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विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस पर निबंध World Consumer Rights Day Essay In Hindi

नमस्कार साथियों स्वागत है, आपका आज के हमारे आर्टिकल में साथियों आज हम प्रति वर्ष 24 दिसम्बर को देशभर में मनाए जाने वाले विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस से जुड़े तथ्य तथा इससे जुडी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे.

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस पर निबंध World Consumer Rights Day Essay In Hindi

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस पर निबंध World Consumer Rights Day Essay In Hindi

किसी वस्तु या सेवा का उपभोग करने वाले व्यक्ति को उपभोक्ता कहते हैं. उपभोक्ता के रूप में व्यक्ति बाजार में वस्तुओं और सेवाओं का क्रय विक्रय करते हैं. अर्थात् किसी भी वस्तु को खरीदने वाला यानि ग्राहक ही उपभोक्ता होता है.

1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ. सन 1985 में संयुक्त राष्ट ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के दिशा निर्देशों को अपनाया.

उपभोक्ता द्वारा उपभोग की गई वस्तु या सेवा में खराबी पाए जाने पर जानकारी के अभाव में उपभोक्ता कोई भी कार्यवाही नहीं कर पाते है और व्यापारियों द्वारा ठगे जाते हैं, उसे उपभोक्ता शोषण कहते हैं.

हम सभी किसी न किसी रूप में वैश्विक बाजार और व्यापारी वर्ग के लिए उपभोक्ता हैं. बाजार का सीधा सा जुड़ाव लाभ अथवा मुनाफे से हैं. कारोबार में क्रूर व्यापारी अपने अधिकाधिक फायदे के लिए ग्राहक के स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं करते हैं.

ऐसे में उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए कुछ अधिकारों के साथ उपभोक्ता अदालत की व्यवस्था की गई हैं. ग्राहकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए हर वर्ष 15 मार्च के दिन विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस (वर्ल्ड कंज्यूमर राइट्स डे) मनाया जाता हैं.

History of World Consumer Rights Day 

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के इतिहास में 15 मार्च 1962 की तिथि को महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि हैं, इस दिन संयुक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ कैनेडी ने अमेरिकी संसद के सम्बोधन में विश्व में पहली बार उपभोक्ता के अधिकारों का जिक्र किया था. 

एक महान शुरुआत के साथ ही संसार भर में कंज्यूमर राइट्स को लेकर एक आंदोलन छिड़ गया. इसी ऐतिहासिक दिन को यादगार बनाने के लिए संसार भर में आज भी 15 मार्च के दिन उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता हैं. पहली बार वर्ष 1983 में इस उत्सव को मनाने की शुरुआत की गई थी. 

कैनेडी सरकार ने उपभोक्ता अधिकारों को लेकर अधिनियम पास किया, तत्पश्चात ब्रिटेन सरकार ने भी वर्ष 1973 में उचित व्यापार अधिनियम पास कर कानून बनाया.

इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने तीन नयें उपभोक्ता अधिकारों (क्षतिपूर्ति का अधिकार, उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार,  स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार ) को जोड़ते हुए कुल उपभोक्ता अधिकारों की संख्या बढ़ाकर सात कर दी. 

इसके बाद यूरोपीय यूनियन समेत कई विकसित एवं विकासशील देशों ने भी उपभोक्ता अधिकार संरक्षण को लेकर कानून बनाए.

भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण दिवस

हमारे भारत में भी उपभोक्ता के अधिकारों को लेकर कई प्रयास हुए. देश में उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत वर्ष 1966 में मुंबई से हुई. 

वर्ष 1974 में पुणे में पहली ग्राहक पंचायत बनाई गई और यही से प्रेरणा लेकर देश के अलग अलग राज्यों और केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में कई कदम उठाए .

प्रधानमंत्री श्री राजिव गांधी ने 9 दिसम्बर 1986 को संसद में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित करवाया जो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद पुरे देश में लागू हो गया. कानून को 24 दिसम्बर के दिन लागू किये जाने को लेकर इसी दिन राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने का निर्णय किया गया.

बदलते वक्त के साथ उपभोक्ताओं को ठगने के तरीको में भी बदलाव आए हैं. कुछ साल पूर्व तक यह गली मोहल्ले की दुकानों पर छोटे स्तर पर होता था, मगर आज बड़े बड़े शोपिंग मॉल और ऑनलाइन बाजार के चलते उपभोक्ता के अधिकारों के हनन की व्यापक संभावनाएं हैं. 

उपभोक्ता फोरम/ मंच में अपने साथ हुए धोखे या ठगी के व्यवहार की शिकायत कोई भी उपभोक्ता कर न्याय प्राप्त कर सकता हैं. जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के इन आयोगों में नियत व्यवस्था के तहत न्यायिक कार्यवाही कर दोषी को सजा देने के प्रावधान हैं.

उपभोक्ता शोषण के कारण

आमतौर पर उपभोक्ता अपने अधिकारों को लेकर जागरूक नहीं होते है उनके पास उपभोक्ता के अधिकारों की सही जानकारी भी नहीं होती हैं, इस कारण के चलते धोखेबाज व्यापारियों द्वारा इन्हें बार बार ढगा जाता हैं. उपभोक्ता शोषण के निम्नलिखित कारण है.

  1. वस्तु या सेवा की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता तथा मानक पर ध्यान दिए बिना क्रय किया जाना.
  2. वस्तु या सेवा के विभिन्न प्रकारों के उपलब्ध होने पर सही वस्तु या सेवा का चयन न कर पाना.
  3. वस्तुओं से सम्बन्धित लिखित व मौखिक रूप से व्यापारी द्वारा सही जानकारी प्रदान न करना.
  4. सामान की पैकिंग पर लिखित भ्रामक विज्ञापन पर विश्वास कर लेना.
  5. सरकारों पर पूंजीपतियों का प्रभाव.
  6. उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी का अभाव तथा एकजुटता की कमी.
  7. उपभोक्ता की शिकायतों का शीघ्र निपटारा न होना.
  8. दूषित व हानिकारक वस्तु व सेवा के विरुद्ध उपभोक्ता द्वारा लिखित व उचित तरीके से मूल्य के भुगतान की रसीद आदि प्राप्त न करना.
  9. उपभोक्ताओं का अशिक्षित व जागरूक न होना.
उपभोक्ता शोषण का प्रकार 

कंज्यूमर राइट्स की जानकारी के अभाव में उपभोक्ता व्यापारी के ठंग तन्त्र में बारी बारी से शोषित किया जाता हैं, वस्तु या सेवा के मूल्य और उत्पाद की गुणवत्ता के साथ हर बार समझौता किया जाता हैं. 

उपभोक्ता शोषण कई प्रकार से किया जाता रहा हैं. विशेष रूप से शोषण की स्थिति तब होती हैं, जब वस्तुओं का उत्पादन अधिक पूंजी वादी शक्तिशाली बड़ी कम्पनियां करने लगी हैं. शोषण को दो वर्गों में बांटा गया हैं. माल या वस्तु के रूप में शोषण व सेवा के रूप में शोषण.

माल या वस्तु के रूप में शोषण- तौल, मात्रा, वजन तथा माप में कमी करना, बताई या दर्शाई गई किस्म का न होना, अशुद्धता या मिलावट होना, निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य वसूल करना, वस्तु की अपेक्षित क्षमता व गुणवत्ता में कमी, वस्तु का असुरक्षित होना, वस्तु के दोषों को जानबुझकर छिपाना, जो उपभोग करने पर उजागर होते हैं. 

वस्तुओं या माल का कृत्रिम अभाव पैदाकर अधिक मूल्य अथवा घटिया माल खरीदने के उपभोक्ता को मजबूर करना आदि.

सेवा के रूप में शोषण- सेवा शर्तों के अनुसार समय पर गुणवत्ता युक्त संतोषजनक रूप से सेवा प्रदान नहीं करना, सेवा का असुरक्षित व दोषयुक्त होना, सुविधा/ लाभ के स्थान पर हानि पहुचना तथा शारीरिक, मानसिक बौद्धिक क्षति पहुंचाना.

उपभोक्ता संरक्षण के प्रयास 

सम्पूर्ण विश्व में उपभोक्ता समूहों की एजेंसियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था को उपभोक्ता इंटरनेशनल कहते हैं. उपभोक्ताओं को आवश्यक वस्तुओं की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा बेईमान व्यापारियों के शोषण से बचाने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 भारत में लागू किया गया था. 

जिसमें उत्पादन के विनिमयन और नियंत्रण तथा घोषित आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं के वितरण और मूल्य के निर्धारण का प्रावधान किया गया, तो वही इस अधिनियम के प्रावधानों के प्रवर्तन या क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन की होती हैं.

उपभोक्ताओं को सही माप व तौल में वस्तुएं उपलब्ध कराने तथा उनके हितों की रक्षा के लिए राज्य में मानक बाँट व माप प्रवर्तन अधिनियम 1 अप्रैल 1997 को लागू किया गया. 

उपभोक्ता सहकारिता का उद्देश्य थोक विक्रेताओं को सही मूल्य पर वस्तु पहुचाना तथा दलालों की भूमिका समाप्त करना हैं, तो वहीं उपभोक्ता सहकारिता का ढांचा चार स्तर पर तैयार किया गया, जिसमें प्राथमिक स्टोर , थोक विक्रेता या केन्द्रीय स्टोर, राज्य उपभोक्ता संघ और राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारिता संघ सम्मिलित हैं.

उपभोक्ता शिकायत निवारण प्रकोष्ठ का गठन फरवरी 2002 में किया गया था. उपभोक्ताओं को सलाह देने के लिए खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने एक राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन बनाई हैं.

जिसके नम्बर 1800-11-4000 पर मुफ्त फोन करके सहायता ली जा सकती हैं, तो वही दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा इसे उपभोक्ताओं को उनकी शिकायत के निवारण के लिए संचालित किया जा रहा हैं.

उपभोक्ता के अधिकारों की रक्षा के लिए वर्ष 1997 में केंद्र सरकार द्वारा उपभोक्ता मामले नाम से अलग विभाग बनाया गया, जो उत्पादों के मानकों को बनाए रखने और सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए उपभोक्ता  शिकायतों सहित उनके अधिकारों की रक्षा के कामकाज को पूरी तरह से देखता हैं. 

उपभोक्ता हितों के संरक्षण एवं संवर्द्धन तथा उपभोक्ता संरक्षण सम्बन्धी योजनाओं व कार्यक्रमों के लिए वित्तीय व्यवस्था उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उपभोक्ता कल्याण कोष की स्थापना की गई हैं.

उपभोक्ता संरक्षण में आने वाली कठिनाइयाँ 
  • जनसाधारण को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का पूरा लाभ नहीं मिलना.
  • उपभोक्ताओं की उदासीनता
  • कई राज्यों में जिला मंचों का गठन नहीं हो पाना
  • कमजोर, वंचित व कम साधन सम्पन्न उपभोक्ताओं की विशाल संख्या
  • कई जिला मंचों एवं राज्य आयोगों में शिकायतों के निस्तारण की धीमी गति
  • उपभोक्ता आंदोलन को स्वैच्छिक संस्थाओं का अपर्याप्त समर्थन
  • महिलाओं की नगण्य भागीदारी आदि.