हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक समन्वय | Hindu-Muslim cultural coordination in Hindi: भारत में तुर्की आक्रमणों की शुरुआत लगभग सातवीं शताब्दी में होती है कालांतर में मुस्लिम राज्य की स्थापना के बाद उनकी संस्कृति का प्रभाव हिंदू संस्कृति पर भी पड़ा दोनों संस्कृतियों एक साथ लंबे समय तक संघर्ष के दौर से गुजरी जहां मुस्लिम संस्कृति का भारतीय संस्कृति के साथ टकराव काल में दोनों ने एक दूसरे को अपनाया जिससे समन्वित नई हिंदू इस्लामिक संस्कृति का उदय हुआ.
हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक समन्वय | Hindu-Muslim cultural coordination in Hindi
इनकी समन्वय तथा परिवर्तन का प्रभाव संस्कृति के सभी पहलुओं पर दृष्टिगत होता है जिनको निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है. हिन्दू मुस्लिम समन्वय कई तरीको से लाभप्रद साबित होती है.
जब अलग अलग रीतियों और रिवाजो के लोग साथ साथ रहते है. तो उनकी रीतियों में साझाकरण होता है. जिससे अच्छी रीतिया सभी शेयर करते है. तथा कुरीतिया कम होती है.
सामाजिक क्षेत्र में:
मुस्लिमों के आगमन के बाद हिंदू उच्च वर्गों में पर्दा प्रथा को अपना लिया साथ ही बाल विवाह जैसी कुरीति का प्रादुर्भाव भी हो गया दूसरी ओर मुस्लिम समाज में असमानता के अभाव ने हिंदू संतो को इस और आगे बढ़ने तथा समानता स्थापित करने की ओर आकर्षित किया जिससे निम्न वर्ग को सम्माननीय स्थान समाज में प्राप्त होना आरंभ हुआ
दूसरी और हिंदुओं की पूजा विधि को मुसलमानों ने अपनाया तथा हिंदुओं की तरह त्योहारों को धूमधाम से मनाना आरंभ कर दिया.
धार्मिक क्षेत्र में
हिंदू धर्म सुधारको ने इस्लाम के प्रभाव में आकर मूर्ति पूजा का खंडन किया एकेश्वरवाद अवधारणा पर बल दिया तथा बाह्य आडंबर और कर्म कांडों का घोर विरोध किया.
दूसरी और सूफी संप्रदाय हिंदू विधान से प्रभावित हुआ सूफी संतों ने हिंदू धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया जिससे हिंदू दर्शन की ओर आकर्षित हुए.
सिकंदर लोदी के वजीर मियां गुवा ने औषधी शास्त्र ग्रंथ का फारसी मैं अनुवाद तिस्ब ए सिकंदरी नाम से किया शाहजहां के पुत्र दारा शिकोह ने भी उपनिषदों भगवत गीता तथा योग वशिष्ठ का फारसी अनुवाद किया दारा की प्रमुख रचना मज्म उल बहरीन में उसने दोनों धर्मों को एक ही लक्ष्य के दो मार्ग बताए.
कला के क्षेत्र में
मुस्लिमों के आगमन के परिणाम स्वरूप इनकी स्थापत्य का समन्वय भारतीय स्थापत्य कला में होने से एक नवीन स्थापत्य कला की शैली हिंदू-मुस्लिम शैली का उदय हुआ इसकी सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति अकबर के काल में निर्मित फतेहपुर सीकरी की इमारतों से होती है.
जिसमें सभागृह सरकारी कार्यालय मदरसे स्नानागार सराय और जामा मस्जिद शामिल है इसी तरह जहांगीर महल जो आगरा के किले में बना हुआ है.
हिंदू मुस्लिम शैली का सर्वश्रेष्ठ नमूना है आगरा के निकट ही सिकंदरा गांव में स्थित अकबर के मकबरे की स्थापत्य बौद्ध विहार जैसी है.
हिंदू शासकों ने भी इस मिश्रित शैली का अनुसरण किया और इमारतों का निर्माण करवाया यहां तक कि हिंदू मंदिरों में भी इसी शैली का प्रयोग हुआ है जैसे वृंदावन के कई मंदिरों में मुगल स्थापत्य शैली का प्रयोग किया गया है .
इनके अलावा मुगल काल में हिंदू शासकों द्वारा निर्मित के महलों यथा आमेर का किला बीकानेर का दुर्ग राजमहल जोधपुर के किले के भवन में भी मिश्रित शैली का प्रयोग हुआ है.
इसकी विशेषताओं में इनमे नुकीले मेहराब कांच का प्लास्टर मूलमेदार चूने की पृष्ठभूमि जोड़कर इनको हिंदू राजा राजाओं की अधिक सजावट पूर्ण आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया गया है.
भारतीय चित्रकला शैली पर भी ईरानी शैली का प्रभाव लक्षित है हिंदू-मुस्लिम चित्रकला के समन्वय से एक नई चित्रकला शैली विकसित हुई जो जहांगीर के काल में उन्नति की शीर्ष पराकाष्ठा पर पहुंची .
इरानी चित्रकला शैली में भारतीय चित्रकला के विषयों तकनीकी के विभिन्न अंगों को भी प्रभावित किया इरानी चित्रकला का संपर्क जब स्थानीय भारतीय चित्रकला से हुआ तो भारतीय चित्रकला में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए परिणाम स्वरूप भारतीय चित्रकारों ने व्यक्ति वह भित्ति चित्रण में महारत हासिल की.
इस तरह इरानी चित्रकला शैली ने भारतीय शैली को इतना प्रभावित किया कि 18वीं सदी तक आते-आते एक नवीन कांगड़ा शैली का उद्भव हुआ
संगीत के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन सामने आए इस्लाम संगीत को वर्जित करता है परंतु मुगल शासक संगीत प्रेमी थे इसके चलते मध्यकाल में दोनों शैलियों के समन्वय से नवीन राग रागिनीओं का जन्म हुआ जैसे ध्रुपद राग के मिलने से ख्याल संगीत
अमीर खुसरो ने भारतीय वीणा व ईरानी तंदूर से सितार का आविष्कार किया व मृदंग को तबले का रूप दिया साथ ही साथ अकबर के समय तानसेन द्वारा राग रागिनीया मिशा की मल्हार मियां की टोडी मीमा की सारंग इत्यादि बनाई गई
साहित्य के क्षेत्र में
अकबर जैसे धर्म सहिष्णु शासकों की नीतियों ने हिंदू विद्वानों को फारसी की ओर आकर्षित किया शाहजहां के काल तक आते-आते हिंदू विद्वानों ने फारसी में स्वतंत्र ग्रंथों की रचना की
चंद्रभान ब्राह्मण फारसी का ज्ञाता था जो मुगल काल का प्रथम प्रसिद्ध हिंदू कवि था शाहजहां का समकालीन चंद्रभान ने प्रसिद्ध ग्रंथ चार समन की रचना फारसी में की.
औरंगजेब के समय भीमसेन बुरहानपुरी तथा ईश्वरदास नागर जो हिंदू विद्वान थे इन्होंने क्रमशः नुस्शा ए दिलखुश तथा फतुहात ए आलम गिरी नामक ग्रंथों में औरंगजेब कालीन इतिहास लिखा हिंदू मुस्लिम संस्कृति के समन्वय के परिणाम स्वरुप ही उर्दू का उद्भव तथा विकास हुआ
इस काल में अनेक मुस्लिम विद्वानों ने भी हिंदी ग्रंथों की रचना की जिसमें मौलाना दाऊद की चंद्रायण कुतुबन की मृगावली मंजन की मधुमालती तथा जायसी की पद्मावत प्रमुख है इसके साथ-साथ रसखान के पद व अब्दुल रहीम के कवित
इसी प्रकार सिंधी पंजाबी कश्मीरी भाषाओं में भी रचना की गई अकबर के काल में अनुवाद कार्य को विशेष प्रोत्साहन मिला उसने एक स्वतंत्र अनुवाद विभाग की स्थापना की.
नकीब खान अब्दुल कादिर बदायूनी और थानेश्वर के शेख सुल्तान द्वारा महाभारत का फारसी में रज्मनामा नाम से अनुवाद करवाया गया इन्हीं विद्वानों ने रामायण का भी फारसी में अनुवाद कराया
फैजी ने संस्कृत ग्रंथ लीलावती का और मौलाना शेरी ने राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद कियाअबुल फजल ने पंचतंत्र का अनवारे सुहेली नाम से फारसी में अनुवाद किया तथा अमीर खुसरो द्वारा हिंदी मुहावरों और कहानियों का प्रयोग किया गया.
मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में ब्रज तथा हिंदी भाषा का प्रयोग किया इस प्रकार साहित्य में दोनों संस्कृतियों का प्रभाव एक दूसरे पर गहरा पड़ा जिससे साहित्य एक नई दिशा की ओर अग्रसर हुआ
सैन्य व्यवस्था के क्षेत्र में
मध्यकाल में हिंदू शासकों के पास संगठित सेना की बजाय सामंती सेना थी जो युद्ध के समय एकत्रित होकर अपने अपने सामान के नेतृत्व में युद्ध करती थी परंतु मुस्लिम सेना एक सेनापति के नेतृत्व में युद्ध करती थी
तथा तोपखाने का उपयोग भी करती थी इसका प्रभाव राजपूत सेना पर भी पड़ा और उन्होंने भी संगठित होना
शुरू किया और बाद में तो खाने का प्रयोग भी करने लगे.