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भारतीय पुनर्जागरण पर निबंध | Essay On Indian Renaissance in Hindi

Essay On Indian Renaissance in Hindi भारतीय पुनर्जागरण पर निबंध: प्रिय दोस्तों आपका स्वागत हैं आज हम Essay on Renaissance in India के इस निबंध में भारतीय पुनर्जागरण के विषय में विस्तार से जानेगे कि पुनर्जागरण क्या था अर्थ परिभाषा कारण प्रभाव लाभ हानि परिणाम आदि पर चर्चा करेंगे.

Essay On Indian Renaissance in Hindi भारतीय पुनर्जागरण पर निबंध

भारतीय पुनर्जागरण का अर्थ- अंग्रेजों के आने से पूर्व भारतीय धर्म व समाज रूढ़ियों और अंधविश्वासों का बड़ा प्रभाव था. जाति भेद से समाज छिन्न भिन्न था. 

निम्न जातियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था, ये कुरीतियाँ यूरोपीय आधुनिक समाज की मान्यताओं के सर्वथा प्रतिकूल थी, परन्तु भारतीय इन्हें अपने शास्त्रों के अनुसार सही मानते थे.

19 वीं शताब्दी के आरंभ में भारत के लोग अपने प्रणेताओं को सही शिक्षाओ को भूल कर अनेक प्रकार की रूढ़ियों अंधविश्वासों, आडम्बरों, पाखंडों शुष्क कर्मकांडों और भ्रम में फंसे हुए थे. 

पश्चिमी ज्ञान के ज्वलंत प्रकाश में जब उनकी आँखे खुली तो उन्हें अपनी हीनता और गिरी हुई दशा का अनुभव हुआ तथा उन्हें सुधारों की आवश्यकता अनुभव हुई. 

यूरोप के देशों की ज्ञान की लहर ने जब भारत में प्रवेश किया तो नवजागरण का सूत्रपात हुआ. जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक व सामाजिक क्षेत्रों में सुधारात्मक आंदोलन आरंभ हुए.

सुधार आंदोलनों अथवा पुनर्जागरण के कारण (Reform movements or cause the Renaissance)

19 वीं शताब्दी में धार्मिक व सामाजिक क्षेत्रों में सुधार आंदोलन निम्नलिखित कारणों से आरंभ हुए.

भारतीय पुनर्जागरण का जनक

राजाराम मोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का जन्मदाता अथवा जनक कहा जाता हैं. उन्होंने 1814 में आत्मीय सभा की नींव रखी जो आगे चलकर ब्रह्म समाज के रूप में अस्तित्व में आई.

भारतीय समाज में कुप्रथाओं का प्रकोप- भारतीय समाज और विशेषकर हिन्दू समाज तथा धर्म में अनेक दोष उत्पन्न हो गये थे, जिनका निवारण अनिवार्य हो गया था. क्योंकि बिना उनके परिष्कार के हिन्दू समाज अस्वस्थ तथा दूषित होता जा रहा था.

अंग्रेजी शासन की स्थापना एवं अंग्रेजों से सम्पर्क- 19 वीं शताब्दी में अंग्रेजी शासन की स्थापना और भारतीयों के अंग्रेजों के सम्पर्क में आने के कारण धार्मिक व सामाजिक क्षेत्रों में नयें विचारों का उदय हुआ. 

भारतीय सिपाहियों कर्मचारियों, अध्यापकों आदि का अंग्रेजों से सम्पर्क हुआ. इस प्रकार के सम्पर्क ने भारतीयों को यह अनुभव कराया कि उन्हें अपने धर्म व समाज में सुधार करना चाहिए.

ईसाई धर्म का प्रचार- अनेक अंग्रेज अधिकारियों और पादरियों ने भारतीय जनता को ईसाई धर्म में दीक्षित करना अपना नैतिक व धार्मिक कर्तव्य समझ रखा था. ईसाई धर्म के प्रचार के लिए अनेक सुविधाएं दी गयी. 

भारतीय धर्मों की पादरियों द्वारा तीव्र आलोचना की जाने लगी थी. और हिन्दू देवी देवताओं का मजाक उड़ाया जाता था. बड़ी संख्या में निम्न जाति के भारतीय प्रलोभन या दवाब में आकर ईसाई बन रहे थे. 

ऐसी स्थिति में अनेक भारतीय नेताओं ने देश के प्राचीन धर्म का जनता को स्मरण कराया और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सुधार आंदोलन शुरू किये.

अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव- अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों को पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति और विज्ञान का ज्ञान कराया और वे अपने धर्म व समाज की गिरी हुई दशा अनुभव करने लगे थे, 

दूसरी ओर बड़ी संख्या में अंग्रेजी शिक्षा व सभ्यता के प्रभाव में आकर भारतीय अपने धर्म व संस्कृति से विमुख होने लगे थे. 

ऐसी स्थिति में अनेक भारतीयों ने यह प्रयत्न किया कि पश्चिम की अच्छी बातों को ग्रहण करते हुए अपने देश की संस्कृति की रक्षा की जाए.

पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव- पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से भारतवासियों के अन्धविश्वास तथा रूढ़ियाँ धीरे धीरे समाप्त होने लगीं. भारतवासियों में स्वतंत्र चिंतन तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न हुआ. 

वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने लगे.प्रो सीताराम शर्मा का मत हैं कि पाश्चात्य दृष्टिकोण के कारण मध्ययुगीन अन्धविश्वास तथा मान्यताओं के प्रति विवेचन और तार्किक दृष्टिकोण अपनाने की प्रवृति प्रारम्भ हुई.

भारतीयों का जागृत होना- प्राचीन भारतीय ग्रंथों तथा संस्कृति का अध्ययन अंग्रेज, फ़्रांसिसी, जर्मन आदि विद्वानों द्वारा किया जाने लगा था. 

इन विद्वानों ने यह सिद्ध कर दिया कि हमारी संस्कृति उच्च श्रेणी की थी, इसके परिणामस्वरूप भारतीयों में आत्म गौरव तथा आत्म सम्मान की भावनाएं जागृत हुई और वे अपने धर्म और समाज में उत्पन्न हुई बुराइयों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील हो गये.

प्रेस का प्रभाव- 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत में छापेखाने या प्रेस का विकास हो चूका था. बड़ी संख्या में पुस्तकों व समाचार पत्रों के प्रकाशन ने भारतीयों का बौद्धिक विकास किया. 

जन साधारण ने अब अपने प्राचीन ग्रंथों को पढकर अपने प्राचीन गौरव का अनुभव किया और वे अपने धर्म व समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने की ओर अग्रसर हुए.

कतिपय विदेशी विद्वानों का योग- 18 वीं शताब्दी के अंत से ही कुछ अंग्रेजी विद्वानों ने भारत के प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद किया, अनेक प्राचीन ग्रंथ खोज निकाले और शौध संस्थाएं स्थापित की. 

उदाहरणार्थ जेम्स प्रिसेप ने अशोक के शिलालेखों का अध्ययन किया, कनिंघम ने महत्वपूर्ण पुरातत्व खोजें की. विलियम जोन्स आदि ने एशियाटिक सोसायटी आदि शोध संस्थानों की स्थापना की. इन सब बातों ने भी भारतीय जनता में नवजागरण उत्पन्न किया.

विज्ञान का प्रभाव- उन्नीसवीं शताब्दी में विज्ञान की जो उन्नति हुई, उसका भी हमारे देश पर बहुत प्रभाव पड़ा और भारतीय जनता में जागृति उत्पन्न हो गयी. वास्तव में विज्ञान ने अन्धविश्वासी और रुढ़िवादी जनता को अंधकार से प्रकाश में ला दिया.

राष्ट्रीय चेतना का प्रभाव- 1857 की क्रांति ने भारतीयों में एक प्रबल राष्ट्रीय चेतना का जागरण कर दिया था. यह चेतना उतरोतर बलवती होती गयी और सामाजिक और धार्मिक सुधारों में परिवर्तित हो गयी.

भारत का विदेशों में सम्पर्क- 19 वीं शताब्दी में अनेक भारतीय लोगों ने अमेरिका इंग्लैंड फ़्रांस जापान आदि देशों की यात्रा की. जिसके फलस्वरूप वहां के समाज संस्कृति, राजनीतिक जीवन, विचार दृष्टिकोण आदि की जानकारी भारतीयों को हुई. 

भारतवासी वहां की स्वतंत्रता, समानता भ्रातत्व उदारवाद, राष्ट्रवाद आदि भावनाओं से बहुत प्रभावित हुए. इससे भारतीयों के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक दृष्टिकोण में परिवर्तन होना शुरू हुआ और वे भारत में सुधार लाने में प्रयत्नशील हुए.

सुधारकों का प्रभाव- सौभाग्यवंश इस काल में अनेक ऐसे सुधारक तथा उपदेशक हुए जिन्होंने समाज सुधार तथा धार्मिक कुरीतियों को मिटाने का कार्य बड़े उत्साह से किया.