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श्रीमद् भागवत गीता पर निबंध | Essay on Geeta in Hindi

 श्रीमद् भागवत गीता पर निबंध | Essay on Geeta in Hindi- नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है, आज के हमारे इस आर्टिकल में आज के इस लेख में हम आपके समक्ष भागवत गीता के बारे में उसका सार तथा उससे जुड़े तथ्यों को विस्तार से पढेंगे.

श्रीमद् भागवत गीता पर निबंध Essay on Geeta in Hindi

हमारे ऋषि मुनियों एवं विद्वानों की शिक्षा ही हमारी संस्कृति को अतीत से लेकर वर्तमान तक लाती हैं. वेद, पुराण, गीता, महाभारत, रामायण आदि भारतीय संस्कृति के आधार हैं. सभी हिन्दू शास्त्रों में गीता को प्रथम स्थान दिया जाता हैं. मुनि वेदव्यास जी ने ही गीता की रचना की थी. यह ग्रन्थ मूल रूप से महाभारत के भीष्म पर्व का ही एक भाग हैं.

गीता में कुल अठारह पर्व अथवा अध्याय एवं करीब 700 संस्कृत श्लोक हैं. हिन्दुओं में गीता के प्रति अगाध श्रद्धा एवं निष्ठा हैं. जैसे जैसे समाज में शिक्षा का चलन बढ़ा है वैसे वैसे गीता को घर घर में पढ़ा जाने लगा हैं. भारत की संस्कृति के स्वरूप उसकी सहिष्णुता के भाव को गीता जी में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैं.

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण द्वारा युद्ध काल में अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को दिए गये उपदेशों का वर्णन हैं. महाभारत के युद्ध में जब कौरवों और पांडवों की सेना एक दूसरे के सम्मुख खड़ी हुई तो अर्जुन प्रतिपक्ष में अपने सभी स्वजनों को देखकर युद्ध त्याग कर अपनी पराजय स्वीकार करने लगे थे. तभी श्रीकृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कहते है इन्सान को निष्काम भाव से कर्म करते रहना चाहिए उसे फल की चिंता नहीं करनी चाहिए.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भू: मा ते सङ्‌गोस्त्वकर्मणि ।।

भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से कहते है, हे पार्थ सभी जीवों में आत्मा है जो अजर और अमर हैं. वह शरीर के समाप्त होने पर भी समाप्त नहीं होती है उसे न भिगोया जा सकता न जलाया जा सकता हैं. यह ठीक उसी तरह है जैसे कोई इंसान एक वस्त्र का त्याग कर दूसरा धारण करता हैं, इसी भांति आत्मा भी एक शरीर के त्याग के पश्चात नवीन शरीर को धारण करती रहती है और मोक्ष प्राप्ति तक यह चक्र अनवरत चलता रहता हैं.

अर्जुन जब युद्ध से विमुख होने लगते है तो कृष्ण जी उन्हें आत्मा के स्वरूप को समझाते है तथा अपना विराट दर्शन देकर कहते है. भले ही मारने और मरने वाला ये सोचते है कि वह मर गया या मैंने मार दिया, परन्तु वे यह नहीं जानते है कि आत्मा कभी नहीं मरती हैं. अतः हे पार्थ यदि धर्म युद्ध का त्याग करोगे तो अपयश प्राप्त होगा तथा विजयी हुए तो श्री हासिल होगी.

एक व्यक्ति को जीवन कैसे जीना चाहिए, उसका व्यवहार कैसा हो, स्वयं में परिष्कार कैसे सम्भव है आदि हमें गीता सिखाती हैं. साथ ही गीता के उपदेशों में कहा गया है सादा जीवन उच्च विचार के साथ मनुष्य को अपने में व्याप्त स्वार्थ भावनाओं का दमन करना चाहिए. अहंकार बुद्धि का हरण कर लेता है तथा ज्ञान गुरु के बिना सम्भव नहीं है. 

गीता में भगवान कहते है कि प्राणी मुझे किसी भी रूप में मानता है मैं उनके साथ हूँ. कोई शैव, वैष्णव, कोई राम , शिव किसी रूप में स्तुति करें मैं उसे दर्शन देता हूँ. उत्कृष्ट आदर्शों का परिचायक होने के कारण गीता को हिन्दुओं का पावन ग्रंथ होने का सम्मान प्राप्त हैं. वैसे गीता के उपदेश किसी क्षेत्र, भाषा, जाति या मत मजहब विशेष के लिए न होकर सार्वभौमिक रूप से सभी के लिए हैं. उन्हें उसी रूप में अपने जीवन में अपनाकर आत्मोन्नति की राह पर बढ़ना चाहिए.

पिछले कुछ वर्षों से विदेशों में भी गीता का प्रसार प्रचार तेजी से हुआ हैं.पश्चिम भी अब गीता के महत्व को समझने लगा हैं. लगभग सभी आधुनिक भाषाओं में गीता की अनुवादित पुस्तक उपलब्ध हैं. भारत सरकार दूसरे देश से आने वाले राष्ट्राध्यक्षों को भी विदाई के समय उपहार में गीता देती हैं, यह एक अप्रितम उपहार हैं. एक पश्चिमी विद्वान ने गीता के विषय में कहा कि सभी आधुनिक भाषाओं के गीतों में गीता सबसे सुंदर एवं दार्शनिक हैं.


सभी वेदों का सम्पूर्ण सारांश गीता के विद्यमान है. गीता के बारे में वर्णन करने के लिए हमारे पास सबंध सीमा नहीं है. इसे शब्दों से नहीं बाधा जा सकता है. गीता भगवान कृष्ण से नीकली है. जिसे आज के ज़माने में लोग उसे अध्ययन करते है. भगवान कृष्ण ने अपने गीता के महत्त्व को बताया- की यदि कोई व्यक्ति गीता का सम्पूर्ण अध्ययन अपने तन-मन के साथ करें. तो उन्हें परमात्मा जरुर मिलते है. प्रेमपूर्वक भव से गीता को पढने के मुक्ति होती है. चार वेदों की सम्पूर्ण जानकारियों को मिलकर ही गीता का निर्माण किया गया है. 

प्रत्येक व्यक्ति  जो गीता का अध्ययन करेगा या गीता के का भाव सुनेगा वह अपने जीवन में मोक्ष प्राप्त करेगा. गीता का प्रमुख उद्देश्य लोगो का उद्धार करना ही है. गीता का अध्ययन करने के लिए किसी धर्म या किसी देश में रोकटोक नहीं है. गीता का अध्ययन प्रत्येक धर्म के लोग, किसी भी वर्ण तथा  किसी भी देश में रहकर गीता का अध्ययन कर सकता है. 


मानव जीवन दुखों का घर माना जाता हैं, जीवन भर अपनों तथा परायों की पीड़ा को देखकर या सहकर मनुष्य खुद को कष्ट देता रहता हैं. वह स्वयं के ज्ञान से अपरिचित होता हैं. गीता का हर श्लोक हमारे जीवन की बाधाओं में राह दिखाता हैं. गीता सार को अपने जीवन में अपनाकर इसे अधिक सुखी और आनन्दमय बना सकते हैं.


गीता के बारे में कहा जाता है कि यदि एक मुर्ख इंसान भी एक बार उपदेशों को आत्मसात करले तो वह आत्मज्ञानी बन जाता हैं. जीवन की वास्तविकता, धर्म का आशय और जीवन में योगदान, विपत्ति में क्या करना चाहिए कौन मित्र और शत्रु है इसकी पहचान गीता पढ़ने भर से स्वतः हो जाती हैं.

श्रीमद्भागवत गीता का महत्व

श्रीमद्भागवत गीता एक महत्वपूर्ण हिन्दू धर्मिक ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अर्जुन की धर्मसंकटों और जीवन के महत्वपूर्ण सवालों का समाधान देते हैं। यह गीता महाभारत के युद्ध के समय बोली गई थी और उसका सन्देश आज भी समय के साथ साथ मानवता के लिए प्रासंगिक है।

भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश

गीता में krishn ji ने धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान और मोक्ष के विषय में अनेक महत्वपूर्ण उपदेश दिए हैं। उन्होंने धर्म की महत्वपूर्णता को बताया और यह बताया कि धर्म के लिए संघर्ष करना सही होता है। उन्होंने यह भी बताया कि धर्म का पालन करते समय कर्म के परिणामों के लिए आसक्त नहीं होना चाहिए।

भगवान का यह उपदेश भक्ति और सेवा में अपना समय देने की महत्वपूर्णता को भी प्रमोट करता है। उन्होंने आत्मा की महत्वपूर्णता को भी बताया और आत्मा को शरीर से अलग मानकर उसकी अनादि और अनंतता को स्वीकार किया।

कर्म का महत्व

गीता में कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कर्म करने की प्रेरणा दी और उन्हें कर्मयोग के माध्यम से अपने कर्तव्यों का पालन करने की सलाह दी। कर्मयोग के अनुसार किसी भी कार्य को निष्काम भाव से करना चाहिए और फलों के लिए आसक्त नहीं होना चाहिए।

उत्तराधिकारी का कर्तव्य

गीता में श्रीकृष्ण ने उत्तराधिकारी के कर्तव्य का पालन करने की महत्वपूर्णता को बताया। उन्होंने यह भी बताया कि किसी भी कर्तव्य को छोड़कर भागना सही नहीं होता है और समाज में अवरोधक बनता है।

युद्ध में धर्म

गीता में महाभारत के युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने का उपदेश दिया। उन्होंने यह बताया कि युद्ध के समय धर्म के अनुसार कर्म करना महत्वपूर्ण होता है और आत्मविश्वास के साथ कर्म करना चाहिए।


उपासना का मार्ग

श्रीकृष्ण ने गीता में उपासना के मार्ग को भी बताया। उन्होंने भक्ति, ज्ञान, और कर्म के माध्यम से ईश्वर की उपासना का विवरण किया और यह बताया कि उपासना में निष्कामता और अन्यास का महत्व होता है।

संक्षिप्त निष्कर्ष

आपकी रचना में श्रीकृष्ण के जन्म और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। आपने उनके उपदेशों को भी समाहित करके पठकों को गीता के महत्वपूर्ण तत्वों के प्रति जागरूक किया है। इस रचना से हमें श्रीकृष्ण के विचार और उनकी अद्वितीय व्यक्तिता का अध्ययन करने का अवसर मिलता है।

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