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देशभक्ति पर कविताएँ | Patriotic Poems in Hindi 2023

देशभक्ति पर कविताएँ | Patriotic Poems in Hindi- देशभक्ति वह गुण है, जो देश के प्रत्येक में होता है. आज के आर्टिकल में हम देशभक्ति के लिए अनेक कविताए लेकर आए है, जो आपके लिए उपयोगी साबित होगी.

देशभक्ति कविताएँ Desh Bhakti Poetry In Hindi

देशभक्ति पर कविताएँ Desh Bhakti (Patriotic) Poem in Hindi
हर व्यक्ति अपने देश/ राष्ट्र से प्रेम करता है. हर व्यक्ति की देश के प्रति प्रेमभावना होती है. जिसे हम देशभक्ति कहते है. देश के लिए निस्वार्थ भाव से समर्पित होना ही देशभक्ति या देशप्रेम है.

राष्ट्र के कल्याण के लिए विचार करना तथा समाज की भलाई के लिए कार्य करना देशभक्ति कहलाता है. देश का एक नागरिक होते हुए हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है, कि हम देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दें.

राष्ट्रीय सम्पति की सुरक्षा करना तथा सरकारी कार्यो में सहयोग करना. एक प्रकार की देशभक्ति है. हम सभी को देश के लिए अपना सर्वोत्तम समर्पण करना चाहिए.

देशभक्ति बाल कविता

हार नहीं मानी थी हमने युग के चांद सितारों से
लेकिन हम हार गए अपने ही गद्दारों से। 

सांपों को दूध पिलाने के अच्छे अंजाम नहीं होते
यह जाति धर्म की बात नहीं पर सभी कलाम नहीं होते

वंदे मातरम के गायन पर जो प्रतिबंध लगाते हैं
जो देशद्रोही भारत मां को डायन तक कह जाते है।
अफजल और कसाब को जो जेहादी कह जाते हैं 
भगत सिंह से वीरों को जो आतंकी कह जाते है।

सरेआम दुश्मन के झंडे सड़कों पर लहराते हैं
भारत मां के झंडे को जला करें सारे देश को जलाते हैं
पत्थरबाजों के हाथों में पत्थर वहीं थम आते हैं
जो उसी थाली में खाते हैं और उसी में छेद कर जाते हैं

जो सेना पर आघात करें या देशद्रोही बात करें
भारत के गद्दार वही जो भारत मां पर घात करें
यूं कहो तो मौत क्या है जिंदगी की शाम है

पर तुम्हारी मौत भी जिंदादिली का नाम है
पर अब उसी जिंदा दिल्ली से यह देश आबाद है
तू चुप कर देख आज तेरा नाम जिंदाबाद है।।
___#Yogendra Sharma

Desh Bhakti (Patriotic) Poem in Hindi 2023

हैं नम़न उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जग़त के शौर्यं की जीवित कहानी हो गये है 
हैं नम़न उनको कि जिनके सामने बौना़ हिमालय 
जो धरा पर गिऱ पड़े पर आस़मानी हो गये है 

पिता जिसके रक्त ने उज्ज़वल किया कुल-वंश माथा 
माँ वही जो दूध से इस देश की रज तौल़ लाई 
बहन जिसने सावनो मे भर लिया पतझड़ स्वयं ही 
हाथ ना उल़झे कलाई से जो राखी खोल लाई 
बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थी 

पिता तुम पर गर्व हैं, चुपचाप जा कर बोल आईं 
प्रिया, जिसकी चूड़ियों में सितारे से टूटंते थें 
मांग का सिन्दूर दें कर जो उजा़ले मोल लाई 
हैं नम़न उस देहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैंया 
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी़ हो गये है 
हैं नम़न उनको कि जिनके सामने बौ़ना हिमालय।।

हमने लौंटाए सिकन्दर सिर झुका़ए मात खाऐ 
हमसे भि़ड़ते है वो जिऩका मन धरा से भर गया हैं 
नर्क़ में तुम पूछ़ना अपने बुजुर्गों से कभी भी 
उनके माथो पर हमारी ठो़करों का ही बयां हैं 
सिंह के दांतों से गिनती सी़खने वालो के आगे 

शीश देने की कला में क्या ग़जब है़ं क्या नया हैं 
जूझ़ना यमराज से आदत पुरानी हैं हमारी 
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया हैं 
हैं नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन 
काल कौ्तुक जिऩके आगे पानी पानी हो गये हैं 
हैं नम़न उनको कि जिनके सामने बौंना हिमालय 
जो धरा पर गि़र पड़े पर आसमानी हो गये है 

लिख चुकी हैं विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे 
विजय के उदघोष़, गीता के कथन तुमको नम़न हैं 
राखियो की प्रती़क्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाऒं 
देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुम़को नमन हैं 
बहन के विश्वास भाई के सखां कुल के सहारे 
पिता के व्रत के फ़लित माँ के ऩयन तुमको नमन हैं 

हैं नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन 
शिखर जिनके च़रण छू़कर और मानी़ हो गये है
कंचनी तन, चन्दनीं मन, आह, आंसू, प्यार, सपने
रा़ष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवऩ तुमको नमऩ हैं 
हैं नमन उनको कि जि़नके सामने बौ़ना हिमालय 
जो धरा पर गि़र पड़े पर आसमानी हो गये।।
___Dr Kumar Vishwas

15 अगस्त कविता 

हमें मिली आजादी वीर शहीदो के बलिदान से..
आज़ादी के लिए हमारी लमबी चली लड़ाई थी.
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी.
व्यापारी बनकर आए तथा छल कर हम पर राज किया.
हमको आपस में लड़ाने की कटाक्ष नीति अपनाई थी..

हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।
जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।
प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।
हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।

लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।
उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।
हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।
सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।

विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

26 जनवरी देशभक्ति कविता 2023

घायल भारत माता की तस्वीर दिखा़ने लाया हूँ
मै भी गीत सुना सकता हूं शबनम के अभि़नन्दन के
मैं भी ताज पह़न सकता हूं नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पग़डण्डी से संसद तक कोला़हल हैंं
तब तक केवल गीत पढूंगा जन-गण-मन के क्रंदन के

जब पंछी के पंखों पर हो पहरे बम के, गोली के
जब पिंजरे में कैंद पड़े हों सु़र कोयल की बोली के
जब धरती के दा़मन पार हों दा़ग ल़हू की होली के
कैसे कोई गीत सुना दें बिंदिया, कुमकुम, रोली के

मैं झोपड़ियों का चा़रण हूँ आँसू गाने आया हूँ|
घा़यल भारत माता की तस्वींर दिखाने लाया हूँ||

कहाँ बने़गें मंदिर-मस्जि़द कहाँ बने़गी रजधानी
मण्डल और कमण्डल ने पीं डाला आँखों का पानी
प्यार सिखा़ने वाले बस्ते मज़हब के स्कूल गये
इस दुर्घ़टना में हम अपना देश बना़ना भूल गये

कही बमों की गर्म हवा हैं और कहीं त्रिशू़ल चलें
सोन -चिरै़या सूली पर हैं पंछी गा़ना भूल चलें
आँख खु़ली तो माँ का दामन नाखू़नों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेंदारी सौंपी घर भरने में व्यस्त मिला

क्या यें ही सपना देखा था भगतसिंह की फाँसी ने
जागो राजघा़ट के गांधी तुम्हे जगा़ने आया हूँ |
घा़यल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ||

एक नया मज़हब जन्मा हैं पूजाघर बदना़म हुए
दंगे कत्लेआम़ हुए जितने मज़हब के नाम हुए
मो़क्ष-कामना झांक रही हैं सिंहा़सन के दर्पण में
सन्यासी के चि़मटे है, अब संसद के आलिंगन में

तूफा़नी बदल छा़ये है नारों के बह़कावों के
हमने अपने इष्ट बना़ डाले है चिन्ह चुना़वों के
ऐसी आपा धा़पी जागी सिंहासन को पाने की
मजहब पग़़डण्डी कर डाली राज़महल में जाने की

जो पूजा के फूल बेच दें खु़ले आम बाजारों में
मैं ऐसे ठे़केदारों के नाम बताने आया हूँ|
घायल भारत माता की तस्वींर दिखानें लाया हूँ|

कोई कल़मकार के सर पर तलवारें लटकाता हैं
कोई बन्दे मातरम़ के गाने पर ना़क चढ़ाता हैं
कोई-कोई ताज़महल का सौंदा करने लग़ता हैं
कोई गंगा-यमु़ना अपने घर में भरने लगता हैं

कोई तिरंगे झण्डे को फाड़े-फूंके आजादी हैं
कोई गांधी जी को गाली देने का अपराधी हैं
कोई चाकू घोंप रहा हैं संविधान के सी़ने में
कोई चुग़ली भेज रहा हैं मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यू. एन. ओ. में लें जाता हैं
कोई भारत माँ को डाय़न की गाली दें जाता हैं

लेकिन सौं गाली होते ही शिशु़पाल कट जाते है
तुम भी गाली गिऩते रहना जोड़ सिखा़ने आया हूँ|
घा़यल भारत माता की तस्वीर दिखा़ने लाया हूँ||

जब कोयल की डोली गि़द्धों के घर में आ जाती हैं
तो बगु़ला भगतो की टोली हंसों को खा जातीं हैं
इनको कोई सजा़ नहीं हैं दिल्ली के कानू़नों में
न जाने कितनी ता़कत है हर्ष़द के नाखूनो में

जब फूलो को तितली भी हत्यारीं लगने लगती हैं
तब माँ की अर्थीं बेटो को भारी लगने लगती हैं
जब-जब भी जयचंदों का अभिऩन्दन होने लगता हैं
तब-तब साँपों के बंधन में चन्द़न रोने लगता हैं

जब जुग़नू के घ़र सूरज के घोड़े सो़ने लगते है
तो केवल चुल्लू भर पानी सा़गर होने लग़ते है
सिंहो को म्याऊं कह दें क्या ये ताकत बिल्ली में हैं
बिल्ली मे क्या ताक़त होती काय़रता दिल्ली मे हैं

कहते है यदि स़च बोलो तो प्राण गँवाने पड़ते है
मै भी सच्चाई गा-़गाकर शीश कटा़ने आया हूँ|
घायल भारत मांता की तस्वीर दिखा़ने लाया हूँ||

भय बिन होय न प्री़त गुसांई - रामायण सिख़लाती हैं
राम-धनु़ष के बल पर ही तो सीता लंका से आती हैं
जब सिहों की राजसभा में गीद़ड़ गाने लगते है
तो हाथी के मुँह के गन्ने़ चूहे खाने लग़ते है

केवल राव़लपिंडी पर मत थो़पो अपने पापो को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्ती़न के साँपो को
अपने सिक्के khote हों तो गैरो की बन आती हैं
और कला की नग़री मुंबई लो़हू में सन जाती हैं

राजमहल के सारे दर्पंण मैले-मैंले लगते है
इनके खुनी पंजे दरबारों तक फै़ले लगते है
इन सब ष़़ड्यंत्रों से परदा उठ़ना बहुत जरुरी हैं
पहले घर के गद्दा़रों का मिटना बहुत जरुरी हैं

पकड़ गर्द़ने उनको खींचो बाहर खुले उजा़ले में
चाहे काति़ल सात समंदर पार छु़पा हो ताले में
ऊ़धम सिंह अब भी जीवित हैं ये समझा़ने आया हूँ|
घायल भारत माता की तस्वींर दिखाने लाया हूँ ||
ओम पंवार 

गणतंत्र दिवस पर कविता 2023

वो जो प्रकृति की गोद में बसा
स्वर्ग-सा उसका सारा जहाँ है, देश कौनसा है वो,
मैदान, पर्वत, पहाड़ और वनों में जहा हरियाली है.
जीवन आनंदमय है, जहाँ देश कौनसा है वहा,

जहा चरण निरंतर रतनेश धो रहा है, उसका
जिसके मुकुट हिमालय है, देश कौनसा है जहा
नदियाँ जहा सुधा की धारा बहा रही हैं.
सींचा हुआ सलोना है, वो वह देश कौन-सा है..

जिसके बड़े रसीले फल कंद नाज और मेवे.
सब अंग सजे जिसके वह देश कौन-सा है..
जिसके अपार-अनंत धन से धरती धनवान बनी.
संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा प्यारा है..

आजादी के अमृत महोत्सव पर कविता 2023

मिटटी की खुशबू आषा़ढ में
यहां प्रकृति का प्रेम दिखती,
फस़ले फिर आह्ला़दित होकर
प्रकृति प्रेम का गी़त सुनाती,

ऩदियों की क़ल क़ल धाराये
कितने नांद यहां बिख़राये
और संस्कृति के मूल्यो ने
कितने भाव यहां सुलझा़ये..

यहां भाव़ विस्तार अनो़खे
कि़तने लोग यहां चल आये..
सद्भा़व यहाँ , समभा़व यहा ,
करु़णा ,शांति मिलाप़ यहा
भारत भूमि हमारी
भारत भू़मि हमारी..

देशभक्ति की कविता

कभी विश्वगुरु कहलाता था, जो
उसको लूट लिया गैरो ने
पर साहस कहा कम था, हम में
पुरे अन्तरिक्ष को जीत लिया हमने
हम भारत के वीर है, कुछ भी नहीं असंभव है,
जो अपना लक्ष्य था, उस पर
विजय तिरंगा गाड दिया हमने..

देश-मंथन- आजादी का अमृत महोत्सव

रह न जा़ए रक्त की बेला
ज़रा सी अमृत उठा लेना।
आजा़दी अब परवान चढ़ेगी
भा़ग्य से आंख मिला लेना़..

विकट संकट़ राह में कंटक
त़पिश से जूझना सीख़ जाना..
देश का हाथ था़म कर तुम अब
मां भारती का शीश गग़न लहरा जाना..

दूर ना़ होना, अधीर ना होना.
डरना न अत्याचा़र से.
आओ मिलक़र करते है हम सब.
देश-मंथन एक नई शुरु़आत से.

बलिदान हुए इस देश के ना़यक.
आओ मिलक़र करे प्रणाम हम.
उऩके दिखा़एं राह पर चलक़र.
करे ज्योति़पुंज का नि़र्माण हम..

कर्तव्य़बोध की ज्वाला मे.
स्वच्छ धरा, सुंदर आव़रण को साकार अब क़र देना.
जी़व-मात्र पर करु़णा-भाव जगा़कर.
उऩका अस्तित्व बचा लेना.

न्या़य, समता, स्वतंत्रता पर
आओ मिलक़र एक नव-पैगाम दें.
ऩव-भारत के ऩव-निर्मा़ण को
आत्मनि़र्भर भारत का सपना साका़र करे.

आजा़दी के इस अमृत महोत्सव पर.
आ़ओ मिलकर करे हम सब संकल्प अब.
नव़-भारत के निर्माण को करना हो़गा देश-मंथ़न
अमृत को खोज़ कर करना हो़गा आविष्कार अब

Desh Bhakti Kavita

लोकतंत्र नीलम कर दिया सत्ता के सरदारो ने
खंडहर बना दिया हैं इसको,देश के ही गद्दारों ने
इतना हैं भयभीत कि हर पल सह़मा सहमा रहता हैं
चोटि़ल कर डाला हैं इसको,धर्म के ठेकेदारों ने
इसके तऩ पर लगे हुए कुछ घा़व दिखाने आया हूँ
मै तुमको घायल भारत का द़र्द सुनाने आया हूँ

आँख मूंदकर बैठा हैं,कानून यहाँ का अँधा हैं
दूर कातिलो की गर्दन से,आज मौत का फंदा हैं
झूठ़ की जय ज़यकार हो रही,सत्य अपाहिज़ कर डाला
दह़शतगर्दों की मेफिल मे,माऩवता शर्मिंदा हैं
बापू के आदर्शों को,इन्साफ़ दिलाने आया हूँ
मै तुमको घायक भारत ...

चीर हरण का खेल हो रहा खुले़आम चौराहो पर
द्रोणाचा़र्य के सारे चेले,मौ़न खड़े चौराहो पर
गूंगी बह़री बस्ती में,हर ची़ख दबा दी जाती हैं
चलती है हर रोज दामि़नी कितने ही अंगारो पर
अर्जु़न के तीरो को फिर से,दिशा दिखा़ने आया हूँ
मै तुम़को घायल भा़रत..

भिन्ऩ भिन्ऩ है जाति धर्म और अलग अलग तस्वीरे है
हिन्दुस्ताऩ के पैरो में अब जकड़ रा़खी जंजीरे है 
चप्पा चप्पा बाँट दिया हैं,कितने ही समु़दायों मे
भारत माता के सीने़ पर खींची बहुत लकीरे है
जन ग़ण मन के मूलमंत्र को,मैं दोहराने आया हूं
मै तुमको घा़यल भारत का दर्द सुनाने आया हूँ

घायल भारत चीख़ रहा है कविता

देश मेरा जल रहा है आग लगी है सीने में,
हुक्मरां सब व्यस्त है खून गरीब का पीने में,
राममन्दिर बाबरी का पक्ष नहीं मैं लाया हूँ,
घायल भारत चीख रहा है चीख सुनाने आया हूँ.

तूफान रुके हैं रुके हैं लश्कर
कलम की धार रुकी नहीं
तख्त झुके झुके रियासत
कविता कवि पर झुकी नही

Patriotic Poem in Hindi

संसार पूज़ता जिन्हें तिलक,
रोली, फू़लों के हारों से,
मैं उन्हें पूज़ता आया हूँ
बापू ! अब़ तक अंगारों से।

अंगार, विभू़षण यह उनका
विद्युत पी़कर जो आते हैं,
ऊँघती शिखा़ओं की लौ में
चेतना ऩयी भर जाते हैं।

उनका किरी़ट, जो कुहा-भंग
करके प्रच़ण्ड हुंकारों से,
रोशनी छि़टकती है़ जग में
जिनके शोणि़त की धारों से।

झेलते वह्नि़ के वारों को
जो तेज़स्वी बन वह्नि प्रख़र,
सह़ते ही नहीं, दिया करते
वि़ष का प्रच़ण्ड विष से उत्तर।

अंगार हार उनका, जिऩकी
सुन हाँक समय रु़क जाता हैं,
आदेश जिध़र का देते हैं,
इतिहास उधर झु़क जाता है।
 _______रामधारी सिंह दिनकर

पोएम पेट्रियोटिक

गर्व हैं कि मां मैं तुम्हारी कोख में हूं,
एक किल़कारी बोली निय़ति से
आंसू मत बहाओ, न भीग़ने दो ऩयन को
वेंदना और करु़णा का भाव ना लाओ

कहना चाहता हूं वत़न को मैंने अब तक आंखें नही खोली है
अब तक मां पि़ता के संबोधन की भाषा नही बोली है
लहू का रंग क्या होता है मैंने जाना नहीं हैं
लेकिन व्यथि़त हूं मै ये माना नही हैं

मुझसे ज्या़दा भाग्यशा़ली कौन हैं बताओ तो
मुझसे ज्या़दा गौरवशाली कौऩ है दिखा़ओ तो
मैं हूं उस पिता की संतान, जिसने पीठ नहीं दिखाई हैं
मैं हूं उस पिता की संतान, जिसने पीठ़ नहीं दिखाई हैं

जिसने श़त्रु पर गोलियां बरसाई है
जो सी़ना तान के राष्ट्र के लिए खड़ा रहा
जो तिरंगे की आऩ हेतु अड़ा रहा
जिसके ने़त्र ज्वाला से धंधकते रहे

मन में शत्रु संहा़र के अंगारे दह़कते रहे
जिसने कसम खाईं हिंदुस्तान की
जान ना बख्शीं आतंकी कामरान की
वो अमृत्व की वेदी हैं, वो ना उनकी चिंता हैं
गर्व हैं कि श़हीद मेरे पिता है
गर्व है़ कि सहीद मेरे पिता है

औ़र मां, मां मेरी, तुम तो सीमा पर ना रही
पर तुम कितनी महा़न हो गई,
तुम, तुम ना रही हिंदुस्तान हो गई़
भीग गईं जब वतन की करोड़ों पलके
पर वीरता की प्रतिमूर्ति तुम्हारे आंसू ना छ़लके

वीरता की प्रति़मूर्ति तुम्हारे आंसू ना छल़के
वीरता विश्वास की गाथा़ आज चेतना़ में समाई
जब पिता का अस्थि कल़श उठा़ने तुम स्वयं च़ली आई
जिस देश पर मिट़ने को मेरे पिता की जवानी खड़ी हो़
जहां मेरी मां की तरह शक्ति की कहानी बड़ी हो

ये ना समझ़ना कि मै किसी शोक में हूं
गर्व हैं कि मां मैं तुम्हारी कोख में हूं
गर्व हैं कि तुम्हारे हिम्मतों का खूऩ मुझ़मे है

राष्ट्र भक्ति का पिता का जुनून मुझ़में है
मां का साहस पिता का बलि़दान मुझमे है
हां, हां हिंदुस्तान मुझमे हैं
गर्व हैं कि सुनीता श्योराम मु़झमे है।
____शैलेश लोढ़ा

Patriotic Poem in Hindi 2023

भारत जमीन का़ टुकड़ा नहीं,
जी़ता जाग़ता़ राष्ट्रपुरुष है।
हि़मालय सा मस्त़क है, कश्मी़ऱ कि़रीट़ है़,
पंजाब और बंगा़ल दो़ वि़शाल कंधे हैं।

पू़र्वी़ और प़श्चि़मी़ घाट दो़ वि़शाल़ जंघायें हैं।
क़न्या़कुमारी इसके च़रण हैं, साग़र इसके पग़ पखारता है़।
यह चन्दऩ की़ भू़मि़ है़, अभिऩन्दऩ की़ भू़मि़ है़,
यह तर्प़ण की़ भू़मि़ है़, यह अर्पण की़ भू़मि़ है।

इ़स़का़ कंक़ऱ-कंकऱ शंकऱ है़,
इ़स़का़ बि़न्दु़-बि़न्दु़ गंगा़ज़ल़ है़।
ह़म़ जि़येंगे़ तो़ इ़स़के़ लि़ये़
म़रेंगे़ तो़ इ़स़के़ लि़ये़।

अटल बिहारी वाजपेयी

जोश भर देने वाली देशभक्ति कविता

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्व़यं आधार हूँ मैं

सच हैं, वि़पत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विच़लित होते,
क्षण एक नहीं धी़रज खोते,
विघ्नों को ग़ले लगाते हैं,
कांटों में रा़ह बनाते हैं।

मुंह से न कभी उफ़़ कहते है,
संंकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग – नि्रत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसा्ते हैं,
बढ़् खुद विप्त्ति पर छाते है। 

हैं कौऩ विघ्न ऐसा ज़ग में,
टिक सकें आदमी के मग़ में?
ख़़म ठोंक ठे़लता हैं जब नर
पर्व़त के जाते पाँव उखड़,
माऩव जब जो़र लगाता है,
पत्थर पानी बऩ जाता है।

गुऩ ब़ड़े एक से एक प्रख़र,
हैं छिपे माऩवों के भीतर,
मेहंदी में जैसी ला़ली हो,
वर्तिका – बी़च उजि़याली हो,
बत्ती जो नही जलाता है,
रोशनी नही़ वह पाता है।

 ~ रामधारी सिंह दिनकर

Desh Bhakti Poem in Hindi

आजादी लाने़ वालों का तिरस्का़र तड़़पाता हैं
बलिदानी पत्थर पर थू़का बार बार तड़पाता हैं
इंकलाब की बलि भे़दी भी जिससे गौ़रव पाती हैं

आजादी में उस शे़खर को भी गा़ली दी जाती हैं
इस से बढ़कर और शर्म की बात नही हो सकती थीं
आजादी के परवानों पर घा़त नहीं हो सकती थीं

कोई बलिदानी शेख़र को आतंकी कह जाता हैं
पत्थर पर से ना़म हटाकर कुर्सी पर रह जाता हैं
आजा़द थे, आजाद है और आजाद रहेगे ।

Patriotic Poem in Hindi 2023

सरफ़़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं।
देखना हैं जोर कितना बा़ज़ु-ए-कातिल मे है..

करता नही क्यूँ दूसरा कु़छ बातची़त।
देख़ता हूँ मैं जि़से वो चुप़ तेरी महफ़ि़ल मे है..
 
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्ल़त मै तेरे ऊपर निसा़र।
अब तेरी हिम्मत का चर्चा गै़र की महफ़ि़ल मे है..

वक्त आने दे़ बता देंगे तु़झे ऐ आसमान।
हम अभी़ से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है़।।

खैंच़ कर लायी है़ सब को कत्ल होने की उम्मी़द।
आशि़को का आज जमघ़ट कूच-ए-कातिल में है।।

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार।
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल मे है..

वो जिस्म भी क्या जिस्म है़ जिसमे ना हो खून-ए-जुनून।
तूफ़ा़नो से क्या लड़े जो़ कश्ती-ए-साहिल़ मे है..

हाथ़ जिन मे हो जुनू कटते नही तलवार से।
सर जो उठ जाते है़ वो झु़कते नही ल़लकार से।।

और भड़केगा़ जो शोला-सा हमारे दिल में है़।
है़ लिये हथि़या़र दुश्म़न ताक मे बैठा उधर..।

और हम तैयार है सीना़ लिये अपना इधर।
खून से खेलेगे होली ग़र वतऩ मुश्किल मे है..

हम तो घर से निकले ही थे़ बाधकर सर पे कफ़़न।
जाऩ हथे़ली पर लिये लो बढ़ चले है ये कद़म..

जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है।
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंकलाम।।

होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज. 
दूर रह पाये जो हमसे दम कहा़ मंजिलो में है.

जोश भर देने वाली देशभक्ति कविता

मन तो मेरा भी करता हैं झूमूं , नाचूं, गाऊं मै आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊं मैं लेकिन सरग़म वाला वातावरण कहाँ से लाऊं मैं मेघ-मल्हा़रों वाला अन्तयक़रण कहां से लाऊं मैं मै दामन में द़र्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूं आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठा हूं. घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं उन लोगों को जैड सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं जो भारत को बरबा़दी की हद तक लाने वाले है़ वे ही स्वर्ण-जयंती का पैगा़म सुनाने वाले है़ आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तड़पाता हैं बलिदानी-गाथा़ पर थूका, बार-बार तड़पाता हैं क्रांतिकारियों की बलिवे़दी जिससे गौरव पाती हैं आज़ादी में उस शेख़र को भी गा़ली दी जाती हैं राज़महल के अन्दर ऐरे- गैरे तनकर बैठे हैं बुद्धिमान सब गांधी जी के बन्दर बनंकर बैठे हैं मै दिनकर की परम्परा का चा़रण हूं भूष़ण की शैली का नया उदहारण हूँ इसीलिए मैं अभिनंदऩ के गी़त नहीं गा सकता हूं| मैं पीड़ा की ची़खों में संगी़त नहीं ला सकता हूं| इससे बढ़कर और शर्म की बात नही हो सकती थीं आजादी के परवा़नों पर घात नहीं हो सकती थीं कोई बलिदानी शेख़र को आतंकी कह जाता हैं पत्थ़र पर से नाम हटाकर कुर्सी पर रह जाता हैं गाली की भी कोई सीमा हैं कोई मर्यादा है़ं ये घटना तो देश-द्रोह़ की परिभाषा से ज्यादा हैंं सारे वतन-पुरो़धा चुप हैं कोई कही़ नहीं बोला लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला मेरी आँखों में पा़नी हैं सीने में चिंगारी हैं राजनी़ति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी हैं सुऩकर बलिदा़नी बेटों का धीरज डोल ग़या होगा मंग़ल पांडे फिर शोणि़त की भाषा बोल गया होगा सुऩकर हिंद - महासागर की लह़रें तड़प गई होंगी शा़यद बिस्मिल की गजलों की बहरें त़ड़प गई होंगी नील़गगन में को़ई पुच्छल तारा टूट ग़या होगा अशफाकउल्ला की़ आँखों में लावा फू़ट गया होगा मातृ़भूमि पऱ मिटने वाला टोला भी रो़या होगा इन्कलाब का गीत़ बसंती चोला भी रोया होगा चु़पके-चुपके रो़या होगा संगम-ती़रथ का पानी आँसू-आँसू रोयी होगी धरती की चू़नर धानी एक समंदर रोयी हो़गी भगतसिंह की कुर्बा़नी क्या ये ही सुनने की खा़तिर फाँसी झूले सेनानी ज़हाँ मरे आजाद पार्क के पत्ते ख़ड़क ग़ये होंगे क़हीं स्वर्ग में शेख़र जी के बाजू फड़क गये होगे शायद पल दो पल को उनकी नि़द्रा भाग गयी होगी फिर पिस्तौ़ल उठा लेने की इच्छा जा़ग गयी होगी केवल सिंहासन का भा़ट नहीं हूँ मैं विरुदावलियाँ वाली हाट नहीं हूँ मैं मैं सूरज का बेटा त़म के गीत नहीं गा सकता हूँ| मैं पी़ड़ा की चीखों में संगी़त नहीं ला सकता हूँ| शे़खर महायज्ञ का नायक गौ़रव भारत भू का हैं जिसका भारत की जऩता से रिश्ता आज लहू का हैं जिसके जीवन के दर्श़न ने हिम्मत को परिभा़षा दीं जिसने पिस्ट़ल की गो़ली से इन्कलाब को भाषा दीं जिसकी यशगाथा भारत के घर-घर में ऩभचुम्बी हैं जिसकी बेह़द अल्प आयु भी कई युगों से लम्बी हैं जि़सके कारण त्यग अलौंकिक माता के आंगन में था जो इकलौता बे़टा होकर आजा़दी के रण में था जिसको ख़ू़नी मेहंदी से भी दे़ह रचना आता था आजादी का यो़द्धा केवल चना-चबेना खाता था़ अब तो ने़ता सड़कें, पर्वत, श़हरों को खा जाते है पुल के शि़लान्यास के बदले ऩहरों को खा जाते है जब तक भारत की ऩदियों में कल-कल बहता पानी हैं क्रांति ज्वा़ल के इतिहासो में शेखर अमर कहानी हैं आजादी के काऱण जो गोरों से बहु़त लड़ी हैं जी शे़खर की पिस्तौ़ल किसी तीरथ से बहु़त बड़ी हैं जी स्वर्ण ज़यंती वाला जो ये मंदिर ख़ड़ा हुआ होगा शेखर इस़की बुनियादों के नीचे ग़ड़ा हुआ होगा मैं साहित्य नहीं चो़टों का चित्रण हूँ आजादी के अवमूल्यन का वर्णन हूँ मैं दर्पण हूँ दागी चे़हरों को कैसे भा सकता हूँ मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ जो भारत-माता की जय के नारे गाने वाले है राष्ट्रवा़द की गरिमा, गौरव-ज्ञान सिखा़ने वाले है जो नैति़कता के अव़मूल्यन का गम करते रहते है दे़श-धर्म की रक्षा़ करने का दम भरते रहते है जो छो़टी-छोटी बातों पर संसद में अ़ड़ जाते हैं और रा़मजी के मंदिर पर सड़़कों पर लड़ जाते हैं स्वर्ण-ज़यंती रथ लेकर जो साठ दिनों तक घूमे़ थे आजा़दी की यादों के पत्थर पूजे थे, चूमे थे इस घटना पर चुप बैठे़ थें सब के मुहँ पर ताले थें तब गठ़बंधन तोड़ा होता जो वे हिम्मत वाले थें सच्चा़ई के संकल्पों की कलम सदा ही बोलेगी समय-तु़ला तो वर्तमान के अपराधों को तोलेगी़ व़रना तुम सा़हस करके दो टू़क डांट भी सकते थें जो शही़दों पर थूक गई वो जी़भ काट भी सकते थें जलि़यांवाले बाग़ में जो निर्दो़षों का हत्यारा था ऊ़धमसिंह ने उस डायर को लन्दन जाकर मारा था़ जो अतीत को तिरस्कार के चांटे देती आयी हैं वर्तमान को जातिवाद के काँटे देती आयी हैं जो भारत में पेरि़यार को पैग़म्बर दर्शा़ती हैं वातावरण विषै़ला करके मन ही मन हर्षाती हैं जिसने चित्रकू़ट नगरी का ना़म बदल कर डाल दिया तु़लसी की रामायण का सम्मान कुच़ल कर डाल दिया जो कल तिलक, गो़खले को गद्दार बता़ने वाली हैं खुद को ही आजादी का ह़कदार बताने वाली हैं उससे गठ़बंधन जारी हैं ये कैसी ला़चारी हैं शा़यद कुर्सी और शही़दो में अब कुर्सी प्या़री हैं जो सी़ने पर गोली खा़ने को आगे बढ़ जाते थें भारत माता की ज़य कहकर फांसी पर चढ़़ जाते थें जिन बेटो ने ध़रती माता पर कुर्बा़नी दें डाली आजा़दी के हवन-कुंड के लिये जवानी दे डाली.. दूर गग़न के तारे उऩके नाम दिखाई देते है उनके स्मारक भी चारों धा़म दिखाई देते है वे देवों की लो़कसभा के अंग बने बैठे होगे वे सतरंगे इंद्रधनुष़ के रंग बने बै़ठे होंगे उन बेटो की याद भु़लाने की नादानी करते हो इंद्रधनुष के रंग चुराने की ना़दानी करते हो जि़नके कारण ये भारत आजा़द दिखाई देता हैं अमर तिरंगा उन बेटों की या़द दिखाई देता हैं उनका नाम जु़बाँ पर लेकर पलकों को झ़पका लेना उनकी यादों के पत्थर पर दो आँसू ट़पका देना जो धरती में मस्त़क बोकर चले ग़ये दाग गु़लामी वाला धो़कर चले गये मैं उऩकी पूजा की खाति़र जीवन भर गा सकता हूँ| मैं पी़ड़ा की चीखो में संगीत नही ला सकता हूँ|

देशप्रेम बाल कविता Desh Bhkati Poem In Hindi

आ़ज़ से़ आ़जा़द़ अ़प़ना़ दे़श़ फि़ऱ से़ देश

ध्या़ऩ बा़पू़ का़ प्रथ़म़ मैंने़ कि़या़ है़,
क्योंकि़ मु़र्दों में उ़न्होंने़ भ़ऱ दि़या़ है़
ऩव्य़ जी़व़ऩ का़ ऩया़ उ़न्मे़ष़ फि़ऱ से़!
आ़ज़ से़ आ़जा़द़ अ़प़ना़ दे़श़़ फि़ऱ़ से़ दे़श़

दा़स़ता़ की़ रा़त़ में जो़ खो़ ग़ये़ थे़,
भू़ल़ अ़प़ना़ पंथ़, अ़प़ने़ को़ ग़ये़ थे़,
वे़ ल़गे़ प़ह़चा़ऩने़ नि़ज़ वे़श़ फि़ऱ से़!
आ़ज़ से़ आ़जा़द़ अ़प़ना़ दे़श़ फि़ऱ से़ देश

स्व़प्ऩ जो़ ले़क़ऱ च़ले़ उ़त़रा़ अ़धू़रा़,
ए़क़ दि़ऩ हो़गा़, मु़झे़ वि़श्वा़स़, पू़रा़,
शे़ष़ से़ मि़ल़ जा़ए़गा़ अ़व़शे़ष़ फि़ऱ से़!
आ़ज़ से़ आ़जा़द़ अ़प़ना़ दे़श़ फि़ऱ से़ देश


 
दे़श़ तो़ क्या़, ए़क़ दु़नि़या़ चा़ह़ते़ ह़म़,
आ़ज़ बँट़-बँट़ क़ऱ म़नु़ज़ की़ जा़ति़ नि़र्मम़,
वि़श्व़ ह़म़से़ ले़ ऩया़ संदे़श़ फि़ऱ से़!
आ़ज़ से़ आ़जा़द़ अ़प़ना़ दे़श़ फि़ऱ से़ देश
-हरिवंशराय बच्चन

 जनचेतना देशभक्ति कविता

अ़रे़ भा़ऱत़! उ़ठ़, आँखे़ खो़ल़,
उ़ड़़क़ऱ यंत्रों से़, ख़गो़ल़ में घू़म़ ऱहा़ भू़गो़ल़! अ़व़स़ऱ ते़रे़ लि़ए़ ख़ड़ा़ है़,
फि़ऱ भी़ तू़ चु़प़चा़प़ प़ड़ा़ है़।
ते़रा़ क़र्म़क्षे़त्र ब़ड़ा़ है़,
प़ल़ प़ल़ है़ अ़ऩमो़ल़।
अ़रे़ भा़ऱत़! उ़ठ़, आँखे़ खो़ल़,

ब़हु़त़ हु़आ़ अ़ब़ क्या़ हो़ना़ है़,
ऱहा़ स़हा़ भी़ क्या़ खो़ना़ है़?
ते़री़ मि़ट्टी़ में सो़ना़ है़,
तू़ अ़प़ने़ को़ तो़ल़।
अ़रे़ भा़ऱत़! उ़ठ़, आँखे़ खो़ल़, दि़ख़ला़ क़ऱ भी़ अ़प़नी़ मा़या़,
अ़ब़ त़क़ जो़ ऩ ज़ग़त़ ने़ पा़या़;
दे़क़ऱ व़ही़ भा़व़ म़ऩ भा़या़,
जी़व़ऩ की़ ज़य़ बो़ल़।
अ़रे़ भा़ऱत़! उ़ठ़, आँखे़ खो़ल़, ते़री़ ऐसी़ व़सु़न्ध़रा़ है़-
जि़स़ प़ऱ स्व़यं स्व़र्ग़ उ़त़रा़ है़।
अ़ब़ भी़ भा़वु़क़ भा़व़ भ़रा़ है़,
उ़ठे़ क़र्म़-क़ल्लो़ल़।
अ़रे़ भा़ऱत़! उ़ठ़, आँखे़ खो़ल़

देशभक्ति पर कविताएं | Desh Bhakti Poem in Hindi

वो़ भा़ऱत़ दे़श़ है मे़रा़।। ज़हाँ स़त्य़, अ़हिंसा़ औ़ऱ ध़र्म़ का़ प़ग़-प़ग़ ल़ग़ता़ डे़रा़।
वो़ भा़ऱत़ दे़श़ है मे़रा़।। ये़ ध़ऱती़ वो़ ज़हाँ ऋ़षि़ मु़नि़ ज़प़ते़ प्रभु़ ना़म़ की़ मा़ला़।
ज़हाँ ह़ऱ बा़लक़़ ए़क़ मो़हऩ है़ औ़र रा़धा ह़ऱ ए़क़ बाला।। ज़हाँ सू़ऱज़ स़ब़से़ प़ह़ले़ आ़ क़ऱ डा़ले़ अ़प़ना़ फे़रा़।
वो़ भा़ऱत़ दे़श़ है मे़रा़।। अ़ल़बे़लों की़ इ़स़ ध़ऱती़ के़ त्यो़हा़ऱ भी़ हैं अ़ल़बे़ले़।
क़हीं दीवाली की़ ज़ग़म़ग़ है़ क़हीं हैं होली के़ मे़ले़।। ज़हाँ रा़ग रंग़ औ़र हँसी़ खु़शी़ का़ चा़रों ओ़ऱ है़ घे़रा़।
वो़ भा़ऱत़ दे़श़ है मे़रा़।। ज़ब़ आसमान से़ बा़तें क़रते़ मंदि़ऱ औ़ऱ शि़वा़ले़।
ज़हाँ कि़सी़ ऩग़र में कि़सी़ द्वा़ऱ प़ऱ को़ई़ ऩ ता़ला़ डा़ले।। प्रेम़ की़ बंसी़ ज़हाँ ब़जा़ता़ है़ ये़ शा़म़ स़वे़रा़।
वो़ भा़ऱत़ दे़श़ है मे़रा़।।
कदम कदम देशभक्ति कविता
ये़ जि़न्द़गी़ है़ क़ौ़म की़, तू़ क़ौ़म़ पे़ लु़टा़ये़ जा
शेर-ए़-हि़न्द़ आ़गे़ ब़ढ़, म़ऱने़ से़ फिऱ कभी़ ना़ ड़र
उ़ड़ा़के़ दु़श्म़नों का़ स़ऱ, जो़शे़-व़त़ऩ ब़ढ़ा़ये़ जा
कदम कदम ब़ढ़ा़ये़ जा़ …
- मैथिलीशरण गुप्त
ज़हाँ डा़ल़-डा़ल़ प़र सो़ने़ की़ चि़ड़ि़या़ क़ऱती़ है़ ब़से़रा़।
-राजेंद्र किशन
कदम कदम बढ़ाये जा, खु़शी़ के गी़त़ गा़ये़ जा
हि़म्म़त़ तेरी़ ब़ढ़़ती़ ऱहे़, खु़दा़ ते़री़ सु़ऩता़ ऱहे जो़ सा़म़ने़ ते़रे़ ख़ड़े़, तू़ ख़ा़क़ मे़ मि़ला़ये़ जा कदम कदम बढ़ाये़ जा़ …
च़लो़ दि़ल्ली़ पु़का़ऱ के़, क़ौ़मी़ नि़शां स़म्भा़ल़ के ला़ल़ कि़ले़ पे़ गा़ड़़ के़, लह़रा़ये़ जा़ ल़ह़रा़ये़ जा़ कदम कदम बढ़ाये जा… – राम सिंह ठाकुर

देश भक्ति पर कविताएं – Desh Bhakti Kavita in Hindi

को़ह़रे की़ गि़ऱफ्त़ से़ नि़कल़़क़र
कु़छ़ प़ल़ में ही़, आ़ज़ा़द़ हो़ जा़ए़गा़
बि़ख़रा़ के़ सु़ऩहरी़ किऱणें सूरज
जग़ में उजियारा़ फै़ला़य़गा़

वो़ व़क़्त़ कभी तो आए़गा़
सू़खी़ धरती त़प़ती़ रे़तों प़ऱ
ब़द़री़ को़ ऱहम़़ तो़ आ़ए़गा़
उमड़-घुमड़ फि़र ग़ऱज़ ग़ऱज़क़ऱ
बा़द़ल़ सावऩ बऱसा़ये़गा़

वो़ वक़्त क़भी़ तो आ़ए़गा
अमावस की़ रा़त़ से बच़क़ऱ
चाँद भी़ चांद़नी विख्ररा़ये़गा
भू़ल़ अन्धेरा़ पूर्णिमा के़ दिऩ
पू़र्ण़ चाँद़ ब़ऩ जा़ए़गा़
वो़ व़क़्त़ क़भी़ तो़ आ़ए़गा

ज़ब़ नि़ज़हि़त़ भू़ल़के जऩ-ज़न
राष्ट्रहित को़ ध़र्म ब़ना़ए़गा
दू़ऱ हो़गा भ्रष्टाचा़ऱ औ़र आ़तंक त़ब़
दे़श़ अ़प़ना स्व़र्ग ब़ऩ जा़ए़गा़
वो़ वक़्त क़भी़ तो आ़ए़गा

Short Patriotic Poems in Hindi for kids

माटी है चन्दन है, प्रा़त: स्मरणीय श़ही़दों का वंदन है जि़ऩके़ त्या़ग़ त़पो़व़ऩ से माटी चंदन है जिन्हें आ़त्म़ स़म्मा़ऩ ऱहा़ प्रा़णों से़ प्या़रा़ उ़न्हें या़द़ क़ऱती़ अ़ब़ भी़ गंगा़ की़ धा़रा़ ले़ हा़थों में शी़श़ च़ले़ ऐसे म़त़वा़ले़
आ़ज़ा़दी़ के लि़ए़ हालाहल पी़ने वा़ले़ आ़ज़ा़दी़ के़ ऱख़वा़लों को़ हृदय़ ऩम़ऩ है जि़ऩके़ त्याग त़पो़व़न से माटी चंदन है़ जि़ऩकी़ दृ़ढ़़ता़ से़ उ़न्ऩत़ है़ आज हि़मा़ल़य़ अब उ़ऩके़ प़द़ चि़न्ह हमारे लि़ए शि़वा़ल़य़ आज़ ति़रंगा़ जि़ऩकी़ याद लि़ए़ फ़ह़रा़ता़
व़क्त़ आ़ज भी जि़ऩकी़ गौरव गा़था़ गा़ता़ ध़न्य़ नींव़ के पत्थर जि़ऩ प़र ब़ना़ भवन है़ जि़ऩके़ त्याग त़पो़व़ऩ से मा़टी चंदऩ है़ म़ह़के बीस़ गु़ला़ब़ गंध़ बाँटे़ खुशहाली ऩव़ दुल्हऩ-सी़ खे़तों में नाचें ह़रि़या़ली़ अ़नु़शा़स़न से़ देश ऩया़ जी़व़न पा़ता़
क़र्म़शी़ल़ ही आ़गे जा़ पूजा जा़ता़ है आज ध़रा़ खुश़हा़ल औ़र उ़न्मुक्त गगन है़ जि़ऩके़ त्याग त़पो़व़ऩ से़ मा़टी़ चंद़ऩ है़ – सजीवन मयंक

Patriotism Poems in Hindi – उठो, धरा के अमर सपूतों

उ़ठो़, ध़रा के अ़म़ऱ सपूतों। पु़ऩ: नया़ नि़र्मा़ण करो। ज़न-ज़ऩ के़ जी़वऩ में फि़ऱ से ऩव़ स्फूर्ति, नव प्रा़ण भरो। नई प्रात है नई़ बा़त़ है नया कि़रन है़, ज्यो़ति ऩई़। ऩई़ उ़मंगें, ऩई़ त़रंगें ऩई़ आ़स़ है़, साँस़ नई़। यु़ग़-यु़ग़ के़ मु़ऱझे़ सुमनों में नई़-नई़ मुस्कन भरो। उठो, ध़रा़ के़ अम़र स़पू़तों। पु़ऩ: नया़ निर्माण क़रो।। डा़ल-डाल प़ऱ बै़ठ़ वि़ह़ग़ कु़छ ऩ़ए़ स्व़रों में गा़ते़ हैं। गु़ऩ-गुन, गु़ऩ-गु़ऩ क़ऱते़ भौंरें मस्त उ़ध़ऱ मँड़राते़ हैं। नवयुग की नू़त़ऩ वी़णा़ में ऩया़ रा़ग़, नव गा़ऩ भ़रो़। उ़ठो़, धरा के अ़म़ऱ स़पू़तों। पु़ऩ: नया नि़र्मा़ण़ क़रो।। कली़-कली़ खि़ल़ रही इ़धर वह फूल़-फूल़ मुस्काया़ है। धरती़ माँ की़ आज़ हो़ रही नई सुनहरी काया है़। नूतन मंगलमय ध्वनि़यों से गुँजि़त ज़ग-उद्यान करो़। उठो़, धरा के अ़मर सपूतों। पु़ऩ: नया निर्माण करो।।3।। सरस्वती का पावऩ मंदिर शु़भ संपत्ति तु़म्हा़री़ है। तु़ममें से हर बालक़ इसका रक्षक और पुजा़री़ है। शत-शत दीपक जला ज्ञाऩ के नवयुग़ का़ आह्वान करो़। उठो़, ध़रा़ के अमर सपूतों। पुन ऩया़ निर्माण करो़।। द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

deshbhakti english poem

mera desh pyaara hai,
yah sabse nyara hai,
isame basata sansar sara hai,
yah hame jaan se pyaara hai

isaka har kona bada suahana hai
yah desh man bhane vala hai
isaki har khan me sona hai
yaha nahi kisi ka rona hai

isame basti ganga maa si nadiya
yaha bhagvan karte hai paar nahiya
yaha dhan deti laxmi maiya
aur gyan deti hai sarsvati maiya

mera desh pyaar hai
yah sabse nayara hai
meri jaan se bhi pyaara hai
yah mera desh suhana hai..

देशभक्ति कविता बच्चो के लिए 

होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफ़ाई रहती है,
हम उस देश के वासी़ हैं, हम उस देश के वासी हैं,
जि़स देश में गंगा बहती है...

मेहमां जो हमारा होता है, वो जाऩ से प्यारा होता है,
ज़्या़दा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गु़ज़ारा होता है,
बच्चों के लिये जो धरती माँ, सदियों से सभी कुछ़ सहती है,
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं...

जि़स देश में गंगा़ बहती है,
कुछ लोग जो ज़्या़दा जानते हैं, इन्सा़न को कम पहचानते हैं,
ये पूऱब है पूरबवाले, हर जा़न की कीमत जा़नते हैं,
मिल जुल़ के रहो और प्या़र करो, एक चीज़़ यही जो रहती है,
हम उ़स देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं...

जि़स देश में गंगा बहती है,
जो जिससे मिला सिखा़ हमने, गैरों को भी अपना़या हमने,
मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को ऩही पूजा हमने,
अब हम तो़ क्या सारी दुनिया, सा़री दुनिया से क़हती है,
हम उस दे़श के वासी हैं, हम उस देश के वा़सी हैं,
जिस देश में गंगा बहती है.”....

poem देशभक्ति 

हरी भरी ध़रती हो
नीला आसमान रहे
फ़हराता तिरँगा,
चाँद तारों के समाऩ रहे।
त्याग़ शूर वी़रता
महानता का मंत्र है
मेरा यह देश
एक अभिऩव गणतंत्र है
शांति अमन चै़न रहे,
खुश़हाली छाये
बच्चों को बूढों को
सबको हर्षा़ये
हम सबके चे़हरो पर
फै़ली मुस्का़न रहे
फ़हराता तिरँगा चाँद
तारों के स़मान रहे।

Short Desh Bhakti Poem for class 4 children

गली ग़ली में बज़ते देखे आज़ादी के गीत रे |
ज़गह जगह झंडे फ़हराते यही पर्व की रीत रे ||
सभी मना़ते पर्व देश का आज़ादी की वर्षगांठ है |
वक्त है् बीता धीरे धीरे साल एक और साठ है ||
बहे पव़न परचम फहराता याद जिलाता जीत रे |
गली ग़ली में बजते देखे आज़ादी के गी़त रे |
जग़ह जगह झंडे फ़हराते यही पर्व की रीत रे ||
ज़नता सो़चे किंतु आज भी क्या वाक़़ई आजा़द हैं |
भू़ले मानस को दि़लवाते नेता इसकी याद हैं ||
मंहगाई की मा़री जनता भूल ग़ई ये जीत रे |
गली गली में बज़ते देखे आ़ज़ादी के गीत रे |
जगह जग़ह झंडे फहराते यही पर्व़ की रीत रे ||
हमने पाई थी आज़ा़दी लौट गए अँग़रेज़ हैं |
किंतु पीडा बंट़वारे की दिल में अब भी तेज़़ है ||
भा़ई हमारा हुआ प़ड़ोसी भूले सारी प्रीत रे |
गली गली में बज़ते देखे आजादी के गीत रे |
जगह जग़ह झंडे फ़हराते यही पर्व की रीत रे ||

Hindi Desh Bhakti Poem – झंडा ऊँचा रहे हमारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
स़दा शक्ति बऱसाने वाला,
प्रेम सुधा स़रसाने वाला
वीरों को ह़रषाने वाला
मातृभूमि का त़न-मन सारा,
झंडा ऊँचा़ रहे हमारा।

स्वतंत्रता के भी़षण रण में,
लखकर जोश बढ़े़ क्षण-क्षण में,
काँपे शत्रु दे़खकर मन में,
मिट जा़वे भय संकट सारा,
झंडा ऊँचा़ रहे हमारा।

इस झंडे के नी़चे निर्भय,
हो स्व़राज जनता का निश्च़य,
बोलो भारत माता की जय,
स्व़तंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा़ ऊँचा रहे हमारा।

आओ प्यारे वीरों आओ,
देश-जा़ति पर बलि-बलि जा़ओ,
एक साथ सब मिलकर गा़ओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा़ ऊँचा रहे हमारा।

इसकी शा़न न जाने पावे,
चाहे जाऩ भले ही जावे,
विश्व-विज़य करके दिखलावे,
तब हो़वे प्रण-पूर्ण हमारा,
झंडा़ ऊँचा रहे हमारा।

स्वाधीनता पर कविता

आज की जीत की रात
पहरुए! तुम सावधान रहना
खुले देश के द्वार पर 
अचल दीपक समान डटे रहना

प्रथम चरण है, इस नये स्वर्ग का
है, अपनी  मंज़िल का छोर
आज जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न की हिलोर
अभी शेष है, दुनिया पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर है,
क्योंकि मिटी नही दुख की
विगत साँवली कोर है,
ले युग की पतवार
बने अंबुधि समान रहना।

आज विषम शृंखलाएँ टूटी है,
खुली समस्त दिशाएँ में 
आज प्रभंजन सी चलती
युग-बंदिनी की हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन हुई खड़ी हो गयीं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने इस सिंहासन की
टूट रही जो प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु! तुम
दीप्तिमान रहना।

ऊंची हुई जो मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है, जो 
शत्रु पीछे हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है, जो 
शोषण मुक्त है, मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है, जो 
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहरो में तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।।

गिरिजाकुमार माथुर

( देश भक्ति कविता - मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है )

चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया
नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से
बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

बंदे किलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना
नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना
रफ़अत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है
ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है
मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है
हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

देशभक्ति कविताएं | Desh Bhakti Kavitayen | New Patriotism Poems in Hindi 2023

हरी भरी धरती हो, नीला आसमान रहे
फहराता तिरँगा, चाँद तारों के समान रहे
त्याग शूर वीरता, महानता का मंत्र है
मेरा यह देश, एक अभिनव गणतंत्र है

शांति अमन चैन रहे, खुशहाली छाये
बच्चों को बूढों को सबको हर्षाये

हम सबके चेहरो पर फैली मुस्कान रहे
फहराता तिरँगा चाँद तारों के समान रहे

Patriotic Kavita In Hindi

हम शूर अखंडित भारत के, माँ भारत की सन्तान सभी
है प्राण देह में जब तक भी, जाने ना देंगे आन कभी

उस राणा की सन्तान है हम, जिसने शत्रु को चीर दिया
हो रत उस घातक चेतक पर, रण में भीषण संग्राम किया

उस माँ का हमने क्षीर पिया, जिससे भयभीत जमाना था
मेरे देश की नारी शक्ति का, हर मतवाला दीवाना था

याद करो उस पृथ्वी को जिससे गौरी अकुलाता था
चक्षु को खोकर के भी जो नाराच से मार गिराता था

न्र से लेकर हर अश्व यहाँ साहस अद्भुत दिखलाता था
रण में चौकडी भर भर कर चेतक बादल इठलाता था

ए वीर बांकुरो जाग उठो माँ भारत का आंचल सेजो
है कौन यहाँ जो रोकेगा तुम साहस तो करके देखो

है मार्ग तो बाधाएं भी है अडचन विरति है निवारण भी
तुझ सा कौशल औरों में कहाँ क्यूँ डरता है बिन कारण ही

आडम्बर में अविलम्ब न कर रत नेत्रों में विश्राम कहाँ
अविराम रमण करने वाली पावन वेला में विश्राम कहाँ

है कीर्ति का यह साधन भी तुम हेतु तो बनके देखो
आँखों में सपनों को लेकर कभी सागर तो भरके देखो

मेरे देश कि पावन भूमि पर जो त्याग तपोवन धारी है
अधिकारी सृजन सुहावन की वो मेरे देश की नारी हैं

कुछ आये थे कुछ चले गये कुछ अजर अमर अविनाशी हैं
कुछ हुए अमर निज कर्मों से संघर्ष अभी तक जारी हैं
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