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डाकिया पर निबंध | Essay on Postman in Hindi

                                डाकिया पर निबंध Essay on Postman in Hindi  

हमारे दैनिक जीवन में अलग अलग उद्यमियों के साथ सम्पर्क रहता है, विभिन्न पेशे से जुड़े लोगों की सेवाओं की बदौलत हमारी समस्याएं सरल ढंग से दूर हो जाती हैं. 

हमारी सामाजिक व्यवस्था में अध्यापक डोक्टर दर्जी मोची, दूधवाले और फलवाले की भांति ही पोस्टमैन अर्थात डाकिये की भी अहम भूमिका हैं.

जिस भांति हमें बीमार होने पर चिकित्सक की जरूरत पड़ती है उसी तरह कही चिट्टी अथवा लिफाफा भेजना या प्राप्त करना हो तो डाकिये के पास जाना पड़ता हैं.

डाकघर में काम करने वाले इन कर्मचारी को डाकिया कहते है जो घर घर जाकर पत्र, लिफ़ाफ़े आदि को पहुचाता हैं, इसे चिट्टीरसा भी कहते हैं. 

जब कभी हमे एक जगह से दूसरी जगह संदेश या सामान पहुचाना हो तो वह डाकिये के जरिये ही पहुचता हैं. यह एक सरकारी उद्यमी है जो अपने व्यवसाय के प्रति पूरी इमानदारी और लग्न से जुड़े रहते हैं. समाज में भी इन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हैं.

कड़ाके की ठंड हो या चिलचिलाती धूप चाहे बाढ़ या तेज बरसात हर मौसम में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने की दृढ़ इच्छा शक्ति के दर्शन एक डाकिये में अवश्य दीखते हैं. 

भले ही आज तकनीक का जमाना आ गया हो तथा लगभग सारे संदेश प्रेषण के कार्य टेक्नोलॉजी की वजह से हो, फिर भी कई तरह के सामान और सरकारी योजना से जुड़े दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, एटीएम, पेन कार्ड हमें डाकिये के जरिये ही प्राप्त होते हैं. 

भारत में लाखों डाकघर हैं जिनमें कई लाख पोस्टमैन है इस तरह यह एक रोजगार के अवसर वाला क्षेत्र भी हैं. अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में पोस्टमेन काफी अलग हैं.

समाज के साथ इनका सीधा जुड़ाव होता हैं. इन की जान पहचान भी काफी अधिक होती हैं. अपनी वेशभूषा के कारण भी डाकिये को पहचाना जाता हैं. 

खाकी रंग के पेंट कमीज और सिर पर टोपी और एक खाकी थैला इनकी पहचान मानी जाती हैं. इस थैले में वह चिट्टियों को भर कर घर घर वितरित करता हैं.

न लोगों द्वारा डाकिये का बेसब्री से इन्तजार किया जाता है, जिनके घर कोई चिट्टी लिफाफा आना होता हैं. हम डाकिये के जरिये दूर दराज में रहने वाले अपने मित्रों परिवारजनों से जुड़े रहते है.

यही कारण है कि पोस्टमैन के साथ हमारे घनिष्ठ सम्बन्ध बन जाते हैं. राखी के पर्व पर बहिनों के घर जब डाकिया राखी लेकर आता है तो वह दिल की गहराइयों से उन्हें धन्यवाद भी देती हैं. 

एक डाकिये के दिन की शुरुआत पोस्ट ऑफिस अर्थात डाकघर जाने से होती है, रोजाना की प्राप्त चिट्टियों को वह वितरित करते हुए शाम को पुनः डाकघर लौट आता हैं.

कहते है न जिन कंधों पर जिम्मेदारी के बोझ होता है वे झुककर चलते है, पोस्ट मास्टर के साथ ही ऐसा ही हैं वे जरूरी से जरूरी एवं साधारण सभी तरह के पत्र, लिफाफे और सामान की समय पर डिलीवरी करते हैं. 

डाकिये की मेहनत हमें भी जीवन में निरंतर अपने कार्य में लगे रहने की सीख देती हैं. बहुत कम वेतन के उपरांत अपने कार्य के प्रति लग्न पोस्टमैन की देखने लायक होती हैं.

साहित्यकारों का ध्यान भी डाकिये ने अपनी ओर खीचा है, उनके जीवन, कार्य शैली और शारीरिक बनावट पर ढेरो कविताएँ, गीत, कहानियां और उपन्यास लिखे गये हैं. 

दी इंडियन पोस्टमैन मूवी और डाकिया डाक लाया जैसे गीत में हम इनके संघर्षशील जीवन के दर्शन कर सकते हैं. साहित्यकार शैलेश माटियानी तो डाकिये के जीवन से इतने प्रभावित हुए कि पोस्टमैन शीर्षक से उपन्यास लिख डाला.

लगभग सभी सरकारी नौकरियों में कर्मचारियों के लिए अवकाश के प्रावधान होते हैं, मगर डाकिये को बहुत  कम छुट्टी लेने के अवसर मिलते हैं. दिन रात एक जगह से दूसरी जगह आने जाने के कारण कई बार अपने कर्तव्य पथ पर जान भी जोखिम में डालनी पड़ती हैं. 

कई बार पोस्टमैन सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते है, कभी कुत्तों और जानवरों के खौफ के बीच दूर दराज के इलाकों में जाना पड़ता हैं. इन सबके बावजूद सदैव अपने चेहरे पर मुस्कान लिए वह समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाता जाता हैं.