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मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में | Essay On My Favorite Poet In Hindi

आप सभी का स्वागत हैं, आज हम मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में essay on my favorite poet in hindi लेकर आए हैं. निबंध लेखन में कई बार प्रिय कवि तुलसीदास पर छात्रों को निबंध लिखने को कहा जाता हैं. आज के एस्से की मदद लेकर आप अच्छा सा तुलसीदास जी पर निबंध, भाषण, स्पीच, अनुच्छेद भी तैयार कर सकते हैं.

मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में |  Essay On My Favorite Poet In Hindi

मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में |  Essay On My Favorite Poet In Hindi
हालांकि मैंने अभी तक बहुत से कवियों की रचनाओं का अध्ययन नहीं किया हैं, मगर मध्यकालीन युग के कबीर, मीरा, रहीम, सूरदास और संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी को ही पढ़ा हैं. 

इन काव्यकारो की रचनाओं में मानुष को अलौकिकता का रसास्वादन मिलता हैं. इन सभी में से तुलसीदास जी मेरे प्रिय कवि हैं, उनकी भक्ति और अलौकिकता को मैं नित नमन करता हूँ.

भक्ति भाव के साथ समन्वयात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने काव्य सौष्ठव से हिन्दू समाज को संगठित कर विषम हालातों में विदेशी आक्रान्तों के आतंक के मध्य राम भक्ति के द्वारा संस्कृति को नवजीवन प्रदान कर एक सच्चे मार्गदर्शक संत की भूमिका का निर्वहन किया.

चारो तरफ आंतक और भय का माहौल था. जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन और संस्कृति का नाश चरम स्तर पर जारी था. मुगलों द्वारा जबरदस्ती से तलवार के बल पर हिन्दुओं के धर्म का नाश किया गया.

उसी दौर में अलग अलग छोटे छोटे सम्प्रदायों ने जन्म लेना शुरू कर दिया था. आम जनमानस को एकजुट करने की बजाय उन्हें मत मतान्तर में विभाजित कर दिया. उस समय राह भ्रमित हिन्दू समाज को एक नाविक की सख्त जरूरत थी, जो उनके जीवन को अन्धकार से आस की किरण दिखाए. 

मेरे प्रिय कवि तुलसीदास जी ने राम का कल्याणकारी रूप प्रस्तुत कर जन जीवन में एक शक्ति का संचार किया. उनके द्वारा रचित रामचरितमानस आज भी समाज को एकमत रखने और समन्वय स्थापित करने की प्रेरणा दे रहा हैं.

मेरे प्रिय कवि तुलसीदास । About “Tulsi Das” in Hindi Language

कविता और साहित्य कविता की भाषा में अनगिनत भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का एक अद्वितीय माध्यम है। हमारे देश में कई महान कवियों ने अपने शब्दों की माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को छूने का काम किया है। मेरे प्रिय कवि के बारे में लिखते समय, मेरे दिल की गहराइयों से आने वाले भावनाओं और संवाद का वर्णन करने का प्रयास करेंगे।

कविता और साहित्य हमारे समाज की आत्मा होते हैं। कवि वह व्यक्ति होते हैं जो अपने शब्दों के माध्यम से भावनाओं, विचारों, और दर्शन को अभिव्यक्त करते हैं। हर व्यक्ति का कोई ऐसा कवि होता है, जिसकी कविताएँ उनके दिल के करीब होती हैं, और जो उनकी आँखों के सामने एक छवि के रूप में खड़ी होती है। यह निबंध मेरे प्रिय कवि के बारे में है, जिनकी कविताएँ मेरे दिल के कब्जे में हैं और जो मेरे जीवन को सुंदरता और मानवता के साथ भर देते हैं।

तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अनगिनत विषयों पर रचनाएं लिखी जो उनकी कविताओं के शाब्दिक और गूढ़ अर्थों को समझने का प्रयास करता हूँ और उनसे गहरा संवाद करता हूँ। उनकी कविताएं मेरे जीवन के महत्वपूर्ण पलों को सुंदरता से और गहराई से बयां करती हैं।

रामभक्ति काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म लगभग 1600 ई के आसपास वर्तमान यूपी के रामपुर गाँव में हुआ था. इनके पिताजी का नाम आत्मा राम जी एवं माता जी का नाम हुलसी देवी था. ये जन्म से ब्राह्मण थे. छोटी सी आयु में ही मातापिता के देहांत हो जाने के कारण तुलसी का बाल्यकाल बेहद अभावो में बीता.

अपने आरम्भिक जीवन तुलसी का जीवन एक गृहस्थ की भांति ही था. जब पहली बार इनके मुहं से राम शब्द निकला तो इनका नाम भी राम बोला रखा गया. तुलसी की शिक्षा दीक्षा बाबा नरहरिदास से मिली.

15 वर्ष की आयु तक उन्होंने वेदान्त का अध्ययन कर लिया था. इसके पश्चात ही रत्नावती के साथ विवाह हुआ. उनके जीवन में घटित एक घटना ने उन्हें वैराग्य की ओर ले गयी. वे अपनी धर्मपत्नी से बेहद लगाव रखते थे. 

ऐसा कहा जाता हैं कि उनका घर नदी के दूसरी ओर था. तुलसी को उनसे मिलने की इतनी ललक थी कि वे किसी तरह नदी पार कर रोज उनसे मिलने जाया करते थे. मगर एक दिन तुलसी की पत्नी ने उन्हें डांट फटकार लगाई. और कहाँ जितना आप मुझसे प्रेम करते हैं उतना ही प्रभु राम से करें तो मोक्ष को प्राप्त होंगे.

उसी पल तुलसीदास जी ने गृहस्थ जीवन का त्याग कर भक्ति में लीन हो गये. सन्यास और भक्ति में ही इन्होने रामचरितमानस और विनयपत्रिका जैसे महान और अमर ग्रंथों की रचना की थी. वर्ष 1680 में इनका देहांत हो गया था. तुलसी की 56 प्रमाणित रचनाएं मानी जाती हैं. उनके उपलब्ध ग्रंथों में रामचरितमानस, कवितावली, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरवे रामायण, दोहावली आदि प्रमुख हैं.

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने लगभग सम्पूर्ण साहित्य की रचना अवधि तथा ब्रजभाषा में की थी. उनकी भाषा परिष्कृत, परमार्जित एवं साहित्यिक की मुख्य विशेषता हैं. इनकी रचनाओं में तत्सम और तद्भव भाषाओं का बहु तायत प्रयोग देखने को मिलता हैं. उन्हें संस्कृत भाषा का भी ज्ञान था, उन्होंने रामचरितमानस के प्रत्येक काण्ड की शुरुआत किसी संस्कृत श्लोक से किया हैं.

महाकाव्य रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास जी की ख्याति और लोकप्रियता का कारण उनका साहित्य हैं. रामचरितमानस की रचना ने उन्हें अमर कर दिया. हिंदी महाकाव्य में इन्हें प्रतिष्ठित स्थान दिलाया.

हिंदी के उत्थान और जन जन भी भाषा बनाने में भी गोस्वामी तुलसी जी का बड़ा योगदान रहा हैं. संत तुलसी ने इस महाकाव्य में राम को ऐसे लोकनायक के रूप में स्थापित किया.

जो भारत के मानुष के लिए अनुकरणीय उदाहरण बन गये. उनके लोक मंगलकारी रूप के साथ ही एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श वीर और आदर्श पति के रूप में सफलतापूर्वक चित्रण किया हैं.

तुलसी की प्रत्येक रचना शील और सौन्दर्य से भरपूर हैं. जिस तरह उन्होंने रामचरितमानस में राम शक्ति के कल्याणकारी स्वरूप को स्थापित किया हैं तो विनय पत्रिका में उन्होंने निष्काम भक्ति मानवीय मूल्यों की स्थापना की. उनकी इसी रचना से तुलसी की महानता के दर्शन होते हैं.

उनकी एक अन्य रचना कवितावली में रामकथा को जिस सरल और सहज रूप में प्रस्तुत किया हैं, वह प्रशंसा योग्य हैं. एक तरह उन्होंने कवितावली को मुक्तक में बाँधा है तो गीतावली को पदशैली में लिखा हैं.

अन्तः हम कह सकते हैं कि संत तुलसीदास जी तत्वक के धनी और प्रकांड विद्वान् थे. लेखनी पर उनकी मजबूत पकड़ थी भक्ति और शक्ति के उपासक तुलसी राम के सच्चे भक्त, उपदेशक, सुधारक और महान मनीषी थे.

तुलसी के राम

मध्यकालीन संत कवियों ने अपने अपने अपने तरीके से ईश्वर को पाने का उनकी भक्ति की राह दिखाई हैं. राम की अन्यय भक्ति में उन्होंने रामचरितमानस में प्रभु श्री राम को एक आदर्श पुरुषोत्तम के रूप में छवि प्रस्तुत की हैं. उन्हें ईश्वर के अवतार और धरती पर धर्म की स्थापना एवं अधर्म का नाश करने वाले देहधारी अवतारी पुरुष का स्वरूप दिया हैं. वे अपनी राम भक्ति के सम्बन्ध में कहते हैं.

जब जब होइ धरम कै हानी।
बाढहि असुर अधम अभिमानी॥
तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा।
हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥

तुलसी जी ने प्रभु राम को एक आदर्श चरित्र के रूप में दिखाया हैं, समूची मानव जाति के लिए अनुकरणीय और प्रेरक भी थे. वे धर्म के सच्चे स्वरूप के साथ ही साथ अपने उदार चरित्र और जन जन के कल्याण करने वाले भी हैं. 

उनकी भक्ति दास्यभाव की हैं, जिसमें वे स्वयं को प्रभु श्री राम का दास और उन्हें स्वामी का दर्जा देते हैं. उनका मानना था कि मनुष्य निष्काम भाव से भक्ति के मार्ग पर चलकर ही सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता हैं.

संत तुलसीदास और अकबर

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि तुलसीदास जी का जीवन सौ वर्ष से अधिक का था, और उनकी मुलाक़ात मुगल शासक अकबर से हुई थी. उनके समकालीन तीन कवियों नाभादास ने भक्तमाल नाम से कृष्णदत्त ने गौतम चन्द्रिका नाम से तथा वेणीमाधव ने मूल गोसाई चरित नाम से गोस्वामी तुलसीदास की तीन जीवनियाँ लिखी गई हैं.

इन तीनों कवियों ने तुलसीदास जी और अकबर को समकालीन बताया हैं. तुलसीदास जी जहाँगीर के समय भी थे, ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अकबर ने तुलसी को मनसबदार बनाने का प्रस्ताव भी दिया था मगर उन्होंने इसे ठुकरा दिया था. जबकि जहाँगीर ने धन दौलत देने की पेशकश की जिन्हें भी तुलसी ने ठुकरा दिया.


नाभादास और वेणी कवि ने एक घटना को लिखा हैं जिसके अनुसार अकबर ने तुलसीदास जी को अपने दरबार में बुलाया और कहा हमने आपके करामाती होने के बारे में सुना हैं आप मृत व्यक्तियों में भी जान फूक देते हैं.

आप इसी समय राम दर्शन कराएं. इस पर तुलसीदास जी ने कहा कि वे एक साधारण इन्सान हैं न कि कोई करामाती इस कारण वे यह सब नहीं कर सकते हैं, इस पर उन्हें जेल में बंद कर दिया जाता हैं.

कहते हैं तुलसी जी की समाज में बेहद लोकप्रियता थी, उन्हें जेल में बंद करने की खबर सुनकर लोग विद्रोह पर ऊतर आए और राजभवन का घेराव करने लगे. आखिर में अकबर को विवश होकर उन्हें रिहा करना पड़ा था.

इस घटना को किसी इतिहासकार ने दर्ज नहीं किया हैं. मगर कई साक्ष्य यह सिद्ध करते हैं कि दोनों की मुलाक़ात अवश्य हुई होगी. तुलसी के दो परम मित्र राजा टोडरमल और अब्दुल रहीम खानखाना अकबर के दरबार के नौ रत्न थे.

अकबर को सबसे सहिष्णु मुगल शासक माना जाता हैं. उसने राम और सीता के चांदी के सिक्के भी जारी किये थे, अकबर ने फ़ारसी में वाल्मीकि रामायण का चित्रात्मक फ़ारसी अनुवाद भी करवाया.

जाहिर हैं उसने रामायण को इतना महत्व दिया वह तुलसीदास जी से अवश्य ही परिचित रहा होगा. दूसरी ओर तुलसी ने भी अकबर की प्रशंसा में कुछ दोहे लिखे, हालांकि उन्होंने अकबर का नाम न लिखकर दिल्ली का बादशाह लिखा था.
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