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गुरु भक्ति पर निबंध | Essay On Guru Bhakti in Hindi

गुरु भक्ति पर निबंध Essay On Guru Bhakti in Hindi: नमस्कार दोस्तों आज का निबंध स्पीच गुरु के महत्व पर लिखा गया हैं. इस निबंध को पढ़ने के बाद हम जान पाएगे कि गुरु भक्ति क्या है और इसका क्या महत्व है तो चलिए इस शोर्ट निबंध को पढ़ते हैं.

गुरु भक्ति पर निबंध | Essay On Guru Bhakti in Hindi

गुरु भक्ति एक विशेष महत्व रखने वाला शब्द है, यह हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व रखता है.  गुरु को भगवन की भाँती माना जाता है. गुरु ज्ञान हमेशा जीवन को जीने की एक राह दिखाती है.

जीवन में उन्नति करने के लिए एक गुरु का होना अति आवश्यक है. एक गुरु अपने शिष्यों को हमेशा जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित करता है. गुरु शिष्य का सच्चा पथ प्रदर्शक होते है.

गुरु शब्द बहुत बड़ा है एक मानव पूर्ण रूप से उसकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकता हैं. ईश्वर से उच्च पद प्राप्त गुरु ही संसार व ईश्वर का ज्ञान करवाता हैं. 

एक सच्चा गुरु अपने शिष्य को सही पथ दिखाता हैं. जीवन में किसी लक्ष्य की साधना के लिए गुरु का होना नितांत अनिवार्य हैं. गुरु भक्ति एक साधक को अन्धकार से ज्ञान रुपी प्रकाशमान संसार में ले जाती हैं.

शाब्दिक रूप से गुरु शब्द दो शब्दों गु तथा रू से मिलकर बना हैं. गु का अर्थ अज्ञान अथवा अन्धकार से है जबकि रू का आशय ज्ञान व प्रकाश से हैं. इस तरह ज्ञान व अज्ञान के बीच का अंतर गुरु ही मिटाते हैं. 

समाज के पथ प्रदर्शन एवं प्रगति में गुरुओं का बड़ा महत्व हैं. सच्ची गुरु भक्ति व्यक्ति के सभी उद्देश्यों को पूर्ण करवाती हैं. 

एक बालक के प्रथम गुरु उनकी माता होती हैं जो बच्चें का लालन पोषण कर उन्हें उठना, बैठना, चलना तथा बोलना सीखाती हैं. वह अपने बालक की समग्र आवश्यकताओं को पूरा कर उसके बचपन को स्वर्णिम बनाती हैं. 
गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
हिन्दू धर्म के धर्म ग्रंथों में गुरु का बड़ा महत्व माना गया हैं. तथा एक शिष्य का पहला कर्तव्य गुरु भक्ति को ही माना हैं. एकलव्य अपनी गुरु भक्ति के लिए इतिहास प्रसिद्ध हो गया. 

सनातन संकृति में गुरु की पदवी को सर्वोपरी माना गया है, जहाँ गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है. गुरुवर को इस जीवन का शिरमोर मानते है, जो जीवन रूपी नौका को संवारने का काम करते है.

निम्न जाति से सम्बन्धित होते के कारण गुरुकुल में शिक्षा न प्राप्त करने के उपरान्त उसकी गुरु भक्ति ने द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर निरंतर अभ्यास से वह धनुर्विद्या में कुशल बन गया.
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े का के लागु पाँव,
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।
संत कबीर दास ने भी गुरु के महत्व को स्वीकार किया है, उन्होंने गुरु भक्ति के कई पद व दोहों की रचना की, वे मानते थे कि ईश्वर और मानव के बीच की कड़ी गुरु है. जिसके बिना ईश्वर की प्राप्ति सम्भव नहीं हैं. एक गुरु हमेशा अपने शिष्य को स्वयं से अधिक श्रेष्ठ, गुणवान तथा शक्तिशाली देखना चाहता हैं. उसके बड़प्पन तथा त्याग की तुलना किसी से नहीं की जा सकती हैं.

आज के समय में गुरु का महत्व कुछ घटा हैं. भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना रखने के चलते लोग शिक्षक को ही गुरु का पर्याय मानते हैं. जबकि गुरु का पद माता, पिता, भाई बहिन, स्वामी, दोस्त किसी भी रिश्ते के रूप में हो सकते हैं. 

गुरु पूर्णिमा गुरु भक्ति का एक महत्वपूर्ण त्यौहार हैं जब हम अपने गुरुओं को धन्यवाद देते हैं तथा अपनी श्रद्धा व भक्ति से सम्मान देते हैं. शिक्षण संस्थानों में भी इस अवसर पर शिक्षकों का सम्मान किया जाता हैं. इस तरह हम कह सकते है कि जीवन में गुरु भक्ति का बड़ा महत्व हैं जिसके बिना जीवन एक अँधेरी कोठी में बंद आत्मा के समान हो जाता हैं.

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