कारगिल विजय दिवस पर कविता | Kargil Vijay Diwas Poem
भारतीय सेना के लिए गौरव के इस पल को हम सभी मिलकर सेलिब्रेट करें. आज ही के दिन हमारे देश ने पाकिस्तान की सेना को देश से खदेड़ दिया था, आज का दिन शहीदों को नमन करने का दिन है. उनकी बहादुरी को सलाम करने का दिन है.
मैं हूं भारतीय सेना का वीर जवान,
कभी नहीं झुकने दूंगा भारत का मान,
तिरंगा है मेरी आन, बान शान,
कभी नहीं होने दूंगा भारत का अपमान।
साथियों आज के आर्टिकल में हम आप सभी दोस्तों के लिए इस दिवस पर स्पेशल हिंदी कविताएँ कारगिल दिवस पर लेकर आए है, जो हमारे सैनिक बहादुरों को समर्पित है.
kargil vijay diwas short poem in english
हुआ देश आजाद तभी se , कश्मीर हमारे संग आया.
विभाजन से उपजे पाक ko, उसका कृत्य नहीं भाया.
रंग बिरंगी घाटी कब se ,पाक कि नज़र समाई थी.
कश्मीर ko नापाक करने, कसम उसी ne खाई थी.
वादी पाने ki चाहत में, सैंतालीस से जतन किया.
तीन युद्ध me मुंह की खाई, फिर se वही प्रयास किया.
बार बार वह मुँह ki खाये, उसको शर्म न आनी थी.
छल प्रपंच करने ki फितरत, uski बड़ी पुरानी थी.
दारा करे सीधे लड़ने me, अपनी किस्मत कोसा था.
आतंकी के भेष me उसने, भष्मासुर को पोषा था.
हूर aur जन्नत पाने ko , आतंकी बन आते थे.
भारत की सेना ke हाथों, काल ग्रास बन जाते थे.
जन्नत ko दोज़ख बनने में, कोई कसर n छोड़ी थी.
मासूमों ko हथियार थमा, बिषम बेल इक बोई थी.
तभी शांति ki अभिलाषा ले, अटल ki बारी आई थी.
जाकर jab लाहौर उन्होंने, सद इच्छा दिखलाई थी.
भाईचारे ki मिसाल दे, छद्म युद्ध ko रोका था.
पाकिस्तानी सेना ne फिर , पीठ me छुरा भोंका था.
सन निन्यानबे मई माह, फिर se धावा बोला था.
चढ़ कर करगिल ki चोटी पर, नया मोरचा खोला था.
भारत ki जाबांजो ne तब, उस par कठिन प्रहार किया.
बैठे गीदड़ भेड़ खाल me , उनका तब संहार किया.
एक se एक दुर्गम चोटी ko, वापस छीन ke’ लाए थे.
देश ki खातिर माताओं ne, अपने लाल गंवाए थे.
तीन महीने चले युद्ध me ,फिर से मुंह की खाई थी.
मिस एडवेंचर ke चक्कर में, जग me हुई हंसाई थी.
आज मनाकर विजय दिवस हम, उसको याद करायेंगे.
ऐसी गलती fir मत करना, नानी याद दिलायेंगे.
कारगिल युद्ध पर कविता
पाकिस्तानी सेना ko किया परास्त
करो याद भारत ke वीर जवानों को।
कारगिल ki चोटी पर लहराया तिरंगा
उन देश भक्तों ki कुर्बानी को।
दुश्मन ke सैनिकों ko मार गिराया
नाकामयाब किया उनकी चालों को।
श्रद्धा सुमन अर्पित उन साहसी
निडर भारत भूमि ke लाडलों ko..
बर्फ par चलते दुश्मन ko मार गिराते
रात जागते देश ki रक्षा करने ko..
आंधी ho तूफान हो ya हो रेगिस्तान
याद करो उन वीरों की शहादत ko..
देश ke लोग सुकून se सोते रात भर
शत् शत् नमन ऐसे पहरेदारों ko.
तब वह खाते अपने सीने पर गोलियां
भूलों नहीं ऐसे देश ke रखवालों ko..
कारगिल विजय दिवस पर विशेष कविता
आओ हम सब याद करें भारत ke वीर जवानों ko,
जिन वीरों ne कारगिल ki चोटी पर लहराया तिरंगा।
उन देश भक्तों शूरवीरों ki कुर्बानी ko..
जिन्होंने दुश्मनों ke सैनिकों ko मार गिराया,
और नाकामयाब किया उनकी har इक चालों ko,
श्रद्धा सुमन अर्पित उन साहसी वीर जवानों par,
निडर भारत भूमि ke भारत-पुत्र लाडलों ko..
बर्फ पर चलते दुश्मनों ko कुचलते मार गिराते,
और रात भर जागते देश ki रक्षा करने ko,
आंधी ho ya तूफान हो या हो रेगिस्तान
याद करो उन शूरवीरों की शहादत ko.
जिनके कारण देश के लोग सुकून se सोते रात भर
हम शत् शत् नमन करते हैं ऐसे पहरेदारों ko..
जब वह खाते अपने सीने par गोलियां
तभी मनाते hai हम सब होली और दीवाली
भूलों नहीं ऐसे देश ke रखवालों ko..
Vijay Diwas Poem in Hindi
मैं केशव का पाञ्चज़न्य भी गहन मौऩ में खोया हूँ
उन बेटों की आज कहानी लिख़ते-लिखते रोया हूँ
जि़स माथे की कुमकुम बिन्दी वापस लौट नहीं पाई
चुटकी, झु़मके, पायल ले गई कुर्बानी़ की अमराई
कुछ बहनों की राखियां ज़ल गई हैं बर्फी़ली घाटी में
वेदी के गठ़बन्धन मिल गए हैं कारगि़ल की माटी में
पर्वत पर कितने सिन्दूरी सपने़ दफन हुए होंगे
बीस बसंतों के म़धुमासी जीवन हवऩ हुए होंगे
टूटी चूड़ी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का
कोई मोल नहीं दे सकता वासन्ती ज़ज्बातों का
जो पहले-पहले चुम्बऩ के बाद लाम पर चला गया
नई दुल्हन की सेज़ छोड़कर युद्ध-काम पर चला गया
उनको भी मीठी नीदों की करवट याद रही होगी
खु़शबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी
उन आँखों की दो बूंदों से सातों साग़र हारे हैं
जब मेंहदी वाले हाथों ने मंग़लसूत्र उतारे हैं
गीली मेंह़दी रोई होगी छुपकर घर के कोने में
ताजा काज़ल छूटा होगा चुपके-चु़पके रोने में
जब बेटे की अ़र्थी आई होगी सूने आँगऩ में
शायद दूध उतर आया हो बूढ़ी माँ के दामऩ में
वो विध़वा पूरी दुनिया का बोझा़ सिर ले सकती है
जो अपने पति की अर्थी़ को भी कंधा दे सकती है
मैं ऐसी हर देवी के चरणों में शीश झु़काता हूँ
इसीलिए मैं कविता को हथियार बना़कर गाता हूँ
जिऩ बेटों ने पर्वत काटे हैं अपने नाखू़नों से
उऩकी कोई मांग नहीं है, दिल्ली के कानूनों से
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव ता़रा बन जाता है
उस कुर्बानी़ के दीपक से सूरज़ भी शरमाता है
गर्म दहा़नों पर तोपों के जो सीने़ अड़ जाते हैं
उनकी गाथा लि़खने को अम्बर छो़टे पड़ जाते हैं
उनके लिए हिमा़लय कंधा देने को झु़क जाता है
कु़छ पल सागर की लहरों का गर्ज़न रुक जाता है
उस सैनि़क के शव का दर्शन तीरथ-जै़सा होता है
चित्र शहीदों का मन्दिर की मूरत जै़सा होता है।
क्या यह देश उन्हीं का है, जो सरहद पर मर जाते है,
अपना लहू बहा़कर जो सरह़द पर टीका कर जाते है,
कोई युद्ध वत़न के खाति़र सबको लड़ना पड़ता है
संकट़ की घड़ियों में सबको सैनिक बऩना पड़ता है
जो भी कौम़ वतन के खाति़र मरने को तैयार नहीं
उसकी संतति को आजा़दी जी़ने का अधिकार नहीं
सैनिक अपने़ प्राण गंवाकर देश बड़ा कर जाते है,
बलिदानों की बुनियादों पर राष्ट्र ख़ड़ा कर जाते हैं,
जिऩको माँ के बलिदानी़ बेटों से प्यार नहीं होगा,
उन्हें तिरंगे़ को लहराने का अधिकार नही होगा ।।
– डॉ. हरिओम पवार
Vijay Diwas Poetry in Hindi
है ऩमन उनको कि जो देह को अमरत्व देकर
इस ज़गत में शौर्य की जीवित कहा़नी हो गये हैं
है ऩमन उनको कि जिनके सामने बौना़ हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो ग़ये हैं
पिता जिऩके रक्त ने उज्ज़वल किया कुलवंश माथा
मां वहीं जो दूध से इस देश की रज़ तौल आई
बह़न जिसने सावनों में हर लिया पतझर स्वयं ही
हाथ ना उल़झें कलाई से जो राखी खोल लाई
बेटि़यां जो लोरियों में भी प्रभाती सु़न रहीं थीं
पिता तुम पर ग़र्व है चुपचाप जा़कर बोल आयी
पिया जि़सकी चूड़ियों में सितारे से टूट़ते थे
मांग का सिन्दू़र देकर जो उजा़ले मोल लायी
है, नमन उस देहरी को जहां तुम खे़ले कन्हैया
घर तुम्हारे पऱम तप की राजधानी हो ग़ये हैं
है़, नमन उऩको कि जो देह़ को अमरत्व देकर
इस जग़त में शौर्य की जी़वित कहानी हो गये हैं
है ऩमन उनको कि जिनके सामने बौना़ हिमालय
जो धरा पर गि़र पड़े पर आसमानी हो गये हैं
हमने लौटाये सि़कन्दर सर झुकाए मा़त खाए
हम़से भिड़ते हैं वो जिनका म़न धरा से भर ग़या है
नर्क़ में तुम पूछ़ना अपने बुजु़र्गों से कभी भी
उऩके माथे पर हमारी ठोक़रों का ही बयां है
सिंह के दाँतों से गिनती सीख़ने वालों के आगे
शी़श देने की कला में क्या अज़ब है क्या नया है
जूझ़ना यमराज से आद़त पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज़ में फिर एक नचि़केता गया है
है, नमन उनको कि जिनकी अग्नि़ से हारा प्रभंजन
काल कौतुक़ जिनके आगे पानी पा़नी हो गये हैं
है, ऩमन उनको कि जिनके सामने बौ़ना हिमालय
जो धरा पर गि़र पड़े पर आसमानी हो गये हैं
लिख चुकी है वि़धि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघो़ष, गीता के कथन तु़मको नमन है
राखि़यों की प्रती़क्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाओं
देश़हित प्रतिबद्ध यौव़न के सपन तुमको नम़न है
बहन के विश्वास भाई के सखा कु़ल के सहारे
पिता के व्रत के फ़लित माँ के नयन तुम़को नमन है
है नमन उऩको कि जिनको काल पा़कर हुआ पावन
शिखर जि़नके चरण छूकर और मा़नी हो गये हैं
कंचनी तन, चन्द़नी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित़ कर चले सब कुछ़ हवन तु़मको नमन है
है नमन उऩको कि जिनके सामने बौ़ना हिमालय
जो धरा पर गि़र पड़े पर आसमा़नी हो गये
डॉ. कुमार विश्वास
Vijay Diwas Kavita
पाकिस्तानी सेना़ को किया परास्त
करो या़द भारत के वीर जवा़नों को।
काऱगिल की चो़टी पर लहराया तिरंगा
उन दे़श भक्तों की कुर्बा़नी को।
दुश्म़न के सैनिकों को मा़र गिराया
ना़कामयाब किया उऩकी चालों को।
श्रद्धा सु़मन अर्पित उन साहसी
निड़र भारत भूमि़ के लाडलों को।
बर्फ़ पर चलते दुश्मन को मार गि़राते
रात जा़ग़ते देश की रक्षा़ करने को।
आंधी हो तूफा़न हो या हो रे़गिस्तान
याद करो उऩ वीरों की श़हादत को।
देश के लोग सु़कू़न से सोते रात भर
शत् श़त् नमन ऐसे पह़रेदारों को।
तब वह खा़ते अपने सीने़ पर गोलियां
भूलों नहीं ऐसे देश के रख़वालों को।
poeminhindi
जब शान्त हिमालय धधक कर उठा,
झरनों से ज्वाला फूट पड़ी ।
जलकर उठा स्वर्ग धरती का
जब दिल्ली की निद्रा टूट गई ।
बज उठी भयंकर रण भेरी,
हर पत्थर में हुँकार उठी।
केसर क्यारी क्यारी से,
पौरुष का स्वर झंकार हो उठा।
कर उठा अग्नि की वृष्टि व्योम हो उठ गए दग्ध धरती गिरि वन।लाहौर घोषणा व्यापक की ,
चर्चा में उलझ गया, स्वदेश
चुपक-चुपकर उस तरफ शत्रु,
घुस आया धर कर छद्म वेश
नापाक पाक. के मसूबे,
जाहिर हो गये एक ही क्षण में।
पर मुँह की ही खानी पड़ी उसे,
अपने प्रायोजित रण में।
हारा गया चौथी बार युद्ध भागा ले शेष प्राण का धन।
तुमने निज पौरुषअसंख्य
अरियों के मस्तक तोड़ दिये।
कारगिल, वटालिक, द्रास इत्यादि
गिर शिखर शत्रु भी छोड़ दिये।
वे छद्मवेशधारी सैनिक
तुमने मार भगाये थे।
चोटी चोटी विजय केतु
तुमने चढ़कर फहराया था
पाकिस्तानी षड्यंत्र ध्वस्त कर तुमने किया पूर्ण निज प्रण।यौवन लहू बहा धोया
हिमगिर माथे का कलंक।
अनगिन प्राणों रत्न लुटा
कर दिया सुसज्जित राष्ट्र अंक।
गोदें सूनी हुई गयीं किन्तु
गौरव सा उन्नत हुआ भाल।
सो गये काल वाली गोदी में
बनकर दुश्मन के महाकाल।
कर रहा याद बलिदान राष्ट्र है, दृग-सनीर हम जन-गण-मन।तुम आगे बढ़े राष्ट्र पीछे से,
हर-हर महादेव बोला
दुश्मन की गोली-गोली का,
बनकर जवाब छूटा गोला
हो गये अमर बलिदान वीर,
धरती कण-कण कहता है,
जिनके कारण सम्पूर्ण राष्ट्र,
दिन-रात चैन बना रहता है
अर्पित करता है, उन वीरो को राष्ट्र तुम्हें बद्धांजलि श्रद्धांजलि पावन।