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भक्ति आंदोलन पर निबंध Essay On Bhakti Movement In Hindi

भक्ति आंदोलन पर निबंध essay on bhakti movement in hindi: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है आज के निबंध में हम भक्ति आंदोलन के बारे में पढेगे. इस निबंध को पढ़ने के बाद आप जान पाएगे कि भक्ति आंदोलन क्या था शुरुआत महत्व कारण परिणाम मुख्य संत और प्रष्ठभूमि क्या थी, चलिए भक्ति आंदोलन इन हिंदी निबंध भाषण स्पीच अनुच्छेद पैराग्राफ को पढ़ते हैं.

भक्ति आंदोलन पर निबंध Essay On Bhakti Movement In Hindi

भक्ति आंदोलन पर निबंध Essay On Bhakti Movement In Hindi

मध्यकालीन भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी देन भक्ति आंदोलन रही भक्ति आंदोलन का प्रारंभ होने में किस की अहम भूमिका रही इस पर विद्वानों में मतभेद है परंतु अधिकांश विद्वानों ने इस बात को स्वीकार किया है कि भक्ति आंदोलन मुस्लिम अत्याचारों की प्रतिक्रिया थी. 

भक्ति आंदोलन ने मध्यकालीन भारतीय जनमानस में नवीन ऊर्जा का संचार किया भक्ति आंदोलन रूपी विशालकाय वृक्ष की छाया में नवीन विचारों मान्यताओं संस्कारों का उद्भव हुआ.

हर्ष की मृत्यु के कुछ ही वर्षों बाद मुस्लिम आक्रमणों का आगाज होता है जिससे भारतीय संस्कृति का प्रज्वलित दीपक मंद होने लगता है तत्कालीन सभी हिंदू संप्रदाय इन आक्रमणों से जनमानस में बढ़ती हुई निराशा को रोकने में असफल रहे ऐसे समय में हिंदू समाज को एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता महसूस हुई.

जो समाज के निम्न वर्ग को भी अपने साथ ला सके बाह्य आडंबर व कर्मकांड का विरोध कर सकें इस्लामी आक्रमणों से प्रताड़ित लोगों के जीवन में आशा का दीपक जला सके भक्ति आंदोलन ने उपर्युक्त मांगों को पूर्ण किया.

कुछ विद्वानों ने भक्ति आंदोलन को इस्लाम की देन बताया लेकिन हम प्राचीन भारत के इतिहास पर नजर डालें तो सिंधु घाटी सभ्यता में भक्ति के बीज दिखाई पड़ते हैं सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त अवशेषों में भक्ति तथा प्रकृति पूजा के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं.

वही वैदिक समाज 33 प्रकार के देवी देवताओं की पूजा करते थे गीता में भी भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का सर्वप्रमुख साधन बताया गया है इसी का अगला रूप राम और कृष्ण को आराध्य मानकर भक्ति की एक नवीन धारा का विकास हुआ जो वैष्णव धर्म कहलाया, इसी समय भागवत धर्म का प्रचलन भी हो चुका था जो सगुण उपासक थे.

गुप्त काल की समाप्ति के समय उत्तर भारत में भक्ति की लहर में कमी देखी गई परंतु यह दक्षिण भारत की ओर  अधिक सरल तथा समाज के विस्तृत क्षेत्र अपनी पहुंच बना चुकी थी इस प्रकार भक्ति आंदोलन का प्रारंभ दक्षिण भारत से हुआ.

दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन की धारा को प्रवाहित करने का कार्य आलवार और  नयनार संतो ने किया आलवार विष्णु के उपासक थे इनकी संख्या 12 थी प्रमुख महिला संत में अंडाल प्रसिद्ध उपासिका  हुई जिसे दक्षिण की मीरा भी कहा जाता है तथा विष्णु को आराध्य मानने के कारण ये वैष्णव कहलाए, शिव के उपासक नयनार कहलाए इनकी संख्या 63 थी.

भक्ति आंदोलन और इस्लाम

कुछ विद्वानों के मतानुसार भक्ति आंदोलन इस्लाम से प्रभावित था इन्होंने अपने मत के पक्ष में तर्क दिया कि भक्ति आंदोलन की जड़ें जमाने वाले रामानंद इस्लाम से प्रभावित थे दूसरा तक इन्होंने दिया कि इस्लाम की एकेश्वरवाद भाईचारे तथा समानता की भावना ने भक्ति आंदोलन के संतों को प्रभावित किया.

इन्होंने अपने पक्ष में तीसरा तर्क दिया कि भक्ति आंदोलन तत्कालीन परिस्थितियों की देन है क्योंकि इस्लामी साम्राज्य की स्थापना ने भारतीय संस्कृति को अनेक चुनौतियां प्रस्तुत की मुस्लिम अत्याचारों की बदौलत भारतीय जनमानस में निराशा हताशा घर कर गई.

भारतीय लोगों का धर्म से विश्वास उठ गया संतों पर भरोसा नहीं रहा इसी दौर में उनके पास पलायन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था ऐसे समय में भक्ति ने एक नवीन चेतना आशा का संचार किया.

उपरोक्त तर्कों को पूर्ण रूप से सही नहीं माना जा सकता और कहा जा सकता है कि प्राचीन समय से चली आ रही भक्ति परंपरा का यह आधुनिक रूप भक्ति आंदोलन के रूप में सामने आया हां तत्कालीन परिस्थितियों ने भक्ति आंदोलन को व्यापक स्तर पर फैलने तथा आगे बढ़ाने में अपना योगदान जरूर दिया.

भक्ति आंदोलन के कारण

भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के साथ ही धर्म आधारित शासन ने भारत के निवासी हिंदुओं को अपने ही देश में विदेशी बनने को मजबूर कर दिया जजिया जैसे धार्मिक कर देने के बाद भी हिंदू अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे.

मुस्लिम शासकों ने इन्हें अपनी प्रजा मानने से भी इंकार कर दिया इनके लिए न्याय के दरवाजे बंद थे प्रशासन में कोई जगह नहीं थी इनकी आस्था और विश्वास को पैरों तले रौंदा जा रहा था.

ऐसे समय में अपने दर्द और बेचैनी को छिपाने के लिए इन्होंने भक्ति का सहारा लिया इस प्रकार धीरे-धीरे संपूर्ण भारत में भक्ति की लहर चल पड़ी. मुस्लिम सत्ता की स्थापना के बाद एक नवीन समन्वित हिंदू मुस्लिम संस्कृति का उदय हुआ.

सांस्कृतिक आदान-प्रदान से नए वातावरण का आगाज हुआ जिसने समानता तथा बंधुत्व पर बल दिया सूफी संतों ने उदारता तथा सहिष्णुता के साथ एकेश्वरवाद को बढ़ावा दिया उससे हिंदू विचारक प्रभावित हुए और अपने समाज में व्याप्त बाह्य आडंबरओ तथा कुरीतियों पर प्रहार किया,

हिंदू समाज अनेक वर्गों में विभाजित होने के कारण निम्न वर्ग में असंतोष व्याप्त था और वह इस्लाम की ओर आकर्षित होने लगे ऐसे समय में उनको इस्लाम में जाने से रोकने के लिए समाज में व्यापक स्तर पर परिवर्तनों की आवश्यकता महसूस की गई जो भक्ति आंदोलन के रूप में सामने आई.

भक्ति आंदोलन में भक्ति का स्वरूप

भक्ति आंदोलन में भक्ति सरल तथा पवित्र थी क्योंकि ना कोई धर्म ग्रंथ ना ही पुरोहित और कर्मकांड भक्ति आंदोलन में बहुत देर बाद का खंडन और एकेश्वरवाद का मंडन किया गया.

रामकृष्ण रहीम अल्लाह शिव सभी को ईश्वर मानकर उपासना की गई जात-पात ऊंच-नीच भेदभाव का विरोध हुआ समाज के प्रत्येक व्यक्ति को आंदोलन से जोड़ने के प्रयास हुए तथा भक्ति को मोक्ष की प्राप्ति का एकमात्र साधन बताया.

भक्ति आंदोलन में ईश्वर को कण-कण में व्याप्त बताया गया तथा प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर की उपासना त्याग श्रद्धा से करने की बात कही गई साथ ही ईश्वर की प्राप्ति में मार्गदर्शन के लिए गुरु की महत्व को स्वीकार किया

भक्ति मार्गी संतों ने अपने उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आम बोलचाल की स्थानीय भाषाओं का प्रयोग किया तथा उपदेशों को गीत दोहे भजन इत्यादि को माध्यम बनाकर जन जन को जागृत किया.

Essay 2 

भक्ति आंदोलन भारत के मध्यकालीन समय में धार्मिक विचारों द्वारा धर्म सुधार की भावना से धर्म को कर्मकांड की जटिलताओं से अब मुक्त करवाने के लिए शुरू की गई एक पहल थी। भक्ति आंदोलन में मुख्य रूप से दो पक्षों को देखा जाता है जिसमें समर्पण मार्गी और प्रेम मार्गी थे। 

मध्यकालीन भारत में आलवार और नयनार भक्तों के द्वारा भक्ति आंदोलन को शुरू किया गया। भगवान शिव के भक्त नयनार तथा भगवान विष्णु के भक्त आलवार कहे जाने लगे। 

इस्लाम धर्म की बढ़ती लोकप्रियता और हिंदू धर्म संकट में सुधार के लिए इन आंदोलन का उदय हुआ हिंदू समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की कुरीतियों जिम जाति प्रथा छुआछूत बाल विवाह सती प्रथा दहेज प्रथा जैसी अनेक कुरीतियों जो समाज के सर्वांगीण विकास में बाधक बन रही थी उनके विरुद्ध आंदोलन खड़ा हुआ। 

यदि भक्ति आंदोलन की विशेषताओं के बारे में देखा जाए तो इसमें ईश्वर की एकता पर बोल दिया गया तथा धर्म में व्याप्त आडंबर हूं अंधविश्वासों और कर्मकांड जैसी धारणाओं पर चलने की बजाय धार्मिक सरलता तथा सादगी पर जोर दिया गया।

भक्ति आंदोलन के दौरान समाज की धार्मिक संतों ने धर्म सुधार को ही समाज सुधार का नाम दिया तथा इस आंदोलन के माध्यम से हिंदू मुस्लिम समन्वय पर बल दिया। 

भक्ति आंदोलन के दौरान धर्म के सुधारक संत निर्गुण भक्ति तथा सगुण भक्ति धारा में विभाजित हुए जिनमें निर्गुण भक्ति धारा वाले संत जो ईश्वर की निराकार आस्था में विश्वास रखने वाले संत थे जिनमें नानक देव कबीर दास रविदास जगजीवन दास तथा दादू दयाल प्रमुख थे।

इसके अलावा भक्ति की सगुण भक्ति धारा में आने वाले संत ईश्वर की सरकार आज तक में विश्वास रखते थे जिम वल्लभाचार्य तुलसीदास सूरदास रामानुज रामानंद मीराबाई चैतन्य शंकरदेव आदि प्रमुख थे।

भक्ति आंदोलन एक पल के माध्यम से धर्म में कई प्रकार के परिवर्तन तथा प्रभाव उजागर हुए जिम बहुसंख्यक लोगों के द्वारा भक्ति मार्ग का अनुसरण शुरू किया गया एकेश्वरवाद की भावना को बढ़ावा मिला तथा सामाजिक एकता और सद्भाव की भावना का विकास हुआ हिंदू धर्म के उत्थान तथा सिख धर्म का जन्म माना जाता है। पिछड़े वर्ग के लोगों तथा नई स्थिति में सुधार की भावना का विकास हुआ।


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