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सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध Essay On Subhas Chandra Bose in Hindi

देश की आजादी में न जाने कितने लोगो ने अपना बलिदान दिया तथा अनेक लोगो ने अपना योगदान दिया. उन्ही में से एक है, नेताजी सुभाषचंद्र बोस जो देश के श्रेष्ठतम नेताओं में से एक थे. आज हम नेताजी के बारे में जानेंगे.

सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध Essay On Subhas Chandra Bose in Hindi

सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध Essay On Subhas Chandra Bose in Hindi

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रणी और सबसे बड़े नेता के रूप में सामने आये थे। दुसरे विश्वयुद्ध के समय , अंग्रेज़ों का विरोध में लड़ने के लिए, उन्होंने जापान देश में जाकर वहा के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। तथा उनके द्वारा दिया गया "जय हिन्द" का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है।

मुझे जीवन में एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है। मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है। मुझे नैतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है।”

देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्य लुटा देने वाले लोगो में से एक सुभाषचंद्र बोस है, जिन्हें हम नेताजी के नाम से जानते है. नेताजी नेतृत्व करने में श्रेष्ठ वक्ता थे. नेताजी ने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था.

आज भी हमारे मन "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा" दिल्ली चलो तथा जय हिन्द जैसे नारे आते है, जो नेताजी द्वारा गुलाम भारत में दिए गए थे. नेताजी निडर महान क्रन्तिकारी थे.

हम भारतीयों को अपने महान पूर्वजो पर गर्व होता है, कि वे बहादुर और देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने वाले थे. भारत के महान सेनानी सुभाषचंद्र बोस ने अपनी बहादुरी और देशभक्ति को व्यक्त करने के लिए अपना घर तक त्याग दिया.

देश की आजादी में उनका अहम योगदान रहा. वे भगत सिंह की तरह गर्म दल के सदस्य थे, जो हिंसात्मक रूप से आजादी छीनना चाहते थे. सुभाषचंद्र एक महान नेता और कुशल नेतृत्वकर्ता भी थे.

सुभाष चंद्र बोस पर 10 वाक्य

1) महान क्रन्तिकारी सुभाषचंद्र का जन्म उड़ीसा राज्य के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ. इनके पिताजी एक प्रसिद्ध वकील थे. इनके पिता जानकीनाथ तथा माता का नाम प्रभावती था.
2)  सुभाषचंद्र ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा पूर्ण की ये एक आदर्श छात्र थे. इन्होने भारत की सर्वोच्च परीक्षा प्रशासनिक सेवा म चतुर्थ स्थान प्राप्त किया इन्होने 1921 में देश की आजादी की लड़ाई के लिए इस नौकरी को छोड़कर अंग्रेजो का विरोध शुरू किया.

3) अपनी प्रतिभा के लिए 1923 में इन्हें ऑल इंडिया युथ का प्रेसिडेंट के रूप में चुना गया.
4) नेताजी ने गांधीजी की धारणा का समर्थन किया पर आजादी न मिलने और भगत की फांसी के कारण नेताजी ने गांधीजी का समर्थ छोड़कर अलग रास्ता अपनाया.
5) सुभाषचंद्र ने 3 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी की स्थापना की और आजादी के लिए हिंसात्मक लड़ाई शुरू की.

1942 में नेताजी ने आस्ट्रेलिया में एमिली शेंकल से विवाह किया आज भी नेताजी का परिवार आस्ट्रेलिया में रहता है.
6) सुभाष द्वारा अंग्रेजो का विरोध करने पर अंग्रेजो ने इन्हें घर में नजरबंद कर दिया, पर नेताजी घर से भाग गए. और 1943 में जापान देश के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की. इसमे 40000 भारतीय क्रन्तिकारी थे.
7) सुभाषचंद्र को जीवन में अंग्रेजो द्वारा 11 बार गिरफ्तार किया गया.
नेताजी की विमान यात्रा के समय ताइवान में 18 अगस्त 1945 को दुर्घटना के कारण मृत्यु हो गई.  पर आज भी नेताजी का शव हमें नहीं मिल पाया है.

8) देश के लिए बलिदान करने वाले महानायक सुभाषचंद्र बोस को मरणोपरांत 1992 में भारत रत्न पुरस्कार दिया गया. तथा उनके जन्म दिन के अवसर पर 23 जनवरी को पराक्रम दिवस की शुरुआत की.
9) देश के इस महानायक ने तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” और दिल्ली चलो जैसे नारे देकर देशभक्ति की भावना का संचार किया तथा देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

10) नेताजी और गांधीजी का लक्ष्य एक ही था, पर उनके रास्ते अलग अलग थे. कई लोग इन्हें एक दुसरे के विरोधी मानते है. नेताजी ने ही गांधीजी को राष्ट्रपिता से संबोधित किया था.
यह हमारा कर्त्तव्य हैं की हम अपनी आज़ादी के लिए खून बहाये। आज़ादी जिसे हम अपने बलिदान और परिश्रम के माध्यम से पाएंगे, हम अपनी ताकत से देश की रक्षा करने में सक्षम होंगे।

महान नेता तथा आन्दोलनकर्ता तथा  महानायक सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ. इनका जन्म जानकीनाथ तथा प्रभावतीदेवी के घर हुआ था. 

नेताजी के पिताजी पेशे से एक वकील थे. जो अंग्रेजी हुकूमत के घोर विरोधी थे. अंग्रेजी द्वारा जानकीनाथ को रायबहादुर की उपाधि दी गई लेकिन जानकीनाथ ने इसका विरोध करते हुए. पदवी लौटा दी.

नेताजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के निजी विद्यालय से की. जिसके बाद उन्होंने आगे की पढाई के लिए हाई स्कुल में प्रवेश किया. सुभाष बचपन से ही उत्कृष्ट विद्यार्थी थे.

सुभाषचंद्र बोस में नेतृत्व की कला कूट कूट के भरी थी. नेताजी आदर्श विद्यार्थी के साथ साथ पढाई में भी कक्षा के टोपर थे. जिस कारण इन्हें स्कुल में काफी सम्मान दिया जाता था. नेताजी कक्षा के मोनिटर थे.

सुभाषचंद्र हमेशा सत्यता के साथ रहते थे. इसलिए एक बार जब अंग्रेज ने विद्यार्थियों को बिना गलती पीठ दिया तो नेताजी ने सभी को संगठित कर अंग्रेज को सबक सिखाने का प्लान बनाया तथा अगली बार अंग्रेज ने जैसे ही विद्यार्थियों को मारना चाहा. बच्चो को अंग्रेज को पीठ दिया.

इस घटना के बाद नेताजी को विद्यालय से बाहर कर दिया गया. इस घटना से हम अनुमान लगा सकते है. कि नेताजी में देशभक्ति कितनी भरी थी. वे बचपन में ही इसकी मिशाल कायम कर चुके थे.

स्कूली शिक्षा के बाद सुभाषचंद्र सिविल शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड भी गए तथा वहा से पढाई कर परीक्षा को 4 रैंक से उतीर्ण किया. जिससे देश में ये बात आग की तरह फ़ैल गई, कि भारतीय व्यक्ति ने सिविल सर्विस में चौथा स्थान प्राप्त किया.

नेताजी ने इस नौकरी को कुछ समय तक करने के बाद अंग्रेजो के लिए काम करना बंद कर दिया. क्योकि नेताजी अंग्रेजी की सत्ता में खुद की मर्जी से कार्य नहीं कर सकते थे. इसलिए नेताजी ने इस नौकरी को छोड़ दिया.

सिविल सर्विस की नौकरी प्राप्त करना भारतीयों लोगो के लिए स्वर्ग को प्राप्त करने के सामान था. पर सुभाषचंद्र ने इस नौकरी को ठुकरा दिया. तथा अंग्रेजो का बहिष्कार शुरू किया. ये बात आग की भाँती फ़ैल गई.

इस घटना के बाद नेताजी काफी लोकप्रिय हो गए. तथा अनेक लोग नेताजी से जुड़ने लगे. इस समय नेताजी ने अंग्रेजो का बहिष्कार कर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का सहयोग किया तथा कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया.

कौंग्रेस में गांधी जी तथा नेताजी दोनों की विचारधाराए अलग अलग थी. पर निशाना एक ही था. जो था, आजादी. नेताजी अपने अंदाज से आजादी चाहते थे. पर गांधीजी अपने अंदाज से.

काफी समय तक नेताजी ने कौंग्रेस के साथ कार्य किया तथा नेताजी गांधीजी को अपना गुरु मानते थे. समय निकलता गया तथा दुसरे विश्व युद्ध की शुरुआत होने ही वाली थी.

एक तरह नेताजी अपनी फ़ौज तैयार कर अंग्रेजो से संघर्ष को तैयार थे. दूसरी तरह गांधी जी अहिंसावादी रूप से देश को आजाद करना चाहते थे. नेताजी का मानना था. कि दुसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटेन अपने दुश्मन सेव लडेगा.

इस समय हमें इस पर वार करना चाहिए तथा इसे देश से भगा देना चाहिए. पर गांधीजी अपनी अलग विचारधारा से अंग्रेजो को खदेड़ना चाहते थे. दोनों के बीच मतभेद के कारण नेताजी ने कौंग्रेस को छोड़ दिया.

1938 में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव किये गए. जिसमे नेताजी ने जीत प्राप्त की. पर गांधीजी ने इसका विरोध करते हुए. इसे अपनी हार बताया. जिसके बाद 16 मार्च 1939 को नेताजी ने इस पद को इस्तीफा दे दिया.

पद का इस्तीफे के बाद गांधी-सुभाषचंद्र ने अपनी अपनी अलग राह को चुना. गांधी इ ओर अहिंसावादी रूप सेव देश को आजाद कराने चाहते थे. वही सुभाषचंद्र बोस देश को संगठित कर संघर्ष की तैयारी में थे.

भारत के सबसे बड़े दुश्मन से छुटकारा पाने के लिए दुसरे विश्वयुद्ध के समय रूस के लिए बन रहे दुश्मन ब्रिटेन के लिए षड्यंत्र रचने के लिए रूस की सहायता के लिए नेताजी गुप्त तरीको से रूस भी गए.

केवल रूस ही नहीं नेताजी अनेक देशो में गए तथा देश की सहायता के लिए मांग की. जिसके बाद नेताजी ने संगठन बनाया जिसका नाम आजाद हिन्द फ़ौज रखा. इसका गठन 5 जुलाई 1943 को किया गया.

21 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने देश को आजाद कहा तथा अस्थायी सरकार बनाई. नेताजी का संगठन लगातार बड़ा हो रहा था. 1944 में नेताजी ने तुम मुझे खून दी मै तुम्हे आजादी दूंगा नामक नारा लगाया. जो आज भी काफी लोकप्रिय है.

नेताजी को बात नहीं मानने वाले तथा अहिंसावादी गाँधी ने 1942 में भारत छोडो नामक आन्दोलन की शुरुआत कर. करो या मारो का नारा दिया. जिससे साबित होता है, कि उन्होंने नेताजी की ही धारणा को उचित समझकर उसका अनुसरण किया.

देश की आजादी के लिए लम्बे समय तक संघर्ष करने वाले तथा सभी के दिल के हीरो सुभाषचंद्र बोस 16 अगस्त 1945 को टोक्यो की यात्रा के लिए जाते समय रहस्यमय रूप से नेताजी शहीद हो गए.

नेताजी की मौत का कोई आज तक साबुत सामने नहीं आ पाया है. लेकिन इनकी मौत दुर्घटना से हुई थी. ये कहा जा सकता है. 16 अगस्त को नेताजी की पूण्यतिथि मनाई जाती है.

Short and Long Essay on Subhash Chandra Bose

नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक ओडिशा में हुआ था. तथा इनकी मृत्यु एक रहस्यमय रूप से रूस यात्रा करते समय 18 अगस्त 1945 को हुई थी. इनकी मौत आज भी राज बनी हुई है.

हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो, लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही है। सफलता का दिन दूर हो सकता है, लेकिन उसका आना अनिवार्य है।

सुभाषचंद्र ने 48 वर्ष की एक स्वतंत्र जिंदगी यापन की. भलेही वे गुलाम भारत में थे, पर वे किसी से नहीं डरते थे. हमेशा अंग्रेजो का विरोध करते थे. इनके कार्य करने का ढंग सभी से अलग था. ये अच्छे नेतृत्वकर्ता थे.

नेताजी ने दुसरे वर्ल्ड वार के समय ब्रिटिश सरकार का सीना कसकर सामना किया. सुभाषचंद्र बोस एक नेता तथा कुशल स्वतंत्रता सेनानी थे. इन्होने अनेक आंदोलनों में सक्रीय रूप से भाग लिया था.

नेताजी देश की आजादी हिंसात्मक रूप से चाहते थे, वही गांधीजी की विचारधारा अलग थी. जिस कारण इनका मेल गांधीजी से नहीं हो सका. 1939 में सुभाषचंद्र ने कौंग्रेस को छोड़ दिया. तथा आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की.

नेताजी एक हिन्दू परिवार से थे. नेताजी देश में हो रहे हिन्दुओ के खिलाफ अत्याचारों का सहन नहीं कर पा रहे थे. नेताजी के पिताजी एक सरकारी वकील थे. तथा राजनितिक नेता भी थे.

सुभाषचंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा निजी स्कुल से करने के बाद कलकत्ता के प्रेसिडेंट विद्यालय में आगे की शिक्षा उतीर्ण की. नेताजी एक अच्छे विद्यार्थी भी थे. वे हमेशा पढाई करते थे.

मैट्रिक तक की शिक्षा पास करने के बाद सुभाष को भारतीय सिविल सेवा की तैयारी करने के लिए इंग्लैण्ड जाना पड़ा. सिविल सेवा में सुभाष ने चौथा स्थान प्राप्त कर हमारे देश का नाम ऊँचा किया.

देश में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए नेताजी ने भारतीय सिविल सेवा की नौकरी को ठुकरा दिया तथा स्वतंत्रता आंदोलनों में जुड़ने लगे. जिससे उनकी लोकप्रियता बढती गई.

सुभाषचंद्र बोस चितरंजन दास तथा स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित हुए. नेताजी को कोलकाता का मेयर के पद पर चुना गया तथा कौंग्रेस के अध्यक्ष के रूप में गुना गया.

साल 1939 में गांधीजी और नेताजी के मतभेदों के कारण नेताजी ने अध्यक्ष के पद को इस्तीफा देकर कौंग्रेस पार्टी को छोड़ दिया तथा एक नई फारवर्ड ब्लॉक पार्टी का गठन किया.

नेताजी गांधी जी की अहिंसावादी धारणा से बिलकुल प्रभावित नहीं थे. उनका मानना था, कि अहिंसा से देश की आजादी आने वाले कई दशको तक प्राप्त नहीं की जा सकती है. इसके लिए हिंसा ही श्रेष्ठ रास्ता है.

देश की आजादी के लिए सहायता माँगने नेताजी छुपते छुपते जर्मनी जापान तथा रूस तक चले गए. इन्होने सहायता मांगी तथा आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना 1942 के साल में कर दी.

आजाद हिन्द फ़ौज निडर फ़ौज थी. इस फ़ौज का मुख्य उद्देश्य केवल देश को स्वराज्य बनाना था. इस फ़ौज ने ही देश अंडमान तथा निकोबार द्वीप को आजाद किया. तथा 1943 में देश को आजाद कहकर झंडा फहराया.

नेताजी ने झेल में बंद लोगो को रिहा कर अपनी फ़ौज में जोड़ा तथा इस प्रकार अनेक लोगो ने भी नेताजी का साथ दिया इनकी फ़ौज का विस्तार लगातर बढ़ता जा रहा था. नेताजी देश की श्रेष्ठ शक्ति बन रहे थे.

सुभाषचंद्र बोस ने अपनी फ़ौज के सिपाहियों को मै तुम्हे खून दूंगा तुम मुझे आजादी दो का नारा दिया तथा हिंसात्मक आजादी की लहर को देश के अन्य क्षेत्रो में आगे बढाया.

1945 के साल में रूस की यात्रा के समय दुर्घटनावश नेताजी की मौत हो गई. पुरे देश के हाहाकार मच गया. आजाद हिन्द का नेतृत्वकर्ता इस संसार को छोड़कर चला गया. जिस कारण आजाद हिन्द फ़ौज की उम्मीदे टूट गई.

नेताजी ने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. पर वे देश को आजाद कराने से पहले ही इस संसार को अलविदा कह गए. लेकिन उनके कार्यो से पूरा राष्ट्र प्रभावित हुआ तथा सभी प्रेरित होकर आजादी के लिए चल पड़े.

लम्बे संघर्ष के बाद तथा नेताजी, भगत सिंह, चंद्रशेखर, लाला लाजपतराय तथा राजगुरु जैसे अनेक बलिदानों के कारण हमारा देश 15 अगस्त को आजाद हुआ. नेताजी के इस योगदान को हम नहीं भूल सकते है।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1887 को कटक उड़ीसा में हुआ। इनके पिता का नाम जानकीनाथ था जो कि एक प्रसिद्ध वकील और राजनेता थे। जानकीनाथ कई बार विधानसभा के सदस्य रह चुके थे और उन्हें अंग्रेजों द्वारा रायबहादुर की उपाधि भी दी गई थी।

सुभाष चंद्र बोस को हम प्यार से नेताजी के नाम से जानते हैं क्योंकि वह एक कुशल नेता के रूप में अच्छी तरह से नेतृत्व करना जानते थे। 

नेता जी की माता का नाम श्रीमती प्रभावती था जो कि एक कुशल ग्रहणी थी। नेताजी के कुल भाई-बहन 14th जिसमें नेताजी नौवें थे।

नेता जी के पिताजी एक सरकारी नौकर होने के बाद भी वे अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्र आंदोलन में भाग लेते थे तथा सक्रिय रूप से अपना सहयोग देते थे। 

जानकी नाथ ने अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधि रायबहादुर अंग्रेजों को वापस लौटा दी अपने पिता की देशभक्ति को देखकर नेता जी मैं भी बचपन से ही देशभक्ति की ललक देखने को मिलती थी।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस शिक्षा में काफी होना और अच्छे विद्यार्थी थे जो हमेशा अनुशासित और ईमानदारी के साथ रहते थे इन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा कटक के निजी विद्यालय से की। जिसके बाद 1909 में उन्होंने रेवेलेसा स्कूल में प्रवेश किया।

नेताजी को बचपन से ही किताबें पढ़ने का काफी शौक था। वे स्वामी विवेकानंद की पुस्तकों को पढ़ते थे तथा उनके व्यक्तित्व से कुछ ना कुछ सीखने का प्रयास करते थे। से अपने प्रिंसिपल से भी काफी प्रभावित हुए।

सुभाष चंद्र ने मैट्रिक तक की शिक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही दूसरा स्थान भी प्राप्त किया। साल 1911 में सुभाष चंद्र ने प्रेसिडेंट कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन कुछ आपसी मतभेदों के कारण सुभाष चंद्र को 1 साल के लिए विद्यालय से बाहर कर दिया गया।

1918 के साल सुभाष चंद्र बोस ने बीए की डिग्री प्राप्त कर ली तथा आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया तथा सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करने लगे। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करना अपने आप में एक बड़ी बात थी।

सुभाष चंद्र ने ना केवल सिविल सेवा की परीक्षा को उत्तीर्ण किया बल्कि इस परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त कर उच्च स्तर की नौकरी भी प्राप्त की। 

लेकिन सुभाष चंद्र एक देशभक्त होने के नाते से अंग्रेजों के हुकूमत में उनके कार्यकाल में कार्य नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी इस नौकरी को अस्वीकार किया।

सिविल सेवा की इस बड़ी नौकरी को ठुकरा देने के बाद सुभाष चंद्र के चर्चा पूरे देश में होने लगी। नेता जी ने नौकरी को छोड़ कर देश की आजादी के लिए राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया। 

नेता जी ने कांग्रेस की पार्टी को ज्वाइन करने के बाद देश के नागरिकों को जागरूक करने के लिए स्वराज नामक पत्र की शुरुआत की।

चितरंजन दास को नेताजी अपना गुरु मानते थे तथा उनका मार्गदर्शन करते थे। चितरंजन दास के द्वारा ही नेताजी में राष्ट्रभक्ति और देशप्रेम और अधिक बढ़ गया। 1923 में नेताजी को कांग्रेस का मुख्य सचिव बना दिया गया।

चितरंजन दास ने फॉरवर्ड पत्र की शुरुआत की जिसे संपादन करने के लिए उन्होंने नेताजी को चुना तथा नेताजी ने इसका संपादन शुरू किया। इसके बाद नेताजी को कोलकाता नगर निगम का सीईओ बना दिया गया।

एक महान देशभक्त होने के नाते नेताजी हर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते थे जिस कारण 1925 में नेताजी को अंग्रेजों द्वारा जेल में डाल दिया गया। 2 साल तक जेल की सजा काटने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने राजनीति में पदार्पण किया और जवाहरलाल नेहरू के साथ कार्य शुरू किया।

नेताजी के कार्यों और उनकी लोकप्रियता लगातार आसमान को छू रही थी। देखते ही देखते देश में महात्मा गांधी से भी अधिक चाहने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हो गए। सुभाष चंद्र बोस को यूथ लीडर के रूप में जाना जाने लगा।

नेताजी पिछले कुछ सालों से कांग्रेस के साथ कार्य कर रहे थे लेकिन उनकी विचारधारा तथा कांग्रेस की विचारधारा विपरीत थी एक तरफ जहां महात्मा गांधी अहिंसा वादी जय तो दूसरी तरफ सुभाष चंद्र बोस हिंसा के मार्ग पर चलकर शक्ति का प्रदर्शन कर अंग्रेजों को भगाना चाहते थे।

वैसे देखा जाए तो दोनों का लक्ष्य एक ही था लेकिन विचारधारा अलग अलग थी जिस कारण महात्मा गांधी नेताजी के विपक्ष में हो गए तथा 1939 में जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चुनाव किया गया तो उस चुनाव में एक तरफ सुभाष चंद्र बोस तो दूसरी तरफ महात्मा गांधी के प्रेसिडेंट सीता रमैया थे।

इस चुनाव में महात्मा गांधी ने सीतारामय्या को सहयोग किया तथा सीतारामय्या की जीत को अपनी जीत बताया। लेकिन इस चुनाव में सुभाष चंद्र बोस भारी मतों से जीत गए जिससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि उस समय महात्मा गांधी से अधिक लोकप्रियता सुभाष चंद्र बोस की थी।

नेताजी राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चुने गए लेकिन वह महात्मा गांधी को अपने गुरु समक्ष समझते थे जिस कारण महात्मा गांधी ने नेता जी को इस्तीफा दे देने के लिए कहा नेताजी ने वैसा ही किया और कांग्रेस की पार्टी को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया तथा इस पद को इस्तीफा दे दिया।

नेता जी ने महात्मा गांधी से कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब ब्रिटेन संघर्ष कर रहा होगा उस समय हम अंग्रेजों को देश से भगा सकते हैं लेकिन महात्मा गांधी इस विचारधारा से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं थे। उनका मानना था कि अंग्रेजों को हम अहिंसा वादी रूप से ही खदेड़ देंगे।

1939 में कांग्रेस पार्टी को छोड़ने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना के बाद नेताजी को 7 दिन के लिए जेल में बंद कर दिया गया तथा 40 दिन तक नेताजी के घर की रखवाली की गई। 

लेकिन नेताजी अंग्रेजों की नजरबंदी को तोड़ते हुए 41 दिन मौलवी वेश धारण कर घर से निकल गए। तथा जासूसों को सन्यास लेने का बहाना बनाकर घर से निकल पड़े। वे अफगानिस्तान से सोवियत संघ सोवियत संघ से मास्को तथा मास्को तेज से जर्मनी तक पहुंच गए।

नेताजी ने जर्मनी तथा जापान से मदद की गुहार लगाई। लेकिन जर्मनी युद्ध में हार जाने के कारण नेता जी ने इस उम्मीद को छोड़ दिया। 1943 में नेताजी जर्मन से सिंगापुर के लिए चले गए तथा वहां जाकर राष्ट्रीय सेना की स्थापना की। राष्ट्रीय चना के पहले अध्यक्ष जनरल मोहन सिंह थे।

आजाद हिंद फौज लगातार बढ़ती जा रही थी। नेताजी लोगों को फौज में भर्ती कर रहे थे तथा कुछ जरूरतमंद लोगों को आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रहे थे। नेता जी ने अपना काफी बड़ा संगठन बना लिया।

सुभाष चंद्र बोस भाषण देने में काफी श्रेष्ठ थे वे अपने शब्दों से लोगों को देश की आजादी के लिए उत्साहित कर रहे थे। उन्होंने अपने संगठन में तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसा नारा दिया तथा सभी को देशभक्ति के लिए प्रेरित किया।

आजाद हिंद फौज इतनी उत्साहित हो चुकी थी कि ब्रिटिश सरकार से संघर्ष करने के लिए हर समय तैयार थी। नेताजी की आजाद हिंद फौज ने सबसे पहले अंडमान निकोबार द्वीप को आजाद घोषित किया।

आजाद हिंद फौज लगातार देश के कई क्षेत्रों को स्वराज घोषित कर चुकी थी लेकिन रंगून बेस शिविर के असहयोग के कारण नेताजी की फौज को काफी नुकसान हुआ। इस घटना के साथ ही नेता जी की आजाद हिंद फौज कमजोर पड़ गई।

18 August 1945 को रूस से सहायता मांगने के लिए नेताजी ने रूस की ओर यात्रा की। इस यात्रा के बीच ही नेता जी की दुर्घटना हो गई और इस दुर्घटना में नेताजी की मौत हो गई। लेकिन नेताजी की मौत का राज आज भी हमारे लिए रहस्य बना हुआ है।

सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर निबंध

सुभाषचंद्र का जन्म ओडिशा राज्य के कटक जिले में 23 जनवरी 1897 को हुआ था. इनके माता का नाम प्रभावती तथा पिता का नाम जानकीनाथ था. सुभाषचंद्र ने अपने कार्यो से पुरे देश को प्रभावित किया.

नेताजी ने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया वे हमेशा देश के हित में लड़ते रहे. उनका एक ही लक्ष्य था. देश को आजाद कराना. इस लक्ष्य की ओर उन्होंने खूब मेहनत की. जिसका नतीजा देश को आजादी मिली.

सुभाषचंद्र बोस भारत के एक महान नेता तथा स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण उन्हें आज भी हम सम्मान देते है. इनका जन्म 23 जनवरी को होने के कारण हर साल इस दिन को हम सुभाषचंद्र बोस की जयंती के रूप में मनाते है.

इस साल 2024 में सुभाष बाबू की 128 वी जयंती मनाई जाएगी. आप सभी को सुभाषचंद्र बोस की जयंती की हार्दिक बधाईयाँ एवंम शुभकामनाएं. सुभाषचंद्र की जयंती के दिन विद्यालयों में विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है.

इस दिन विद्यालय तथा सरकारी कार्यालयों में सुभाषचंद्र बोस की जयंती बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती है. तथा सभी इस अवसर पर सुभाषचंद्र के बारे में बढ़ चढ़कर बोलते है. तथा उन्हें बधाईयाँ देते है.

इस दिन हमारे विद्यालय में अनेक प्रतियोगिताओ का आयोजन किया जाता है. जिसमे निबंध प्रतियोगिता, पोस्टर प्रतियोगिता तथा क्विज प्रतियोगिता होती है. इसमे सभी विद्यार्थी भाग लेते है.

इस दिन हमें सुभाषचंद्र बोस के बारे में हमें लिखने को बोला जाता है. कई बच्चे पोस्टर प्रतियोगिता में भाग लेते है, वे सुभाषचंद्र का अच्छा चित्र बनाते है. तथा कई बच्चे निबंध प्रतियोगिता में भाग लेते है. उन्हें सुभाषचंद्र के बारे में लिखने का अवसर मिलता है.

निबंध और पोस्टर के साथ ही क्विज में सभी शिक्षकगण बच्चो को सुभाषचंद्र जी के बारे में प्रश्न पूछते है, जो विद्यार्थी सबसे अधिक प्रश्न का उत्तर देते है. उसे इनाम दिया जाता है. तथा अन्य प्रतियोगिता में श्रेष्ठ स्थान वाले विद्यार्थियों को इनाम दिया जाता है.

नेताजी बोस की जयंती का अवसर बच्चो के लिए एक उत्साह का अवसर होता है. सभी बच्चे इस पर्व के लिए तैयारिया करते है. तथा होने वाली प्रतियोगिताओ में भाग लेकर इस जयंती को ओर मनोरंजक बनाते है.

इस दिन विद्यालय म साफ सफाई की जाती है. तथा विद्यालय की मंच पर नेताजी की मूर्ति राखी जाती है. तथा उन मूर्ति का मलापर्ण किया जाता है. विद्यालय में सुभाषचंद्र बोस के गीत तथा देशभक्ति गीत बजाए जाते है.