Essay On Weather And Climate In Hindi
मौसम एवं जलवायु: किसी दिए गये समय में वायुमंडल की भौतिक दशा को मौसम कहते हैं. जैसे ही ये दशाएँ बदलती हैं, वैसे ही मौसम भी बदल जाता हैं.भारत जैसे देश में बदलती मौसम और जलवायु की दशा एक कृषि प्रधान भारत के लिए उनके किसानो की दशा बदल देता है. ऐसी ही भारतीय अर्थव्यवस्था को मानसून जुआ नही कहा जाता है. हमारे देश की अर्थव्यवस्था मुख्यत खेती पर टिकी हुई है.
तथा खेती मानसून पर टिकी हुई है, जब अच्छा मानसून होता है, तो किसानो की अच्छी फसल तथा अच्छी उपज अर्थव्यवस्था को बढ़ाती है, वही फसल की उपज कम होने से कमी नजर आती है. इस प्रकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मौसम देश की अर्थव्यवस्था तथा उपज को प्रभावित करता है.
इस प्रकार किसी स्थान का मौसम वहां के तापमान, वायुदाब, पवन आर्द्रता तथा वर्षण की अल्पकालिक मौसमी दशाओं की स्थिति हैं. मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायु मंडल की अवस्था को बताता हैं.
इसके विपरीत जलवायु किसी स्थान की पर्याप्त लम्बे समय में ली गई मौसमी दशाओं का औसतरूप हैं. मौसम एवं जलवायु के प्रमुख घटक तापमान, वायुदाब एवं पवने तथा आर्दता एवं वर्षण हैं.
ये जलवायु तत्व कहलाते हैं, क्योंकि इन्ही से विभिन्न प्रकार के मौसम और जलवायु प्रकारों की रचना होती हैं. तापमान एवं वर्षण मुख्य आधारभूत तत्व हैं, जिनसे वायुदाब, पवनें तथा अन्य तत्व जुड़े हुए हैं.
तापमान उष्मा की गहनता को प्रकट करता हैं. कुछ क्षेत्रों मेर रात और दिन के तापमान में बहुत अधिक अंतर होता हैं. थार के मरुस्थल में दिन का तापमान 50 डिग्री तक हो सकता हैं जबकि उसी रात यह गिरकर 15 डिग्री तक पहुंच जाता हैं.
दूसरी ओर केरल या अंडमान व निकोबार में दिन तथा रात का तापमान लगभग समान ही रहता हैं सामान्य रूप से तटीय क्षेत्रों के तापमान में अंतर कम होता हैं. इसके अतिरिक्त एक ही समय पर एक स्थान से दूसरे स्थान में तापमान में भी भिन्नता होती हैं.
गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थल में तापमान जहाँ 50 डिग्री तक पहुँच जाता हैं. वहीँ जम्मू कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20 डिग्री से कम रहता हैं.
दूसरी ओर केरल या अंडमान व निकोबार में दिन तथा रात का तापमान लगभग समान ही रहता हैं सामान्य रूप से तटीय क्षेत्रों के तापमान में अंतर कम होता हैं. इसके अतिरिक्त एक ही समय पर एक स्थान से दूसरे स्थान में तापमान में भी भिन्नता होती हैं.
गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थल में तापमान जहाँ 50 डिग्री तक पहुँच जाता हैं. वहीँ जम्मू कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20 डिग्री से कम रहता हैं.
सर्दी की रात में जम्मू कश्मीर में तापमान माइन्स 45 डिग्री तक हो जाता हैं जबकि यह तिरुवनंतपुरम में 20 डिग्री के आसपास होता हैं. इस प्रकार तापमान में भिन्नता पाई जाती हैं.
भूपृष्ट पर तापमान का असमान वितरण वायुमंडलीय वायुदाब में भिन्नता उत्पन्न करता हैं. जिससे पवनों की उत्पत्ति होती हैं. वायु का संचलन उच्च दाब वाले क्षेत्रों से निम्न वायु दाब वाले क्षेत्रों की ओर होता हैं. वायु के क्षेतिज संचलन को पवन कहते हैं.
वायुमंडल में आर्दता जलवाष्प के रूप में उपस्थित होती है, जो अक्सर संघटित होकर मेघों को जन्म देती हैं. इसका पृथ्वी पर वर्षण वर्षा, ओले तथा हिम के रूप में हो सकता हैं.
भूपृष्ट पर तापमान का असमान वितरण वायुमंडलीय वायुदाब में भिन्नता उत्पन्न करता हैं. जिससे पवनों की उत्पत्ति होती हैं. वायु का संचलन उच्च दाब वाले क्षेत्रों से निम्न वायु दाब वाले क्षेत्रों की ओर होता हैं. वायु के क्षेतिज संचलन को पवन कहते हैं.
वायुमंडल में आर्दता जलवाष्प के रूप में उपस्थित होती है, जो अक्सर संघटित होकर मेघों को जन्म देती हैं. इसका पृथ्वी पर वर्षण वर्षा, ओले तथा हिम के रूप में हो सकता हैं.
वायु की अपने अदर जलवाष्प रखने की क्षमता इसके तापमान पर निर्भर करती हैं. वायु का तापमान जितना अधिक होगा, उसके जलधारण की क्षमता उतनी ही अधिक होगी.
ठंडा होने पर यह उतना जलधारण नहीं कर सकती हैं. जितना गर्म होने पर इसनें किया था. जलवाष्प से सघनन एवं वर्षण होता हैं. वर्षण के रूप और प्रकार में ही नहीं बल्कि इसकी मात्रा और ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता होती हैं.
हिमालय में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता हैं तथा देश के शेष भागों में यह वर्षा के रूप में होता हैं. वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 सेमी से लेकर लद्दाख व पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेमी से भी कम होती हैं.
ठंडा होने पर यह उतना जलधारण नहीं कर सकती हैं. जितना गर्म होने पर इसनें किया था. जलवाष्प से सघनन एवं वर्षण होता हैं. वर्षण के रूप और प्रकार में ही नहीं बल्कि इसकी मात्रा और ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता होती हैं.
देश के अधिकतर भागों जून से सितम्बर तक वर्षा होती हैं. लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडू तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर व नवम्बर माह में होती हैं.
देश के आंतरिक भागों में मौसमी या ऋतुनिष्ट अंतर अधिक होता हैं. उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती हैं.
देश के आंतरिक भागों में मौसमी या ऋतुनिष्ट अंतर अधिक होता हैं. उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती हैं.
मौसम एवं जलवायु के तत्वों का प्रचालन घनिष्ठ रूप से अंतर्संबधित और अन्योन्याश्रित हैं. जलवायु नियंत्रकों के कारण जलवायु के तत्व एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होते हैं. जलवायु नियंत्रक निम्न हैं.
ये नियंत्रक तत्व विभिन्न गहनता तथा विभिन्न संयोजनों के साथ काम करते हुए, तापमान एवं वर्षण में परिवर्तन लाते हैं, जो परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के मौसम और जलवायु को जन्म देते हैं.
पृथ्वी की गोलाई के कारण इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अन्क्षासों के अनुसार अलग अलग होती हैं. इसके परिणामस्वरूप ताप मान विषुवत वृत से ध्रुवों की ओर घटता जाता हैं.
जब कोई व्यक्ति पृथ्वी की सतह से ऊंचाई की ओर जाता हैं तो वायुमंडल की सघनता कम हो जाती हैं तथा ताप मान घट जाता हैं. इसलिए पहाड़ियाँ गर्मी के मौसम में भी ठंडी रहती हैं.
किसी भी क्षेत्र का वायुदाब एवं पवन तंत्र उस स्थान के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करता हैं. इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षा के वितरण को प्रभावित करता हैं.
समुद्र का जलवायु पर समकारी प्रभाव पड़ता हैं. जैसे जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है यह प्रभाव कम होता जाता हैं. एवं लोग विषम मौसमी अवस्थाओं को महसूस करते हैं. इसे महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं.
महासागरीय धाराएँ समुद्र से तट की ओर चलने वाली हवाओं के साथ तटीय क्षेत्रों की जलवायु और मौसम को प्रभावित करती हैं. उदाहरण के लिए कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म एवं ठंडी जलधाराएं बहती है और वायु की दिशा समुद्र तट की ओर हो, तब वह तट गर्म या ठंडा हो जाएगा.
भारत के मौसम और जलवायु को प्रभावित करने वाले तत्व
भारत की जलवायु और मौसम को मानसूनी जलवायु कहा जाता हैं. इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पाई जाती हैं. भारत की जलवायु निम्न कारकों से नियंत्रित होती हैं.
अक्षांश: बढ़ते हुए अक्षांश के साथ तापमान में कमी आती है क्योंकि सूर्य की किरणों के तिरछी होने से सूर्य ताप की मात्रा प्रभावित होती हैं. कर्क रेखा भारत के मध्य भाग से गुजरती हैं.
इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में तथा कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्म कटिबंध में पड़ता है. उष्ण कटिबंध में भू मध्य रेखा के निकट होने के कारण सारा साल ऊँचे तापमान और कम दैनिक वार्षिक तापान्तर पाए जाते हैं.
शीतोष्ण कटिबन्ध में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक व वार्षिक तापान्तर के साथ विषम जलवायु पाई जाती हैं. अतः भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएं उपस्थित हैं.
हिमालय की ऊंचाई: भारत के उत्तर में यह ऊंची पर्वत श्रंखला भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से आने वाली उत्तरी शीत पवनों से अभेद्य सुरक्षा प्रदान करती हैं. इसी प्रकार हिमालय पर्वत दक्षिणी पश्चिमी मानसून पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण बनता हैं.
वायुदाब एवं पवनतंत्र: भारत में शीत ऋतु में हिमालय के उत्तर में उच्च दाब होता हैं. इस क्षेत्र की ठंडी शुष्क हवाएँ दक्षिण में निम्न दाब वाले महासागरीय क्षेत्र के ऊपर बहती हैं. ग्रीष्म ऋतु में, आंतरिक एशिया एवं उतर पूर्वी भारत के ऊपर निम्न वायुदाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता हैं.
इसके कारण गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह परिवर्तित हो जाती हैं. वायु दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत व्रत को पार करके दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं.
इन्हें दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं के नाम से जाना जाता हैं. ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं. नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं. इस प्रदेश में ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता हैं. इस प्रवाह का एक मुख्य घटक जेट धारा हैं.
जेट धाराएँ लगभग 27 डिग्री से 30 डिग्री उत्तरी अक्षांशों के बीच स्थित होती हैं, इसलिए इन्हें उपोष्ण कटि बन्धीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता हैं. भारत में ये जेट धाराएँ ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती हैं.
इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं दक्षिणी पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं. गर्मियों में सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तर मे चली जाती हैं.
एक पूर्वी जेट धारा जिसे उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी जेट धारा कहा जाता हैं गर्मी के मौसम में प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर लगभग 14 डिग्री ऊतरी अक्षांश में प्रवाहित होती हैं.
जल और स्थल का वितरण: भारत के दक्षिण में तीन और हिन्द महासागर व उत्तर की ओर ऊँची व अविच्छि न्न हिमालय पर्वत श्रेणी हैं. स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है.
इस कारण भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न वायुदाब विकसित हो जाते हैं. वायुदाब में यही भिन्नता मानसून पवनों के उत्क्रमण का कारण बनती हैं.
समुद्र तट से दूरी: समुद्र का तटवर्ती क्षेत्रों पर नम और सम प्रभाव पड़ता हैं. लम्बी तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पाई जाती है तथा भारत के अंदरूनी भागों में विषम जलवायु पाई जाती हैं.
समुद्र तल से ऊंचाई: ऊंचाई के साथ तापमान घटता हैं. सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर एक डिग्री तापमान कम होता हैं. विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होते हैं.
एक ही अक्षांश पर स्थित होते हुए भी ऊंचाई में भिन्नता के कारण ग्रीष्मकालीन औसत तापमान में विभिन्न स्थानों में भिन्नता पाई जाती हैं.
उच्चावच: भारत का भौतिक स्वरूप अथवा उच्चावच तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा तथा वितरण को प्रभावित करता हैं. उदाहरणार्थ जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घात तथा असम के पवनाभिमुख ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं.
जबकि इसी दौरान पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिणी पठार पवनविमुखी स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त करता हैं.
- अक्षांश
- वायुदाब एवं पवन तंत्र
- समुद्रतल से ऊँचाई या तुंगता
- समुद्र तट से दूरी
- महासागरीय धाराएँ
पृथ्वी की गोलाई के कारण इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अन्क्षासों के अनुसार अलग अलग होती हैं. इसके परिणामस्वरूप ताप मान विषुवत वृत से ध्रुवों की ओर घटता जाता हैं.
जब कोई व्यक्ति पृथ्वी की सतह से ऊंचाई की ओर जाता हैं तो वायुमंडल की सघनता कम हो जाती हैं तथा ताप मान घट जाता हैं. इसलिए पहाड़ियाँ गर्मी के मौसम में भी ठंडी रहती हैं.
किसी भी क्षेत्र का वायुदाब एवं पवन तंत्र उस स्थान के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करता हैं. इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षा के वितरण को प्रभावित करता हैं.
समुद्र का जलवायु पर समकारी प्रभाव पड़ता हैं. जैसे जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है यह प्रभाव कम होता जाता हैं. एवं लोग विषम मौसमी अवस्थाओं को महसूस करते हैं. इसे महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं.
भारत के मौसम और जलवायु को प्रभावित करने वाले तत्व
अक्षांश: बढ़ते हुए अक्षांश के साथ तापमान में कमी आती है क्योंकि सूर्य की किरणों के तिरछी होने से सूर्य ताप की मात्रा प्रभावित होती हैं. कर्क रेखा भारत के मध्य भाग से गुजरती हैं.
इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में तथा कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्म कटिबंध में पड़ता है. उष्ण कटिबंध में भू मध्य रेखा के निकट होने के कारण सारा साल ऊँचे तापमान और कम दैनिक वार्षिक तापान्तर पाए जाते हैं.
शीतोष्ण कटिबन्ध में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक व वार्षिक तापान्तर के साथ विषम जलवायु पाई जाती हैं. अतः भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएं उपस्थित हैं.
हिमालय की ऊंचाई: भारत के उत्तर में यह ऊंची पर्वत श्रंखला भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से आने वाली उत्तरी शीत पवनों से अभेद्य सुरक्षा प्रदान करती हैं. इसी प्रकार हिमालय पर्वत दक्षिणी पश्चिमी मानसून पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण बनता हैं.
वायुदाब एवं पवनतंत्र: भारत में शीत ऋतु में हिमालय के उत्तर में उच्च दाब होता हैं. इस क्षेत्र की ठंडी शुष्क हवाएँ दक्षिण में निम्न दाब वाले महासागरीय क्षेत्र के ऊपर बहती हैं. ग्रीष्म ऋतु में, आंतरिक एशिया एवं उतर पूर्वी भारत के ऊपर निम्न वायुदाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता हैं.
इसके कारण गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह परिवर्तित हो जाती हैं. वायु दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत व्रत को पार करके दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं.
इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं दक्षिणी पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं. गर्मियों में सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तर मे चली जाती हैं.
एक पूर्वी जेट धारा जिसे उष्ण कटिबन्धीय पूर्वी जेट धारा कहा जाता हैं गर्मी के मौसम में प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर लगभग 14 डिग्री ऊतरी अक्षांश में प्रवाहित होती हैं.
समुद्र तल से ऊंचाई: ऊंचाई के साथ तापमान घटता हैं. सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर एक डिग्री तापमान कम होता हैं. विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होते हैं.
एक ही अक्षांश पर स्थित होते हुए भी ऊंचाई में भिन्नता के कारण ग्रीष्मकालीन औसत तापमान में विभिन्न स्थानों में भिन्नता पाई जाती हैं.
उच्चावच: भारत का भौतिक स्वरूप अथवा उच्चावच तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा तथा वितरण को प्रभावित करता हैं. उदाहरणार्थ जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घात तथा असम के पवनाभिमुख ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं.
जबकि इसी दौरान पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिणी पठार पवनविमुखी स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त करता हैं.