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चुनाव पर निबंध | Essay on Election in Hindi

भारत में चुनाव पर निबंध Essay on Election in Hindi:- चुनाव वह प्रणाली है. जिसके अंतर्गत देश में सरकार को चुना जाता है.आज आपके लिए हम चुनाव पर छोटे बड़े निबंध लेकर आए है.

चुनाव पर निबंध हिंदी में  Essay on Election in Hindi

चुनाव पर निबंध | Essay on Election in Hindi
भारत एक लोकतंत्र देश है. यहाँ हर पांच साल की अवधि के बाद चुनाव किये जाते है. तथा विजेता पार्टी देश का नेतृत्व करती है. किसी भी लोकतान्त्रिक देश में चुनाव महत्वपूर्ण कड़ी है.

भारतीय नागरिको को चुनाव में अपना मतदान देने का अधिकार है. यानी चुनाव लोगो द्वारा किया जाता है. चुनाव में सभी भारतीय मतदाता अपना मतदान देकर सरकार बनाते है. चुनाव को एक उत्सव की तरह सेलिब्रेट किया जाता है.

पांच साल से चुनाव का बेसब्री से इतंजार रहता है. जब चुनाव आता है, तो नेताओ की रैलियों, जुलूसो तथा जन शैलाबो की भीड़ उमड़ पड़ती है, जो अपने आप में चुनाव को बयाँ करती है.

देश में छोटे से छोटे पद से लेकर बड़े से बड़े पद तक जनता से चुनाव करवाए जाते है. तथा जनता अपनी पसंद का उम्मीदवार को विजय बनाती है. चुनाव में मतदाता पर कोई दवाब नहीं होता है.

देश में समय समय पर चुनाव करवाने के लिए देश में चुनाव संस्था भी है. जो चुनाव करवाती है. तथा मतों की गणना कर निर्णय लेती है. जिस पार्टी के अधिक मत होते है. वह पार्टी अगले पांच साल तक सरकार चलाती है.

हमारे देश में चुनाव कई स्तरों पर कराए जाते है. जिसमे राजसभा लोकसभा तथा संसद तक का चुनाव किया जाता है. चुनाव आयोग का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है. लोक सेवा आयोग भी दिल्ली में ही है.

दिल्ली में ही चुनाव का ढांचा तैयार किया जाता है. सभी उम्मीदवार यहाँ शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव की चर्चा करते है. तथा सत्ता कार्यक्रम तैयार करते है.

हमें सविंधान द्वारा चुनाव देने का अधिकार प्राप्त है. सविंधान हमें मतदाता बनाता है. देश मेव चुनाव की व्यवस्था की जिम्मेदारी गत सरकार को होती है.

चुनाव आयोग भारत का स्वतन्त्र आयोग है. जो बिना किसी के दवाब में आए. चुनाव करवाता है. चुनाव में सभी के मत की समान वेल्यु होती है. और चुनाव को शांतिमय रूप से करवाया जाता है.

चुनाव पर निबंध | Essay on Election in Hindi

चुनाव पर निबंध | Essay on Election in Hindi
चुनाव एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा आम जनता शासन व्यवस्था को संचालित करने हेतु कुछ व्यक्तियों का चयन करती है।  चुनाव  लोकतांत्रिक मूल्यों का आधार स्तंभ है।

इलेक्शन और राजनीति का गहरा संबंध है प्राचीन काल से ही जब राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्थाएं थी उस समय अगले राजा का चुनाव जनता के द्वारा ना होकर राज परिवार के द्वारा जेष्ठ पुत्र का चुनाव अगले राजा के रूप में किया जाता था।

वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया गया है तथा लोकतंत्र की आत्मा चुनाव है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी राज्य की बागडोर एक विशिष्ट  समूह को जनता सौंपती है, जिसे सरकार कहा जाता है।

सरकार का चुनाव जनता के द्वारा निश्चित समय के लिए किया जाता है तथा इनका चुनाव संविधान में निर्दिष्ट प्रक्रिया के अंतर्गत होता है।

सरकार को  चुनने करने का अधिकार देश के मतदाताओं को संविधान के द्वारा प्राप्त होता है भारतीय संविधान  नागरिकों को चुनाव लड़ने तथा मत देने का अधिकार प्रदान करता है.

भारत में मतदाता की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष 61 वें संविधान संशोधन 1989 की गई। अर्थात हमारे देश में 18 वर्ष पूर्ण होने के उपरांत प्रत्येक नागरिक को मत देने का अधिकार मिलता है तथा भारत का प्रत्येक नागरिक चुनाव लड़ सकता है।

विश्व के विभिन्न देशों में अलग-अलग प्रकार की शासन प्रणालियों को अपनाया गया है तथा उनमें   इलेक्शन के तरीके भी अलग-अलग हैं हमारे देश में संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाया गया है.

जहां संसद राष्ट्र की सबसे बड़ी विधि निर्माण संस्था है। चुनाव के द्वारा जनता के पास अपने मन पसंदीदा नेता को चुनने का अधिकार मिल जाता है क्योंकि कार्यकाल निश्चित होता है इसलिए अच्छा कार्य नहीं करने पर अगली बार उसी व्यक्ति को सत्ता सौंपने से जनता इनकार भी कर सकती है।

हमारे देश में समय-समय पर चुनाव होते रहते हैं कभी लोकसभा के चुनाव तो कभी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव या फिर राज्य विधानसभाओं के चुनाव।
 
उल्लेखनीय है कि भारत में राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सदस्यों तथा जिन राज्यों में राज्य विधान परिषद  होती है उनमें उनके सदस्यों का निर्वाचन जनता प्रत्यक्ष रूप से ना करके जनता के द्वारा निर्वाचित किए गए व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है।

चुनावों के द्वारा ही है यह ज्ञात होता है कि किस नेता की लोकप्रियता बढ़ी है या कम हुई है। भारत में चुनाव में सबसे अहम भूमिका राजनीतिक दलों की होती है।

चुनाव के समक्ष चुनौतियां

भारत जैसे विकासशील देशों में अक्सर देखा जाता है कि  लोकतांत्रिक मूल्यों पर खरा उतरना काफी मुश्किल हो जाता है। चुनाव के समय में विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा येन केन प्रकारेण जीत को वरीयता दी जाती है ना कि लोकतांत्रिक मूल्यों को।

भारतीय चुनाव में वंशवाद की बढ़ती प्रवृत्ति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जो लोकतंत्र के लिए खतरा है। धन तथा बाहुबल का बढ़ता प्रयोग भी चुनाव के मूल स्वरूप को प्रभावित कर रहा है।

वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के काल में संवैधानिक मूल्यों की रक्षा तथा निष्पक्ष व पारदर्शी चुनाव प्रचार चुनौती का विषय बनकर सामने आया है।  चुनावों के द्वारा राजनीतिक हलचल तथा नेताओं के राजनीतिक भविष्य का निर्धारण होता है।

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