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कबीर दास पर निबंध Essay On Kabir Das Hindi

कबीर दास पर निबंध | Essay On Kabir Das Hindi

भारत पुराने समय से शिक्षित देश के रूप मे है। भारत मे समय-समय पर कई लेखको (किसी कृति का रचयिता), साहित्यकारो (Litterateur) तथा कवियों (Poets) ने जन्म लिया है।

कबीर दास, एक महान भारतीय संत, साहित्यिक कवि, और सामाजिक सुधारक थे। उनके द्वारा रचित ग्रंथों और दोहों में वे नैतिकता, भक्ति, और मानवता के महत्व को प्रमोट करते थे। इस निबंध में हम कबीर दास के जीवन, उनके योगदान, और उनके द्वारा उकेरे गए संदेशों पर विचार करेंगे।

कबीर दास, एक प्रमुख भारतीय संत, कवि, और सामाजिक सुधारक थे जो 15वीं सदी में जन्मे थे। वे भारतीय साहित्य के महान भक्ति काव्य के एक प्रमुख संचिककार थे.

और उनके द्वारा रचित दोहे आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। कबीर दास का जन्म और जीवन इतिहास अज्ञात है, लेकिन उनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से में शामिल हैं।

कबीर दास का जन्म 15वीं सदी के लगभग हुआ था, और उनका जन्मस्थान वाराणसी जिले के काशी जिले के नीकापुर गांव में था। उनके माता-पिता को वह एक मुसलमान कबीले से संबंधित माने जाते हैं, लेकिन वे एक हिन्दू भक्ति संत थे। कबीर जी का जीवन और काव्य हिन्दू-मुसलमान साहित्य और धर्म के मेल मिलाप का प्रतीक है।

इस देश मे एक से बढ़ाकर एक कवि हुए है। देश के अग्रणी कवियों मे से एक कबीर दास जिन्हे भारत के कवियों के इतिहास मे सबसे सफल तथा प्रभावशाली कवियों मे कबीर दास जी को सबसे प्रमुख माना जाता है।

कबीर दास ने अपनी रचनाओं में संगीत, पद, और दोहों के माध्यम से अपने भक्ति और धर्म के संदेशों को प्रस्तुत किया। उनकी रचनाएँ विभिन्न भाषाओं में लिखी गई हैं, 

जैसे कि अवधी, ब्रज भाषा, और संस्कृत। उनके दोहे आज भी लोगों के जीवन में प्रासंगिक हैं और उनके द्वारा प्रतिष्ठित भगवान के साथ अपनी अंतरात्मा की पहचान करने के संदेश देते हैं।

हिंदी साहित्य इतिहास में भक्ति काल की निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि कबीरदास का जन्म 1398 में हुआ यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के निवासी थे कबीर  का जन्म काशी में हुआ जो वर्तमान में वाराणसी के नाम से जाना जाता है

मान्यताओं के अनुसार कबीरदास का जन्म लहर तारा गांव में एक विधवा ब्राह्मणी के घर हुआ था जिसने लोक लाज के भाई से कबीर दास को तालाब के किनारे पर छोड़ दिया।

कबीर दास का पालन पोषण निसंतान दंपत्ति नीरू और नीमा द्वारा किया गया जो मुस्लिम जाति के जुलाहा थे कबीर की पत्नी का नाम लोई था इनके पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री कमाली थी।

कबीरदास के गुरु का नाम रामानंद था कबीर दास निरक्षर थी उन्होंने अपने जीवन में जो भी ज्ञान प्राप्त किया वह लोक अनुभव और सत्संगति के माध्यम से प्राप्त किया था।

इसकी पुष्टि कबीर दास के एक पंक्ति से होती है जिसमें उन्होंने खुद लिखा है मसि कागज छुओ नहीं कलम गई नहीं हाथ.. जिससे यह स्पष्ट होता है कि कबीर दास अनपढ़ थे।

इन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिगत भेदभाव, बाह्य आडंबरो और मूर्ति पूजा का घोर विरोध किया इन्होंने बहू ऐश्वर्यावाद धारणा का खंडन किया तथा एकेश्वरवाद का समर्थन किया।

इनका निधन 1518 में 120 वर्ष की आयु में हुआ जब वे मगर में रहा करते थे कबीर दास शिक्षित ना होने के कारण उनके उपदेशों का संकलन उनके शिष्य धर्मदास द्वारा किया गया।

शिष्य धरमदास ने बीजक नाम से कबीर के उपदेशों को संकलित किया बीजक के तीन भाग थे जिसमें साखी, सबद और रमैनी सम्मिलित थी।

कबीर की भाषा संदूक़डी या पंचमेल खिचड़ी थी जिसमें सभी भाषाओं के शब्द प्रयुक्त होते थे। प्रसिद्ध लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर दास को वाणी का डिक्टेटर यानी भाषा का तानाशाह कहा था।

10 Lines On Kabir Das In Hindi

  • कबीरदास हिंदी साहित्य के इतिहास के निर्गुण भक्ति की शाखा के कवि थे, ये मूर्तिपूजा के विरोधी थे. ये एक ही भगवान मानते थे. उनके अनुसार सभी का एक ही धर्म है.
  • महान कवि कबीरदास जी का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के घर 1398 ईस्वी को काशी के निकट हुआ था.
  • इनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ, पर मुस्लिम नीरू तथा नीमा द्वारा इनका पालन पोषण किया, जिस कारण ये अपना कोई धर्म नहीं मानते थे.
  • इनके अनेक उपनाम थे, जिसमे कबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहेब प्रमुख थे. हजारी प्रसाद ने इन्हें मस्तमौला कहा था.
  • कबीर का विवाह लोई के साथ हुआ जिससे उन्हें कमाल तथा कमाली दो संतान हुई.
  • इन्होने कबीर पंथ की स्थापना की और शिक्षा का संचार किया.
  • कबीरदास अन्धविश्वास, मूर्तिपूजा और कुप्रथाओ के विरोधी थे.
  • इन्होने हमेशा हिन्दू मुस्लिम एकता को समर्थन किया तथा सभी कुरीतियों का विरोध किया.
  • कबीरदास जी अपना गुरु रामानंद जी को मानते थे.
  • कबीरदास जी का देहांत 1518 ईस्वी को मगहर में हुआ था.
  • कबीरदास की अनेक किताबे प्रकाशित हुई, जिसमे बीजक, सोंग्स ऑफ़ कबीर, कबीर ग्रंथावली, द कबीर बुक और कबीर says आदि प्रमुख थी.

संत कबीर दास पर निबंध

प्रख्यात समाज सुधारक और संत कबीरदास का जन्म साल 1398 में लहरतारा में हुआ था जो कि अब के वाराणसी शहर और तब के काशी में पडता था। कबीर दास का जन्म जिस परिवार में हुआ था वह एक बहुत ही सामान्य परिवार था। 

इनके पिता जी का नाम नीरू और इनकी माता जी का नाम नीमा था। कबीर दास की मृत्यु पैदा होते ही हो जाती क्योंकि इनका जन्म जिन माता की कोख से हुआ था वह विधवा थी और इसीलिए लोक लाज के डर से इनकी माता जी ने इन्हें एक तालाब के पास छोड़ दिया।

जहां पर नीरू और नीमा नाम के जूल्हे की नजर इनके ऊपर गई और वह इसे अपने घर पर ले कर आए और उन्होंने ही इनका पालन पोषण किया।

घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण कबीर दास ने कोई भी शिक्षा ग्रहण नहीं की। संत कबीर दास ने जो भी ज्ञान प्राप्त किया था, वह ज्ञान इन्हें अपने गुरु रामानंद से प्राप्त हुआ था.

जिसके द्वारा ही इन्हें इस बात की इंफॉर्मेशन हासिल हुई थी कि कैसे उन्हें समाज में फैले हुए जाती पाती और अन्य तमाम प्रकार के अंधविश्वास का पुरजोर विरोध करना है।

यह एक ही नहीं बल्कि कई भाषाओं के जानकार थे। यह अक्सर साधु की टोलियो के साथ घूमने के लिए निकल जाते थे और यही वजह है कि इन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था।

कबीरदास जिस भाषा को कहते थे उसे सधुक्कड़ी भाषा कहा जाता था। यह जगह जगह पर जाकर के लोगों को सदमार्ग पर आने का उपदेश देते थे और लोगों को अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा देते थे।
कबीर दास जी का जीवन
कबीर दास का जीवन संघर्षपूर्ण रहा था। एक विधवा ब्राह्मणी (Widow brahmini) के घर मे जन्म लेने पर उस ने लोक-लाज के भय से कबीर दास को तालाब के पास एक टौकरी मे छोड़ आई.

कुछ समय बाद वहाँ से एक जुलाहे नामक मुस्लिम दंपति  ने एक छोटी उम्र के शिशु को देखकर उसे अपने घर ले गया और इसे अपने संतान की तरह पाला और बड़ा किया था।

कबीर दास का पालन-पोषण किसने किया था? कबीर दास का पालन-पोषण मुस्लिम परिवार मे हुआ था। कबीर का पालन-पोषण नीरू जुलाहे नामक व्यक्ति ने किया था।
संत कबीर दास का जन्म कैसे हुआ था?
जनश्रुति (संसार में प्रचलित कोई ऐसी ख़बर जिसका पुष्ट आधार ज्ञात न हो।के अनुसार कबीरदास का जन्म 1398 ई में काशी मे एक विधवा ब्राह्मणी के घर में हुआ था।

परंतु लोकापवाद के भय के चलते उस विधवा ब्राह्मणी ने कबीर दास को लहरतारा ताल नदी के पास छोड़ आई। कुछ लोगो का मानना है।

कि कबीर दास ने माँ की गर्भ से जन्म लिया ही नहीं लिया उनका जन्म एक कमल के पुष्प से हुआ था। इसलिए उनका जन्मदिन नहीं मनाया जाता था। इन्हे कबीरा और  कबीर साहब के नाम से जाना जाता है।
कबीर दास की प्रारम्भिक शिक्षा
कबीर दास की परस्थिति ऐसी थी। कि वे अपनी प्रारम्भिक शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाये। ये बचपन से ही साधू-संतो का संगत करते थे।

उन्होने अपनी शिक्षा अपने गुरु स्वामी रामानंद से ही प्राप्त की थी। इनके जीवन मे सबसे ज्यादा प्रभाव उनके गुरु रामानन्द जी का नजर आता था।

कबीर दास जी बचपन से ही सबसे अलग सोच रखते थे। इन्होने समाज मे चलनसार (प्रचलित) पाखंडों (वेद विरुद्ध किया जाने वाला आचरण।), कुरीतियों (वह रीति-रवाज़ जो अच्छा न हो।),

अंधविश्वास (अज्ञात पर विश्वास करना।), धर्म (जो धारण करते है वहीं धर्म कहलाता है) के नाम पर होने वाले अत्याचारों (किसी के प्रति बलपूर्वक किया जाने वाला अनुचित व्यवहार।) का विरोध किया था।

संत कबीर दास एक समाज सुधारक के रूप मे Sant Kabir Das as a social reformer
कबीर दास एक कवि के साथ-साथ एक महान समाज सुधारक के रूप मे भी थे। कबीर दास ने अपने सम्पूर्ण जीवन को समाज में हो रहे अत्याचारों और कुरीतिओं को ख़त्म के लिए लगा दिया था।

देश के विकास के लिए इन्होने कई कार्य किये जो देश के लिए वरदान के रूप मे सामने आए। कबीर दास जी ने अपने जीवन के अंतिम पल तक अपने इरादो पर झुटे रहे और सभी के कल्याण के लिए अपना जीवन तक न्योछावर (झोंक देना।) कर दिया था।

संत कबीर दास का धर्म

जनश्रुति (Manpower) के आधार पर कबीर दास का जन्म हिन्दू के घर मे हुआ। परंतु उनका लालन-पालन एक मुस्लिम परिवार मे हुआ था। इसलिए कबीर दास जी दोने धर्मो (हिन्दू-मुस्लिम) से जुड़े हुए थे।

कबीर दास जी का पंथ, सम्प्रदाय या धर्म क्या था? तो इसका जवाब होगा। कबीर दास का कोई पंथ, सम्प्रदाय तथा धर्म निश्चित नहीं था। कबीर दास जी ने अपने जीवन को दोनों धर्मो की और से निर्भीक होकर समाज में चल रही धर्मो के  रूढ़ियो को तोड़ कर प्रहार किया था। 

” पाथर पूजै हरि मिलें, हम लें पूजि पहार ।
घर की चाकी कोई न पूजै, पिस खाय ये संसार ।। ”

भावार्थ:- कबीर दस जी एक प्रचलित दोहा है। जिसमे उन्होंने बताया कि यदि पत्थर कि मूर्ती कि पूजा करने से भगवान् मिल जाते तो मैं पहाड़ की पूजा कर लेता हूँ। कि उसकी जगह कोई घर की चक्की की पूजा कोई नहीं करता ,जिसमे अन्न पीस कर लोग अपना पेट भरते हैं। 

कबीर दास की इन पंक्तियों, व्यंग्य की परिधि से मुसलमान भी न बच सके: उनका एक और व्यंग्य -

‘काँकर-पाथर जोरि के, मस्जिद लई चिजा चढ़ी 
मुल्ला बाँग दे, का बहरा हुआ खुदाय ।।णाय ।

भावार्थ:- कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से मुस्लिमो को बेहरा बता रहे है। जिन्हें नमाज़ (इबादत) पढ़ने के लिए जोर से चिल्लाना (बांग) लगानी पड़ती है, यदि नमाज के प्रति मुस्लिम इतना प्रेम प्रकट करते है। तो उन्हें खुद जाकर नमाज पढ़ना चाहिए

यह लोग खुद क्यों नही आते नमाज़ पढने (खुद- आय)? “का बहरा भया खुद आय”.नमाज पढ़ना में मन मे तडप होनी। जिससे इबादत मिल सकें। ये बाते कबीर दास को अच्छी नहीं लगी
भक्ति कैसे करनी चाहिए?

कबीर दास जी स्वय भक्त थे।परन्तु  उनका मानना था. उन्होंने बताया कि हमें भक्ति से लेकर हमें  मर्म समझना आवश्यक होता है।कबीर जी आजान  या आदान नहीं थे.

इस्लाम (इस्लाम एक इब्राहीमी धर्म है।) में मुस्लिम समुदाय पुरे दिन में पांच नमाज का सम्पूर्ण अध्याय करते थे. ऊँचे स्वर में नमाज का उच्चारण  ही अजान होता है।

कबीर दास जी का मानना था। कि ईश्वर /खुदा को नाम से पुकारा जाय, तो वे ह जीव के संग सदैव रहता है। उसके लिए किसी भी मंदिर, मस्जिद  में जाने की आवश्यकता नहीं होती है।

उन्हें मंदिरों, मस्जिद में ढूढ़ना लोगो की सबसे बड़ी मुर्खता है। उन्होंने बताया की ईश्वर मनुष्य शरीर के प्रत्येक अंग में ईश्वर का निवास होता है। इसलिए कहते है। ईश्वर को मन से याद करना सबसे बेहतर माना जाता है। 
कबीर तथा रामानन्द (गुरु) का मिलन कैसे हुआ था?
कबीर बचपन से शिक्षा ग्रहण करने के लिए उत्सुक रहते थे। उस समय काशी मे स्वामी रामानन्द की चर्चा सबसे ज्यादा हुआ करती थे।

कबीर दास ने रामानन्द का शिष्य बनने का निश्चिय कर लिया था। और उनके पास गए। और कबीर दास रामानन्द के शिष्य बनने के लिए आग्रह किया किया। तो इसे रामानन्द ने मना कर दिया था। जिससे कबीर काफी दुखी हुए। 

कबीर जानते थे। कि रामानन्द प्रातः गंगा मे स्नान करने जाते है। इसलिए वे उनसे पहले गंगा नदी के घाट पर जाकर सो गए। रामानन्द जी ने कबीर को सीढ़ियो पर देखा तो बोले बोलो राम-राम। 

उसके बाद से कबीर दास ने इस मंत्र को अपना लिया। फिर रामानन्द ने कबीर को अपना शिष्य बना लिया था।

संत कबीर के गुरु

कबीर दास के शिक्षा-दीक्षा गुरु रामानंद जी थे। इन्होने कबीर दास को शिक्षा ग्रहण कराई थी। एक बार रामनन्द ने कबीर को राम-राम बोलने को कहा।

आगे बढ़कर राम नाम का यह मंत्र मनुष्य जीवन की सत्य की महान लक्ष्य प्राप्ति में तथा विषमता के दुराग्रहों को छोड़कर सामाजिक न्याय और समानता की स्थापना करने मे सहायक बना।

जो भी गुरु (स्वामी रामानंद) द्वारा सिखाते थे। उस ज्ञान को सबसे पहले कबीर दास कंठस्थ करते थे। उनकी ये विशेषता  उनको रामानन्द के लिए सबसे प्रिय बनाता था।

गृहस्थी संत कबीर दास

संत कबीर दास एक भक्त के साथ-साथ एक गृहस्थी भी थे। कबीर दास का मनाना था। कि ईश्वर की गृहस्थी भी अर्चना (भक्ति) कर सकते है। कबीर दास की पत्नी का नाम क्या था? इसका जवाब है। 

कबीर दास की पत्नी का लोई देवी था। जिन्होने दो संतान को जन्म दिया था। कबीर दास के एक पुत्र था। जिसका नाम कमाल था। कबीर की एक पुत्री भी थी। जिसका नाम कमाली था।

कबीर  दास किस काल मे हुए थे?

संत कबीर दास जी भक्ति-काल (1400 से1700 ईस्वी तक का समय) के युग मे हुए थे। इन्हे भक्ति काल युग का प्रमुख निर्गुण (जिसका कोई भेद, स्थिति, आकार, धर्म या पंत रंग रूप अर्थात जो व्यक्ति अदृश्य होता है।) कवि माना जाता था। कबीर दास ने अपने ईश्वर को निर्गुण बताया था।

कबीर की भक्ति Devion of Kabir

कबीर दास जी बहुत गहरी मानवीयता और सह्रदयता के कवि थे। अक्खड़ता और निर्भयता को उनके कवच के रूप मे माना जाता है।

कबीर दास मे ह्रदय में मानवीय करुणा, निरीहता, जगत के सौन्दर्य को महुसूस करने वाला हृदय कबीर दास जी के पास विद्यमान था। ये कवि के साथ-साथ चित्रिण भी करते थे।

कबीर हिन्दुओ के देवता भगवान राम (विष्णु के सांतवे अवतार) के महान भक्त भी थे। कबीर दास बहुत ही दयालु तथा जिज्ञासु (जानने की इच्छा करने वाला) व्यक्ति थे।

वे प्रायः अपने साथियो के साथ रहते थे। तथा अपनी रचनाए अपने साथियो के सामने प्रस्तुत करते थे। तथा उनसे पूछते थे।- कहो भईया अंबर कासौ लागा’

कबीर दास के प्रमुख कार्य Main Workof Kabir Das

कबीर दास जी के द्वारा किये गए अधिकांश कार्य आज के जमाने के लोगो के लिए संदेश के रूप प्रदर्शित किये जा सकते है। कबीर दास जी ने दरिद्र, (दलित, गरीब, दुखी, उजाड़) उन्हे बताया जिनके पास दो समय का भोजन खुद के आश्रय और पहनने के कपड़े खरीदना असंभव था। 

इस प्रकार के लोगो की कबीर दास ने आर्थिक सहायता की कबीर दास की किंवदंतियों का प्राथमिक उद्देश्य “सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के खिलाफ विरोध” था। कबीर दास का सबसे प्रमुख कार्य उनकी रचनाए है।

साहित्य में स्थान Place in literature

भारतीय साहित्य मे कबीरदास को सबसे श्रेष्ठ सच्चे संत, समाज सुधारक, उपदेशक तथा युग निर्माता के रूप मे माना जाता है। कबीर दास ने अपने सम्पूर्ण जीवन मे एक से बढ़कर एक रचनाओ का निर्माण किया.

इसलिए इन्हे हम हिंदी साहित्य का भगवान/ निर्माता भी कह सकते है। कबीरदास एक अनपढ़ व्यक्ति होते हुए भी ये स्वर्णिम काल के महान कवियों मे सबसे श्रेष्ठ तथा सबसे ज्ञानी थे।

कबीर दास की रचनाओ को पढ़कर लोग अदभूत ज्ञान प्राप्त कर रहे है। इनकी सम्पूर्ण रचनाए सार्वभौमिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है। कबीर दास का काम उनका विरासत था। कबीर दास जी रचनाए इस से संसर मे अमर बन गए है।   

कबीर दास जी की रचनाएँ Compositions of Kabir Das ji

कबीर दास जी शिक्षा ग्रहण करने किसी भी गुरुकुल मे नहीं जा पाये। इसलिए उन्होने अपनी शिक्षा अपने गुरु से ही प्राप्त की थी। कबीर दास जी ने अपने गुरु से अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था।

वे बिना गुरुकुल जाते हुए भी उनके बाकी सभी दोस्तो से वे सबसे श्रेष्ठ थे। वे रामानन्द के सभी शिष्यो मे श्रेष्ठ थे। वे सबसे ज्ञानी थे। उनका ज्ञान बहुत ही प्रभावशाली था। 

ये अवधि, ब्रज, और भोजपुरी व हिंदी जैसे भाषाओ का ज्ञान प्राप्त करते थे। इन भाषाओ का इन्हे बहुत ज्यादा ज्ञान प्राप्त था।

ये राजस्थानी तथा हरियाणवी खड़ी बोली के महारथी थे। कबीर दास जी की प्रत्येक रचना मे सभी भाषाओ का मिश्रण देखने को मिलता है।

इसलिए इन्हे लेखन की भाषा ‘सधुक्कड़ी’ व ‘खिचड़ी’ ( खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रज भाषा, अवधी, भोजपुरी, मारवाड़ी और पंजाबी भाषा के मिश्रण खिचड़ी या सधुक्कड़ी कहते है। )को माना जाता है।

एक प्रश्न बनाता है। किस कवि की भाषा को सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी की भाषा कहा जाता है? तो इसका जवाब होगा। संत कबीर दास। 

कबीर दास लेखन का कार्य नहीं कर पाते थे। ये कार्य अपने शिष्यो द्वारा करवाते थे। इनके शिष्य भी बहुत गुणवति थे। जिसमे धर्मदास ने बीजक नामक ग्रन्थ का निर्माण किया था। 
कबीर दास की प्रमुख रचनाएं 
सुखनिधन
होली 
अगम
कबीर दास की रचनाओ को ''कबीर ग्रंथावली'' नामक संग्रह मे मे संगृहीत किया गया है। अन्य रचनाओ को एक और ग्रंथ '' गुरु ग्रंथ साहब'' मे रखा गया है। इनकी रचनों का बीजक ही प्रमाणित माना जाता है। 

राम और अल्लाह मे अंतर Difference between ram and allah

कबीर दास ने हिन्दुओ के भगवान श्री राम तथा मुस्लिम धर्म का ईश्वर अल्लाह के बीच मे इन्होने कभी भेद नहीं किया था। साथ ही इन्होने लोगो को भी समझाने का प्रयास भी किया कि भगवान मे भेद/ अंतर नहीं होता है। केवल उनके नाम भिन्न-भिन्न होते है। भगवान एक ही होता है। उनके अलग-अलग रूप होते है।

कबीर दास जी ने कहा कि बिना उच्च वर्ग या निम्न वर्ग जाँती-पाँति तथा बिना धर्म के भेद का धर्म होना चाहिए। भाईचारे का धर्म होना चाहिए। 

लोग उस भगवान मे धर्म जाती का भेद करते है। जिनका कोई धर्म भी नहीं था। भगवान अंधविश्वासी नहीं होते है। भगवान तो मात्र कर्म पर विश्वास करते है। 

संत कबीर दास की मृत्यु कैसे हुई थी? How Did Saint Kabir Das die?

कबीर दास का जन्म-मृत्यु दोनों रहस्यमय तरीके से हुए थी। 1398 मे जन्मे कबीर दास जी का जीवनकाल (1398-1518 तक) 120 साल था। ये सबसे लंबी उम्र जीने वाले कवि भी थे।

माना जाता है। कि इनकी मृत्यु होते ही ये सीधे मोक्ष (जन्ममरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है। जिसका अर्थ मुक्ति होता है।) को प्राप्त होते है।

कबीर दास ने अपना सम्पूर्ण जीवन काशी मे रहे। परंतु उनकी जब मृत्यु हुई। उस समय मगहर नामक जगह पर चले गए। (जिसे वर्तमान मे संत कबीर नगर जिले के रूप मे स्थित है।)

कई लोगो कि मान्यता के अनुसार कबीर दास का अंतिम संस्कार (Funeralकरने के लिए कबीर के हिन्दू शिष्यो तथा मुस्लिम शिष्यो  के बीच मे विवाद बन गया।

दोनों धर्मो के लोग अपने-अपने रीति-रवाज़ से कबीर का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। कहा जाता है। कि जब इन्होने कफन (मुर्दा या शव लपेटने की चादर) को हटाया तो वह पर शव नहीं बल्कि फूल मिले थे।

शव के स्थान पर फूल बन गए। जिसमे से आधे फूलो को हिन्दुओ ने अपनी रीति से जलाया तथा आधे फूलो को मुस्लिमो ने दफना दिया था। 

कबीर दास जी मगहर क्यो गए थे? उनके जाने का क्या उद्देश्य था?

कबीर दास का मगहर जाने का प्रमुख उद्देश्य था। लोगो के अंधविश्वास को तोड़ना था। लोगो का मानना था। कि जो वाराणसी मे मारता है।

वो स्वर्ग (मृत्यु के बाद ऐसा स्थान जहाँ सभी प्रकार के सुख प्राप्त हों और नाममात्र भी कष्ट या चिंता न हो।/Heaven) मे जाता है। या मुक्ति प्राप्त करता है। और जो मगहर मे मारता है। उसे नरक (मृत्यु के बाद ऐसा स्थान जहाँ बहुत कष्ट या तकलीफ़ हो। और जहाँ रहना असहनीय हो।/hell) मे जाना पड़ता है।

लोगो के इस प्रकार के अंधविश्वास को तोड़कर सन 1518 को  मगहर मे कबीर दास जी इस संसार से विदा हो गए थे। वर्तमान मे उस जिले का नाम संत कबीर नगर रखा गया है। 

वहा पर कबीर दास की मजार (मजार एक कब्र को कहते है। जिसमें किसी पीर का शव या लाश रखा हो। उसको मजार कहा जाता है। मजार का प्रयोग मुस्लिम लोगो के लिए किय जाता है।) बनाया गया है। 

जो कि दो इमारतों पर बना हुआ है। और आज के वह के लोगो का मानना है। कि इतिहास कुछ भी क्यो न रहा हो परंतु कबीर दास जी ने हमारे जिले को पवित्र बना दिया है।

एक समाज सुधारक तथा एक फकीर के रूप मे 

कबीर एक ऐसे व्यक्ति थे। जिन्होने अपने जीवन मे कभी-भी शास्त्र का अध्ययन नहीं किया फिर भी सबसे श्रेष्ठ तथा सर्वोपरी ज्ञानी थे। इन्हे एक फकीर के रूप मे तथा एक समाज सुधारक के रूप मे भी जाना जाता है।

ये बचपन मे एक फकीर थे। फिर अपने कर्मो से उन्होने खुद को फकीर (गरीब) से समाज सुधारक (समाज की सहायता करने वाला) के रूप मे हुए। उनके जीवन का सार यही है। कि करियर बना हुआ नहीं मिलता हमे करियर को बनाना पड़ता है। 

उपसंहार 

कबीर दास के समय शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी। फिर भी उन्होने इस प्रकार भाषा, संवेदना, विचार प्रणाली सभी दृष्टियों से अनेक रचनाओ के निर्माता (निर्माण करने वाला) बनें।

वर्तमान मे एक से बढ़कर एक सरकारी विद्यालय है। जिसमे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कराई जाती है। कबीर अनपढ़ थे। इन्होने अपने कर्मो से अपना सम्पूर्ण जीवन बदल दिया।

गरीब से खुद को अमीर बना दिया इसमे उन्होने अपने खुद के बजाय उन्होने किसी से भी सह्यता नहीं ली। उनसे हमे सीख मिलती है। कि हमे अपना करियर स्वय बनाना पड़ता है। उन्होने अपने शिष्यो से सम्पूर्ण लेखन करवाया था।

आज के जमाने मे तो कंप्यूटर से लिखा जा सकता है। कबीर दास के जीवन से हमे सीख लेनी चाहिए। कि किसी भी परस्थिति मे हमे रुकना नहीं चाहिए। अपने कार्य पर लगे रहो.