संत रविदास पर निबंध | Sant Ravidas Essay in Hindi- नमस्कार साथियों स्वागत है, आपका आज के हमारे आर्टिकल आज हम संत शिरोमणि तथा ज्ञानमार्ग दिखाने वाले संत के बारे में उनके जीवन से जुडी जानकारी को विस्तृत रूप में जानने का प्रयास करेंगे.
संत रविदास पर निबंध | Sant Ravidas Essay in Hindi
गुरु रविदासजी जिन्हें हम संत शिरोमणि तथा सतगुरु की उपाधि से अंलकृत करते है. संत रविदास मध्यकालीन भारत के श्रेष्टतम संतो में से थे, ये सतगुरु के साथ ही कवि भी. जिनके भजनों को सिक्खों के पवित्र धार्मिक ग्रन्थ गुरुग्रंथ साहिब में शामिल किया जाता है.
संत रविदास ने जातिवाद तथा आपसी भेदभाव को समाप्त कर आपनी भाईचारे के अध्ययन को पठाया. संत ने रविदासिया पंथ की स्थापना की. तथा अपने सिन्द्धानो से सभी के जीवन को प्रभावित किया. इन्होने आत्मज्ञान की कई विधियों को सभी के समक्ष प्रस्तुत की.
जातिगत भेदभाव के खिलाफ अलख जगाने वाले रविदास को आज कई अवांछनीय लोगो द्वारा इन्हें वर्ग विशेष के लिए उनका विरोधी बता रहे है. जो कि उनके सिन्द्धानो को निकारता है.
संत शिरोमणि कवि रविदास जी का जन्म माघ माह की पूर्णिमा के दिन 1376 ईस्वी को गोबर्धनपुर गांव वाराणसी उत्तरप्रदेश में हुआ था. इनके पिता का नाम संतोख दास तथा माता का नाम कर्मा देवी था.
बचपन से श्रम विभाजन के गहरे गद्दे में गिरने के कारण इन्हें जूते बनाने का कार्य करना पड़ा. संत शिरोमणि रविदास एक समाज सुधारक के साथ ही ईश्वर भक्ति को समर्पित होने के साथ ही सामाजिक कर्तव्यो का निर्वहन भी किया.
संत रविदास एक बुद्धिमानी तथा एक प्रखर ज्ञाता थे. इन्होने अपने समय में कई साहित्यक रचनाओ को लिखा. जिसमे इन्होने भजन दोहे तथा कई पदों की रचना की जो आज भी मानव में ज्ञान का अलख जगाती है. रविदास की रचनाओ में ज्ञानमार्गी शिक्षा के साथ ही समाज में प्रचलित कुरीतियों का विरोध किया.
संत रविदास ने अपने अपनी वाणी से सामाजिक एकता समानता, भाईचारे और प्रेम का प्रचलन किया जो समाज में सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है. इन्होने समाज में व्याप्त जातिवाद तथा धार्मिक कट्टरता का खुलकर विरोध किया तथा सभी मानव जाति के लोगो को एक समान बताया.
संत शिरोमणि की शिक्षाए तथा विचार आज भी हम सभी के समक्ष ज्ञान का अलख जगाते है. उनकी ज्ञान की बाते आज भी जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर होने के लिए तथा सभी के समक्ष समान भाव की भावना का विकास करते है.
संत रविदास के कुछ महत्वपूर्ण विचार निम्नलिखित हैं:
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।
ईश्वर एक ही है, तथा सभी धर्मो और समाज के लोग उनकी संतान है.
मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।
जातिगत भेदभाव , धर्म, और लिंग के आधार पर भेदभाव करने को महापाप बताया गया है.
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
सत्य, प्रेम, और करुणा ही जीवन का मार्ग है.
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
सभी मनुष्यों को एक-दूसरे के साथ प्रेम और भाईचारे की भावना से रहना चाहिए।
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच
संत रविदास पर 250 शब्द का निबंध
परिचय
मध्यकालीन भारत के महान संत और समाज सुधारक के रूप में उभरे संत रविदास जिन्हें भक्ति आन्दोलन का मुख्य कार्यकारी कहा जाता है. संत शिरोमणि ने भारत अध्यात्म को गहन से अध्य्यन करने के साथ ही उसके कई बदलाव अपेक्षित कर उन्हें स्थायी रूप से प्रभावित किया.
प्रारंभिक जीवन
संत रविदास का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ जो आर्थिक रूप से सम्पन्न न होने के साथ ही श्रम विभाजन की चपेट में उस परिवार में जन्मे जहाँ जूते बनाने का कार्य इन्हें मिला. इन्होने मोची का काम करते हुए सामाजिक व्यवस्था को चौनोती पेश की.
काव्य
संत रविदास जी की काव्य संग्रहों में हमें एक चीज जो सबसे अधिक देखने को मिलती है, तथा हमें प्रभावित करती है, वो है, उनके काव्यो में सामाजिक असमानता के विरुद्ध, जातिगत या धार्मिक भेदभाव के विरुद्ध तथा समाज की व्यापत कुरीतियों के विरुद्ध आलोचना तथा टिकी कटाक्ष जो उन्हें आपसी सद्भावना तथा प्रेम का संत बनाता है.
हमेशा प्रेम तथा भक्ति को प्राथमिकता देने वाले संत के नाम पर ही जब कोई भेदभाव का आरोप लगा देता है, तो यह कहाँ तक शोभनीय होगा.
कई लोग संत रविदास को ब्राहमण समाज का विरोध बताते है, तो कई इन्हें और कई धर्मो या जातियों से रिलेट कर देते है. यह उनके विचारो तथा भावना के साथ खिलवाड़ हो रहा है. जो उनके अनुनाइयो तथा सद्भावना के विचार को ओझल कर देता है.
रविदास ने दोहे छंद तथा कई भजनों की रचना की जो आज के समय में हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रहे है. इनके भजन सिक्खों के गुरुग्रथ साहिबा में आज भी बड़े सम्मान के साथ देखे जा सकते है. उनके छंद को बानी कहा जाता है. इनकी काव्य में भक्ति मार्ग तथा प्रेमभाव का गहरा प्रभाव देखने को मिलता रहा है.
रविदास एकेश्वरवाद ईश्वर में आस्था रखने के साथ ही निराकार परमात्मा को समर्पित थे, जो निर्गुण भक्ति शाखा के मुख्य भक्तो में से एक थे. इन्होने निर्गुण भक्ति धारा के विकास में जोर दिया.
संत शिरोमणि गुरु रविदास जी आज भी हम सभी के हृदय में संजोयो हुए अपने विचारो, शिक्षाएँ धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं के प्रतिपालक के रूप में आज भी हम उनको याद करते है.
हर साल उनकी जन्म दिवसी पर माघ माह की पूर्णिमा के दिन जयंती मनाई जाती है. तथा उनके सिंद्धांतो और विचारो का अनुसरण किया जाता है. आज भी हम सभी के लिए एक आदर्श प्रेरणा बने हुए है.
निष्कर्ष
संत रविदास जिन्होंने समाज में व्यापत इन कुरीतियों को समाप्त कर समाज को उचित आयाम तक पहुँचाने तथा समाज की व्यवस्था को सर्वोत्तम बनाने के लिए कार्य किये. उनके कार्यो की आज भी सराहना की जाती है. तथा विचारो पर अमल किया जाता है.
आप सभी पाठको और साथियों से निवेदन या विनती रहेगी, कि सोशल मीडिया और अन्य स्रोतों पर रविदास जी से सम्बंधित फ़ैल रही अफवाहों को नजरअंदाज कर उनके वास्तविक जीवन और उनके संघर्षो को जानकार उनकी आदर्श वाणी का सम्मान करें.