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माँ का हमारे जीवन में महत्व पर निबंध | Essay On Importance Of Mother In Our Life In Hindi

माँ का हमारे जीवन में महत्व पर निबंध Essay On Importance Of Mother In Our Life In Hindi प्रिय दोस्तों आज के निबंध लेखन में आपका स्वागत हैं. हमारा जीवन हमारी माँ की बदौलत ही हैं. जीवन में उनका महत्व शब्दों के वर्णन से परे हैं. आज के निबंध एस्से स्पीच भाषण अनुच्छेद लेख पैराग्राफ में माता या माँ पर निबंध मेरी माँ का महत्व आदि विषय पर स्टूडेंट्स के लिए यह सरल निबंध तैयार किया गया हैं.

माँ का हमारे जीवन में महत्व पर निबंध | Essay On Importance Of Mother In Our Life In Hindi

माँ का हमारे जीवन में महत्व पर निबंध | Essay On Importance Of Mother In Our Life In Hindi

जननी जिसे हम प्यारी माँ कहते हैं. माँ जिस तरह अपनी सन्तान से स्नेह रखती है उसके लिए सर्वस्व निस्वार्थ त्याग देती हैं. ऐसा दूसरा उदाहरण इस संसार में मिलना असम्भव हैं. भारतीय संस्कृति में माँ को ईश्वर से ऊपर का दर्जा दिया गया हैं.

माँ वो हस्ती होती है, जो अपने आप को काटकर हमें बनाती है, अपने से आगे हमें रखती है. प्यार का पहला नाम ही माँ होती है, माँ से जीवन का आरम्भ और माँ से ही समापन होता है. जीवन में हम माँ-बाप का कर्ज कभी नही चूका सकते है.

प्रेम की असली प्रतिमूर्ति तथा निस्वार्थ भाव से प्रेम की भावना माँ में ही होती है. एक माँ अपनी संतान को अपने से बहुत आगे देखना चाहती है. माँ एक ऐसा इन्शान है, जो सभी का स्थान ले सकती है, पर माँ का कोई स्थान नही ले सकता है.

केवल मानव ही नही बल्कि सभी जीव-जन्तुओ के लिए माँ का स्नेह उतना ही होता है, जितना एक माँ अपने बच्चो से करती है, पर आज के इस अपनेपन में या यूँ कहें कि अपने स्वार्थ के लिए ही माँ को याद करते है, जो हमारी मानवता तथा माँ के प्रेम को निष्कृत कर देता है.

न चाहते हुए भी एक माँ जिसने खुद को झोंककर जिसे सींचा वो उसके लिए किसी काम में हाथ नही बटाते. किसी ने क्या खूब कहा है, कि वो सफलता या कामयाबी किस काम कि जो रिश्तो में दुरिया पैदा कर दें.

एक माँ के लिए सबसे जरुरी होता है, उनकी संतान का सुखमय होना तथा उनके साथ समय बिताना.  माँ के बिना हमारे जीवन की कल्पना करना भी बेमानी हैं. वह जगजननी हैं. 

वह समस्त कष्ट सहनकर भी अपने शिशु को नौ माह तक गर्भ में रखती है तथा उन्हें जन्म देती हैं. अपने व्यक्तिगत स्वार्थ, स्वास्थ्य और असहनीय पीड़ा को भूलकर वह अपनी सन्तान को पाल पोषकर बड़ा करती हैं.

अपनी सन्तान का जीवन सुखी हो इसके लिए वह समस्त कष्टों और प्रताड़ना को सहर्ष स्वीकार कर लेती हैं. उसका ह्रदय सागर और बड़ा और माँ की ममता आसमान से बढ़कर होती हैं. 

जीवन में सभी रिश्ते महत्वपूर्ण हैं मगर माँ की कमी न तो पूरी की जा सकती है और ना ही उसका कोई स्थान ले सकता हैं. इसलिए माँ की तुलना अन्य सम्बन्धों से करना व्यर्थ हैं.

न केवल व्यक्ति के जीवन में बल्कि एक परिवार की धुरी भी माँ ही होती हैं. जो परिवार के खान पान, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्नेह आदि का ख्याल रखती हैं बल्कि परिवार को एक कड़ी में जोड़े रखने का कार्य भी माता द्वारा किया जाता हैं.

परिवार की तमाम समस्याओं आर्थिक तंगी स्वयं के स्वास्थ्य के गिरावट के उपरांत भी वह अपनी संतान, पति, सास ससुर आदि के दुःख दर्द को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं. 

एक परिवार में सभी सदस्य अपने अपने कार्य में मग्न रहते है कोई स्कूल जाता है तो अपने होम्वर्क में जुटा रहता है कोई ऑफिस के काम में पर माँ सभी के लिए खाना बनाना खिलाना घर का ख्याल रखना आदि में व्यस्त रहती हैं. यानि भले ही सभी अपनी अपनी सोचते हो मगर माँ सभी के लिए समर्पित रहती हैं.

माँ के जीवन का अधिकतर और बहुमूल्य समय अपनी संतान की देखभाल में ही व्यतीत होता हैं. सभी लोग जब खर्राटे भरी नीद में सोते है तब भी माँ रात को कई बार जगकर अपनी सन्तान को देखती रहती हैं. 

वह कम भोजन और कम नीद के उपरांत भी सबसे अधिक काम और सर्वाधिक चिंता करने वाली माँ ही हैं.
हमारी भावी पीढ़ी कैसी होगी, यह माँ पर ही निर्भर करता हैं. 

बच्चों को माँ के संस्कार और शिक्षाओं की नींव पर भविष्य की ईमारत खड़ी करनी होती हैं. जन्म से पूर्व तथा जन्म के बाद शिशु पूरी तरह माँ पर आश्रित रहता हैं. उसे अपना दूध पिलाकर बड़ा करने के बाद बोलना, चलना, पढ़ना, संसार के बारे में ज्ञान माँ के मार्गदर्शन में ही प्राप्त होता हैं.

अक्सर माएं अपनी सन्तान को बचपन में ही संत महात्मा एवं महापुरुषों की जीवनियाँ सुनाती है जिससे बच्चों में बड़े होकर उन जैसा महान बनने की प्रेरणा जागृत होती हैं. साथ ही बालक में देशभक्ति, सामाजिक कानून कायदों और जीवन में मर्यादा, दया, प्रेम, अहिंसा जैसे उच्च विचारों का बीज बोती हैं.

बालक के चरित्रवान, गुणवान एवं आदर्श बनने में बड़ा योगदान माँ का होता हैं. चाहे अब तक के महान लोगों की जीवनी उठा कर देख लीजिए उनके जीवन को दिशा देने वाली माँ ही थी. 

वह एक तरफ संतान के प्रति स्नेहिल भाव रखकर उसमें सुरक्षा प्रेम और शक्ति के भाग जगाती हैं तो वही डांट फटकार कर उसे गलत राह पर जाने से रोककर सहनशील, धैर्यवान, बडो की आज्ञा का पालन करने जैसे गुणों को स्वतः प्रशिक्षण के माध्यम से रोजमर्रा के जीवन में यूँ ही अमूल्य सीख दे देती हैं.

किसी बालक के चरित्र के उत्थान और पतन में माँ की बुद्धिमता का बड़ा महत्व होता हैं. इस तरह यह कहा जा सकता हैं माँ ही बालक की पहली गुरु होती हैं. जो सही गलत का ज्ञान कराकर उन्हें भावी जीवन के लिए तैयार करती हैं.

सभी माओं को अपनी संताने सर्वप्रिय होती हैं. वह उनके लिए सभी के लड़ झगड़ सकती हैं. मगर कई बार यह भी देखा गया हैं कि माँ का बच्चें के प्रति अंध मोह उनके भविष्य के लिए हानिकारक भी साबित होता हैं. इसलिए बालक के लालन पोषण तथा अच्छी परवरिश में माँ को दिल के साथ साथ बुद्धि का यथोचित उपयोग करना चाहिए.

देखा गया हैं कि माँ द्वारा अधिक लाड प्यार करने वाली सन्तान आगे चलकर लापरवाह और पथभ्रष्ट या अधिक शंकालु स्वभाव की हो जाती हैं. अपनी सन्तान के प्रति माँ का अंधमोह उसे जिद्दी और निकम्मा बना सकता हैं. 

जीवन में सब कुछ कड़े जत्न के बाद हासिल होता हैं इसलिए माँ भी बच्चों को कई बार ऐसे जटिल कार्य भी देती हैं जिसमें उसे अधिक परिश्रम करनी पड़े.

एक अच्छी माँ का यह उत्तरदायित्व है कि वह अपने बेटे बेटियों को अपार स्नेह दे मगर जहाँ कठोरता बरतने की आवश्यकता होती हैं वहां बिना शकोच के उन्हें दंड देकर भी भावी जीवन के लिए तैयार करना उनका कर्तव्य बनता हैं. 

जो माँ बाप अपने बच्चों को अधिक प्यार और जरूरत से अधिक आजादी देते हैं बाद में उन्हें इस गलती के लिए पश्चाताप करना पड़ता हैं.

आधुनिक युग में माँ अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को निभा रही हैं एक गृहणी के रूप में तथा दूसरी व्यावसायिक. अब वह समय नहीं रहा जब नारी को केवल घर के काम तक सिमित रखा जाता था. 

आज की महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी और उद्यम संचालित कर रही हैं. देश में दोहरी जिम्मेदारियां निभाने वाली महिलाओं का एक बड़ा वर्ग है.

खासकर ग्रामीण आंचल में आज भी माएं अपनी घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद खेत आदि में जाकर पति के काम में हाथ बंटाती हैं. इस तरह इन जिम्मेदारियों के निर्वहन में उन्हें सवेरे सबसे पहले जगकर और रात में सबसे बाद में सोना पड़ता हैं.

वह माँ ही हैं जो दिन भर काम करने के बाद घर आकर आराम करने की बजाय एक गृहणी के रूप में अपनी भूमिका को अदा करती हैं. इस दोहरे जीवन में निसंदेह माँ को मुश्किलों से गुजरना पड़ता हैं. 

अत्यधिक व्यस्तता युक्त दिनचर्या में कई बार वह अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रख पाती हैं इसके बावजूद वह बड़ी से बड़ी विपदा को अपने साहस से हरा देती हैं. वास्तव में मातृशक्ति की तुलना किसी से नहीं की जा सकती हैं.

माँ न केवल शारीरिक रूप से उतनी सक्षम है कि परिवार का सम्पूर्ण बोझ अपने कंधों पर होने के बाद भी ममता की मूर्ति सा जीवन व्यतीत करती हैं, बल्कि उसकी आंतरिक शक्ति अनुपम हैं वह अपने भीतर के साहस को सदैव जगाए रखती हैं. 

भले ही पुरुष प्रधान भारतीय समाज में पुरुषों को नारियों की अपेक्षा अधिक अधिकार प्राप्त हो मगर माँ के बिना किसी कुटुंब की कल्पना नहीं की जा सकती है.

इन माँ का साहस और सहनशीलता की बराबरी किसी से नहीं की जा सकती हैं. दिनभर काम करने के बाद रात्री में परिवार के दायित्व को निभाने का सामर्थ्य माँ में ही हो सकता हैं. 

वहीँ बच्चों को सम्भालने की कला केवल माँ में ही होती हैं पुरुष चाहकर भी इस कार्य में कभी सफल नहीं हो पाते हैं. हिन्दू धर्म ग्रंथों में यह बात सच ही कही गई है कि माँ देवताओं की तरह पूज्य होती हैं. 

हमारे परिवार के संकटों की पालनहार माँ ही सच्चे सम्मान की हकदार हैं हमारे प्रत्येक के जीवन में उनका बड़ा महत्व हैं. हमें इस बात का अहसास हर वक्त होना चाहिए तथा माँ बाप को बोझ मानने की बजाय जीवन में उनकी सेवा करने का सौभाग्य मिले तो कभी कदम पीछे मत हटाना.

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