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अरविन्द घोष पर निबंध | Essay on Arvind Ghosh in Hindi

अरविन्द घोष पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Sri Aurobindo in Hindi, Aurobindo Ghosh par Nibandh Hindi mein)- नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है, आज के हमारे इस लेख में दोस्तों आज हम अरबिंदो नाम से प्रसिद्ध अरविन्द घोष के जीवन से जुडी सम्पूर्ण जानकारी इस लेख के द्वारा प्राप्त करेंगे.

अरविन्द घोष पर निबंध | Essay on Arvind Ghosh in Hindi

अरविन्द घोष एक नेता तथा सामाजिक, धार्मिक, सुधारवादी आन्दोलन के प्रणेता भी थे, उन्होंने समाज सेवा के लिए कार्य किया. ये महान देशभक्त थे. एक बंगाली परिवार में जन्मे अरविन्द ने देश के लिए क्रन्तिकारी के रूप में काम किया.

अरविन्द घोष जिन्हें बचपन में अरविन्द अक्रोद्य घोष के नाम से जानते थे, जो बड़े होकर महान श्री अरविन्द महर्षि के रुप में दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गये। 

अरविन्द घोष जी एक महान दर्शनशास्त्री, देशभक्त, क्रांतिकारी, गुरु, रहस्यवादी, योगी, कवि और मानवतावादी व्यक्ति थे। 

इनका जन्म एक समृद्ध बंगाली परिवार में साल 1872 को तारिक 15 अगस्त को हुआ था. परिवार बंगाली था, पर उनके पिताजी का झुकाव इंग्लिश भाषा की तरफ ज्यादा होने के कारण अरविन्द को बचपन में ही इंग्लिश स्कूल में दाखिल किया गया.

अपनी प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त करने के बाद आगे की शिक्षा को जारी रखते हुए अरविन्द को दार्जिलिंग और लंदन में भेजा गया जहाँ इन्होने अपनी शिक्षा पूर्ण कर 21 वर्ष की उम्र में 1893 को वापस भारत आए.

भारत में आते ही भारत पर ब्रिटिश सरकार द्वारा किये जा रहे अत्याचार के विरोध में उन्होंने सक्रीय रूप से भागीदारी सुनिश्चित की. हालाँकि अरविन्द के पिता उन्हें एक सिविल सेवक के रूप में देखना चाहते थे, इसलिए उन्होने अंग्रेजी पर ज्यादा जोर दिया.

हालाँकि अरविन्द मात्र इंग्लिश या अपनी मातृभाषा ही नही जानते थे, वे अंग्रेजी, फ्रेंच, बंगाली, संस्कृत आदि कई भाषाओ के ज्ञाता थे, वे एक बहुभाषी व्यक्ति थे. अरविन्द ने एक लेखक के रूप में भी कार्य किया उन्होंने मानवता, दर्शनशास्त्र, शिक्षा, भारतीय संस्कृति, धर्म और राजनीति के विषय पर गहन अध्ययन कर उनका वर्णन किया.

हमेशा से ही स्वराज्य में विश्वास रखते थे, अरविन्द जी 1916 में राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए तथा देश में दमन कर रहे अंग्रेजो के विरोध में खड़े रहे. वे बाल गंगाधर तिलक से काफी प्रभावित हुए, उनका तिलक से मिलन 1902 में पहली बार हुआ था.

अरविन्द घोष जी आक्रामक रवैये से देश की आजादी चाहते थे, वे लाल पाल व् बाल की जोड़ी के समर्थन में रहकर कार्य किया उन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए आह्वान किया.

बंगाल के अरविन्द जी ने अपने प्रांत से बाहर क्रांति की गतिविधियों को बढ़ाने के लिये लोकप्रिय नेता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी से सहायता ली उन्होंने अंग्रेजो का बहिष्कार करने का सन्देश दिया.

अरविन्द जी ने अपनी लेखनी से तथा जन भाषण से सभी लोगो को अंग्रेजी हुकूमत का बहिष्कार करने के लिए अधिक से अधिक भारतीयों को जोड़ा जिससे ब्रिटिश सरकार का बहिष्कार किया गया.