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समाज सेवा पर निबंध | Essay On Social Service In hindi

समाज सेवा पर निबंध | Essay On Social Service In Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका हार्दिक स्वागत हैं. आज का लेख, निबंध, पैराग्राफ Social Work समाज सेवा पर दिया गया हैं, उम्मीद करते है आपकों यह एस्से स्पीच पसंद आएगा.

समाज सेवा पर निबंध | Essay On Social Service In Hindi

समाज सेवा पर निबंध | Essay On Social Service In hindi

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार 84 कोटि यौनियो के बाद मनुष्य जीवन बड़ी कठिनाई से मिलता हैं. जो भी विशवास हो मगर इस बात में कोई संदेह नहीं हैं कि समस्त जीवों में मानव श्रेष्ठ हैं. उसकी श्रेष्ठता का कारण मस्तिष्क हैं जो अन्य जीवधारियों के पास उतना विकसित नहीं होता हैं जिससे वे विचार कर सके अथवा कोई निर्णय कर पाए.

सभी जीव धारी भोजन के लिए परस्पर एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं, उन्हें किसी दूसरे की कष्ट पीड़ा का ज्ञान भी नहीं होता हैं. मगर मानव एक सामाजिक प्राणी हैं, जो सभी के साथ मिलजुलकर समाज में रहता हैं और समाज की गतिविधियों कानून कायदों में बंधकर अपनी सोशियल ड्यूटी का निर्वहन भी करता हैं.

समाज हमारे लिए सुरक्षा तथा सुविधा के कवच के रूप में होता है. समाज के लोग एक साथ मिलकर सभी एक दुसरे के काम आते है. जिस कारण सभी अपना जीवन सरलता तथा सहजता से यापन कर पाते है.

अपनी समाज की कुरीतियों को कम करने तथा लाभदायक कार्य के लिए सभी को प्रेरित करना सबसे बड़ा समाज सेवा है, जो सभी के लिए कल्याणकारी साबित होता है. तथा हमारे लिए भी.

अपना पेट तो जानवर भी भरते हैं. मगर मानव में ख़ास बात यह हैं कि वह समूचे समाज के हित की सोचता हैं तथा हर जरूरत मंद की मदद करने के लिए भी आगे आते हैं. निस्वार्थ भाव से किसी दूसरे की गई मदद को ही समाज सेवा कहा जाता हैं.

समाज सेवा एक पुण्य कार्य हैं, इसके कारण लोग अमर हो जाते है तथा उन्हें सदियों तक याद भी किया जाता हैं. बड़ी से बड़ी सामाजिक बुराई को समाज सेवा रुपी हथियार की मदद से दूर किया जा सकता हैं.

गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत ही सुंदर पंक्ति लिखी हैं परहित सरिस धर्म नहीं भाई, अर्थात दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई भी धर्म नहीं हैं. हमें प्रकृति से परोपकार के गुणों को सीखकर अपनाना चाहिए. 

प्रकृति हमें प्रकाश, ऊष्मा, जीवन सब कुछ निस्वार्थ ही देती हैं. पेड़ पौधे भी अपना जीवन प्राणियों को समर्पित कर देते हैं. यदि इंसान के दिल से परोपकारी गुण गायब हो गया तो यह संसार पशुवत हो जाएगा, जहाँ चार पैरों के जानवर और मनुष्य में कोई फर्क नहीं रह जाएगा.

किसी समाज अथवा राष्ट्र की उन्नति व प्रगति के लिए सभी लोगों का खुशहाल होना जरुरी हैं. यदि कुछ लोग भी दुखों से पीड़ित रहेगे तो वह समाज आगे नही बढ़ पाएगा. 

यदि समाज के एक तबके के पास सुख सुविधा हो और दूसरे लोग कष्ट से जीवन यापन कर रहे है तो वह समाज निश्चय ही दुर्गति को प्राप्त होगा. दुःख की तासीर ही उतनी कष्टदायक होती है कि जो लोग भी सुख सम्पन्न है वे पीड़ितों को दुखी देखकर सुखी जीवन नहीं जी पाएगे.

रोग, गरीबी या प्रताड़ना से युक्त सामाजिक वातावरण में कभी भी सुख सम्रद्धि का वास नहीं होता हैं. समाज की खुशहाली में इन बाधकों को तभी दूर किया जा सकता हैं. 

जब प्रत्येक नागरिक निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने समाज के पीड़ित एवं दुखी लोगों की मदद करे. क्योंकि समाज के बिना किसी भी व्यक्ति का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रह जाता हैं. 

सर्वशक्तिमान व्यक्ति भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसने कभी किसी का सहयोग नहीं लिया अथवा भविष्य में नहीं लेगा. हमें जीवन निर्वाह के लिए प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से शेष समाज से सहयोग की जरूरत होती हैं. ऐसे में अपने ह्रदय में भी समाज सेवा के भाव रखकर उपेक्षित, वंचित या पीड़ित व्यक्ति की मदद जरुर करें.

समाज सेवा के बारे में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा कि "मरा वह नहीं कि जो जिया न आपके लिए, वही मनुष्य हैं कि जो मरे मनुष्य के लिए. मानव सेवा के कार्य में कष्ट जरुर झेलना पड़ता हैं पर इससे प्राप्त आत्म संतोष का सुख अलग ही प्रकार का होता हैं. 

सेवाभावी मनुष्य को सम्मान की नजर से देखा जाता हैं, सेवा करते समय पात्र की जांच अवश्य की जानी चाहिए, जिस व्यक्ति की मदद कर रहे है वाकई में उसे मदद की आवश्यकता नहीं है तो उसे हम सेवा नहीं कह सकते हैं. सामूहिक कल्याण के भाव से दीन दुखियों, घायलों, अपंगो और अनाथों की हर सम्भव मदद करनी चाहिए. 

समाज सेवा के मापदंड समय के साथ बदलते जाते हैं. सार्वजनिक जीवन में हरेक राजनेता स्वयं को समाज सेवी के रूप में प्रदर्शित करता हैं. मगर उनकी कथनी और करनी में बहुत फर्क होता हैं. 

समाज सेवा के नाम पर बहुत से लोग अपने घर भरने के धंधे चला रहे हैं तो कोई संगठन के जरिये इस पवित्र काम को कलंकित कर रहे हैं. वही कुछ लोग ऐसे भी है जो निस्वार्थ भाव से समाज के हरेक तबके के पीड़ित की मदद करने के लिए आगे आते हैं. समाज के रूप में हमें ऐसे सेवाभावी लोगों को सम्मान देना चाहिए.

हम सभी को अपने दिल में समाज एवं देश के प्रति कुछ करने का जज्बा रखना चाहिए. जब भी सेवा का मौका मिले हमें आगे आकर उसे भुनाना चाहिए. एक सामाजिक नागरिक के रूप में हमारा यह दायित्व भी हैं कि हम समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को खत्म करने की दिशा में काम करें और लोगों को भी प्रेरित करें.

ऐसे छोटे छोटे प्रयासों से ही सामाजिक आन्दोलन खड़े कर बड़े सुधार किये जा सकते हैं. मनुष्य जन्म पाकर हमें जब भी अवसर मिले किसी की मदद के लिए आगे आना चाहिए, तभी सच में हमारा मनुष्य के रूप में जीवन सफल माना जाएगा.

गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा हैं सेवा धरम कठिन जग जाना।’ यह समाज सेवक को जीवन में बड़े बड़े त्याग करने पड़ते है तब जाकर वह आदर्श स्थापित कर पाता हैं. 

व्यक्तिगत लाभ और स्वार्थ के झरोखों को बंद कर भोग विलास से दूरी बनाकर काँटों के ताज को पहनना पड़ता हैं भारतीय समाज में भगवान श्रीराम से बढ़कर कोई आदर्श नहीं हो सकता. उन्होंने काटे के पथ को चुना तथा मानव मात्र की सेवा को ही ईश्वर सेवा मानकर चले थे, तभी तो आज हम उन्हें अनुकरणीय मानते हैं.

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