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वीर कुंवर सिंह पर निबंध Veer Kunwar Singh Jayanti Essay In Hindi

Veer Kunwar Singh Jayanti Essay In Hindi वीर कुंवर सिंह जयंती पर निबंध: प्रिय पाठकों आपकों वीर कुँवरसिंह (Veer Kunwar Singh Jayanti 2024) की शुभकामनाएं देते हैं. Veer Kunwar Singh Jayanti Essay In Hindi आप जानते ही होंगे हर वर्ष 23 अप्रैल को बाबु कुँवरसिंह जी की जयंती मनाई जाती हैं. 1857 की क्रांति के वे महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ८० साल की आयु में अंग्रेजों के दांत खट्टे किये थे.

Veer Kunwar Singh Jayanti Essay In Hindi


भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख सेनानी वीर कुंवर सिंह जिनकी जयंती हर साल 23 अप्रैल को मनाई जाती है. बिहार राज्य में भोजपुर में परमार राजपूत वंश परिवार में जन्म लेने वाले वीर कुंवर सिंह को आज हम उनके समर्पण तथा बलिदान के लिए याद करते है.

बिहार राज्य में अंग्रेजो के खिलाफ लौह लेने में सबसे सर्वोपरि इनी का नाम आता है. यह यहाँ आन्दोलन के मुख्य नायक के रूप में समर्पित थे. वीर कुंवर सिंह ने 80 साल की वृद्धावस्था में युवा सेनानियों की भांति युद्ध कर अपने युद्ध कौशल को प्रदर्शित किया. 

वीर कुंवर सिंह के सहायक या सलाहकार उनके भाई बाबु अमर सिंह तथा हरे कृष्ण सिंह दोनों थे, जो हर संकट या दुविधा में उनके समक्ष खड़े रहते थे. शुरूआती समय में कुंवर सिंह इन्ही के बलबूते अजेय रहे. जिसमे इनका बहुत बड़ा योगदान था. कुंवर सिंह ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया. 

वीर बहादुर योद्धा कुंवर सिंह का 26 अप्रैल, 1858 को निधन हो गया. उनकी मृत्यु होने के बाद भी अंग्रेजो के खिलाफ गोरिल्ला का युद्ध चलता रहा. कुंवर सिंह ने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक खुद को अजेय योद्धा की भाँती युद्ध में लड़ने के लिए अनुशासित रखा.

देश की आजादी में अपना अमूल्य योगदान देने वाले कुंवर सिंह को उनकी जयंती के अवसर पर 23 अप्रैल 1966 को उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया गया. जो उनके भारत गणराज्य में मान सम्मान को प्रदर्शित करता है. साल 1992 में इनके नाम पर बिहार में आरा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई.

साल 2017 में कुंवर सिंह के सम्मान में कुंवर सेतु जिसे आज हम आरा-छपरा ब्रिज के नाम से जानते है, उसका उद्घाटन किया गया तथा अगले साल उनकी जयंती के अवसर पर उनकी प्रतिमा का शिलान्यास किया गया. तथा पार्क को वीर कुंवर सिंह आज़ादी पार्क नाम से सुशोभित किया.

वीर कुंवर सिंह जयंती पर निबंध

वीर कुंवर सिंह का जन्म 1782 में जगदीशपुर शाहबाद बिहार में हुआ था. यदपि वे जगदीशपुर जैसे विशाल राज्य के स्वामी थे. लेकिन मौका मिलते ही इनकी जागीर अंग्रेजी कम्पनी ने हड़प ली.

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इन्होने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी शक्तियों का साथ दिया. इन्होने बिहार के रजवाड़ों को अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट होने का आह्वान किया. 

कुँवरसिंह ने अपने को शाहाबाद का शासक घोषित कर आरा क्षेत्र को भी अंग्रेजों से मुक्त करा लिया. उन्हें जगदीशपुर तो छोड़ना पड़ा लेकिन पहले मिर्जापुर फिर बांदा होते हुए वह कालपी आकर नाना साहब से मिले.

आजमगढ़ पर विजय के कारण लखनऊ में विरजिस कादर ने उनका भव्य स्वागत किया. ब्रिटिश शक्तियाँ एकजुट होकर कुंवर सिंह का पीछा कर रही थी. लेकिन यह शूरवीर ब्रिटिश सेना को हर बार चकमा देकर बच जाता था.

अब उन्होंने किसी भी तरह अपनी जन्मभूमि जगदीशपुर लौटने का निश्चय किया. ब्रिटिश सेना लगातार उनका पीछा कर रही थी. जगदीशपुर के लिए उन्होंने अपनी सेना को गंगा पार करवाई.

जब वे गंगा नदी पार कर रहे थे तो ब्रिटिश सेना की गोलियों से उनके हाथ का पंजा छलनी हो गया. सारे हाथ में जहर न फ़ैल जाए, अतः उन्होंने भुजा काटकर गंगा माँ में भेट चला दी.

अंत में घायल शेर ने एक ही भुजा से 23 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना से टक्कर ली. अंत में उसी दिन अपनी जन्म भूमि जगदीशपुर पहुच कर इस घायल शेर ने शहादत प्राप्त की.

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