भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay on Corruption in Hindi: नमस्कार फ्रेड्स आज का निबंध स्पीच भारत में भ्रष्टाचार की समस्या पर दिया गया हैं. आज के निबंध में हम इसके अर्थ, परिभाषा, कारण, प्रभाव, निदान तथा रोकने के उपायों के बारे में विस्तार से चर्चा करेगे. तो चलिए इस निबंध को पढ़ना आरम्भ करते हैं.
Essay on Corruption in Hindi
समसामयिक भारत में यदि किसी सामाजिक समस्या पर सबसे ज्यादा बहस छिड़ी है तो वह भ्रष्टाचार ही है. आज यह सबसे ज्वलंत मुद्दा बन चूका हैं. जिसके पीछे एक इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक गैर सरकारी संगठन की भूमिका हैं.
भ्रष्टाचार वह व्यवहार या क्रिया है जिससे निजी या व्यक्तिगत लाभ के लिए सामाजिक मानदंडों व औपचारिक कानूनों का सरेआम उल्लंघन कर सार्वजनिक शक्ति या सत्ता का दुरूपयोग किया जाता हैं. भाई भतीजावाद, रिश्वतखोरी, पक्षपात, सार्वजनिक धन की हेरा फेरी कर वंचना, कर्तव्य विचलन, अनैतिक व्यवहार आदि भ्रष्टाचार के उदाहरण हैं. संरक्षण दुरविन्योग भी शामिल हैं.
हमारे यहाँ चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है या लिप्त पाए गये हैं. यह अलग बात है कि व्यवस्था की कमी के कारण आरोप साबित नहीं हो पाते व सजा से बच जाते हैं. भ्रष्टाचार एक विशुद्ध भारतीय सामाजिक प्रघटना नहीं है बल्कि यह एक विश्वव्यापी तथ्य है कि विकसित देशों की तुलना में गरीब देशों में इसकी मात्रा अधिक होती हैं.
भ्रष्टाचार की परिभाषा एवं अर्थ (Definition and meaning of corruption)
- डी एच बेली के अनुसार निजी लाभ के विचार के फलस्वरूप सत्ता का दुरूपयोग जो कि धन से सम्बन्धित नहीं भी हो सकता है भ्रष्टाचार हैं.
- एन्द्रीस्की ऐसे तरीको को सार्वजनिक शक्ति का निजी लाभ के लिए प्रयोग जो कानून का उल्लंघन करता हैं.
- जे नाय- भ्रष्टाचार निजी लाभों के लिए सार्वजनिक पदों का दुरूपयोग को दर्शाता हैं,
- मैरिस सैफेल- भ्रष्टाचार वह व्यवहार है जो मानदंडों व सार्वजनिक भूमिका निर्वाह के कर्तव्यों को संचालित करने या निजी लाभों के लिए पद का दुरूपयोग या उचित उपयोग के विचलन से हैं.
उपर्युक्त परिभाषाओं के विवेचन से स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार वह व्यवहार या सामाजिक क्रिया है जिसमें व्यक्तिगत हितों को समूह कल्याण पर प्राथमिकता दी जाती है तथा सार्वजनिक शक्ति/ सत्ता को गैर संस्था गत तरीके प्रयुक्त किया जाता है और जिसकी पहचान सामाजिक समस्या के रूप में होती हैं.
वर्तमान में भ्रष्टाचार एक अत्यंत गम्भीर समस्या है जो सामाजिक आर्थिक विकास व रोजगारमूलक अवसरों में बाधक बनकर गरीबी जैसे अत्यंत ही गंभीर स्थिति के जन्ममूलक कारक के रूप में अभिव्यक्त होता है. जो कि अन्तः भारत को विकसित राष्ट्र राज्य बनने की दिशा में एक बाधक बन जाता हैं. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अनुसार गरीबों के लिए आवंटित धन में से केवल 15 प्रतिशत की ही वास्तविक पहुँच गरीब तक होती हैं.
भ्रष्टाचार के कारण (Causes Of corruption)
भ्रष्टाचार की उत्पत्ति का कोई एक या कुछ ही कारण नहीं है बल्कि इसके अनेक उद्भवकारी कारक हैं क्योंकि भ्रष्टाचार एक सामाजिक यथार्थ है इसके निम्नलिखित कारण हैं.
- स्वहित आधारित नये राजनितिक वर्ग का उदय- इसे सर्वप्रमुख कारण माना जा सकता हैं. क्योंकि भारत में राजनीति एक नियामक संस्था है. ऐसे नयें राजनीतिक अभिजात वर्ग का अस्तित्व हैं जो सार्वजनिक नीतियों या कार्यक्रमों नीतियों व कार्यक्रमों में राष्ट्रहित की तुलना में स्वहित को अधिक प्राथमिकता देते है. इनमें देशभक्ति, त्याग व दूरदर्शिता तथा नैतिक मूल्यों का नितांत अभाव देखा गया हैं. यह नव्य राजनीतिक वर्ग, अधिकारियों, नौकरशाहों व व्यापारी नेताओं अपराधियों, तस्करों आदि से सांठ गाँठ करके विकासमूलक कार्यक्रमों के स्थान पर स्वहित पर ही केंद्रित रहता हैं. राजनीति में ईमानदारी, देश भक्ति, जनहित की भावना व प्रगतिशील सोच आजादी के प्रथम दो दशक तक रही. 1967 के चौथे आम चुनाव के बाद से राजनीतिक सूचिता व प्रतिबद्धता विचलित हो गई.
- सरकारी आर्थिक नीतियाँ- यह भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण हैं. अधिकांश घोटाले उन क्षेत्रों में हुए है जहाँ निति निर्माण व मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया सरकारी नियंत्रण में हैं. अतः मुख्य समस्या अर्थतंत्र को भ्रमित सरकारी नियमों से मुक्त कर स्पष्ट व पारदर्शी नियमों की आवश्यकता हैं. अत्यधिक नियंत्रित अर्थव्यवस्था में देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. तथा बड़े बड़े रोजगारमूलक व विकास मूलक प्रोजेक्ट स्थापित नहीं हो पाते और यदि हो भी जाते है तो असफल हो जाते है.
- आवश्यक वस्तुओं की कमी- यह भी भ्रष्टाचार का कारण है. जब मांग अधिक होती है तथा आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हो पाती तो भ्रष्टाचार पैदा हो जाता है. तथा शक्तिशाली वर्ग भ्रष्टाचार के द्वारा निम्न वर्ग को इन आवश्यकतामूलक वस्तुओं से वंचित कर देता हैं.
- व्यवस्था में परिवर्तन- प्रत्येक समाज में मूल्य व मानदंडों की व्यवस्था समयानुसार बदल जाती है. आज नैतिकता, ईमानदारी, त्याग, परमार्थ, नरसेवा नारायण सेवा के मूल्यों का स्थान भौतिकता, बेईमानी, स्वहित, स्वसुख को प्राथमिकता जैसे मूल्यों ने ले लिया हैं. परिणामतः समाज में भ्रष्टाचार तेजी से फ़ैल रहा है. आज भेंट स्वीकारना तार्किकता का पर्याय बन गया हैं.
- अप्रभावी प्रशासनिक संगठन- प्रशासनिक कमजोरी से भी भ्रष्टाचार बढ़ा है. नियंत्रण व सतर्कता का अभाव प्रशासनिक अधिकारियों को अत्यधिक शक्ति देना, त्रुटीपूर्ण सूचना व्यवस्था, गैर जिम्मेदारी पूर्ण दृष्टिकोण, लालफीताशाही आदि ने न केवल प्रशासकों को भ्रष्टाचार के अवसर प्रदान किये है बल्कि भ्रष्टाचार के बाद वे बच भी जाते हैं.
उपर्युक्त के अलावा भ्रष्टाचार के कारणों को आर्थिक, सामाजिक, मुलायम सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक कारण, न्यायिक कारण की श्रेणी में रखा जा सकता हैं. स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार एक जटिल एवं सामाजिक समस्या है. जिसके अनेक उद्भवकारी कारक हैं. भ्रष्टाचार की सम्भावना उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ महत्वपूर्ण निर्णय किये जाते है जैसे ठेके स्वीकृत करना, कर संग्रह का मूल्यांकन, आपूर्ति को मान्यता देना, बिल पास करना, चैक पास करना, अनापत्ति प्रमाण पत्र देना आदि.
भ्रष्टाचार के प्रभाव Effects Impact of corruption)
चूँकि भ्रष्टाचार एक सामाजिक यथार्थ है अतः समाज पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक हैं. भ्रष्टाचार का निम्नलिखित प्रभाव समाज पर पड़ता हैं.
- यह देश के आर्थिक विकास में बाधक है.
- यह योग्यता में बाधक बनकर अकुशलता को बढ़ावा देता है जिससे कार्य दक्षता में गिरावट आती हैं.
- इसने नैतिक मूल्यों में गिरावट की हैं.
- यह भाई भतीजावाद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भाषावाद, संकीर्ण विचारधाराओं को बढ़ावा दिया हैं.
- इसने व्यक्तिगत चरित्र का पतन किया हैं. तथा सस्ती सफलता के लिए अभिमुखित किया हैं.
- हिंसा व अराजकता को प्रोत्साहित सामाजिक व्यवस्था को अस्थित किया हैं.
- प्रशासन में अनुशासनहीनता व गैर जिम्मेदारी दृष्टिकोण को प्रेरित किया हैं. फलतः अफसरों की विश्वसनीयता लोगों में कम हुई हैं.
- इसने खाद्य पदार्थों में मिलावट को प्रोत्साहित किया हैं. जिससे स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ हैं.
- भ्रष्टाचार ने राजनीतिक क्षेत्र में भी अस्थिरता का माहौल निर्मित किया है.
- भ्रष्टाचार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की पहचान एवं विश्वसनीय को धूमिल किया है जो कि विनिवेश, राजनीतिक पकड़ व वित्तीय विनिमय में बाधक हैं.
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय (Measures to prevent corruption)
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण हेतु पहले बड़े प्रयास के रूप में 1962 में के संस्थानम की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार निरोधक समिति का गठन किया गया, इसके बाद तो मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों आदि के खिलाफ अनेक आयोग गठित किये गये.
इस समिति की सिफारिशों पर ही 1964 में CVC यानी केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन किया गया. केंद्र सरकार ने निम्नलिखित विभागों की स्थापना भ्रष्टाचार विरोधी उपायों के तहत की.
- केंद्रीय जांच ब्यूरों
- केन्द्रीय सतर्कता आयोग
- कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में प्रशासनिक सतर्कता आयोग
- मंत्रालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, सार्वजनिक उपक्रमों, विभागों में घरेलू सतर्कता इकाइयाँ
भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत में वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भारत में 17 राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त हैं. हाल ही में LAC नामक गैर सरकारी संगठन ने स्वतंत्र लोकपाल की स्थापना हेतु भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चला रखा हैं. इसका नेतृत्व अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया, विशेषकर राजनीतिक सुचिता, काला धन व भ्रष्टाचार से निर्णायक संघर्ष हेतु इन्होने आम आदमी पार्टी का गठन किया.