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बिरसा मुंडा पर निबंध | Essay On Birsa Munda In Hindi

बिरसा मुंडा पर निबंध | Essay On Birsa Munda In Hindi- नमस्कार साथियों स्वागत है, आपका आज के हमारे इस लेख में साथियों आज हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान देने वाली विभूति के जीवन के पहलुओ के बारे में जानेंगे साथ ही बिरसा मुंडा जैसे साहसी क्रन्तिकारी की कहानी को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे.

बिरसा मुंडा पर निबंध | Essay On Birsa Munda In Hindi

बिरसा मुंडा पर निबंध | Essay On Birsa Munda In Hindi

भारत जैसे बड़े देश में जहाँ कर्म से ज्यादा महत्व धर्म को दिया जाता है, वहां आज के समय में बिरसा मुंडा को हम उनके कार्यो और लग्न के कारण भगवान स्वरूप उनकी पूजा करते है.

वैसे देशभर में अनगिनत स्वतंत्रता सेनानी हुए पर आदिवासी समाज से आवाज उठाने वाले क्रन्तिकारी बिरसा मुंडा अपनी कार्यशैली तथा क्रियान्वयन के कारण सभी के दिलो पर अमिट छाप छोड़ दी.

एक बड़ा क्रन्तिकारी होने पर भी बिरसा मुंडा भी एक गुमनाम सेनानी ही रहे. पर इनके योगदान की सहारना की गूंज आज भी आदिवासी समाज में तथा देश की आजादी में सुनाई पड़ती है. अपने समाज के लिए मसीहा बनकर उभरे तथा समाज की उन्नति कर उन्हें पिछड़े वर्ग से उचित अधिकार दिलाने तक उन्होंने अपने समाज का साथ दिया.

बिरसा मुंडा भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के नायक थे. इन्होने कई क्रन्तिकारी संगठनों के लिए काम किया. इनके कार्यो की आज भी सराहना की जाती है. इन्होने आदिवासी समाज से आगे आकर देश के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया. उनका अविस्मरणीय योगदान उन्हें ईश्वरीय रूप दिलाता है.

ब्रिटिश हुकूमत की तानाशाही के बीच बिरसा मुंडा ने बंगाल प्रेसीडेंसी में हुए बड़े आदिवासी आन्दोलन का प्रतिनिधित्व भी किया. इस आन्दोलन के साथ ही यह एक नेता से एक राष्ट्रीय नेता या नायक बन गए. आदिवासी समाज के लिए सेवाभाव की भावना रखने वाले बिरसा मुंडा को धरती आबा के नाम से जानते है, जो उन्हें भगवान की उपाधि दिलाता है.

बीरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को जारटोली गांव, झारखंड राज्य में एक आदिवासी परिवार में हुआ. बचपन इनका अभावो में बिता. जिसमे इन्होने संघर्ष कर अपने जीवन के आरम्भिक चरणों को बिताया. बचपन से ही बिरसा का संघर्ष करना तथा समाज के लिए कल्याणकारी कार्य करना एक सपना सा बन चूका था. 

बिरसा मुंडा के पिताजी का नाम सुगना पूर्ती तथा माता का नाम करमी पूर्ती था.  इन्होने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहां के निजी विद्यालय गोस्नर इवेंजेलिकल लुथरन चर्च विद्यालय से पूर्ण की. इस विद्यालय में दाखिल करने का उद्देश्य अच्छी शिक्षा की प्राप्ति थी. पर यहाँ की व्यवस्था और धार्मिक कट्टरता के अध्याय बिरसा को अनुचित ही प्रतीत हुए. 

बिरसा ने बचपन में ही जब अपने गाँव जारटोली की वास्तविक व्यवस्था का संज्ञान लिया तो उन्होंने पाया कि इसमे कई बदलावों की आवश्कता है. जिसके बाद इन्होने अपने समुदाय की दशा को सुधारने के लिए उनके अधिकारों की प्राप्ति के लिए लड़ने का दृढ निश्चय कर लिया.

बिरसा मुंडा ने बचपन में ही अपने समाज में व्याप्त समस्याओ से रूबरू होकर समाज की इन समस्याओ का निराकरण करने के लिए समाज सेवा की भावना से जुट गए. उन्होंने रोग मुक्ति के लिए कई प्रकार की साधनाए की तथा अपने गाँव के लोगो को उपदेश देने लगे.

अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत में किये जा रहे अत्याचार को निरंतर उग्र रूप दे रही थी. उनका यही रवैया उस समाज पर और भी घातक था, जिस समाज से बिरसा मुंडा थे. यानि आदिवासी समाज उन्हें जंगल तथा अपनी जमीन मिल्कियत से अलग कर रहे थे.

आदिवासियों द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा किये जा रहे इन अत्याचारों के खिलाफ कई बार विद्रोह हुआ पर हर बार असफल रहे मुख्य कारण आपसी फुट तथा आधुनिक हथियारों का ना होना था, जिस कारण हर बार अंग्रेजो द्वारा इनके विद्रोह को कुछ ही समय में दबा दिया जाता था.

अंग्रेजो से निराश आदिवासी लोगो ने 1895 में आई जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के विरोध में विद्रोह के लिए नायक के रूप में बिरसा मुंडा को चुना जो उस समय के सबसे श्रेष्ट नायक थे. 

बिरसा ने अपनी गलतियों को सुधारते हुए सबसे पहले सभी में एकता के द्वारा अपने संगठन को बड़ा किया तथा उसके बाद सभी को अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए सब कुछ न्यौछावर करने की भावना को उजागर कर सभी में क्रांति के बीज बो दिए. सभी आदिवासियों के साझा विद्रोह तथा सबसे बड़ा विद्रोह जिसने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती पेश की महाविद्रोह 'उलगुलान'।

अंग्रेजी हुकूमत के समय आदिवासियों की दरिद्रता का स्तर बहुत ख़राब था, उनकी गरीबी उन्हें सता रही थी. साथ ही इसाईकरण भी जोरो पर था. उस समय इसाई लोगो द्वारा इन्हें बहकाया जाता था, कि इश्वर का आप पर प्रकोप है, आप हमारे धर्म में शामिल हो जाओ यह प्रकोप समाप्त हो जाएगा. 

बिरसा ने २० वर्ष की आयु में अपने समाज के लिए उन अनसुलझी मान्यताओ तथा कहानियो का हल निकाल दिया जो उनके लिए टेडी खीर बने हुए थे. आदिवासी लोग महामरी को इश्वर का प्रकोप मानते थे, वहीँ बिरसा ने उन्हें इसकी वास्तविक कारण व निराकरण के उपाय बताकर उनसे लड़ने के लिए तैयार करते. 

उस समय चल रही मशीनरी की व्यवस्था को समाप्त करना उनका मुख्य उद्देश्य बन गया था, क्योकि मशीनरी का कुचक्र उन्हें बहलाने वाली सलाह देकर राह से भटकाने का कार्य कर रही थी. 

धीरे-धीरे मशीनरी के प्रभुत्व को समाप्त कर उसके स्थान पर बिरसा ने अपने उपदेशो से उसके प्रभाव को समाप्त कर अपना प्रभुत्व कायम कर दिया. आदिवासियों के लिए मसीहा बन रहे बिरसा मशीनरी और अंग्रेजी हुकूमत के लिए जानी दुश्मन बन गए.

मशीनरी के लिए अवरोधक के रूप में बिरसा सबसे आगे आ रहे थे. बिरसा ने किये जा रहे धर्मान्तरण का विरोध किया. अंग्रेजी सरकार द्वारा एक आत्मघाती की सहायता से बिरसा सहित ४०० से अधिक लोगो को जेल में बंद कर दिया गया. इसमे सभी के ऊपर सरकार द्वारा अलग अलग धाराओ के केस लगाए गए. 

बिरसा मुंडा पर जुर्म साबित न हो सका इसलिए अंग्रेजी के विरोध की मुख्य जड़ बन रहे बिरसा को खाने/पानी में जहर देकर उनकी जान ले ली गई. क्योकि अंग्रेज जानते थे, यदि बिरसा छुटता है, तो यह आन्दोलन का उग्र रूप लेगा. जो अंग्रेजो के लिए नुकसानदेह हो सकता है. 

बिरसा की मृत्यु उन्हें नहीं मार सकी वो अमर विभूति के रूप में हम सभी के हृदय में स्थान बनाए हुए है. आज भी  बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल राज्यों में बिरसा मुंडा की प्रतिमाए लगी है. तथा इनकी पूजा की जाती है. 

बिरसा का समाधी स्थल रांची के कोकर में डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है. यहाँ पर मुंडा की प्रतिमाए लगी हुई है. इसके साथ ही यहाँ पर  बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र को भी स्थापित किया गया है. जो उनकी स्मृति के रूप में स्थापित किये गए है.

उनके उपदेश हमेशा से ही गौ माता के वध को रोकने के विरुद्ध तथा मांस खाने के विरुद्ध होते थे. उन्होंने अपने उपदेशो से काफी लोकप्रियता अर्जित कर ली थी. उन्होंने अपने उपदेशो से अपने समाज के साथ कई अन्य लोगो का भी कल्याण किया.

वे हमेशा अपने उपदेशो में कुछ बिंदु यथावत बताया करते थे, जिससे समाज के सभी लोगो में इन बुरी लत से छुटकारा पाया जा सकें. उनके उपदेश में सादा जीवन जीओ, शराब मत पियो, मांस मछली मत खाओ पूजा में बलि बंद करो, भूत प्रेत मत मानो, घर घर में तुलसी की पूजा करो, झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, एकता बनाए रखो, कुसंगति से बचो जैसे वाक्य सम्मलित थे.

बिरसा मुंडा एक समाज सेवी के साथ ही एक महान देशभक्त भी थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेज सरकार से लौहा लिया. उनका अदम्य साहस और वीरता उनकी संघर्ष शीलता को प्रकट करती है. ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कई बार जेल में भी बंद किया गया पपर बिरसा को रोका जा सकता था, इनके विचारो को रोकना संभव नहीं था. 

वित्त सत्ता में विरोध में आन्दोलन के दौरान इन्हें सरकार के सामने डटकर खड़ा रहना पड़ा. इनकी सहनशीलता तथा परामर्श के कारण उन्हें आदिवासी समाज का मसीहा और आदिवासी जनता का नायक कहा जाता है. जो उनके हित के लिए सर्वोपरि कार्य करते है.

मानवीय रूप में जन्मे लेकर देवत्व की भाँती उद्धार करने वाले बिरसा मुंडा को अपना अंतिम समय भी जेल की सलाखों के पीछे काटना पड़ा पर उनका योगदान आज भी हम सभी के लिए सर्वोपरि भेंट है. कई हिंसक आन्दोलन जिन्होंने इन्हें जेल की सलाखों तक पहुँचाया उनमे से एक कोटा टू में जर्मन मिशन चर्च जलाने के आरोप में गिरफ्तारी पेश करनी पड़ी.

आदिवासी समाज के महानायक तथा राष्ट्रीय नेता बिरसा मुंडा समाज सेवा करते हुए स्वर्ग सिधार गए. उनका निधन 9 जून 1900 को जेल में रहते हुए हैजा रोग की वजह से हो गई. 

उनके सामाजिक उदारता तथा कल्याणकारी कार्यो के लिए हमेशा याद रखा जाएगा. उनका समाज के प्रति रवैया जो समाज को सर्वोपरि रखता की अनुपालना हम सभी के प्रेरणा का स्रोत बनेगी.

हर साल बिरसा मुंडा जैसी विभूति को याद रखने के लिए तथा उनके कार्यो को एक दिन समर्पित करने के लिए हर साल बिरसा मुंडा की जयंती पर 15 नवंबर को "जनजातीय गौरव दिवस" के रूप में मनाने की घोषणा की गई. 2021 में इस दिवस की घोषणा की गई.