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रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध | Essay on Laxmibai in Hindi

रानी लक्ष्मीबाई अथवा झाँसी की रानी पर निबंध- नमस्कार दोस्तों आज के लक्ष्मी बाई निबंध भाषण स्पीच जीवन परिचय इतिहास के बारे में जानेगे. झांसी की रानी ने प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया था. चलिए इस निबंध को पढ़ते हैं.

रानी लक्ष्मीबाई अथवा झाँसी की रानी पर निबंध | Essay on Queen Laxmibai in Hindi

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देकर लाखों वीर वीरांगनाओं ने अपने जीवन को देश सेवा में अर्पित किया था. एक ऐसा ही नाम रानी लक्ष्मीबाई का है जिससे हमारे देश का बच्चा बच्चा परिचित हैं. 

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित क्षेत्र से झाँसी राज्य की रानी बनी तथा 1857 की क्रान्ति में द्वितीय शहीद वीरांगना के रूप में थीं। 

लक्ष्मीबाई सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। कहते है,  कि युद्ध के दौरान लक्ष्मीबाई के सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी।

1857 की क्रान्ति में ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरोध में झांसी की रानी ने अपने राज्य का प्रतिनिधत्व किया. वह एक महिला होने के वाबजूद एक वीर पुरुष की भाँती सामना करती थी. उन्होंने अपने पुत्र को पीठ पर बैठाकर कई युद्ध लडे.

बलिदानियों की गाथा में यह अमर नाम करोड़ों भारतीयों की राष्ट्रभक्ति का स्रोत बना हैं. इन्हें झांसी की रानी के नाम से भी जाना जाता हैं. 

कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने इनके बलिदान के सम्बन्ध में एक सुंदर कविता की रचना की थी, खूब लड़ी मर्दानी वो झाँसी वो झाँसी वाली रानी थी.

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 को काशी में हुआ था. इनकी माँ का नाम भागीरथी एवं पिताजी का नाम मोरोपंत तांबे था. बचपन में इन्हें मणिकर्णिका के नाम से भी जानते थे, परिवार के लोग लक्ष्मी को मनु कहकर पुकारते थे.

बालपन से ही लक्ष्मीबाई बुद्धि में तीव्र थी, वह नित्य घुड़सवारी तथा तलवार चलाने का अभ्यास करती थी. कुछ वर्ष की आयु में ही उसने शस्त्र विद्या में विद्वता हासिल कर ली. उसके युद्ध कौशल एवं स्फूर्ति को देखकर बड़े बड़े महारथी भी थर्राते थे. 

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह 1842 में गंगाधर राव के साथ सम्पन्न हुआ, जो उस समय झाँसी रियासत के शासक थे. विवाह के 9 साल बाद उन्हें एक पुत्र हुआ, मगर मात्र चार माह के बाद ही उसकी मृत्यु हो गई. पुत्र विरह की वेदना में गंगाधर का भी 1853 में देहांत हो गया. 

पति के देहांत के बाद राज्य का जिम्मा लक्ष्मीबाई के कंधों पर आ गया. उधर ब्रिटिश सरकार में डलहौजी राज्यों को हडपने के नये नये तौर तरीके खोज रहा था. उसकी नजर झांसी के राज्य पर भी थी. मगर रानी लक्ष्मी पूरे साहस के साथ अपने राज्य एवं सेना पर निरंतर ध्यान देती रही.

झांसी के राजनीतिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया, मगर ब्रिटिश सरकार ने उसे अवैध करार दिया. लार्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति का शिकार झांसी का राज्य बना व इसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया.

अंग्रेजों की इस नीति का लक्ष्मीबाई ने पुरजोर किया. तथा आदेश को मानने से मना कर दिया. उसकी सहायता के लिए नाना साहब, तात्या टोपे तथा कुंवर सिंह आगे आए. तीनों संयुक्त रूप से अंग्रेजों का सामना किया. इन तीनों ने कई बार अंग्रेज टुकड़ियों को पराजित किया.

जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ पहला स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ तो 1857 ई में उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकुमत को भारत से निकालने का निश्चय किया. सीमित साधन तथा बल होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत न छोड़ी. उन्होंने अंग्रेजों का बड़ी बहादुरी से सामना किया मगर उन्हें पराजय का सामना करना.

इस हार के बाद जब उसका राज्य अंग्रेजों के अधीन हो गया फिर भी उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे झाँसी को पुनः स्वतंत्र करवाएगी. नाना साहब के साथ मिलकर लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर को आजाद करवाया, मगर देशद्रोही के भेद देने के कारण उन्हें ग्वालियर किला भी छोड़ना पड़ा