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धरती की आत्मकथा निबंध Autobiography of Earth Essay in Hindi

धरती की आत्मकथा निबंध autobiography of earth essay in Hindi: नमस्कार आज का निबंध हमारी धरती माँ हम और हमारी धरती या पृथ्वी क्रोध में बोल रही हैं पर दिया गया हैं. आत्मकथा निबंध कल्पना के आधार पर चला गया हैं. चलिए सरल भाषा में इस निबंध को जानते हैं.

धरती की आत्मकथा निबंध Autobiography of Earth Essay in Hindi

धरती की आत्मकथा निबंध Autobiography of Earth Essay in Hindi
हाँ मैं पृथ्वी बोल रही हूँ प्रकृति के समस्त ग्रहों में मेरा आकार काफी विशाल हैं. मेरे भूभाग पर मानव व जीव जन्तु बसते है जो मुझे धरती माता कहकर पुकारते हैं.

मैं भी सभी सजीवों को अपने पुत्र के समतुल्य मानकर उनका भरण पोषण करती हूँ. मैं अपने इन बेटों को प्रसन्न चित देखकर खुश होती हूँ तथा हर संभव इनकी मदद करना चाहती हूँ.

मेरे समतल एवं उपजाऊ भूभाग का उपयोग ये लोग कृषि व पौधों को उगाने के लिए करते हैं. अन्न, सब्जियां एवं फल फूलों से ये अपने उदर की भूख को शांत करते हैं. करोड़ो प्रजातियों के जीव जन्तु एवं वृक्ष मेरी सतह पर मिलजुलकर रहते हैं. 

प्रत्येक प्राणी मुझे सम्मान की नजर से जननी के रूप में देखता हैं. वे किसी तरह के कष्ट मुझे नहीं पहुचाते है कुछ लोग अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर मुझे भूल जाते है.

तथा अपने अधिक फायदे तथा दूसरों के नुकसान के लिए केमिकल आदि उर्वरकों का प्रयोग करते हैं. जो मुझे बेहद वेदना देते हैं. इस तरह मतलबी लोगों के कर्मों को भी माँ होने के नाते मैं सहन कर लेती हूँ.

मैं धरती इस प्रकार के निर्दयी जीवों को कतई पसंद नहीं करती हूँ जो परपीड़ा में आनन्द पाते हैं. दुख तो सभी के लिए कष्टदायक होते है वे सभी को साझी पीड़ा देते हैं.

मेरे किसी पुत्र को पीड़ा होती है तो उसका दर्द मुझे भी होता हैं. मगर स्वार्थी किस्म के लोग न मेरी परवाह करते है न अन्य धरती वासियों की. धरती पर बसने वाले समस्त प्राणियों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि आपकी करतूतों की वजह से मैं कितना दुःख झेलती हूँ.

जिस तरह तेज़ाब चेहरे की त्वचा को जला देता है उसी भांति जब आप अमृत तुल्य जल में जहर मिलाते है अथबा रासायनिक उर्वरकों को छिडकते है तो मुझे भी असहनीय कष्ट होता हैं. आप मेरे पुत्र हो तथा अपनी माँ धरती के कष्टों का एहसास होना चाहिए.

एक माँ की भांति मैंने बिना किसी स्वार्थ के मानव को जीवन के लिए सब कुछ दिया अन्न, जल, शुद्ध वायु वृक्ष, हरियाली, पर्वत, समुद्र, फल, सब्जिया आदि. मैंने इनके बदले आपसे कुछ नहीं माँगा है.

मेरे इस परोपकार के बदले आप प्लास्टिक, रासायनिक जहर और प्रदूषण की सौगात ही अपनी माँ को दे रहे हो. आज आप जिस जहर को बोकर खेती करोगे यही जहर कल तुम्हारे पेट में खाने के साथ जाएगा.

माँ होने के नाते मेरी यही सलाह है कि तुम मृत्यु के इस खेल में भागीदार मत बनो. जैविक खाओं और स्वस्थ बनो..क्या आप जानते हो कि सौरमंडल में केवल धरती ही ऐसा ग्रह है जहाँ जल उपलब्ध है जिससे आपकी प्यास शांत होती है, जिसके कारण आप अन्न सब्जियां उगाते हैं.

पेड़ पौधे एवं सभी जीव जन्तुओं का जीवन भी जल पर ही निर्भर करता हैं. मेरी सतह पर होनी वाली वर्षा तथा नदियों के जल को तालाबों, नहरों और टांकों के माध्यम से आप जल संचित करते हैं.

कई बार मेरी हलचल से धरती पर बसने वाले सभी जीवों के लिए मुश्किल का संकट आ जाता हैं. मेरा थोडा बहुत हिलना भी आपके लिए भूकम्प और सुनामी के हालात पैदा कर देता हैं.

इससे जनमाल की हानि के साथ ही अपार सम्पति भी नष्ट हो जाती हैं. इसलिए मैं हर वक्त स्थिर रहने का प्रयास करती हूँ, मगर मुझ पर अत्या चार कर रहे लोगों के कारण मुझे भी कई बार क्रोध आ जाता है, जिसके लिए बाद में पछताना भी पड़ता हैं.

आज मैं अपने सभी पुत्रों व पुत्रियों से निवेदन करती हूँ कि आप मुझे कष्ट न पहुंचाए. मैं आपकी माँ हूँ और निरंतर आपके भले की कामना करती हूँ.

मेरे दो बेटे किसान और सेना का जवान हमेशा मेरी इज्जत को अपनी इज्जत मानकर अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर देते हैं. यदि आप मुझे अपनी माँ मानकर मेरी सेवा करेगे तो मैं भी आपकी रक्षा हर पल करती रहूँगी.

वैसे मेरी सतह पर कई देश आबाद है मगर मुझे सबसे अधिक लाड दुलार भारत के लोग करते हैं. वे अपनी माँ की प्रशसा विविध रूपों में करते हैं. पहाड़, नदी, पेड़, सागर, हवा सभी के पूजन कर मुझे प्रसन्न रखते है मैं सदा एक माँ की भांति आत्मीयता से उन पर मेहरबान हूँ.

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