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राष्ट्रीय ध्वज़ पर निबंध | National Flag Essay in Hindi

राष्ट्रीय ध्वज़ पर निबंध | National Flag Essay in Hindi- नमस्कार साथियों स्वागत है, आपका आज के हमारे इस लेख में आज हम हमारे राष्ट्र और हम सभी का गौरव राष्ट्रीय ध्वज के बारे में इस लेख के माध्यम से विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे. राष्ट्रीय ध्वज हमारी धरोहर है. 

राष्ट्रीय ध्वज़ पर निबंध | National Flag Essay in Hindi

राष्ट्रीय ध्वज़ पर निबंध | National Flag Essay in Hindi

राष्ट्र की पहली पहचान उसका राष्ट्रीय ध्वज होता है, जो उस देश का प्रतिनिधित्व करता है. देश के लिए उसका मान-सम्मान तथा भाव भंगिमा सबकुछ ध्वज में छिपी होती है. 

देश के व्यक्ति द्वारा विजय पाने पर राष्ट्र के ध्वज को बड़े शान से फहराकर देश के गौरव को बढाया जाता है. जिस प्रकार एक व्यक्ति के लिए नाक को उसका स्वाभिमान माना जाता है, उसी प्रकार राष्ट्र के लिए ध्वज को उसका स्वाभिमान माना जाता है.

राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना तथा आदर करना हम सभी भारतीयों का ही नहीं बल्कि सभी का कर्तव्य है, कई बार राष्ट्र के स्वाभिमान के नाम पर जंग छिड़ती है, तो ध्वज को साक्षी मानकर जंग में देश के लिए लड़ा जाता है. तथा अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सब न्योछावर कर दिया जाता है.

राष्ट्रीय पर्वो तथा राष्ट्रीय त्योहारों या कार्यक्रमों में बड़ी शान के साथ ध्वज को फहराकर देश के स्वाभिमान को प्रदर्शित किया जाता है. हर बड़े कार्यक्रम से पूर्व राष्ट्र के ध्वज को फहराया जाता है, तथा उसके बाद आगे की कार्यवाही को संचालित किया जाता है.

राष्ट्रीय ध्वज़ पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द)

परिचय

किसी की स्वतंत्रता तथा उसके स्वाभिमान का प्रतिपादक ध्वज होता है, जो राष्ट्र की एक तरह से प्रतिनिधि होता है. हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, जिस पर हम सभी को नाज है, यह हमारे प्यारे भारत देश की आन बान शान तथा मान सम्मान है. राष्ट्रहित को सर्वोपरी मानने वाले भारतीय नागरिक राष्ट्र के इन आदर्शो का सम्मान करते है, तथा आदर देते है.

हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा तीनो रंगों से मिलकर बना है, जिस कारण इसका नाम तिरंगा रखा गया है. आज देशभर में छोटे से बड़े कार्यलय दफ्तर में तिंरगा बड़ी आन से फहराया जाता है. हर कार्यक्रम में प्रथम प्राथमिकता तिरंगे को दी जाती है. जो इसकी महता को उजागर करती है.

राष्ट्रध्वज की बनावट

भारतीय तिरंगे में तीनो रंग देश में अमन, वीरता तथा सद्भावना को प्रदर्शित करते है. जिसमे तिरंगे की लम्बाई तथा चौड़ाई का अनुपात 3:2 है. राष्ट्रीय निर्दिष्टीकरण के अनुसार राष्ट्र के ध्वज का निर्माण कड़ी के कपडे से किया जाना चाहिए.

तिरंगे की तीनो पट्टिया क्षैतिज आकर में रहती है, जिसमे शीर्ष पर केसरिया रंग है, जो वीरता का प्रतिक है. तथा बीच में सफ़ेद रंग की पट्टी है, जो धर्म चक्र के साथ शांति और सत्‍य का प्रतीक है. नीचे वाली पट्टी का रंग हरा है, जो उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को प्रदर्शित करती है.

इन तीनो रंगों के आलावा सफ़ेद रंग के बीच म 24 तीलियों का चक्र है, जो अशोक चक्र कहलाता है. इसकी पहली 12 तिल्लिया मनुष्य के अविद्या से दुःख तक तथा अगली 12 तिल्लिया जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति के प्रतिक के रूप में देखी जाती है. 

राष्ट्रीय ध्वज में रंगों के मायने तथा महत्व

राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना आजादी से पूर्व पिंगली वैंकया ने दी. इसमे वैंकया द्वारा केसरिया सफ़ेद तथा हरे रंगों के साथ नीले रंग का चक्र बनाया गया है. इसके दार्शनिक तथा अध्यात्मिक रूप से अलग अलग अर्थ है. 

निष्कर्ष

भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा देश की आन-बान-शान, गौरव तथा अपना अभिमान है. राष्ट्रीय ध्वज देश का प्रतिनिधि होता है, इसी वजह से इसके निर्माण में कई बार विशिष्ट तरीको से इसमे बदलाव किया गया. प्रत्येक रंग तथा चक्र देश की एकता, अखण्डता, उन्नति तथा खुशहाली को दर्शाता हैं.

Rashtriya Dhwaj par Nibandh 

तिरंगा यानि तीन रंगों वाली पताका जो भारतभूमि का अभिमान है. भारतीय ध्वज में तीन रंगों की पट्टिकाओ के साथ ही बीच में नील रंग की 24 तिल्लिया विद्यमान है, जो अशोक चक्र या धर्म चक्र के नाम से प्रसिद्ध है.

तिरंगे में सम्मलित सभी रंगों और चक्र का अपना विशेष महत्व तथा मायने है. पर भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है, जिसमें ध्वज का मतलब किसी धर्म विशेष से नहीं है. भारत हमेशा से ही वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को लेकर चलने वाला देश रहा है. यहाँ किसी धर्म को ना तो प्राथमिकता दी जाती है, ना ही किसी को कमजोर समझकर प्रताड़ित किया जाता है.

तिरंगा देश की शान है, यह कई लोगो के जीवन का सपना है, तो कई लोगो के लिए तिरंगे का कफ़न होना उनका सपना है. इस तिरंगे के लिए या यूँ कहें, आजादी के लिए ना जाने हजारो क्रांतिकारियों ने देश की इस मातृभूमि को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी.

राष्ट्रीय ध्वज पहले अपनी पसंद या चाह के अनुसार इसका प्रयोग किया जा सकता था. पर आज के समय में इसकी गरिमा को ध्यान में रखते हुए. इसके लिए कुछ प्रावधान किये गए है, जो इसके प्रदर्शन की अनुमति देता है, इन्हें हम ध्वज संहिता के नाम से जानते है.

भारतीय राष्ट्रध्वज संहिता

राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा ठेस न पहुंचे इसी उद्देश्य भारतीय संविधान के ध्वज संहिता में कई सालो बाद संसोधन किया गया. देश की आजादी के कई सालो बाद 26 जनवरी 2002 को ध्वज संहिता में बदलाव किया गया. इस संहिता में ध्वज को फहराने तथा इसके प्रयोग से सम्बंधित निर्देश दिए गए है. 

इस संहिता संसोधन के द्वारा आमजन को तिरंगा साल के किसी विशेष दिन पर फहराने के साथ ही किसी भी दिन फहराने की अनुमति दी गई. जिससे किसी भी दिन तिरंगे को फहराया जा सकता है. पर तिरंगे की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए. 

ध्वज संहिता में इसके सम्मान को पहली प्राथमिकता दी गई है, जिसमे पहला नियम यह है, कि ध्वज की गरिमा हमेशा बनी रहे. हमेशा तिरंगे को सम्मान की नजर से देखे तथा तिरंगे को कभी भी जमीन पर या नीचे नहीं गिरने दें. किसी मूर्ति को ढकने के लिए या आधारशिला के रूप में इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.

राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा तथा आवश्यकता के आधार पर संसोधन के द्वारा इसमे बदलाव किये गए. 5 जुलाई 2005 के संविधान संसोधन के द्वारा इस संहिता में बदलाव के द्वारा राष्ट्र ध्वज को एक पौशाक के रूप में पहनने की अनुमति दी गई. पर कमर से नीचे न पहनने के निर्देश दिए गए है. 

रुमाल या अन्य किसी साधन के रूप में इसका प्रयोग करना या उल्टा रखना इसका अपमान है, तथा इसके लिए उचित प्रावधान की व्यवस्था की गई है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ए सभी नागरिको को गरिमापूर्वक ध्वज फहराने की अनुमति देता है. पर उनके लिखित निर्देश के अनुसार.

निष्कर्ष

राष्ट्र धवज राष्ट्र का शिरमोर होता है, यह मान सम्मान होता है. इसके प्रयोग करने की अनुमति सभी को दी गई है, पर इसकी गरिमा को बनाए रखना जरुरी है. हम सभी का कर्तव्य है, कि अपने राष्ट्र धवज का सम्मान करें. तथा अपने सभी आदर्शो का सम्मान करें.

निबंध – 3


राष्ट्रीय ध्वज देश का प्रतीकात्मक चिह्न होता है. इसलिए इसके निर्माण तथा स्थायीकरण की प्रक्रिया भी लम्बे समय तक चली. सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1921 में कांग्रेस के अधिवेशन में बात रखी. 

पिंगली वैंकया द्वारा भारतीय तिरंगे को आकृति और आकार दिया गया. जिसमे तीन रंगों की उपस्थिति तथा अशोक चक्र का होना इसकी पवित्रता तथा वीरता और भाईचारे को दर्शाता है.  

22 जुलाई 1947 के संविधान सभा बैठक में पिंगली वैंकया द्वारा निर्मित इस तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में सुशोभित किया गया. ध्वज की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है.

राष्ट्रध्वज का इतिहास

आज के समय में हम अपने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को देखते है, तो सर्वश्रेष्ठ ध्वजों में से एक प्रतीत होता है. क्या यह पहली बार ऐसा ही बनाया गया था? या इसमे समय के साथ बदलाव किये गए. भारतीय ध्वज अपने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर धीरे धीरे बदलता रहा. 

देश का पहला ध्वज 7 अगस्त 1906 को फहराया गया था. यह ध्वज देश का पहला राष्ट्रीय ध्वज के रूप में पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया. जिसमे केसरिया रंग की जगह लाल रंग था. 

देश का दूसरा राष्ट्रीय ध्वज जिसका निर्माण करके फहराया गया, वो पेरिस में सन 1907 में बनाया गया. इसका उपयोग भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा फहराकर किया गया. इस तिरंगे में तीन क्षैतिज पट्टिकाओ में सबसे ऊपर की पट्टी में कमल का फूल बना हुआ था. इस ध्वज का प्रयोग बर्लिन में सम्मेलन में किया गया.

देश का तीसरा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में उभरा जब राजनैतिक संघर्ष बढ़ता जा रहा था. सन 1917 में डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने इसे आन्दोलन के साथ फहराया जिससे इसकी छवि उजागर हुई. 

यह ध्वज 5 लाल और 4 हरी पट्टी से मिलकर बना हुआ था. इसमे सप्त ऋषियों को सात तारो के रूप में प्रदर्शित किया गया था.  यूनियन जैक तथा अर्धचन्द्राकार सितारे को भी स्थान दिया गया.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन 1921 में विजयवाड़ा में एक युवक के द्वारा एक ध्वज तैयार करके गांधी जी को सौपा गया. यह ध्वज धार्मिकता को दर्शाता था. जिसमे दो रंगों को ही शामिल किया गया था, जिसमे लाल तथा हरा रंग था.

जो हिन्दू और मुस्लिम धर्मो को प्रदर्शित कर रहा था. गांधीजी ने इसमे सुधार कर इसमे सफ़ेद पट्टिका जो सभी वर्गों को प्रदर्शित करें, तथा बीच में चरखा रखने की बात कही जो गतिशीलता को दर्शाएगी.

कई सालो की मेहनत और कई नए ध्वजों को बनाने के बाद साल 1931 में देश के लिए एक ध्वज का स्वरूप निर्धारित किया गया. यह ध्वज वर्तमान ध्वज का ही पुराना रूप था. 

जिसमे केसरिया, सफ़ेद तथा हरे रंगों की तीन पट्टी को शामिल किया गया तथा बीच में गांधीजी के चरखे को रखा गया. जिसके बाद चरखे के स्थान पर अशोक चक्र को शामिल किया गया. 

रोचक तथ्य

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के द्वारा चाँद पर फहराया गया. 

ध्वज फहराने के लिए ध्वज संहिता में एक विशिष्ट समय निर्धारित किया गया, जिसमे इसे फहराने का समय सूर्योदय के बाद तथा सूर्यास्त से पहले फहराने के निर्देश दिए गए है. 

ध्वज के निर्माण के लिए हस्तनिर्मित खादी के कपडे का उपयोग करने के निर्देश दिए गए है. 

राष्ट्र की बड़ी विभूति के निधन के समय थोड़े समय के लिए उनके आदर में तिरंगे को थोडा झुका दिया जाता है. देश की रक्षा करने वाले सैनिको के शहीदी पर उन्हें तिरंगे के कफ़न के रूप में भी उपयोग किया जाता है.

देश का सबसे बड़ा राष्ट्रीय ध्वज 360 फीट की ऊचाई का है, पाकिस्तान बॉर्डर पर अटारी बॉर्डर पर लगाया गया है. 

भारतीय तिरंगे को फहराने इसके रख रखाव तथा इसके उपयोग से सम्बंधित कानूनों को “फ्लैग कोड ऑफ इंडिया” यानी ध्वज संहिता में दिए गए है.

ध्वज पर किसी भी प्रकार की आकृति नहीं बनाई जा सकती है. शव के कफ़न के रूप में उपयोग में लिए गए तिरंगे को जला दिया जाता है, उसका पुन उपयोग नहीं होता है.

निष्कर्ष 


राष्ट्र की पहली पहचान उसका राष्ट्रीय ध्वज होता है. अर्थात किसी राष्ट्र के ध्वज का अपमान उस देश का अपमान माना जाता है. हम सभी का यह कर्तव्य है, कि अपने ध्वज की गरिमा तथा मान सम्मान को बनाए रखे तथा जिनको ध्वज के रख रखाव और उपयोग की जानकारी नहीं है, उन्हें अवगत कराए तथा जन बुझकर राष्ट्र का अपमान करने वालो के लिए तीन साल की सजा तथा जुर्माने की व्यवस्था की गई है. राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है.