाती हैं. यहाँ से मुझे टुकड़ों के रूप में जिल्द निर्माताओं के पास पहुचाया जाता हैं.

यहाँ मुझे व्यष्टि से समष्टि का रूप प्रदान किया जाता हैं. मेरे एक एक पन्ने को सुई से छेद करके जोड़ा जाता हैं तथा एक आकर्षक रूप में बांधकर तैयार किया जाता हैं. जिसके बाद अच्छा कवर लगाकर लेखक व प्रकाशक आदि के नाम के साथ मुझे पुस्तक विक्रेताओं के यहाँ पहुंचा दिया जाता हैं.

इतनी मानवीय एवं मशीनी मेहनत के चलते मुझे एक आकार और स्वरूप मिल पाता हैं जिसे पुस्तक कहा जा सके. पुस्तक विक्रेताओं के माध्यम से मैं देश और दुनियां में आप जैसे प्रिय पाठकों तक पहुच पाती हूँ. 

मुझे आज तक किसी एक श्रेणी में नहीं रखा जा सकता हैं क्योंकि ज्ञान विज्ञान, मनोरंजन, खेल, भोजन, सिनेमा, इतिहास, भूगोल, राजनीति, साहित्य इन तमाम क्षेत्रों का भंडार मैं ही हूँ. मेरे बिना किसी पीढ़ी को साक्षर करना सम्भव नहीं रहा हैं. 

ज्ञान पिपासु एवं पुस्तक प्रिय व्यक्ति मुझे अपने घरों में बड़े सम्मान के साथ अलमारी में सहेज कर रखते हैं इसके अलावा कई सार्वजनिक और निजी पुस्तकालयों में भी मुझे संरक्षण प्राप्त हैं. भारतीय समाज ने सदैव मुझे सम्मानीय स्थान दिया हैं. बच्चों को भी पुस्तक सहेजकर रखने के लिए प्रेरित किया जाता हैं. मेरे कागज को फाड़ने वाले बच्चों को डाटा फटकारा भी जाता हैं.

मुझसे प्रेम करने वालों पर विद्या की देवी माँ सरस्वती की असीम कृपा बरसती हैं. एक मित्र के रूप में सदैव मैं अपने पाठकों के लिए काम आती हूँ. किताबें पढ़ने के अधिक शौकीन पाठक मुझे बार बार पढकर न केवल आनन्द की अनुभूति करते हैं बल्कि उनके विवेक भी जागृत होता हैं तथा बुद्धि के अन्धकार को भगाकर ज्ञान रुपी प्रकाश देती हूँ.

विद्यालय महाविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए मैं सफलता की कुंजी मानी जाती हूँ. उन्हें जीवन में अपने सपने पुरे करने में तथा जीविका चलाने में मेरा सहयोग रहता हैं. जो विद्यार्थी मेरा सम्मान नहीं करते हैं वे न केवल शैक्षणिक प्रगति में पिछड़ जाते हैं बल्कि भविष्य में भी फिसड्डी ही साबित होते हैं.

मुझे केवल शिक्षा, साहित्य, विज्ञान आदि क्षेत्रों में सम्मान मिला बल्कि आध्यात्म और धर्म ने भी मुझमें अपने धर्म की बातों को उतारकर मेरे साथ आमजन की पवित्र भावनाओं को जोड़ा हैं. 

हिन्दुओं की गीता, मुसलमानों की कुरान, सिखों का गुरुग्रंथ साहिब और इसाइयों की बाइबिल का ज्ञान और शिक्षाएं मुझमें ही समाहित है. लोग मेरी पूजा करते हैं तथा मुझे फाड़ना या गिराना अपने ईश्वर का अपमान मानते हैं.

बहुत से मुर्ख और अज्ञानी लोग मुझे फाड़कर कचरापात्र में डाल देते है या रद्दी वाले को दे देते हैं. वे मानुष मेरे सामाजिक कल्याण के कार्यों से अपरिचित ही प्रतीत होते हैं. 

मैं अपने मूल स्वरूप का बलिदान करने के उपरांत भी मानव की सेवा में काम आती हूँ. आपने भी कई बार मेरे पेपर पर मूंगफली, चाट आदि खाई खोई. दूकान दार मेरे कागज का लिफाफा बनाकर मेरे अंतिम उपयोग को भी आपके हित में करते हैं.

मैं एक पुस्तक के रूप में भले ही निर्जीव वस्तु कहलाती हूँ मगर आप जैसे विद्वान पाठक और लेखक मुझे जिन्दा दिल बना देते हैं. मैं भी मानव कल्याण में खुद को खपा देनी चाहती हूँ. इसलिए आप भी मेरी कुछ मदद करें मुझे अपनी अलमारी में स्थान देवे. मुझसे लगाव रखे तो यकीनन मैं भी आपकों एक ज्ञानवान श्रेष्ठ इंसान की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दुगी.

उम्मीद करता हूँ दोस्तों पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध Essay on Autobiography of a Book in Hindi का यह निबंध आपकों पसंद आया होगा, यदि आपकों इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें.