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मेजर ध्यानचंद पर निबंध | Essay on Major Dhyan Chand in Hindi

मेजर ध्यानचंद पर निबंध Essay on Major Dhyan Chand in Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका हम स्वागत करते है आज हम हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय जीवनी इतिहास निबंध स्पीच शोर्ट में आपकों बता रहे हैं.

मेजर ध्यानचंद पर निबंध | Essay on Major Dhyan Chand in Hindi

मेजर ध्यानचंद पर निबंध | Essay on Major Dhyan Chand in Hindi
हॉकी काफी लोकप्रिय खेल हैं. इस खेल में देखा जाए तो कई महान खिलाड़ी हुए पर इन सभी में एक नाम सभी के जेहन में आता है वो है मेजर ध्यानचंद का.ध्यानचंद जब भी मैदान में उतरते तो विरोधी टीम में सनसनी फ़ैल जाती थी. वे खेलने से पूर्व ही हार मान लेते थे.

मेजर ध्यानचंद हमेशा से ही देश के लिए अपना सर्वस्य लुटाने के लिए तैयार रहते थे. उन्होंने भारत के लिए कई बार स्वर्ण मेडल जीते है. उन्हें कई बार विदेशो से अपनी देश की ओर से खेलने का भी ऑफर आया पर उन्होंने बिना कोई संकोच के देश को न छोड़ने का फैसला किया.

कई बार विपक्षी टीमो को अकेले ही ध्यानचंद हरा देते थे. ध्यानचंद होकी से पूर्व फ़ौज में थे. ये अपने खेल का जलवा पुरे विश्व में बिखेर चुके थे. कई देशो में इस खिलाड़ी का भय काफी भयानक बन गया था.

जर्मनी जैसे देशो में ध्यानचंद की स्टिक को तोड़कर चेक किया गया. क्योकि इनके खेलने का अंदाज ही कुछ ऐसा था, मानो स्टिक में चुम्बक लगी हो. हिटलर ने अपने देश की और से ध्यानचंद को खेलने का न्योता दिया. पर इसे ध्यानचंद ने ठुकरा दिया.

ध्यानचंद की कई प्रतिमाओ में उनके चार हाथ तथा सभी हाथो में स्टिक बनाई गई. जिसका अर्थ होता है, कि ये बहुत फुर्तीले तथा कई लोगो का काम अकेले करने वाले थे.

ध्यानचंद काफी तेज व फुर्तीले थे. इसी कारण उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता हैं. वे किसी भी कोने से गोल कर सकते थे. ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहबाद उत्तरप्रदेश में हुआ था. इनके पिता का नाम सोमेश्वर दत्त सिंह था.

मूल रूप से वे पंजाब के निवासी थे सूबेदार के पद पर ये इलाहबाद में तैनात थे. ध्यानचंद भी अपने पिता के साथ वही रहते थे. उन्होंने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई झांसी में हुई इनके बचपन का नाम ध्यानसिंह था यह हॉकी के प्रति दीवानगी के कारण हॉकी के महान खिलाड़ियों में से एक हैं.

ये बचपन में पेड़ों की डालियों से हॉकी खेलने के लिए स्टिक बनाते व पुराने कपड़ों से गेंद बनाकर खेला करते थे. उन्हें सिर्फ 16 वर्ष की आयु इंडियन आर्मी में शामिल कर लिया गया. इनके पहले कोच भोले तिवारी थे. परन्तु ये आर्मी में होने के नाते ज्यादा खेलने का वक्त नहीं मिलता था.

परन्तु वो रात को चाँद की रोशनी से अभ्यास करते थे. इन्ही लक्षणों से पता चलता है कि इनमें हॉकी के प्रति कितनी दीवानगी थी. इनका हॉकी खिलाड़ी का दौर शुरू हुआ, जब वे मात्र 21 वर्ष के थे.

ध्यानचंद के जमाने में भारत ने कई स्वर्ण पदक जीते जिसमें 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक 1932, लोंस एंजलिस ओलंपिक, 1936 के बर्लिन ओलम्पिक जीतकर इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी.

सन 1943 में इन्होने हॉकी को अलविदा कह दिया. आज भी नई दिल्ली में मेजर ध्यानचंद स्टेडियम हैं. उनके जन्म दिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता हैं.

1979 में उनका देहांत हो गया. झांसी में जहाँ पर ये शुरुआत में हॉकी खेला करते थे वही ध्यानचंद का अंतिम संस्कार किया गया.

ध्यानचंद को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. जिसमे पद्मभूषण, पद्म भूषण, राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार आदि दिए गए. ध्यानचंद के जीवन के सालो को ध्यानचंद शताब्दी का नाम दिया गया.

ध्यानचंद के नाम 2002 में पुरस्कार की शुरुआत की गई. इनके जन्म दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते है. आज भी ध्यानचंद के लिए प्रेम अटूट है.

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