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गणगौर पर निबंध Essay On Gangaur Festival In Hindi

गणगौर पर निबंध Essay On Gangaur Festival In Hindi- नमस्कार दोस्तों आप सभी का आज के हमारे इस आर्टिकल में स्वागत है, आज के आर्टिकल में हम गणगौर त्यौहार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे. उससे पहले आप सभी दर्शको को गणगौर त्यौहार की हार्दिक बधाईयाँ. और ढेर सारी शुभकामनाएं.

गणगौर पर निबंध Essay On Gangaur In Hindi

गणगौर पर निबंध Essay On Gangaur Festival In Hindi

हमारे राजस्थान को त्यौहारो का राज्य माना जाता है। यहा की संस्कृति और त्योहार हमारे इस राज्य को एक शानदार रूप दिलाती है। हमारे इस राज्य मे हर समय अलग-अलग त्योहार मनाये जाते है।

हमारे राज्य की लोक संस्कृति ही हमारे राज्य को सदैव सबसे अग्रणी रखने मे सहायता करती है। हमारे राज्य के प्रमुख उत्सवो मे एक नाम गणगौर का भी आता है। 

ये राजस्थान का सबसे लोगप्रिय तथा लंबा चलने वाला त्योहार है। इसे राजस्थानी लोग बड़ी धूम-धाम के साथ मनाते है।

गणगौर उत्सव बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है। ये उत्सव माता पार्वती ने शुरू किया था। ये त्योहार कुवांरी लड़कियो के लिए होता है। इस उत्सव माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए किया था। जिसके बाद आज इस त्योहार को हर कुंवारी लड़किया मनाती है।

इस त्योहार का इतिहास पार्वती से जुड़ा है। माता पार्वती जो कि अपने पिछले जन्म मे गंवरी के रूप मे भगवान शिव की पत्नी थी। 

गंवरी का अपने पिता के घर मे कोई स्थान न होने के कारण उन्हे सभा मे नहीं बुलाने के कारण गंवरी ने अपने पिता के घर मे जाकर आत्महत्या कर ली पर उसने मरने से पहले भगवान से वरदान मांगा था। कि वह अगले जन्म मे भी भगवान शिव की पत्नी बने। तथा उनकी सेवा करें। 

इसके बाद गंवरी ने माता पार्वती के रूप मे जन्म लिया था। इसलिए पार्वती को गौरी भी कहते है। पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए गणगौर नामक इस उत्सव की शुरुआत की थी।

इस उत्सव मे गौरी की प्रतिमाए बनाकर सुरक्षित रखी जाती है। तथा गणगौर के मेले के अंतिम दिन इस प्रतिमा का परित्याग ही इस उत्सव का प्रमुख उद्देश्य होता है।

गौरी की प्रतिमा लकड़ी की बनाई जाती है। जिसे कपड़े पहनाये जाते है। तथा इसे आभूषणो से सजाया जाता है। गौरी का यात्रा सात दिन तक लगातार चलती है। इसमे सभी एलजी भाग लेते है।

तथा एक दूसरे को रंग-लगाकर अपनी खुशी व्यक्त करते है। गणगौर का मेला सात दिन तक चलता है। इसमे सात दिन लोग अलग-अलग कपड़े पहनते है। जो इस मेले मे भाग लेते है। उनके लिए पौशाक मुक्त मे दी जाती है।

गणगौर उत्सव का प्रमुख मेला राजस्थान के जयपुर मे भरता है। ये मेला प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तीज और चौथ को गणगौर बाजार मे भरा जाता है। ये अँग्रेजी महीनो मे मार्च-अप्रैल मे लगता है।

ये उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जयपुर मे भरा जाने वाला मेला इतना आकर्षण होता है। कि इसे देखने लोग विदेशो से भी यहा आते है। 

इस मेले मे सभी लोग अपनी राजस्थानी पौशाक पहनकर हमारी संस्कृति का सम्मान करते है। तथा महिलाए राजस्थानी पौशाक के साथ राजस्थानी लोकगीत गाती है।

शाम के समय को राजस्थान के राज्य पशु ऊंट तथा रथ पर संवार होकर लोग त्रिपोलिया दरवाजे की और नाचते-गाते और खाते-पीते जुलूस मनाते हुए पर चलते है। 

इसमे पुलिस तथा बैंडबाजे वाले भी प्रमुख रूप से शामिल होते है। तथा गणगौर पर्व को बड़ी धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते है।

ये मेला जयपुर के साथ-साथ अन्य जिलो मे भरा जाता है। इस मेले मे कुंवारी कन्याएँ सिर पर कलस रखकर राजस्थानी नृत्य करती है। इस मेले मे लोगो की संख्या इतनी हो जाती है। कि पूरे बाजार मे जाम लग जाता है। 

तथा पूरा शहर गूंज उठता है। महिलाए अपने घर मे बैठकर गवर कि पुजा करती है। तथा गवर का चित्र बनाया जाता है। या गंवर के स्थान पर उनकी कोई प्रतिमा लगाई जाती है। 

और महिलाए उनकी पुजा करती है। तथा अपनी इच्छाओ की पूर्ति की प्रार्थना करती है। तथा जो सबसे बुजुर्ग महिला होती है। वह पाँच गंवरी की कहानिया सुनती है।

तथा अन्य महिलाए उनकी बाटो को ध्यान पूर्वक सुनती है। तथा हरे राम,हरे राम उच्चारण करती हुई,बाजरे के दानो को गंवरी के आगे चढ़ाती है। तथा भगवान शिव-पार्वती की प्रेम कहानिया सुनती है।

हमारे राजस्थान मे होने वाले मेले,उत्सव तथा परम्पराओ को जीवित रखने के लिए तथा हमे लोकपरम्पराओ की जानकारिया देने के लिए अनेक त्योहार उत्सव तथा मेले भरे जाते है।

हमारी परंपरा तथा संस्कृति को जीवित रखने के उद्देश्य से अनेक उत्सवो का आयोजन होता है। प्रत्येक उत्सव मे अनेक बुराइया होती हमे उन बुराइयों को कम करने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए। तथा अपनी संस्कृति को बचाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।

गणगौर का इतिहास

देश के दो मुख्य उत्तरी राज्य राजस्थान व मध्यप्रदेश में गणगौर को एक बड़े उत्सव की तरह मनाया जाता हैं. चैत्र माह की शुक्ल तीज के दिन गणगौर मनाया जाता हैं.

मान्यता हैं कि इस दिन इसर / शिवजी तथा गौरा अर्थात पार्वती देवी की पूजा की जाती हैं. सुहागन बहिनें अपने अखंड सौभाग्य के वरदान के लिए तथा अविवाहित बहिने योग्य वर के लिए गणगौर का व्रत रखती हैं. इस दिन पूजा में हाथ में दूब की घास के साथ गोर गोर गोमती के गीत गायें जाते हैं. 

गणगौर पर्व का महत्व 

गणगौर राजस्थान का मुख्य त्यौहार है. ये त्यौहार महिलाओ द्वारा प्रेम आस्था से मनाया जाता है.विवाहित महिलायें इस पर्व का पूजन कर अपने पति की आयु को बढ़ाने की प्रार्थना करती है.तथा अविवाहित कन्याएं अपने योग्य वर की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं.

यह पर्व १८ दिनों तक चलता हैं होली के अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण एकम तिथि से आरम्भ होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलता हैं. इसे मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं.

ऐसी मान्यता हैं कि होलिका दहन के बाद पार्वती अपने पीहर चली जाती हैं तथा १८ दिन रहने के बाद तृतीया के दिन भगवान् शंकर उन्हें लेने के लिए आते हैं. 

गणगौर की व्रत कथा 

प्राचीन समय की बात हैं एक बार नारद के साथ शिव पार्वती पृथ्वी लोक में घूमने के लिए निकले. चैत्र शुक्ल तीज के दिन घुमते घूमते वे एक गाँव पहुचे.

शिव पार्वती के आने की खबर सुनकर उस गाँव वालों में अति प्रसन्नता का भाव था. गाँव के ऊँचे घराने की औरते उनके भोजन की तैयारी में लग गयी. निम्न परिवार की स्त्रियों चावल और अक्षत लेकर शिव पार्वती की पूजा की. पार्वती उनकी श्रद्धा से प्रसन्न हुई तथा उन्होंने सम्पूर्ण सुहाग रस उन्हें दे दिया.

अब गाँव के उच्च परिवार की महिलाएं स्वर्ण जड़ित थाल में शिव पार्वती के खाने के लिए पकवान तैयार कर लाई. इन्हें देख शिवजी को शंका हुई तो उन्होंने गौरी से कहा आपने सारा सुहाग उन्हें दे दिया अब आप इन्हें क्या दोगी.

पार्वती भोलेनाथ से कहने लगी आप व्यर्थ की चिंता ना करे उन्हें उपरी रस दिया हैं तथा इन्हें अपनी अंगुली के रक्त का सुहाग दूंगी जो मेरे भाग्य की तरह इन्हें भी सौभाग्यवती बनाएगा.

जब स्त्रियों ने पूजन किया तो पार्वती जी ने उस पर रक्त का छीटा छिडककर सौभाग्य का आशीर्वाद दिया. इसके बाद वे नदी पर गयी तथा स्नानादि करने के बाद बालू की शिव पार्वती की मूर्ति बनाकर उनको भोजन कराने लगे.

गणगौर की विशेस शायरी (gangaur hindi shayari | gangaur shayari in hindi)

गणगौर का है बहुत ही मधुर प्यार का
दिल की श्रद्धा और सच्चे विश्वास का
बिछियां पैरों में हो माथे पर बिंदिया
हर जन्म में मिलन हो हमारा पिया
गणगौर की घणी घणी बधाई

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चंदन की खुशबू, फागुन की बहार
आप सभी को गणगौर की बधाई

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आया रे आया गणगौर का त्यौहार है आया
संग में खुशियां और प्यार है लाया
गणगौर पर्व की आपकों बधाई 

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माँ पार्वती आप पर अपनी कृपा हमेशा बनाए रखे
आपको गणगौर पर्व की बधाई

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गणगौर है उमंगो का त्यौहार
फूल खिले है बागों में फागुन की है फुहार
दिल से आप सब को हो मुबारक
प्यारा ये शिव गौरी का पर्व  gangaur festival wishes

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गणगौर की पूजा विधि
गणगौर के दिन यदि विवाहित और अविवाहित कन्याओं द्वारा पूर्ण श्रद्धा तथा भक्ति के साथ व्रत रखा जाए तो उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं. 

चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन गणगौर का व्रत किया जाता हैं. इस दिन साधक कथा का वाचन, गीत, नृत्य, मेहँदी एवं सोलह श्रृंगार के साथ इस व्रत को रखती हैं.

यह व्रत करने के लिए कृष्ण पक्ष की एकादशी यानि की पापमोचिनी एकादशी को काष्ट की टोकरी में ज्वार भिगोए जाते हैं. 

साधक को एकादशी से शुक्ल तीज तक दिन में एक समय भोजन करते हुए व्रत रखा जाता हैं. उन्ही भीगे हुए ज्वारों के साथ शिव पार्वती जी की पूजा की जाती हैं. शिव पार्वती की मूर्ति के विसर्जन के दिन तक उनका पूजन होता हैं.


सुहाग के समस्त चिह्नों को पार्वती जी को अर्पित किये जाते हैं. शिव पार्वती पूजन तथा गणगौर की कथा सुनने के बाद सिंदूर से अपनी मांग भर शिव पार्वती से लम्बे सुहाग की कामना करनी चाहिए. 

वहीँ कुवारी कन्याओं द्वारा गौरी माता का वर प्राप्ति का आशीर्वाद लिया जाता हैं. शिव गौरी पूजन के बाद उन्हें जल स्रोत से स्नान कराने के बाद गाजे बाजे के साथ उनकी शोभायात्रा निकालकर विसर्जन किया जाता है.

गणगौर दोहा 

गौर गौर गणपति, ईसर पूजे पार्वती,
पार्वती के आला टिका, गौर के सोने का टिका, 
माथे है रोली का टिका,
टिका दे चमका दे राजा राजना वरत करे।
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हल्दी गांठ गठीली ईसर राज की
ब्रह्मदास की बहू है हठीली,
मांगी सोना री बिंदी, बिंदी बेच घड़ाई बई पारो झमकाई।
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