Essay On Sufism In Hindi सूफीवाद पर निबंध : प्रिय दोस्तों आपका स्वागत करता हूँ, आज हम Sufi, Sufism and Islam के विषय में पढ़ रहे हैं. सूफीवाद एक साधु प्रवृत्ति के मुस्लिम फकीरों का आंदोलन था. भक्ति आंदोलन के समय भारत में इस आंदोलन ने भी गति पकड़ी. आज हम जानेगे कि सूफीवाद क्या है इसका अर्थ कार्य, प्रभाव, विचारधारा और परिभाषा व सिद्धांत को शोर्ट एस्से में जानेगे.
Short Essay On Sufism In Hindi Language
सूफीवाद का अर्थ आशय- इस्लामी रहस्यवाद को ही सूफीवाद कहा जाता हैं, इसमें आचरण की शुद्धता और पवित्रता आवश्यक हैं. सूफी साधक के लिए बाहरी और आंतरिक शुद्धि और पवित्रता बनाए रखना आवश्यक हैं.
इसके लिए यह आवश्यक हैं कि वह अपनी समस्त इच्छाओं, वासनाओं को मिटाकर परमात्मा की इच्छा पर अपने आप को छोड़ दे.
प्रो निजामी के अनुसार सूफीवाद उच्च स्तर के स्वतंत्र विचार का स्वरूप हैं, मारुफ़ अलकरवी का कथन हैं कि परमात्मा सम्बन्धी सत्य को जानना और मानवीय वस्तुओं का त्याग ही सूफी धर्म हैं. अबुल हुसैन अल्नूरी का कथन हैं कि संसार से घ्रणा तथा परमात्मा के प्रति प्रेम ही सूफीवाद हैं.
सूफी मत के सिद्धांत- सूफी मत के प्रमुख सिद्धांत अग्रलिखित थे.
ईश्वर- सूफी मत के अनुसार ईश्वर एक हैं. सूफी साधकों के अनुसार वह अद्वितीय पदार्थ हैं जो निरपेक्ष हैं अगोचर हैं अपरिमित हैं और नानात्व से परे हैं वही परम सत्य हैं. परम सत्य के अतिरिक्त वह परम कल्याण हैं. परम कल्याण के रूप में वह परम सुंदर हैं. इस प्रकार सूफी संतों सिद्धांत सत्यम शिवम सुन्दरम पर आधारित था.
आत्मा- सूफी संत आत्मा को ईश्वर का अंग मानते हैं. इस शरीर के पूर्व जो आत्मा की सत्ता थी वह शरीर में कैद हैं. इसलिए सूफी साधक मृत्यु का स्वागत करते हैं. सूफी साधकों की दृष्टि में आत्मा में दो गुण प्रधान होते हैं नफस तथा रूह. नफस सभी अवगुणों, गर्व, अज्ञानता, क्रोध, काम, भय का स्रोत हैं. रूह ईश्वर के निवास का स्थान हैं इन दोनों में सदैव संघर्ष होता हैं.
जगत- सूफियों के अनुसार परमात्मा को जब सृष्टि की रचना की इच्छा हुई तो उसने एक ज्योति का निर्माण किया. वह ज्योति नूरे मुहम्मद तथा नूरे अहमद कहलाती हैं. इस ज्योति के लिए परमात्मा ने सृष्टि की रचना की.
मनुष्य- जीव जगत में मानव उत्तम हैं. मनुष्यों में सर्वोत्तम मानव पूर्ण मानव हैं. सूफी साधकों के अनुसार मनुष्य परमात्मा के सभी गुणों को अभिव्यक्त करता हैं. सृष्टि में मनुष्य परमात्मा की श्रेष्ठ रचना हैं. मनुष्य का चरमोत्कर्ष पूर्ण मानव हैं पूर्ण मानव वह है जो परमात्मा के साथ एकत्व की पूर्ण अनुभूति प्राप्त कर चूका हैं.
गुरु मुर्शीद का महत्व- सूफी मत में गुरु अथवा पीर का अत्यधिक महत्व हैं. गुरु ही साधक को ईश्वर तक पहुचाने वाला हैं. बिना आध्यात्मिक गुरु के सूफी साधक कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता हैं. साधक अपने गुरु को ईश्वर की भांति संदैव स्मरण करता हैं.
प्रेम- सूफियो की साधना में प्रेम का बड़ा महत्व हैं. सूफियों के अनुसार प्रेम के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता हैं. अबूतालिब का कथन है कि प्रेम से परमात्मा सम्बन्धी रहस्यों का भेदन होता हैं. तथा उसको ज्ञान प्राप्त होता हैं. प्रेम एक उत्प्रेरक शक्ति हैं. जो साधकों को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करती हैं.
साधना सोपान- सूफी मत के अनुसार साधना के सात सोपान माने गये हैं ये सोपान निम्नलिखित हैं.
- अनुताप
- आत्म संयम
- वैराग्य
- धैर्य
- दरिद्रय
- ईश्वर में विश्वास
- संतोष
सूफीवाद का भारतीय समाज/ संस्कृति पर प्रभाव
हिन्दू मुस्लिम सम्प्रदायों में समन्वय- सूफी संतों ने हिन्दू मुस्लिम सम्प्रदायों में समन्वय की भावना उत्पन्न की. सूफी संतों ने सामाजिक सेवा को व्यावहारिक रूप दिया और उसे परमात्मा की सेवा का एकमात्र साधन बताया.
उन्होंने वेदांत योग, निर्वाण आदि हिन्दू सिद्धांतों को अपनाया और यह सिद्ध कर दिया कि सूफी मत इस्लाम पर आधारित नहीं वर्ण उसमें हिन्दू व बौद्ध धर्म के सिद्धांत भी शामिल हैं.
समाज सेवा एवं नैतिकता पर बल-सूफी संतों ने समाज सेवा तथा नैतिकता पर बल दिया. बरनी का कथन हैं कि निजामुद्दीन औलिया के प्रभाव के फलस्वरूप ही जनता के सामाजिक तथा नैतिक जीवन में बड़ा परिवर्तन हुआ.
शासकों को जनकल्याण के लिए प्रेरित करना- सूफी संत राजनीति से अलग रहे, उन्होंने लोगों से स्पष्ट कहा कि इस अन्धकारपूर्ण युग में प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य हैं कि वह अपनी लेखनी, वाणी अपने चिंतन व धन से उन गरीब लोगों की सेवा करे जो प्रशासकीय लोगों के अत्याचारों से पीड़ित हैं. इस प्रकार उन्होंने शासकों के ह्रदय में जनकल्याण की भावना उत्पन्न की.
एकेश्वरवाद पर बल- सूफी संतों ने एकेश्वरवाद पर बल दिया. उन्होंने एकेश्वरवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन करके हिन्दू मुस्लिम सम्प्रदायों में एकता की भावना उत्पन्न की. इससे दोनों सम्प्रदायों के धर्म के नाम पर उत्पन्न कटुता में कमी आई.
जनसाधारण की भाषा के विकास में योगदान- सूफी संतों ने खड़ी बोली जो कि जनसाधारण की भाषा थी, के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इसके अतिरिक्त उन्होंने पंजाबी, गुजराती आदि क्षेत्रीय भाषाओं के विकास में भी योगदान दिया.
Essay 2
सूफी आंदोलन या सूफीवाद इस्लाम धर्म की आंतरिक विविधताओं तथा कुड़ियों को समाप्त करने की भावना से सुधारवादी आंदोलन के रूप में उभरा। मध्य भारत में मुसलमान की आक्रमण के साथ ही सूफी मत का भारत में आगमन हुआ यह मत भारत में इस्लाम की निर्गुण एकेश्वरवाद तथा हिंदू दर्शन की धार्मिक भक्ति का एक प्रतिफल के रूप में रहा।
इस्लाम धर्म की विचारधारा में उन संतों को सूफी कहा जाता है जो रहस्यवादी होते हैं यानी वे संत जो सभी धर्म से प्रेम करते हैं सूफी कहलाते हैं सूफी शब्द अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ शुद्धता है जो धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्रता का एक प्रतीक है।
सूफी सिलसिले की आधारशिला कुरान को माना जाता है जो की एक धार्मिक ग्रंथ है सूफी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बसरा के जाहिज ने किया। इस्लामी या सूफी परंपरा में गुरु को पीर शिष्य को मुरीद तथा उत्तराधिकारी को वाली कहा जाता है तथा सूफी संतों के निवास स्थान को खानकाह कहा जाता है।
सूफी आंदोलन के सिद्धांतों पर ध्यान दिया जाए तो इसमें एकेश्वरवाद तथा इस सृष्टि की निर्माता ईश्वर को माना गया है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्ति को स्थान दिया गया है तथा भक्ति के लिए रहस्यवादी साधना को महत्व दिया गया है। गायन तथा संगीतों को ईश्वर भक्ति से जोड़ा गया है तथा पीर को विशेष महत्व दिया गया है तथा धार्मिक आधार पर मतभेद को अस्वीकार्य माना गया है।
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